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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

अधिकार कविता का सारांश अँग्रेजी में लिखें।

Answer»

This poem has been taken from poet Mahadevi Verma’s collection of poems titled ‘Nihaar’.
The poet says that the flowers that bloom and smile, they do not know how to wither and the stars that shine brightly, they do not know how to extinguish themselves. What is implied is that flowers always want to remain fresh and beautiful and the stars always want to keep shining brightly.

One is inspired by the clouds as well as the rainy season to be a cloud, which stays constant, rather than the clouds which dissolve into the rain. We are motivated by the king of seasons, the rainy season or the spring season, such that we wish that it always remains steady and does not leave.

It is the order of life that we must accept whatever comes our way whenever it does. Only then can life be successful. In reality, we can only say that one’s life has been purposeful if one faces the difficulties that come, not if one runs away from problems.

The poet asks what is to be done with a world in which there is no destruction and in which there is no pain or suffering? One who has not learnt to get burnt and one who has not learnt to get destroyed, what use is such a life?

The world moves at a fast pace. Life and death are the eternal truths of this world. Will we be blessed to enter the world of immortality? Will we be blessed with divine compassion? However, the poet dismisses the offer of a world of immortality. She beseeches God that it is her right to die and be wiped away.

2.

कानूनी अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

Answer»

कानूनी अधिकार दो प्रकार के होते है।
(i) सामाजिक अधिकार तथा
(ii) राजनीतिक अधिकार।

3.

लॉक द्वारा बताए गए किन्हीं दो प्राकृतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

(i) स्वतन्त्रता का अधिकार,
(ii) सम्पत्ति का अधिकार।

4.

अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धान्त के समर्थक किन्हीं दो विचारकों के नाम बताइए।

Answer»

थॉमस हिल ग्रीन एवं बोसांके।

5.

अधिकारों के सामाजिक कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्त के समर्थक कौन हैं?(क) बेन्थम(ख) रूसो(ग) रिची(घ) लॉस्की

Answer»

सही विकल्प है (क) बेन्थम।

6.

अधिकारों के ऐतिहासिक और समाज कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों को संक्षेप में लिखिए।

Answer»

अधिकारों का ऐतिहासिक सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकारों की उत्पत्ति प्राचीन रीति-रिवाजों के परिणामस्वरूप होती है। जिन रीति-रिवाजों को समाज स्वीकृति दे देता है, वे अधिकार का रूप धारण कर लेते हैं। इस सिद्धान्त के समर्थकों के अनुसार, अधिकार परम्परागत हैं तथा सतत् विकास के परिणाम हैं। इसके अतिरिक्त इनका आधार ऐतिहासिक है। इंग्लैण्ड के संवैधानिक इतिहास में परम्परागत अधिकारों का बहुत अधिक महत्त्व रहा है।

आलोचना- इस सिद्धान्त के आलोचकों का मत है कि अधिकारों का आधार केवल रीति-रिवाज तथा परम्पराएँ नहीं हो सकतीं, क्योंकि कुछ परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज समाज के कल्याण में बाधक होते हैं। अत: इस दृष्टि से यह सिद्धान्त तर्कसंगत नहीं है।

अधिकारों का समाज-कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्त

जे०एस० मिल, जेरमी बेन्थम, पाउण्ड तथा लॉस्की आदि ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया है। इस सिद्धान्त का प्रमुख लक्ष्य उपयोगिता या समाज-कल्याण है। प्रो० लॉस्की के अनुसार, “अधिकारों का औचित्य उनकी उपयोगिता के आधार पर आँकना चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार वे साधन हैं, जिनसे समाज का कल्याण होता है। लॉस्की का मत है, “लोक-कल्याण के विरुद्ध मेरे अधिकार नहीं हो सकते; क्योंकि ऐसा करना मुझे उस कल्याण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करता है। जिसमें मेरा कल्याण घनिष्ठ तथा अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।”

इस सिद्धान्त की निम्नलिखित मान्यताएँ हैं
⦁     अधिकार समाज की देन हैं, प्रकृति की नहीं।
⦁     अधिकारों का अस्तित्व समाज-कल्याण पर आधारित है।
⦁     व्यक्ति केवल उन्हीं अधिकारों का प्रयोग का सकता है, जो समाज के हित में हों।
⦁     कानून, रीति-रिवाज तथा अधिकार सभी का उद्देश्य समाज-कल्याण है।

आलोचना- यह सिद्धान्त तर्कसंगत और उपयोगी तो है, किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि यह सिद्धान्त समाज-कल्याण की ओट में राज्य को व्यक्तियों की स्वतन्त्रता का अपहरण करने का अवसर प्रदान करती है, लेकिन समीक्षात्मक दृष्टि से यह दोष महत्त्वहीन है।

7.

अधिकारों के समाज कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों का समर्थन किस विचारक ने किया है?

Answer»

अधिकारों के समाज कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों का समर्थन लॉस्की ने किया है।

8.

अधिकार वह माँग है, जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है। यह कथन किसका है?(क) हॉलैण्ड(ख) बोसांके(ग) वाइल्ड(घ) ऑस्टिन

Answer»

सही विकल्प है (ख) बोसांके।

9.

“अधिकार कुछ विशेष कार्यों को करने की स्वतन्त्रता की उचित माँग है।” यह कथन किसका है?(क) वाइल्ड(ख) बेनीप्रसाद(ग) श्रीनिवास शास्त्री(घ) ग्रीन

Answer»

सही विकल्प है (क) वाइल्ड।

10.

मानवाधिकार क्या है? मानवाधिकार प्राप्ति की दिशा में क्या कार्य हो रहे हैं?

Answer»

विगत कुछ वर्षों से प्राकृतिक अधिकार शब्द से अधिक मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है। मानवाधिकारों के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने मात्र से कुछ चीजों को पाने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट और समान महत्त्व का है। इसका अर्थ यह है कि आन्तरिक दृष्टि से सभी समान हैं। सभी एक आन्तरिक मूल्य से सम्पन्न होते हैं और उन्हें स्वतन्त्र रहने तथा अपनी पूरी सम्भावना को साकार करने का अवसर मिलना चाहिए। इस विचार का प्रयोग नस्ल, जाति, धर्म और लिंग पर आधारित वर्तमान असमानताओं को चुनौती देने के लिए किया जाता रहा है।

अधिकारों की इसी समझदारी पर मानव अधिकार सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र बना है। यह उन दावों को मान्यता देने का प्रयास करता है, जिन्हें विश्व समुदाय सामूहिक रूप से गरिमा और आत्म-सम्मान परिपूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक मानता है।

सम्पूर्ण विश्व के उत्पीड़ित जन सार्वभौम मानवाधिकार की अवधारणा का प्रयोग उन कानूनों को चुनौती देने के लिए कर रहे हैं, जो उन्हें पृथक् करने वाले और समान अवसरों तथा अधिकारों से वंचित करते हैं। वे मानवता की अवधारणा की पुनर्व्याख्या के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिससे वे स्वयं को इसमें सम्मिलित कर सकें।

कुछ संघर्ष सफल भी हुए हैं, जैसे दास प्रथा का उन्मूलन हुआ। लेकिन कुछ अन्य संघर्षों में अभी तक सीमित सफलता ही प्राप्त हो सकी है। लेकिन आज भी अनेक ऐसे समुदाय हैं, जो मानवता को इस प्रकार परिभाषित करने के संघर्ष में लगे हैं जो उन्हें भी सम्मिलित करे।

विविध समाजों में जैसे-जैसे नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आई हैं, वैसे-वैसे ही उन मानवाधिकारों की सूची निरन्तर बढ़ती गई है जिनका लोगों ने दावा किया है। उदाहरणार्थ, हम आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की आवश्यकता के प्रति बहुत सचेत हैं और इसने स्वच्छ हवा, शुद्ध जल, सुदृढ़ विकास जैसे अधिकारों की माँगें पैदा की हैं। यद्ध अथवा प्राकृतिक संकट के समय अनेक लोग विशेषकर महिलाएँ, बच्चे या बीमार जिन परिवर्तनों का सामना करते हैं उनके विषय में नई जागरूकता ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार और ऐसे अन्य अधिकारों की माँग भी पैदा की है। ऐसे दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक आक्रोश का भाव प्रकट करते हैं और वे समस्त मानव समुदाय के लिए अधिकारों के प्रयोग और विस्तार के लिए एकजुट होने का आह्वान करते हैं।

11.

मौलिक अधिकार क्या हैं? मौलिक अधिकारों का महत्त्व लिखिए।

Answer»

वे अधिकार, जो मानव-जीवन के लिए मौलिक तथा आवश्यक हैं तथा जिन्हें संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किया जाता हैं तथा संविधान में प्रदत्त प्रावधानों के अन्तर्गत इनकी सुरक्षा की भी व्यवस्था होती है, ‘मौलिक अधिकार’ कहलाते हैं।

मौलिक अधिकारों का महत्त्व

⦁     मौलिक अधिकार प्रजातन्त्र के आधार स्तम्भ हैं। ये व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक तथा नागरिक जीवन के प्रभावात्मक उपयोग के एकमात्र साधन हैं। मौलिक अधिकारों द्वारा उन आधारभूत स्वतन्त्रताओं तथा स्थितियों की व्यवस्था की जाती है जिसके अभाव में व्यक्ति उचित रूप से अपना जीवनयापन नहीं कर सकता है।
⦁     मौलिक अधिकार किसी व्यक्ति विशेष, वर्ग अथवा दल की तानाशाही को रोकने का प्रमुख साधन हैं। मौलिक अधिकार सरकार एवं बहुमत के अत्याचारों से व्यक्ति की, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं।
⦁     मौलिक अधिकार व्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा सामाजिक नियन्त्रण के मध्य उचित सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
⦁     मौलिक अधिकार नागरिकों को न्याय तथा उचित व्यवहार की सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये राज्य के बढ़ते हुए हस्तक्षेप तथा व्यक्ति की स्वतन्त्रता के मध्य उचित सन्तुलन स्थापित करते हैं।

12.

अधिकार जनसाधारण पर क्या जिम्मेदारियाँ डालते हैं? संक्षेप में लिखिए।

Answer»

अधिकार न केवल राज्य पर यह जिम्मेदारी डालते हैं कि वह विशिष्ट प्रकार से काम करे बल्कि जनसाधारण पर भी जिम्मेदारी डालते हैं। उदाहरण के लिए, टिकाऊ विकास का मामला लें। हमारे अधिकार हमें याद दिलाते हैं कि इसके लिए न केवल राज्य को कुछ कदम उठाने हैं, बल्कि हमें भी इस दिशा में प्रयास करने हैं। अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी आवश्यकताओं और हितों के विषय में ही न सोचें, वरन कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सबके लिए लाभदायक हैं। ओजोन परत की रक्षा करना, वायु और जल प्रदूषण कम-से-कम करना, नए वृक्ष लगाकर और जंगलों की कटाई रोककर हरियाली बनाए रखना, पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाए रखना आदि ऐसी चीजें हैं, जो हम सबके लिए अनिवार्य हैं। ये जनसाधारण के लाभ की बातें हैं, जिनका पालने हमें अपनी और भावी पीढ़ियों की रक्षा के लिए भी अवश्य करना चाहिए। आने वाली पीढ़ियों को भी । सुरक्षित और स्वच्छ दुनिया प्राप्त करने का अधिकार है, इसके बिना वे बेहतर जीवन नहीं जी सकतीं।

अधिकार यह भी जिम्मेदारी डालते हैं कि हम अन्य लोगों के अधिकारों का भी सम्मान करें। टकराव की स्थिति में जनसाधारण को अधिकारों को सन्तुलित करना होता है। उदाहरणार्थ, अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार किसी को भी तस्वीर लेने की अनुमति देता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपने घर में नहाते हुए किसी व्यक्ति की उसकी अनुमति के बिना तस्वीर ले ले और उसे इण्टरनेट में डाल दे, तो यह गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियन्त्रणों के बारे में भी ध्यान देना होगा। अद्यतन एक विषय जिस पर बहुत अधिक चर्चा हो रही है। यह बढ़ते प्रतिबन्धों से सम्बन्धित है। ये प्रतिबन्ध कई सरकारे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों की नागरिक स्वतन्त्रताओं पर लगा रही हैं। नागरिकों के अधिकारों और भलाई की रक्षा के लिए आवश्यक मानकर राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने का समर्थन किया जा सकता है।

लेकिन किसी बिन्दु पर सुरक्षा के लिए आवश्यक मानकर थोपे गए प्रतिबन्ध अपने-आप में लोगों में अधिकारों के लिए खतरा बन जाएँ तो? क्या आतंकी बमबारी की धमकी का सामना करते राष्ट्र को अपने नागरिकों की आजादी छीन लेने की आज्ञा दी जा सकती है? क्या उसे केवल सन्देह के आधार पर किसी को गिरफ्तार करने की अनुमति मिलनी चाहिए? क्या उसे लोगों की चिट्ठियाँ देखने यो फोन टेप करने की छूट दी जा सकती है? क्या सच कबूल करवाने के लिए उसे यातना देने का सहारा लेने दिया जाना चाहिए? ऐसी स्थितियों में यह सवाल उत्पन्न होता है कि सम्बद्ध व्यक्ति समाज के लिए खतरा तो नहीं पैदा कर रहा? गिरफ्तार लोगों को भी कानूनी सलाह प्राप्त करने का आज्ञा और दण्डाधिकारी या न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए। नागरिक स्वतन्त्रता में कटौती करने के प्रश्न पर अत्यन्त सावधान होने की आवश्यकता है क्योंकि इनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। सरकारें निरकुंश हो सकती हैं और वे उन उद्देश्यों की ही जड़ खोद सकती हैं जिनके लिए सरकारें बनती हैं—यानी लोगों के कल्याण की। इसलिए यह मानते हुए भी कि अधिकार कभी सम्पूर्ण-सर्वोच्च नहीं हो सकते, हमें अपने एवं दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने में चौकस रहने की आवश्यकता है क्योकि ये लोकतान्त्रिक समाज की बुनियाद का निर्माण करते

13.

अधिकारों की उत्पत्ति के प्राकृतिक सिद्धान्त के समर्थकों में कौन नहीं है?(क) हॉब्स(ख) बर्क(ग) रूसो(घ) लॉक

Answer»

सही विकल्प है (ख) बर्क।

14.

नागरिक के दो प्राकृतिक अधिकार बताइए।

Answer»

(i) जीवन का अधिकार,
(ii) सम्पत्ति का अधिकार।

15.

अधिकारों के वैधानिक सिद्धान्त के समर्थक हैं(क) गिलक्राइस्ट(ख) अरस्तू(ग) हॉलैण्ड(घ) जैफरसन

Answer»

सही विकल्प है (ग) हॉलैण्ड। 

16.

संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, आदिवासियों के अपने रहवास और जीन के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बँधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया जा सकता है।

Answer»

वर्तमान में कुछ नए अधिकारों की चर्चा होने लगी है। उनमें प्रमुख हैं-

1. अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार – यह अधिकार सांस्कृतिक अधिकारों के अन्तर्गत रखा जा सकता है। अब विभिन्न भाषा-भाषी राज्यों में यह माँग उठने लगी है कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाए, क्योंकि मातृभाषा को सीखने और उसके माध्यम से शिक्षा पाने का उन्हें पूर्ण अधिकार है।
2. अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएँ खोलने का अधिकार – अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा और उसके विकास के लिए कुछ अल्पसंख्यक इस प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को प्रारम्भ करने के लिए इसे अधिकार के रूप में मानने लगे हैं। भारत में यह सुविधा प्रदान की गई है।

17.

अधिकारों से सम्बन्धित प्राकृतिक सिद्धान्त और वैधानिक सिद्धान्त के विषय में आप क्या जानते हैं?

Answer»

अधिकारों को प्राकृतिक सिद्धान्त
हॉब्स, लॉक तथा रूसो आदि विद्वानों ने अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त का समर्थन किया है। यह सिद्धान्त अति प्राचीन है। इसके अनुसार अधिकार प्रकृति-प्रदत्त हैं और वे व्यक्ति को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते हैं। व्यक्ति प्राकृतिक अधिकारों का प्रयोग राज्य के उदय के पूर्व से ही करता आ रहा है। राज्य इन अधिकारों को न तो छीन सकता है और न ही वह इनका जन्मदाता है। टॉमस पेन के अनुसार, “प्राकृतिक अधिकार वे अधिकार हैं, जो मनुष्य के अस्तित्व को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं।” इस दृष्टिकोण से अधिकार असीमित, निरपेक्ष तथा स्वयंसिद्ध हैं। राज्य इन अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

आलोचना- इस सिद्धान्त में कतिपय दोष निम्नलिखित हैं-
⦁     यह सिद्धान्त अनैतिहासिक है, क्योंकि जिस प्राकृतिक व्यवस्था के अन्तर्गत इन अधिकारों के प्राप्त होने का उल्लेख किया गया है, वह काल्पनिक है।
⦁     ग्रीन का मत है कि समाज से प्रथक् कोई भी अधिकार सम्भव नहीं है।
⦁     यह सिद्धान्त राज्य को कृत्रिम संस्था मानता है, जो अनुचित है।
⦁     प्राकृतिक अधिकारों में परस्पर विरोधाभास पाया जाता है।
⦁     यह सिद्धान्त कर्तव्यों के प्रति मौन है, जबकि कर्त्तव्य के अभाव में अधिकारों का अस्तित्व सम्भव नहीं है।

अधिकारों का कानूनी या वैधानिक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक बेन्थम, हॉलैण्ड ऑस्टिन आदि विचारक हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार राज्य की इच्छा का परिणाम है और राज्य ही अधिकारों का जन्मदाता है। यह सिद्धान्त प्राकृतिक सिद्धान्त के विपरीत है। व्यक्ति राज्य के सरंक्षण में रहकर ही अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। राज्य ही कानून द्वारा ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न करता है, जहाँ कि व्यक्ति अपने अधिकारों का स्वतन्त्रतापूर्वक प्रयोग कर सके। राज्य ही अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि अधिकारों का अस्तित्व केवल राज्य के अन्तर्गत ही सम्भव है।

आलोचना—इस सिद्धान्त में कतिपय दोष निम्नलिखित हैं-
⦁     इस सिद्धान्त से राज्य की निरंकुशता का समर्थन होता है।
⦁     राज्य नैतिक बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
⦁     अधिकारों में स्थायित्व नहीं रहता है।

18.

सामाजिक या नागरिक अधिकारों को संक्षेप में लिखिए।

Answer»

सामाजिक या नागरिक अधिकार
सामाजिक या नागरिक अधिकार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होते हैं। मुख्य सामाजिक अधिकार निम्नलिखित हैं

⦁     जीवन-रक्षा का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन की सुरक्षा चाहता है। यदि व्यक्ति को जीने का अधिकार प्राप्त न हो या उसके जीवन की सुरक्षा न हो, तो उस दशा में उसका सामाजिक जीवन कष्टदायी हो जाएगा। वह प्रत्येक क्षण अपने जीवन की सुरक्षा के लिए चिन्तित रहेगा और समाज के किसी भी कार्य में अपना योगदान नहीं कर सकेगा। भारत के परिप्रेक्ष्य में इस अधिकार को मौलिक अधिकारों (अनु० 21) के अन्तर्गत विशेष महत्त्व की स्थिति प्रदान की गई है।
⦁     सम्पत्ति का अधिकार- सम्पत्ति व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति का एक प्रमुख साधन है, . | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार उसका उपभोग करने का अधिकार प्राप्त होना। चाहिए। इस अधिकार के अन्तर्गत व्यक्ति को सम्पत्ति अर्जित करने, खरीदने, बेचने और उसका उपभोग करने का अधिकार है। यूनानी विचारक अरस्तू का मत था कि सम्पत्ति व्यक्ति के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितनी कि परिवार या कुटुम्ब की आवश्यकता। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि सम्पत्ति ही सब कष्टों की जननी है। उनके अनुसार सम्पत्ति पूँजीवादी व्यवस्था को जन्म देती है और समाज में वर्ग-संघर्ष उत्पन्न करती है। अत: समाज में सम्पत्ति का न्यायपूर्ण वितरण होना आवश्यक है। सम्भवतः इसी दृष्टिकोण को देखते हुए भारत के संविधान में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से पृथक् कर दिया गया है।
⦁     शिक्षा का अधिकार- शिक्षा मानवे व्यक्तित्व के विकास की आधारशिला है। समाज और राष्ट्र का विकास शिक्षित व्यक्तियों पर ही आधारित है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
⦁     धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार- मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति के लिए धर्म जीवन का एक अनिवार्य तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी धर्म का अनुयायी होता है। अतः राज्य को धर्मनिरपेक्ष रहकर प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान करना चाहिए। जैसा कि रूसो को कथन है, “जब तक उनके सिद्धान्त नागरिकता के कर्तव्यों के प्रतिकूल न हों, व्यक्ति को उन सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, जो दूसरों के प्रति सहिष्णु है।”
⦁     लेखन एवं विचाराभिव्यक्ति को अधिकार- राज्य को चाहिए कि वह प्रत्येक व्यक्ति को लेखन, भाषण और विचाराभिव्यक्ति का अधिकार प्रदान करे। इस अधिकार द्वारा व्यक्ति का मानसिक विकास सम्भव होता है, लेकिन मनुष्य को यह अधिकार कानून की सीमा के अन्तर्गत ही प्रदान किया जाना चाहिए।
⦁     सभा करने व संगठन बनाने का अधिकार- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह एकाकी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है; अतः उसे सभा करने या समुदाय बनाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। लेकिन इस अधिकार का उपभोग राज्य के कानूनों की सीमा के अन्तर्गत ही होना चाहिए।
⦁     आवागमन का अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को राज्य की सीमा के अन्तर्गत स्वतन्त्रतापूर्वक ऐक स्थान से दूसरे स्थान को जाने की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। गिलक्राइस्ट के अनुसार, स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने के अधिकार के अभाव में जीवन का कोई भी अर्थ नहीं है।
⦁     पारिवारिक जीवन व्यतीत करने का अधिकार- परिवार सामाजिक जीवन की आधारशिला है; अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार पारिवारिक जीवन व्यतीत करने को अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए। परन्तु इस अधिकार का यह अर्थ कदापि नहीं है। कि परिवार समाज की नैतिक सीमाओं का उल्लंघन करे और परिवार के सदस्यों को दुराचार की शिक्षा दे। ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी राज्य द्वारा हस्तक्षेप किया जा सकता है।
⦁     मनोरंजन का अधिकार- प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक श्रम करने के उपरान्त मनोरंजन की आवश्यकता होती है। अत: व्यक्ति को अवकाश के समय मनोरंजन का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए।
⦁     सांस्कृतिक अधिकार- इस अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी भाषा एवं साहित्य को अध्ययन व विकास कर सके। अल्पसंख्यकों के लिए यह अधिकार बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
⦁     व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार- व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की स्वतन्त्रता हो कि वह अपनी इच्छा तथा योग्यतानुसार व्यवसाय का चयन कर सके।

19.

अधिकार किसे कहते हैं?

Answer»

अधिकार वह माँग है, जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य क्रियान्वित करता है।

20.

अधिकारों की एक परिभाषा लिखिए।

Answer»

डॉ० बेनीप्रसाद के अनुसार, “अधिकार वे सामाजिक दशाएँ हैं, जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं।”

21.

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :ऐसा तेरा लोक, वेदनानहीं, नहीं जिसमें अवसाद,जलना जाना नहीं, नहीं-जिसने जाना मिटने का स्वाद!

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

संदर्भ : यहाँ महादेवी वर्मा अपने अज्ञात प्रियतम से कहती हैं कि जिसमें न तो विरह वेदना है और न ही किसी का दुख है, हे देव यह लोक मुझे नहीं चाहिए। मैं तो इस लोक में अपने वेदनामय जीवन से ही सुखी हूँ।

स्पष्टीकरण : महादेवी वर्मा इन पक्तियों में कहती हैं कि जिस लोक में अवसाद नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जो खुद अपने लिए जीता है, उसका जीना भी क्या? जो परिस्थितियों का डटकर सामना करता है, वही असली जीना जीता है। जिसमें आग नहीं, जिसने जलना नहीं जाना, उसका जीना भी क्या? वह तो खुशी से मर-मिटना भी नहीं जानता। जो दुःख का सामना करना जानता है, मर-मिटना जानता है, वही मुसकुराना भी जानता है।

22.

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :वे मुस्काते फूल, नहीं-जिनको आता है मुरझाना,वे तारों के दीप, नहीं-जिनको भाता है बुझ जाना।

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

संदर्भ : महादेवी जी के इस सरस गीत में वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। वे अपने अज्ञात प्रियतम की विरह की पीड़ा पर अपना अधिकार बनाये रखना चाहती है। वे सर्वसुख सम्पन्न लोक की कामना नहीं करतीं। वे सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करती हैं।

व्याख्या : महादेवी वर्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) को संबोधित करती हुई कहती हैं कि मैंने सुना है कि तुम्हारे लोक (स्वर्ग) में फूल सदैव खिले रहते हैं उन्होंने कभी मुरझाना नहीं सीखा है, किन्तु मैं तो वे फूल चाहती हूँ जिन्होंने मुरझाना भी सीखा है। पीडा का अपना आनंद है। आपके स्वर्ग लोक में तारों के दीपक हैं जिनको बुझ जाना कभी अच्छा नहीं लगता है, अर्थात् वे सदैव जलते रहते हैं। यादि तुम मुझे अपना लोक प्रदान करो तो मुझे ये दीपक नहीं चाहिए। मुझे तो संघर्षशील मिट्टी के दीपक अच्छे लगते है जो दुःख और सुख से युक्त इस संसार को प्रकाशित करते हैं। मुझे तो दुःखों का साथ ही अच्छा लगता है।

विशेष : मानव जीवन में उत्पन्न वेदना की अनुभूति को प्रतिपादित किया है।
भाषा – शुद्ध हिन्दी खड़ी बोली है।
शैली – भावात्मक गीति शैली है।
रस-छन्द – मुक्तक छंद, गुण-माधुर्य, संपूर्ण पद में पद मैत्री है।

23.

दो मूल अधिकारों के नाम लिखिए।

Answer»

(i) समानता का अधिकार,
(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार।

24.

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :क्या अमरों का लोक मिलेगा?तेरी करुणा का उपहार?रहने दो हे देव! अरेयह मेरा मिटने का अधिकार!

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

भाव स्पष्टीकरण : आधुनिक मीरा कहलाने वाली महादेवी वर्मा जी वेदना, अवसाद, करुणा, दुःख, यातना, पीड़ा को मानव जीवन के अविभाज्य अंग मानती हैं। वे इन अनुभवों को स्वर्ग सुख से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानती हैं। स्वर्ग लोक में सुख ही सुख है, दुःख का नाम ही सुनाई नहीं देता। दुःख, अवसाद, पीड़ा आदि ये सब मानव की अमूल्य निधियाँ है। तुम्हारे ऐसे स्वर्ग लोक में आकर मैं क्या करूँ? मुझे तो मानव लोक ही मधुर लगता है। हे भगवान! मधुर पीड़ा से मर मिटने का अधिकार मेरे लिए ही छोड़ दो।

25.

अधिकारों के दो भेद बताइए।

Answer»

(i)सामाजिक अधिकार,
(ii) राजनीतिक अधिकार।

26.

कवयित्री किस अधिकार की बात कर रही हैं?

Answer»

कवयित्री मिटने के अधिकार की बात कर रही है।

27.

परमात्मा की करुणा से कवयित्री को क्या मिला?

Answer»

परमात्मा की करुणा से कवयित्री को मिटने का अधिकार मिला।

28.

तारों के दीप को क्या भाना चाहिए?

Answer»

तारों के दीप को बुझ जाना भाना चाहिए।

29.

अधिकार कवयित्री परिचय :

Answer»

बहुमुखी प्रतिभा संपन्न एवं प्रमुख छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई. में फरूखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। माता के आदर्शमय चरित्र एवं आस्तिकता तथा नाना के ब्रजभाषा प्रेम से प्रभावित होकर आप बचपन से ही साहित्य की ओर उन्मुख हुईं। आपकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में तथा उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। घर पर ही संगीत और चित्रकला की शिक्षा भी दी गई। प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (संस्कृत) के उपरांत महिला विद्यापीठ, प्रयाग में प्राचार्या के पद पर नियुक्त हुईं। गद्य और पद्य दोनों में निपुण महादेवी वर्मा को ‘यामा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपकी साहित्य साधना के फलस्वरूप भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। आपकी मृत्यु 11 सितम्बर 1987 ई. को हुई।

  • काव्य ग्रंथ : ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘दीपशिखा’, आदि।
  • गद्य रचनाएँ : ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’ आदि।
30.

मेघ में किस चीज़ की चाह होनी चाहिए?

Answer»

मेघ में घुल जाने की चाह होनी चाहिए।

31.

ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :वे सूने से नयन, नहीं-जिनमें बनते आँसू-मोती;वह प्राणों की सेज, नहीं-जिनमें बेसुध पीड़ा सोती;

Answer»

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

संदर्भ : उपरोक्त पद्यांश में कवयित्री अपने अज्ञान प्रियतम की विरह-पीड़ा पर अधिकार बनाये रखना चाहती हैं। वे सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करती है।

स्पष्टीकरण : महादेवी वर्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) को संबोधित करते हुए कहती हैं कि मैने सुना है आपके स्वर्ग लोक में कभी कोई वियोग में, दुःख में रोता नहीं हैं। उनके आँसुओं से रहित नेत्र बड़े ही सूने-सूने से दिखते हैं। स्वर्ग के निवासियों के नेत्रों से कभी आँसू मोती बनकर नहीं छलकते हैं। वहाँ के लोग विरह-व्यथा से दुःखी होकर सेज पर नहीं सोते अर्थात उन्हें कभी विरहव्यथा नहीं सताती है। इस तरह की सेज जिस पर पीड़ा से व्यथित होकर लोग न सोते हो, उसकी मेरी कोई कामना नहीं है। मुझे तो यह सांसारिक सुख-दुःख ही अच्छे लगते हैं।

विशेष : साहित्यिक हिन्दी। खड़ी बोली का प्रयोग। छायावादी भाव की कविता। वियोग रस का निरूपण।

32.

मुस्काते फूल को क्या आना चाहिए?

Answer»

मुस्काते फूलों को मुरझाना भी आना चाहिए।

33.

आँखों की सुंदरता किससे बढ़ती है?

Answer»

आँखों की सुंदरता आँसू रूपी मोतियों से बढ़ती है।

34.

कवयित्री को किसकी चाह नहीं हैं?

Answer»

कवयित्री को अमरों के लोक की चाह नहीं हैं।

35.

बादल एवं वसन्त ऋतु से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

Answer»

बादलों से तथा वसन्त ऋतु से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम स्वर्ग में नीलम की तरह रहने वाले बादल न बने बल्कि जिस प्रकार बादल उमड़-घुमड़कर इस तृप्त धरा को शीतलता प्रदान करते हैं वैसे ही हमें दूसरों की पीड़ा में शामिल होना चाहिए। ऋतुराज वसन्त से यह प्रेरणा मिलती है कि वह जिस प्रकार बार बार नित नूतन बनकर आता है वैसे हमें भी जीवन में नित नये प्रयोग करते रहना चाहिए।

36.

अधिकार कविता का भावार्थ :

Answer»

1) वे मुस्काते फूल, नहीं-
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं-
जिनको भाता है बुझ जाना;

कवयित्री अपने प्रियतम (परमात्मा) को संबोधित करती हुई कहती है- देव, मैंने सुना है कि तुम्हारे लोक में फूल सदैव मुस्काते हुए खिले रहते हैं, जिन्हें मुरझाना नहीं आता। तुम्हारे यहाँ दीप रूपी तारे भी हमेशा जगमगाते रहते हैं और वे बुझते नहीं है। महादेवी देवलोक की इस विशेषता को महत्वहीन मानती है। उनका कहना है कि फूलों की खूबसूरती खिलकर मुरझाने में और तारों की सुंदरता जगमगा कर बुझ जाने में है। जीवन का असली सौन्दर्य तो सुख और दुःख के साथ है।

2) वे नीलम से मेघ, नहीं-
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनन्त ऋतुराज, नहीं-
जिसने देखी जाने की राह!

कवयित्री कहती है- देव, आपके लोक में नीलम के समान बादल है जो कभी घुलते नहीं है। ऐसे बादल जिनमें घुलने की चाह, मिलकर बिखरने की चाह नहीं हो वे कृत्रिम ज्ञात पड़ते है। बादलों का महत्त्व तो घुलकर बरसने में ही है।

आपके यहाँ तो हमेशा एक ही ऋतु रहती है। वह पृथ्वी की तरह कभी बदलती नहीं है। ऋतुओं का काम तो आना और जाना है। परिवर्तन में ही तो जीवन का आनंद है।

3) वे सूने से नयन, नहीं-
जिनमें बनते आँसू-मोती;
वह प्राणों की सेज, नहीं-
जिनमें बेसुध पीड़ा सोती;

कवयित्री कहती हैं- देव, देवलोक के लोगों को कोई दुःख दर्द नहीं है। वहाँ किसी के भी आँखों में आँसू मोती बनकर नहीं गिरते है। सुख और दुःख तो जीवन का अभिन्न अंग है। दुःख है.तभी तो सुख का आनंद है। लगता है देवलोक दुःखों से घबराता है।
सुना है देवलोक में किसी को विरह वेदना नहीं होती। वहाँ अपने प्रियतम के वियोग में कोई तड़पता नहीं है। प्रेम का महत्त्व तो वियोग से, बिछड़ने से ही मालूम होता है।

4) ऐसा तेरा लोक, वेदना
नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं-
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

कवयित्री कहती है- देव, तुम्हारे लोक में वेदना का अभाव है। अवसाद नहीं है। दुःख नहीं है। ऐसे लोक का क्या महत्त्व है? जब तक मनुष्य दुःख नहीं भोगे, अंधकार का अनुभव नहीं करे तब तक उसे सुख और जीवन के आनंद का अनुभव नहीं हो सकता। सुख और दुःख तो जीवन का दूसरा नाम है। जीवन का महत्तव प्रतिकूल स्थितियों से टकराकर आगे बढ़ने में है। जिसने जलना नहीं जाना, मिटना नहीं सीखा, उसे जीवन कैसे कह सकते हैं?

5) क्या अमरों का लोक मिलेगा?
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार!

कवयित्री अंत में ईश्वर को संबोधित करती हुई कहती है – देव, आप मुझे उपहार में अमर लोक देना चाहते हैं। दुःख-दर्द रहित खुशी देना चाहते हैं। मगर हे देव, मुझे तो यही गतिशील संसार पसंद है। हे भगवान! मधुर पीड़ा से मर मिटने का अधिकार दो अर्थात् मुझे इसी लोक में छोड़ दो।

37.

अधिकार कविता का आशय :

Answer»

प्रस्तुत कविता महादेवी वर्मा की ‘नीहार’ काव्यग्रंथ से ली गई है। वेदना और करुणा आपके काव्य की अनुभूति है। जीवन की सार्थकता परिस्थितियों से मुकाबला करने में है, न कि पलायन करने में। फूल, तारे, वसंत, बादल आदि प्रकृति से अनेक बिम्बों का प्रयोग करके, जीवन के प्रति गहरी आस्था व्यक्त की गई है। वे अमरों के लोक को भी ठुकरा कर अपने मिटने के अधिकार को बचाये रखना चाहती हैं। निरंतर आगे बढ़ने के लिए कवयित्री संदेश देती हैं।

38.

प्राणों की सार्थकता किसमें है?

Answer»

प्राणों की सार्थकता उसी में है, जिनमें बेसुध पीड़ा सोती।

39.

ऋतुराज को कौन-सी राह देखनी चाहिए?

Answer»

ऋतुराज को जाने की राह देखनी चाहिए।

40.

‘अधिकार’ कविता के द्वारा कवयित्री ने क्या संदेश दिया हैं?

Answer»

महादेवी वर्मा ने वेदना का स्वागत करते हुए कहा है कि जिस लोक में अवसाद नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जीवन की सार्थकता परिस्थितियों से डट कर मुकाबला करने में है। फूल, तारे, बादल, वसंत आदि प्रकृति से अनेक बिम्बों का प्रयोग करके कवयित्री ने जीवन के प्रति गहरी आस्था व्यक्त की है। कवयित्री को वेदना का वह रूप प्रिय है जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय को समस्त संसार से बाँध देता है। जीवन में वेदना की अनुभूति का महत्व तथा संघर्ष पथ पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश दिया है।

41.

फूल एवं तारों के विषय में कवयित्री महादेवी वर्मा क्या कहती हैं?

Answer»

फूल और तारों को बिम्ब के रूप में प्रयोग करते हुए कवयित्री ने इनके माध्यम से जीवन की नश्वरता एवं अस्थिरता पर प्रकाश डाला है। फूल जो खिलकर सबको प्रसन्नचित्त करता है उसे एक दिन मुरझाना भी पड़ता है। जिन फूलों को मुरझाना नहीं आता उन्हें मुस्कुराने का भी हक नहीं है। तारे जो विस्तीर्ण आकाश में टिमटिमाकर रात में अपना प्रकाश फैलाते हैं रात ढलते ही छिप जाना पड़ता है। ऐसे तारे दीपक नहीं बन सकते जो बुझना न जानते हों। जो मनुष्य दुख नहीं सह सकता, उसे सुख की चाह नहीं रखनी चाहिए। सुख और दुख जीवन में आते रहते हैं। उनसे मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए।

42.

जीवन की सार्थकता किसमें है?

Answer»

महादेवी वर्मा कहती हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों का समान महत्व है। ये जीवन के अभिन्न अंग हैं। जिस तरह मेघ की सार्थकता पिघल कर बरसने में, जग को आनंद देने में है, उसी तरह जीवन की सार्थकता परिस्थितियों का सामना करने में है न कि उनसे पलायन करने में। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह जीवन को उसकी परिपूर्णता में स्वीकार करे।

43.

‘अधिकार’ कविता में प्रयुक्त प्राकृतिक तत्वों के बारे में लिखिए।

Answer»

महादेवी वर्मा छायावादी कवयित्री थीं। प्रकृति वर्णन छायावाद का प्रमुख अंग हैं। ‘अधिकार’ कविता में भी कवयित्री ने कई प्राकृतिक तत्वों के द्वारा हमें संदेश दिया है। फूल, तारे, मेघ, वसंत ऋतु आदि प्राकृतिक तत्वों द्वारा दुःख एवं वेदना का अनुभव कराया है। नीले मेघों को धुलना चाहिए और वसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आना स्वाभाविक है। उसी तरह मानव जीवन में सुख-दुःख सामान्य है। दुख, वेदना, यातना की अनुभूति कर धैर्य से सामना करना चाहिए।

44.

कवयित्री अमरों के लोक को क्यों ठुकरा देती हैं?

Answer»

कवयित्री महादेवी वर्मा जी का विश्वास है कि वेदना एवं करुणा उन्हें आनंद की चरमावस्था तक ले जा सकते हैं। उन्होंने वेदना का स्वागत किया है। उनके अनुसार जिस लोक में दुःख नहीं, वेदना नहीं, ऐसे लोक को लेकर क्या होगा? जब तक मनुष्य दुःख न भोगे, अंधकार का अनुभव न करे तब तक उसे सुख एवं प्रकाश के मूल्य का आभास नहीं होगा। जीवन नित्य गतिशील है। अतः इसमें उत्पन्न होनेवाले संदर्भो को रोका नहीं जा सकता। जीवन की महत्ता परिस्थितियों का सामना करने में है, उनसे भागने में नहीं। कवयित्री अमरों के लोक को ठुकराकर अपने मिटने के अधिकार को बचाये रखना चाहती हैं।

45.

अधिकारों का कौन-सा सिद्धान्त सर्वाधिक सन्तोषप्रद है?

Answer»

अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त सर्वाधिक सन्तोषप्रद है।

46.

मानव गरिमा पर काण्ट के क्या विचार थे?

Answer»

अन्य प्राणियों से अलग मनुष्य की एक गरिमा होती है। इस कारण वे अपने आप में बहुमूल्य हैं। 18वीं सदी के जर्मन दार्शनिक इमैनुएल काण्ट के लिए इस साधारण विचार का गहन अर्थ था। • उनके लिए इसका आशये था कि प्रत्येक मनुष्य की गरिमा है और मनुष्य होने के नाते उसके साथ इसी के अनुकूल व्यवहार किया जाना चाहिए। मनुष्य अशिक्षित हो सकता है, गरीब या शक्तिहीन हो सकता है। वह बेईमान अथवा अनैतिक भी हो सकता है फिर भी वह एक मनुष्य है और न्यूनतम ही सही, प्रतिष्ठा पाने का अधिकारी है। काण्ट के लिए लोगों के साथ गरिमामय बरताव करने का अर्थ था उनके साथ नैतिकता से पेश आना। यह विचार उन लोगों के लिए एक सम्बल था जो लोग सामाजिक ऊँच-नीच के विरुद्ध मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।

47.

किन आधारों पर यह अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?

Answer»

17 वीं और 18वीं सदी में राजनीतिक सिद्धान्तकार तर्क प्रस्तुत करते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से वे अधिकार प्राप्त हैं। परिणामस्वरूप कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिह्नित किए। थे-जीवन को अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार। अन्य विभिन्न अधिकार इन बुनियादी अधिकारों से ही निकले हैं। हम इन अधिकारों का दावा करें या न करें, व्यक्ति होने के कारण हमें यह प्राप्त हैं। यह विचार कि हमें जन्म से ही कुछ विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं, बहुत शक्तिशाली अवधारणा है, क्योंकि इसका अर्थ है जो ईश्वर प्रदत्त है और उन्हें कोई मानव शासक या राज्य हमसे छीन नहीं सकता।

48.

दो मानवाधिकारों को लिखिए।

Answer»

(i) स्वतन्त्रता का अधिकार
(ii) समानता का अधिकार।

49.

अधिकारों के महत्त्व की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।

Answer»

अधिकारों का महत्त्व निम्नलिखित दृष्टियों से है

⦁     व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकार बहुत ही आवश्यक हैं।
⦁     अधिकार समाज और राष्ट्र की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
⦁     अधिकार प्रजातन्त्र का आधार हैं। प्रो० बार्कर के अनुसार, “व्यक्ति के अधिकारों के स्पष्ट दर्शन से ही स्वतन्त्रता का विचार एक वास्तविक अर्थ प्राप्त करता है। उसके अभाव में स्वतन्त्रता एक खोखली या निरर्थक एवं व्यक्तिवाद एक काल्पनिक वस्तु रह जाता है।”
⦁     अधिकार सुदृढ़ एवं कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक हैं।
⦁     सच्चे अर्थों में किसी नागरिक से अधिकारों के अभाव में आदर्शवादिता की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

50.

नागरिक का एक राजनीतिक अधिकार बताइए।

Answer»

नागरिक का एक राजनीतिक अधिकार है-मतदान का अधिकार