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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | 2000-2011 के समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक औसत वृद्धिदर कितनी थी ?(A) 8%(B) 7%(C) 6%(D) 5% | 
| Answer» सही विकल्प है (D) 5% | |
| 2. | निभाव के लिए आयात में किसका समावेश होता है ? | 
| Answer» निभाव के लिए आयात में बिजली, अंतरढाँचाकीय सुविधाएँ, कौशल्य प्राप्ति आदि का समावेश होता है । | |
| 3. | 1951 में भारत देश की पहचान किस रूप में थी ? | 
| Answer» 1951 में भारत देश की पहचान कम विकसित देश के रूप में पहचान थी । | |
| 4. | 1980 और 2011 के बीच विकासशील देश का आयात का योगदान 29% से बढ़कर कितने प्रतिशत हो गया ?(A) 47%(B) 42%(C) 49%(D) 50% | 
| Answer» सही विकल्प है (B) 42% | |
| 5. | अंतिम 30 वर्षों में व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में प्रतिवर्ष कितने प्रतिशत की वृद्धि होती है ?(A) 5%(B) 6%(C) 8%(D) 7% | 
| Answer» सही विकल्प है (D) 7% | |
| 6. | 1800वीं सदी के मध्य भाग से विश्व व्यापार किते गुना बढ़ा है ?(A) 100 गुना(B) 120 गुना(C) 140 गुना(D) 150 गुना | 
| Answer» सही विकल्प है (C) 140 गुना | |
| 7. | 1800वीं सदी मध्य भाग से विश्व का उत्पादन लगभग कितने गुना बढ़ा है ?(A) 80(B) 60(C) 50(D) 40 | 
| Answer» सही विकल्प है (B) 60 | |
| 8. | व्यापार अर्थात् क्या ? | 
| Answer» व्यापार अर्थात् ऐसी व्यवसायिक प्रवृत्ति कि जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी, टेक्नोलोजी, टेक्निकल जानकारी, बौद्धिक संपत्ति आदि का विनिमय होता है । | |
| 9. | एग्नस मेडिसन (Agnus Maddison) नामक इतिहासकार की खोज को किस रिपोर्ट में दर्शाया गया है ? | 
| Answer» एग्नस मेडिसन (Agnus Maddison) नामक इतिहासकार की खोज को ‘वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट’ (World Trade Report) 2013 में दर्शाया गया है । | |
| 10. | परंपरागत निर्यात किसे कहते हैं ? | 
| Answer» भारत में स्वतंत्रता संपूर्ण और पश्चात् अनेक वर्षों तक जिन निर्यातों का प्रमाण अधिक हो और देश की परम्परागत आर्थिक प्रवृत्तियों द्वारा उत्पादित हुयी वस्तुओं की निर्यातों को परंपरागत निर्यात के रूप में जानते हैं । | |
| 11. | भारत का किस देश के साथ मैत्री सम्बन्ध थे ? | 
| Answer» भारत का रशिया के साथ मैत्री सम्बन्ध थे । | |
| 12. | नवीन वस्तुओं का आयात 2014-’15 में कितने प्रतिशत था ? | 
| Answer» नवीन वस्तुओं का आयात 2014-’15 में 46.5% हो गया । | |
| 13. | 2014-’15 में खाद्य वस्तुओं की आयात का कुल वस्तु की आयात में कितने प्रतिशत हिस्सा था ? | 
| Answer» 2014-’15 में खाद्य वस्तुओं की आयात का कुल वस्तु की आयात में 3.9% हिस्सा था । | |
| 14. | World Trade Report – 2013 के अनुसार विश्व व्यापार कितने गुना बढ़ा है ? | 
| Answer» World Trade Report – 2013 के अनुसार विश्व व्यापार 140 गुना बढ़ा है । | |
| 15. | अदृश्य आयात-निर्यात में किन-किन बातों का समावेश होता है ? | 
| Answer» अदृश्य आयात-निर्यात में भाड़ा, बैंकिंग, परिवहन, बीमा इत्यादि सेवाओं का समावेश होता है | |
| 16. | व्यापारतुला में धारा कब आता है ? | 
| Answer» देश में भौतिक वस्तुओं की आयात भुगतान भौतिक वस्तुओं की निर्याती आय से अधिक हो तब व्यापारतुला में घाटा आता है । | |
| 17. | व्यापारतुला किसे कहते हैं ? | 
| Answer» व्यापारतुला अर्थात् निश्चित समयावधि (1 वर्ष) दौरान देश की दृश्य (भौतिक) वस्तुओं का आयात और निर्यात के मूल्यों के हिसाबी लेखा-जोखा को व्यापारतुला कहते हैं । | |
| 18. | स्वतंत्रता के बाद कौन मूल्य (कद) अधिक रहा है ? | 
| Answer» स्वतंत्रता के बाद आयात मूल्य (कद) अधिक रहा है । | |
| 19. | रुपये का अवमूल्यन अर्थात् क्या ?(A) सरकार द्वारा $ 1 की रुपये में भुगतान सस्ता किया जाये ।(B) बाज़ार में $ 1 के सामने अधिक रुपये भुगतान करना पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति ।(C) सरकार द्वारा $ 1 की रुपये में भुगतान सस्ता किया जाये ।(D) बाज़ार में $ 1 के सामने कम रुपये भुगतान करने पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति । | 
| Answer» सही विकल्प है (B) बाज़ार में $ 1 के सामने अधिक रुपये भुगतान करना पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति । | |
| 20. | विदेश व्यापार के कद से आप क्या समझते है ? | 
| Answer» विदेश व्यापार का कद अर्थात् सरल शब्दों में कहें तो आयात और निर्यात द्वारा होनेवाली भौतिक वस्तुओं का कुल मूल्य (तथा कुल जत्था) विदेश व्यापार के कद में आयात द्वारा कितना खर्च हुआ है तथा निर्यात द्वारा कितनी आय प्राप्त होती है । उसका कुल मूल्य को ही विदेश व्यापार का कद कहते हैं । | |
| 21. | ‘आंतरराष्ट्रीय व्यापार का कद’ की परिभाषा दीजिए । | 
| Answer» किसी भी देश में किसी समय दरम्यान आयात और निर्यात होनेवाली वस्तु के कुल मूल्य तथा कुल जत्था अर्थात् व्यापार कद । प्रतिवर्ष यदि आयात के लिए होनेवाले भुगतान और निर्यात में से होनेवाली आय बढ़ती जाये, देश की राष्ट्रीय आय में व्यापार के मूल्य का प्रतिशत हिस्सा बढ़ता जाय तथा विश्व व्यापार में देश की व्यापार का हिस्सा बढ़े तो उसे देश के व्यापार का कद बढ़ा ऐसा कहेंगे । | |
| 22. | विदेश व्यापार चनौती पूर्ण क्यों है ? | 
| Answer» विदेश व्यापार का स्वरूप चुनौती पूर्ण है क्योंकि विविध देशों में विविध प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, मान्यताएँ, रूचि, आदत, पसंदगी आदि होती है । इन सभी अवरोधों को दूर करके व्यापार करना पड़ता है । | |
| 23. | लेनदेन की तुला का अर्थ स्पष्ट कीजिए । | 
| Answer» लेनदेन तुला की परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं : वर्ष दरम्यान देश की भौतिक (दृश्य) और अभौतिक (अदृश्य) वस्तुओं के आयात-निर्यात का मूल्य को दर्शानवाला हिसाबी लेखाजोखा अर्थात् लेनदेन तुला । इस प्रकार लेनदेन में किसी एक देश के अन्य देशों के साथ व्यापार के मूल्य का लेखा-जोखा जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार का मूल्य, साधनों की हेराफेरी का खर्च और पूँजी व्यापार के मूल्य की नोंध होती है । लेनदेन तुला के मुख्य दो प्रकार हैं : 
 जब आय (जमा) का योग और व्यय (उधार) का योग समान हो तो उसे संतुलित लेनदेन तुला कहते हैं । असंतुलित व्यापारतुला में दोनों समान नहीं होते हैं । जब जमा पहलू का योग उधार पहलू के योग की अपेक्षा अधिक हो तो लेनदेन में लाभ हुआ है । ऐसा कहेंगे । जब उधार पहलू का योग जमा पहलू के योग से अधिक हो तो लेनदेन तुला में घाटा हुआ है ऐसा कहेंगे । | |
| 24. | भारत के विदेश व्यापार के स्वरूप में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए । | 
| Answer» विदेश व्यापार का स्वरूप अर्थात् व्यापार-प्रवृत्ति की ऐसी विशिष्ट बातें और पहलू जो उन्हें अन्य प्रवृत्तियों से अलग करे और उन्हें अलग पहचान दे ।’ विदेश व्यापार का स्वरूप, उसे असर करनेवाली परिस्थितियाँ, उससे सम्बन्धित नीतियाँ और कानून के आधार पर निश्चित होती हैं । विदेश व्यापार के स्वरूप को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं : (1) विदेश व्यापार में साधनों की भौगोलिक या व्यावसायिक गतिशीलता कम होती है : विदेश व्यापार में राजनैतिक और सामाजिक कारणों से श्रम कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी स्थायी और स्थिर होने से कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी की गतिशीलता पर कानूनी प्रतिबंद होते है । नियोजक भी श्रम की तरह कम गतिशील होते हैं । परंतु नियोजनशक्ति सबसे अधिक गतिशील होती है । जमीन की भौगोलिक गतिशीलता शून्य होती है । गतिशीलता कम होने से विदेश व्यापार का कद भी मर्यादित होता है । (2) विविधता रखनेवाली वस्तुओं का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक प्रकार की विविधतावाली वस्तुएँ और सेवाएँ होती है । इसलिए जीवनस्तर में विविधता रखनेवाले लोगों की विविध प्रकार की मांग को संतुष्ट कर सकते हैं । (3) चुनौती स्वरूप : विदेश व्यापार में विविध देशों की विविध प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, रिवाज, रुचि, आदत, पसंदगी होती है । यह सभी विदेश व्यापार में अवरोधक होती हैं । इसलिए विदेश व्यापार का स्वरूप अधिक चुनौतीपूर्ण है । (4) राजनैतिक प्रयत्न : विदेश व्यापार की स्थापना में व्यापारियों के साथ-साथ सरकार के राजनैतिक प्रयत्न भी जरूरी हैं । तथा साथ-साथ व्यापार मेला, अनौपचारिक मीटिंग आदि भी जरूरी है । गुजरात सरकार को Vibrant Gujarat Summit इसका उदाहरण है। (5) विविध चलनों का भाव और उनके मूल्य की अटकतें : विदेश व्यापार में सर्वस्वीकृत मान्य चलन में भुगतान करना पड़ता है । इसलिए व्यापार करनेवाले देशों को अपने देश के चलन को अन्तर्राष्ट्रीय चलन में रूपांतर करना पड़ता है । इसलिए विदेशी मुद्रा की विनिमय दर की जानकारी होनी चाहिए । यदि अधिक कीमत में विदेशी मुद्रा खरीदी जाये तो नुकसान होने की संभावना होती है। (6) विविध राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का संयुक्त प्रयास : विदेश व्यापार को विकसित करने के लिए अनेक देशों की सरकारें तथा विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं के साथ प्रयत्न करना पड़ता है । व्यापार का कद बढ़ाने के लिए प्रत्येक देश को दृढ निश्चय से आगे बढ़ना चाहिए । (7) राजनैतिक और सामाजिक विचारधाराओं की असर : विदेश व्यापार का कद और दिशा पर राजनैतिक और सामाजिक बातें भी प्रभावित करती है । जैसे : विश्व युद्ध जैसी घटनाएँ के बाद अनेक देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध बिगड़ते हैं, तो कभी विश्व के नेता एक साथ मिलकर व्यापार बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं । जिससे देशों का ध्यान युद्ध से हटकर व्यापार की ओर मुड़ें । फिर भी किसी देश का व्यापार अपने विचार, सामाजिक ढाँचा, इतिहास तथा अन्य देशों साथ सम्बन्ध पर आधारित होता है । (8) अत्यंत बड़े पैमाने का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक देश, असंख्य वस्तुएँ, अनेक कानून, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ आदि जुड़ी होती है । इसलिए विदेश व्यापार का कद और स्वरूप विशाल होता है । (9) अधिक प्रमाण में टेक्स और लाइसन्स : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए प्रत्येक देश को अपने देश और दूसरे देश की अनेक जांचो और अनुभूतियों से पार करना पड़ता है । जिसमें व्यापारजन्य वस्तु और सेवाओं की अनुमति और जाँच, गुणवत्ता सर्टीफिकेट, ट्रान्सपोर्ट व्यवस्था, वस्तु मापदण्ड आदि का समावेश किया जाता है । सम्बन्धित देश के सम्बन्ध में इन सबका ध्यान रखना पड़ता है । (10) स्पर्धा और जोनम अधिक : कोई एक वस्तु या सेवा अनेक देश उत्पन्न करके विश्व बाज़ार में विक्रय करने के प्रयास करते हैं । इसलिए विक्रेताओं के बीच स्पर्धा का प्रमाण अधिक होता है । फिर किसी वस्तु या सेवा मांग भी अनेक देशों के ग्राहक करते हैं । इसलिए ग्राहकों के बीच स्पर्धा होती है । | |
| 25. | विनिमय दर पर टिप्पणी लिखिए । | 
| Answer» जब भारतीय नागरिक विदेश घूमने जाते है तब वे भारतीय चलन रु. में वहाँ खरीदी नहीं कर सकते हैं । उन्हें रु. को सम्बन्धित देश के चलन में परिवर्तन करना पड़ता है । उसी प्रकार भारत में कोई आयातकार विदेशी वस्तु की आयात करे तब उसे भुगतान उस देश के चलन या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत चलन में करना पड़ता है । यह उदाहरण भारत के विदेशी विनिमय दर के लिए माँग को दर्शाता है । उसी प्रकार विदेशी भारत के रु. की माँग कर सकते हैं । ऐसे प्रवासियों या व्यापारियों बैंकों के पास से अथवा चलन के कानून मान्य व्यापारियों के पास जाकर अपने देश की चलन को अन्य चलन में रूपांतरण या परिवर्तित करवाते हैं । इस प्रकार का रूपांतरण या परिवर्तन किसी निश्चित दर पर होता है । इस दर को विदेशी विनिमय दर कहते हैं । विदेशी विनिमय दर की परिभाषा देख लें – ‘जिस दर पर एक देश की चलन को दूसरे देश की चलन में परिवर्तित कर सके उस दर को विदेशी विनिमय दर कहते हैं ।’ ‘एक देश की चलन दूसरे देश की चलन में व्यक्त होनेवाली कीमत अर्थात् विदेशी विनिमय दर ।’ | |
| 26. | लेन-देन की तुला हमेशां संतुलित रहती है । | 
| Answer» हिसाब की दृष्टि से लेन-देन की तुला हमेशां संतुलित रहती है । उसकी आय और खर्च को हमेशां बराबर रखने का प्रयास किया जाता है । लेन-देन की तुला में यदि चालू खाते में घाटा हो तो पूँजी खाते द्वारा या अन्य आर्थिक व्यवहारों द्वारा घाटा पूरा किया जाता है । लेन-देन के तीनों खातों – (1) चालू खाता (2) पूँजी खाता (3) आर्थिक (अदृश्य सेवाओं) का खाता में . एक साथ गणना करने पर आय का पहलू और खर्च के पहलू को सन्तुलित रखने का प्रयास किया जाता है । | |
| 27. | विदेश व्यापार की प्रवर्तमान स्थिति दर्शाइए । | ||||||||||||||
| Answer» देश की सीमा के बाहर से होनेवाले व्यापार को विदेश व्यापार के नाम से जानते हैं । स्वतंत्रता से पूर्व भारत का विदेश व्यापार इंग्लैण्ड के साथ पूर्वीय देशों के साथ व्यापार होता था । स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में आयोजन के दरम्यान विदेश व्यापार में ध्यान दिया गया । परिणाम स्वरूप भारत में विदेश व्यापार में वृद्धि हुयी है । भारत में विदेश व्यापार को जानने के लिए एग्नस मेडिसन नाम के इतिहासकार की खोज दर्शानेवाले ‘वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट’ (World Trade 
 विविध समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक वृद्धिदर 
 इस प्रकार उपर की सारणी में विश्व व्यापार की वृद्धिदर को देख सकते हैं । | |||||||||||||||
| 28. | व्यापारतुला और लेनदेन की तुला के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए । | ||||||||||||
| Answer» 
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| 29. | भारत में निर्यात बढ़ाना मुश्किल हो गया है । | 
| Answer» भारत में मुद्रास्फीति और भाववृद्धि जैसे तत्त्व अस्तित्व में होने से निर्यात संवर्धन एक जटिल समस्या बन गयी है । भारत में मुद्रास्फीति के कारण भारत के साथ अन्य देशों के व्यापार में भारत में चीजवस्तुओं के भाव बहुत तेजी से बढ़े है । जिससे यहाँ की वस्तुएँ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में मँहगी होती है । दूसरी तरफ निर्यातकर्ता को आंतरिक बाज़ार में ही अपनी वस्तुओं की अच्छी कीमतें मिल जाने से उनके अंदर निर्यात करने का उत्साह कम हो जाता है । इस कारण निर्यात बढ़ाना मुश्किल बन गया है । | |
| 30. | आय (जमा) और व्यय (उधार) के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए : | ||||||||||||||||||
| Answer» 
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| 31. | विदेशी व्यापार के कारणों को संक्षिप्त में समझाइए । | 
| Answer» विदेश व्यापार के निम्नलिखित कारण हैं : (1) देशों में उपलब्ध उत्पादन के साधनों में अंतर : अलग-अलग देशों में उत्पादन के साधनों की भिन्नता होती है । सभी प्रकार के संशोधन भी प्रत्येक देश के पास नहीं होते है । इसलिए दुनिया के देशों के संसाधनों और साधनों का लाभ लेने के लिए विदेश व्यापार की आवश्यकता होती है । (2) उत्पादन खर्च : साधनों और संसाधनों की उपलब्धि अलग-अलग होने के कारण वस्तु और सेवा का उत्पादन खर्च भी अलगअलग होता है । कुछ साधनों की कमी और अधिक कीमत के कारण कुछ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन खर्च अधिक होता है । जब घरेलू खर्च अधिक हो तब ऐसी वस्तुएँ आयात करना सरल और सस्ती बनती है । (3) टेक्नोलोजिकल प्रगति : प्रत्येक देश में समान रूप से टेक्नोलोजिकल प्रगति नहीं होती है । कुछ देश कुछ विशेष प्रकार की टेक्नोलोजी में सिद्ध होते हैं । तो कुछ देश दूसरे प्रकार की टेक्नोलोजी में कुशल होते हैं । इसलिए प्रत्येक देश की वस्तु के उत्पादन में एक स्थान कार्यक्षम नहीं होते है । इस कारण से भी देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार होता है । (4) श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण : प्रत्येक देश में श्रम की उत्पादकता और कौशल्य भिन्न होती है । फिर नियोजन शक्ति की कार्यक्षमता भी अलग होती है । इसलिए देशों के बीच श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण देखने को मिलता है । इसी श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण का लाभ लेने के लिए भी विदेश व्यापार अस्तित्व में आया है । | |
| 32. | रुपये का बाज़ारमूल्य घटना, अवमूल्यन होना, रुपये का बाज़ारमूल्य बढ़ना और अधिक मूल्य होना – इन चारों के बीच अंतर उदाहरण सहित समझाइए । | 
| Answer» रुपये का बाज़ार मूल्य : जब भारत देश के लिए रुपये की दर अर्थात् विदेशी चलन की इकाई अपने देश के चलन में व्यक्त होती हो तो उस कीमत अर्थात् कि विदेशी चलन की एक इकाई खरीदने के लिए अपने देश की चलन जितनी इकाई चुकानी पडे वह कीमत । जैसे : US $ = रु. 60 का विनिमय दर का अर्थ ऐसा हो कि US $ 1 खरीदने के लिए भारतीय नागरिक को रु. 60 चुकाने पड़ते है । रुपये का अवमूल्यन होना : रुपये की कीमत जब कम होती है जब अत्यधिक कम हो जाती है । तब देश की सरकार विदेश व्यापार को स्थिर करने के लिए रुपये का अवमूल्यन करती है । अर्थात् गिरते रुपये की दर सरकार पुनः निर्धारित करती है । रुपये मूल्य बढ़ना और अधिकमूल्य होना : जब भारत के लिए विदेशी विनिमय दर नीची हो तब रु. का मूल्य बढ़ता है । अर्थात् विदेशी चलन की एक इकाई खरीदने के लिए कम रुपये चुकाने पडेंगे अर्थात् कि विदेशी चलन की कीमत कम हुयी और भारत के रुपये का मूल्य अधिक हुआ । पहले US $1 = रु. 65 | |
| 33. | भारत के विदेश व्यापार के कद में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए । | ||||||||||||||||
| Answer» विदेश व्यापार का कद अर्थात् सरल शब्दों में कहें तो आयात और निर्यात होनेवाली भौतिक वस्तुओं का कुल मूल्य अथवा कुल जत्था । प्रतिवर्ष यदि आयात के लिए भुगतान और निर्यात में से होनेवाली आय बढ़ती जाये, देश की राष्ट्रीय आय में व्यापार के मूल्य का प्रतिशत हिस्सा बढ़ता जाये तथा विश्व व्यापार में देश के व्यापार का हिस्सा बढे तो वह देश के व्यापार का कद बढ़ा है। ऐसा कहेंगे । भारत के विदेश व्यापार के कद में हये परिवर्तनों को नीचे की तालिका में देखें : 1991 के बाद भारत के विदेश व्यापार का कद (मि. US $ में) 
 
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| 34. | विदेश व्यापार का कद मर्यादित प्रमाण में क्यों होता है ? | 
| Answer» साधनों की गतिशीलता कम होने के कारण विदेश व्यापार का कद भी उतने प्रमाण में मर्यादित होता है । | |
| 35. | भारत के विदेश व्यापार की दिशा में आये हुए परिवर्तनों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए । | 
| Answer» विदेश व्यापार की दिशा अर्थात् किसी भी देश का विश्व के विविध प्रदेशों (देशों) के साथ व्यापार के लिए सम्बन्ध । अलग-अलग दिशा के प्रदेशों के साथ व्यापार करने के लिए किसी भी देश के पास निम्नलिखित बातें होनी चाहिए : 
 भारत के विदेश व्यापार की दिशा : 
 इस प्रकार अलग-अलग देशों के साथ और दिशा का व्यापार विकसित करने में भारत ने सफलता प्राप्त करने का सफल प्रयत्न किया है । | |
| 36. | अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा देश को अच्छी और सस्ती वस्तुएँ मिल सकती है । | 
| Answer» संसार के विभिन्न देशों की भौगोलिक परिस्थिति भिन्न-भिन्न होने के कारण वस्तुओं के उत्पादन में विविधता होती है । इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट योग्यता धारण करनेवाले विशेषज्ञ और श्रमिक विविध देशों में निवास करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा ऐसी विशिष्ट योग्यता का लाभ अन्य देशों को भी मिलता है । विदेशी व्यापार में स्पर्धा के कारण वस्तुओं की कीमतें कम होती हैं, इसलिए विभिन्न देशों को सही कीमत पर अच्छी वस्तुएँ प्राप्त होती है । | |
| 37. | किस राज्य में व्यापार बढ़ाने के लिए Vibrant Gujarat Summit का आयोजन होता है ?(A) दिल्ली(B) पंजाब(C) उत्तर प्रदेश(D) गुजरात | 
| Answer» सही विकल्प है (D) गुजरात | |
| 38. | व्यापार द्वारा क्या होता है ?(A) साधनों की गतिशीलता घटती है ।(B) उद्योगों की संख्या घटती है ।(C) उत्पादन खर्च घटता है ।(D) उत्पादन में विविधता आता है । | 
| Answer» सही विकल्प है (A) साधनों की गतिशीलता घटती है । | |