InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
दसवीं योजना में आर्थिक विकास की दर कितनी थी ?(A) 7.5%(B) 7%(C) 7.8%(D) 7.6% |
|
Answer» सही विकल्प है (D) 7.6% |
|
| 2. |
भारत में प्रथम तीन दशकों में औसत लगभग कितने प्रतिशत की दर से आर्थिक विकास हआ है ?(A) 2.5(B) 1.5(C) 3.5(D) 4.5 |
|
Answer» सही विकल्प है (C) 3.5 |
|
| 3. |
ग्यारहवीं योजना में आर्थिक विकास की दर कितने प्रतिशत थी ?(A) 7.8(B) 7.6(C) 8.0(D) 10 |
|
Answer» सही विकल्प है (A) 7.8 |
|
| 4. |
MGNEGA में महिलाओं को कितने प्रतिशत आरक्षण दिया गया है ?(A) 1/2(B) 1/3(C) 1/4(D) 1/5 |
|
Answer» सही विकल्प है (B) 1/3 |
|
| 5. |
कौन-सा दिन रोजगार दिवस के रूप में मनाया जाता है ?(A) दो फरवरी(B) दो मार्च(C) दो मई(D) 2 अप्रैल |
|
Answer» सही विकल्प है (A) दो फरवरी |
|
| 6. |
MGNREGA योजना कब से शुरू हुयी ?(A) 2001(B) 1986(C) 1999(D) 2009 |
|
Answer» सही विकल्प है (D) 2009 |
|
| 7. |
विश्व महामंदी का समय …………………………(A) 1939-’40(B) 1941-’42(C) 1929-’30(D) 1949-’50 |
|
Answer» सही विकल्प है (C) 1929-’30 |
|
| 8. |
गरीबी आयोजन की मर्यादा है ।’ विधान समझाइए । |
|
Answer» भारत जैसे विकासशील देशों में गरीबी की समस्या अधिक देखने को मिलती है । गरीबी मात्र भारत की ही नहीं एक वैश्विक समस्या है । भारत में गरीबी को दूर करने के लिए आयोजन के आरम्भ से ही प्रयास किया गया । विशेष रूप से पाँचवीं और छठवीं योजना में गरीबी को दूर करने का विशेष लक्ष्य रखा गया था । भारत में ग्यारह योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं । फिर भी भारत में गरीबी देखने को मिलती है । अर्थात् आयोजन गरीबी को दूर करने में निष्फल गया है । इसलिए ऐसा कहते हैं कि गरीबी आयोजन की मर्यादा है । |
|
| 9. |
बेरोजगारी मात्र आर्थिक समस्या नहीं, सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्या है ।’ समझाइए । |
|
Answer» बेरोजगारी मुख्य रूप से आर्थिक समस्या है । बेरोजगार व्यक्ति आर्थिक रूप से अन्य पर आश्रित होता है । और समाज में स्वमानपूर्वक जीवन नहीं जी सकता है । समाज में बेरोजगार व्यक्ति ही चोरी, लूट, आतंकवाद जैसी अनैतिक प्रवृत्तियों में जुड़ते हैं । जो समाज के लिए हानिकारक हैं । साथ ही देखा गया है कि राजनैतिक अस्थिरता भी बेरोजगारों के कारण ही उत्पन्न होती है । इसलिए बेरोजगारी मात्र आर्थिक समस्या नहीं परंतु सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्या है । |
|
| 10. |
तीव्र बेरोजगारी में सप्ताह में कितने घंटे से कम काम मिलता है ?(A) 48(B) 38(C) 18(D) 28 |
|
Answer» सही विकल्प है (D) 28 |
|
| 11. |
बेरोजगारी के स्वरूप जानने के लिए श्री राजकृष्ण ने प्रस्तुत किये मापदण्डों को समझाइए । |
|
Answer» बेरोजगारी के स्वरूप जानने के लिए श्री राजकृष्ण समिति ने 2011-12 की रिपोर्ट में निम्नलिखित चार मापदण्ड प्रस्तुत किये है: (1) समय : जिस व्यक्ति को सप्ताह में 28 घंटे से कम काम मिलता हो तो उसे तीव्र रूप से बेरोजगार कहते हैं । और यदि सप्ताह में 28 घंटे से अधिक परंतु 42 घंटे से कम काम मिले तो वह बेरोजगारी की तीव्रता कम मानी जाती है । (2) आय : व्यक्ति को कार्य में से इतनी कम आय प्राप्त होती हो जिससे उसकी गरीबी दूर न हो तो वह आय की दृष्टि से बेरोजगार मान जाते हैं । भारत में ग्रामीण विस्तारों में इस प्रकार की बेरोजगारी अधिक देखने को मिलती है । जैसे : व्यक्ति को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए महीने में रु. 30,000 की आवश्यकता है । परंतु व्यक्ति को वर्तमान कार्य में से रु. 15,000 या उससे कम ही प्राप्त कर सकता है । तब वह आय की दृष्टि से बेरोजगार है । (3) सहमति : जिस व्यक्ति को योग्यता से कम योग्यतावाला काम मिलता हो तब स्वीकार करना पड़ता है । तब उसको इस प्रकार के काम में से कम आय प्राप्त होने से अर्ध बेरोजगार कहा जाता है । (4) उत्पादकता : श्रमिक की वास्तविक उत्पादकता जो हो उसकी अपेक्षा वह व्यक्ति वर्तमान में कम उत्पादकता पर काम करता हो, तो उसकी उत्पादन शक्ति या उत्पादकता की अपेक्षा कम होगी । जैसे : कोई व्यक्ति एक दिन में 20 मीटर कपड़ा तैयार करने की क्षमता रखता है । परंतु वह 10 मीटर ही कपड़ा बना सके उतना ही काम मिलता हो । |
|
| 12. |
संपूर्ण बेरोजगारी किसे कहते हैं ? |
|
Answer» जो व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर रोजगारी प्राप्त करना चाहता हो आवश्यक योग्यता भी परंतु उसे बिलकुल रोजगारी न मिले तो उसे संपूर्ण बेरोजगार या खुला बेरोजगार कहलाता है । |
|
| 13. |
हरित क्रांति के वेग और विस्तार द्वारा बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते है । समझाइए । |
|
Answer» भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र पर श्रम का भार अधिक होने से कृषि क्षेत्र में मौसमी एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी अधिक देखने को मिलती है । इस समस्या को हल करने के लिए अन्य क्षेत्रों का विकास संभव नहीं हुआ है । इसलिए कृषि क्षेत्र के . श्रमिकों की समस्या को हल करने के लिए हरित क्रांति को गति देना और उसका विस्तार करने का प्रयास करना चाहिए जिससे रोजगारी के अवसर बढ़ा सकते है । जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पी. सी. महालनोबिस के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ का पूंजीनिवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार दे सकते है । और उत्पादन में 5.7% की दर से बढ़ा सकते हैं । जब के बड़े उद्योगों में 500 व्यक्तियों को रोजगार तथा 1.4% उत्पादन बढ़ा सकते हैं । इस प्रकार उद्योगों की अपेक्षा कृषि क्षेत्र में रोजगार और उत्पादन की क्षमता अधिक होती है । इसलिए कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति के लिए आवश्यक पूरक प्रवृत्तियों जैसे कि छोटी और मध्यम कद की सिंचाई, जमीन संरक्षण, मिश्र खेती, वनविकास, अधिक फसल लेने की पद्धति, जमीन का नवीनीकरण तथा कृषि से सम्बन्धित ग्राम उद्योगों को गति देकर रोजगार के अवसर बढ़ा सकते हैं । डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के अनुसार ‘कृषि क्षेत्र के विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न किये जाये तो अनेक गुना रोजगार के अवसर खड़े कर सकते हैं । इस प्रकार उपर्युक्त चर्चा पर से ऐसा कह सकते हैं कि ‘हरित क्रांति के वेग और विस्तार से बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं । |
|
| 14. |
आयोजन का एक उद्देश्य बेरोजगारी को दूर करना था ।’ फिर भी बेरोजगारी दूर नहीं हुयी है । समझाइए । |
|
Answer» बेरोजगारी एक वैश्विक समस्या है । भारत भी बेरोजगारी की समस्या से मुक्त नहीं है । प्रथम योजना से ही बेरोजगारी को दूर करने का लक्ष्य रखा गया था । आर्थिक विकास पर भार दिया गया था । आयोजन काल के दरम्यान भारत में आर्थिक विकास तेजी से बढ़ा । परंतु आर्थिक विकास के संदर्भ में रोजगारी के अवसर नहीं बढ़ सके । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी को दूर करने में आयोजन निष्फल गया है । जो आयोजन की मर्यादा है । |
|
| 15. |
भारत में बेरोजगारी की समस्या के हल करने के उपाय बताकर कोई भी पाँच उपायो की चर्चा विस्तार से कीजिए । |
|
Answer» भारत में बेरोजगारी के प्रमाण और कारणों के सम्बन्ध में अध्ययन पर यह स्पष्ट होता है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन अधिक से अधिक चिंताजनक बनती जा रही है । बेरोजगारी की समस्या मात्र आर्थिक समस्या ही नहीं, सामाजिक और राजनैतिक समस्या है । इसलिए भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बेरोजगारी दूर करने का लक्ष्य रखा गया है । विशेष रूप से पाँचवी और छठवीं योजना में विशेष ध्यान दिया गया । आठवीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार के अधिकार को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया गया । परंतु संभव नहीं हो सका । बेरोजगारी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय है : (1) जनसंख्या नियंत्रण : बेरोजगारी की समस्या के लिए जनसंख्या वृद्धि की ऊँची दर अधिक जवाबदार है । जनसंख्या वृद्धिदर अधिक होने से श्रमपूर्ति अधिक होती है । दूसरी और आर्थिक विकास धीमी होने से रोजगार के अवसर कम खड़े होते हैं । परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । इसलिए बेरोजगारी को दूर करने के लिए असरकारक जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है । जनसंख्या वृद्धिदर धीमी होगी तो श्रमपूर्ति में कमी होगी । अर्थात् रोजगारी माँगनेवालों की संख्या कम होगी जनसंख्या नियंत्रण से साधन अधिक फाजल होंगे । पूँजीनिवेश की दर बढ़ेंगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । जनसंख्या नियंत्रण करके दीर्घकालीन समय के बाद उत्पादक आयुवर्ग (15 से 64 वर्ष) का यथा उचित नियमन भी कर सकते हैं । (2) । आर्थिक विकास की ऊँची दर : देश के आर्थिक विकास के बिना बेरोजगारी को दूर करना संभव नहीं है । आयोजन काल के आरम्भ के वर्षों में आर्थिक विकास की दर 3 से 3.5 प्रतिशत जितनी रही थी । यदि आर्थिक विकास को नियमित ऊँची दर से बढ़ायी जाये तो रोजगारी के अवसर बढ़ाना संभव होगा और बेरोजगारी की समस्या हल होगी । इसके लिए अर्थतंत्र के अलगअलग विभागों के बीच संकलन करके सार्वजनिक निजीक्षेत्र, सहकारी या अन्य स्वरूप के उद्योगो में पूंजीनिवेश बढ़े ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । कृषि क्षेत्र का विकास हो, हरित क्रांति का लाभ सभी राज्यों को मिले ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । जिससे बेरोजगारी की समस्या को हल करने में सफलता मिलेगी । (3) रोजगारलक्षी आयोजन : आयोजनकाल के आरम्भ में आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए आधारभूत और बड़े उद्योगों की आवश्यकता थी । परंतु वर्तमान समय में आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसर बढ़े यह जरूरी है । इसलिए सरकार को छोटे और मध्यम पैमाने के श्रमप्रधान उत्पादन करनेवाले उद्योगो को प्रोत्साहन देकर रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए । (4) रोजगारलक्षी शिक्षण : वर्तमान शिक्षण व्यवस्था बेरोजगारी की समस्या के लिए जवाबदार कारण है । वर्तमान शिक्षण पद्धति क्लर्क उत्पन्न करनेवाली पुस्तकीय ज्ञान दनेवाली एक शिक्षण व्यवस्था है । परिणाम स्वरूप विनियन-वाणिज्य के स्नातक होने के बाद भी स्वयं रोजगारी प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखते है । इस परिस्थिति में सुधार हो वर्तमान व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, कृषि, अन्य क्षेत्रों के अनुरुप व्यवसायलक्षी शिक्षण देने की आवश्यकता है । इसलिए ऐसे अभ्यासक्रम लाने चाहिए जिससे वर्तमान प्रवाह के अनुरूप रोजगार एवं स्वरोजगार प्राप्त कर सके । इ.स. 2015 की नयी शिक्षण नीति में शिक्षण द्वारा रोजगारी सर्जन करने के लिए उद्योगों के साथ संलग्न साधनो उत्पादकीय शिक्षण हेतु निर्धारित किया गया है । और आनेवाले वर्षों में किस क्षेत्र में कितने रोजगार के अवसर है इसका अध्ययन करके उसी के अनुसार अभ्यासक्रम तैयार करना और इस कार्य में निजी क्षेत्रों को भी जोड़ लिया गया है । (5) गृह और छोटे उद्योगों का विकास : गृह और छोटे पैमाने के उद्योग कम पूंजीनिवेश में अधिक रोजगार देने की क्षमता रखते हैं । कारण कि छोटे पैमाने के उद्योगों में बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा एकसमान पूँजीनिवेश द्वारा 7.5 गुना अधिक रोजगार सर्जन की क्षमता होती है । इसलिए भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ पूँज की कमी है और श्रम अधिक है । तो कम पूँजीनिवेश में छोटे एवं गृह उद्योग स्थापित करके तथा श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करके रोजगार के अवसर खड़े करके बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं । (6) आंतर ढाँचाकीय सेवा का विस्तार : भारत में शहरी विस्तार की अपेक्षा ग्राम्य विस्तारों में रोजगारी का सर्जन कम होने का एक कारण अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ भी है । इसलिए राज्य द्वारा ग्राम्य विस्तार में शिक्षण, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, सड़क, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र जैसी आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ायी जाये तो स्थानिक साधनो की सहायता से अपने निवास के पास रोजगारी प्राप्त करना संभव होगा । और ग्राम्य विस्तारों में आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ने से नये रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । कृषि क्षेत्र और उसके साथ जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों में भी रोजगारी बढ़ेगी । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या हल होगी । (7) कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति का वेग और विस्तार : देश में ऊँची जनसंख्या वृद्धिदर के कारण रोजगारी के लिए कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का भार बढ़ने से प्रच्छन्न बेकारी और अनियमित वरसाद और अपर्याप्त सिंचाई की सुविधा कारण मौसमी बेकारी की समस्या बढ़ती गयी है । इस समस्या को हल करने के लिए अन्य क्षेत्र अभी भी सक्षम नहीं बने है । इसलिए कृषि क्षेत्र का विकास करके हरित क्रांति लाकर रोजगार के अवसर खड़े करने चाहिए । कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा रोजगार सर्जन की क्षमता अधिक होती है । निष्णात अर्थशास्त्री पी. सी. महालनोबिस के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 5.7% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । जबकि बड़े उद्योगों में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से मात्र 500 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 1.4% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । डॉ. एम. एस. स्वामीनाथ भी इसी का समर्थन करते हुये कहते हैं कि कृषि विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न किये जाये तो अनेक गुना नये रोजगार के अवसर खड़े होते हैं । इस प्रकार कृषि विकास में हरित क्रांति को गति और विस्तार देने से बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं । |
|
| 16. |
स्वैच्छिक बेरोजगार किसे कहते हैं ? |
|
Answer» यदि व्यक्ति काम करने की इच्छा और शक्ति न हो और वह प्रवर्तमान वेतनदर काम बिना बैठा रहे ऐसे व्यक्ति को स्वैच्छिक बेरोजगार कहते हैं । भारत में इसे बेरोजगार में शामिल नहीं किया जाता है । |
|
| 17. |
तीव्र रूप से बेरोजगार किसे कहते हैं ? |
|
Answer» जो व्यक्ति काम करने की वृत्ति और शक्ति होने पर भी परंतु सप्ताह में 28 घंटे या उससे कम घंटे काम मिले तो उसे तीव्र रूप से बेरोजगार गिना जाता है । |
|
| 18. |
कौन-सी बेकारी छिपी बेरोजगारी है ?(A) मौसमी(B) औद्योगिक(C) प्रच्छन्न(D) चक्रीय |
|
Answer» सही विकल्प है (C) प्रच्छन्न |
|
| 19. |
कौन-सी बेरोजगारी की सीमांत उत्पादकता शून्य होती है ?(A) चक्रीय(B) घर्षणजन्य(C) मौसमी(D) प्रच्छन्न |
|
Answer» सही विकल्प है (D) प्रच्छन्न |
|
| 20. |
अर्ध बेरोजगार किसे कहते हैं ? |
|
Answer» जिस व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार काम न मिले तब वह कम योग्यतावाला काम करना पड़े और कम आय प्राप्त होने से वह अर्ध बेरोजगार कहा जाता है । |
|
| 21. |
भारत में बेरोजगारी का प्रमाण की जानकारी कहाँ से प्राप्त होती है ? |
|
Answer» भारत में बेरोजगारी के प्रमाण की जानकारी योजना आयोग, सेन्ट्रल स्टेटिस्टिक्स ओर्गेनाइजेशन (CSO), नेशनल सेम्पल सर्वे, रोजगार विनिमय कचेरी द्वारा प्रकाशित होनेवाले बेरोजगारी के अहवाल से प्राप्त कर सकते हैं । |
|
| 22. |
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGN) की जानकारी दीजिए । |
|
Answer» MGNREGA का परिचय निम्नानुसार है :
|
|
| 23. |
ग्राम्य विस्तारों में सतत बिजली की सेवा उपलब्ध करवाने के लिए कौन-सी योजना शुरू की गयी ? |
|
Answer» ग्राम्य विस्तार में सतत बिजली की सेवा उपलब्ध करवाने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गयी । जिसका मुख्य उद्देश्य ग्राम्य विस्तारों में 24 × 7 सतत बिजली रकी सेवा उपलब्ध करवाना है । |
|
| 24. |
क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति बेरोजगारी के लिए जवाबदार है ।’ समझाइए । |
|
Answer» भारत में शिक्षित बेरोजगारी एक चुनौती स्वरूप है । भारत में शिक्षित बेरोजगारी के लिए क्षतियुक्त शिक्षण व्यवस्था जवाबदार है । बदलते हुये समय के अनुसार श्रमिक तैयार करना आज की शिक्षण व्यवस्था सफल नहीं हुयी है । आर्थिक विकास की दर बढ़ाने के लिए उद्योग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में अत्याधुनिक टेक्नोलोजी और यंत्रों का उपयोग किया गया । उसके कारण इस पद्धति के अनुरूप प्रशिक्षित टेक्निकल ज्ञान रखनेवाले श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, परंतु इसके विपरीत शिक्षण पद्धति देखने को मिलती है । परिणाम स्वरुप अकुशल श्रमिकों की संख्या बढ़ती है । कुशल श्रमिक नहीं मिलते है । क्योंकि व्यावसायिक शिक्षण का प्रभाव बहुत ही कम है । वर्तमान शिक्षण व्यवस्था मनुष्य की मानसिक और शारीरिक रचना में निष्फल गया है । परिणाम स्वरूप शिक्षित बेरोजगारों का प्रमाण बढ़ता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति बेरोजगारी के लिए जवाबदार है । |
|
| 25. |
भारत में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । समझाइए । |
|
Answer» भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धिदर अधिक है और पूँजी की कमी है । इसलिए कम पूँजीनिवेश में छोटे एवं गृह उद्योगो की स्थापना कर सकते हैं । तथा इन उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता है । जिससे रोजगार के अवसर अधिक सर्जित होते हैं । इस प्रकार भारत में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । |
|
| 26. |
आय की दृष्टि से बेरोजगार किसे कहते हैं ? |
|
Answer» व्यक्ति को काम में से इतनी कम आय प्राप्त हो कि जिससे उसकी गरीबी दूर न हो सके तो उसे आय की दृष्टि से बेरोजगार कहते हैं । |
|
| 27. |
पिगु के अनुसार बेरोजगारी किसे कहते हैं ? |
|
Answer» पिगु के अनुसार बेरोजगारी अर्थात् – ‘कोई व्यक्ति मात्र ‘तभी बेकार कहा जायेगा कि जब उसकी काम करने की इच्छा होने पर भी काम न मिले ।’ |
|
| 28. |
अनिवार्य स्वरूप में बेरोजगारी का विचार किस श्रम पूर्ति के संदर्भ में किया जाता है ?(A) सक्रिय(B) निष्क्रिय(C) बालक(D) वृद्ध |
|
Answer» सही विकल्प है (A) सक्रिय |
|
| 29. |
किस आयु समूह को उत्पादकीय आयु समूह के रूप में जाना जाता हैं ? |
|
Answer» 15 से 64 वर्ष के आयु वर्ग को उत्पादकीय आयु वर्ग के कहते हैं । |
|
| 30. |
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में कौन-सा सूत्र दिया गया है ? |
|
Answer» प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में ‘हर खेत को पानी’ सूत्र दिया गया है । |
|
| 31. |
सप्ताह में 28 घंटे से 42 घंटे तक का काम मिले तो वह किस स्वरूप की बेरोजगारी है ? |
|
Answer» सप्ताह में 28 घंटे से 42 घंटे का काम मिले तो उस बेरोजगारी की तीव्रता कम है ऐसा कहेंगे । |
|
| 32. |
अनिवार्य स्वरूप की बेरोजगारी किसे कहते हैं ? |
|
Answer» प्रवर्तमान दर पर व्यक्ति काम करने की इच्छा, शक्ति और तैयार होने पर भी काम बिना रहना पड़े तब इसे बेरोजगारी का अनिवार्य स्वरूप या अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं । |
|
| 33. |
भारत में बेरोजगारी के उत्पन्न होनेवाले कारणों की चर्चा कीजिए । |
|
Answer» श्रमपूर्ति और श्रम की माँग के बीच असंतुलन बेरोजगारी का कारण है । अर्थात् श्रम की माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक हो तब बेरोजगारी सर्जित होती है । भारत में बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हैं : (1) जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर : भारत में जनसंख्या वृद्धिदर ऊँची होने से श्रमपूर्ति में वृद्धि होती है । परंतु उतने प्रमाण में रोजगार के अवसर धीमी गति से बढ़ते हैं परिणाम स्वरूप बेरोजगारी और अर्धबेरोजगारी की समस्या बढ़ती है । एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 1.70 करोड़ जनसंख्या बढ़ती है जो ऑस्ट्रेलिया के बराबर है । इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर बेरोजगारी का एक कारण है । (2) रोजगारी के धीमे अवसर : रोजगारी वृद्धि का आर्थिक विकास के साथ गहरा सम्बन्ध है । परंतु आयोजन काल दरम्यान आर्थिक विकास दर बढ़ने पर भी रोजगारी के अवसर पर्याप्त मात्रा में सर्जित नहीं हुये हैं । इस प्रकार भारत का ‘आर्थिक विकास रोजगारी बिना का विकास रहा है ।’ भारत में आयोजन के तीन दशकों में आर्थिक विकास औसत 3.5% की दर से बढ़ा है । 10वीं एवं 11वीं पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास की औसत वृद्धिदर 7.6% और 7.8% रही परंतु रोजगार के अवसर धीमे रहे है । जिससे बेरोजगारी की समस्या तीव्र बनी है । (3) बचत और पूंजीनिवेश की नीची दर : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुयी है । परंतु जनसंख्या वृद्धिदर भी ऊँची रही है । परिणाम स्वरूप प्रतिव्यक्ति आय में धीमी गति से वृद्धि हयी है । नीची प्रतिव्यक्ति आय और बोझरूप जनसंख्या के पीछे निभाव खर्च अधिक होने से बचत कम होती है । तथा पूँजीनिवेश भी कम होता है । जिससे उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र या अन्य क्षेत्र में पर्याप्त प्रमाण में रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (4) पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति : भारत में पूँजी की कमी और श्रम खूब है । इस परिस्थिति में बेरोजगारी की समस्या को हल करने में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । परंतु में दूसरी पंचवर्षीय योजना से बड़े और आधारभूत उद्योगों के विकास की नीति अपनायी है । जिनमें पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का अधिक उपयोग किया जाता है । परिणाम स्वरूप रोजगार के अवसर कम सर्जित होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (5) व्यावसायिक शिक्षा का नीचा प्रभाव : भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक महत्त्वपूर्ण कारण क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति है । देश में प्रत्येक क्षेत्र में बदलती हुयी कार्य पद्धति के अनुरूप काम कर सके ऐसे श्रमिक तैयार करने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली सफल नहीं हुयी है । आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए उद्योग, क्षेत्र, कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में नयी टेक्नोलोजी का उपयोग किया जा रहा है । परंतु उसीके अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा न होने से अनुकूल श्रम न होने से शिक्षित बेरोजगारी सर्जित होती है । जो भारत के लिए अधिक चिंताजनक बात है । (6) मानवशक्ति के आयोजन का अभाव : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान मानवशक्ति का उचित आयोजन नहीं हुआ है । देश में वर्तमान समय में जिस प्रकार के श्रम की माँग है उस संदर्भ में पर्याप्त योग्य श्रमपूर्ति प्राप्त हो इस प्रकार का मानवशक्ति आयोजन करने की शिक्षण व्यवस्था नहीं है । देश के आर्थिक विकास के लिए कितने और किस प्रकार के मानवश्रम की आवश्यकता होगी इसका अनुमान लगाये बिना शिक्षा का विस्तार किया जा रहा है । परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष लाखों शिक्षित युवान डिग्री प्राप्त करते हैं परंतु उनके पास आर्थिक विकास के अनुरूप ज्ञान, प्रशिक्षण या शिक्षण न होने से शिक्षित होने पर भी बेरोजगारी सर्जित होती है । (7) सार्वजनिक क्षेत्रों की अकार्यक्षमता : स्वतंत्रता के बाद भारत में निजी क्षेत्रों की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्रों के विकास को अधिक महत्त्व दिया गया है । सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों की संख्या और पूंजीनिवेश में वृद्धि हुयी है । परंतु कमजोर कार्यक्षमता के कारण रोजगार के अवसर सर्जित करने में निष्फल गये हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (8) कृषि क्षेत्र के विकास की उपेक्षा : भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । जिनके रोजगार का मुख्य आधार कृषि क्षेत्र है । परंतु भारत में आर्थिक विकास के लिए उद्योग क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र वह अधिक ध्यान न देने से कृषि क्षेत्र में मौसमी बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी अधिक सर्जित होती है । (9) श्रम की धीमी गतिशीलता : श्रम की धीमी गतिशीलता के कारण भी बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । श्रम की धीमी गतिशीलता के लिए सामाजिक परिबल, पारिवारिक सम्बन्ध, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति, जानकारी का अभाव, अपर्याप्त परिवहन सेवा जवाबदार है । उच्च शिक्षा प्राप्त लोग गाँव, पिछड़े विस्तारों में जाने की बजाय बेरोजगार रहना पसंद करते हैं । अधिकांशत: लोग शहरों में रोजगार प्राप्त करने की इच्छा रखते है जो संभव नहीं होता है । परिणाम स्वरुप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (10) अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा : ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को कच्चा माल, श्रमिक, सस्ते दर प्राप्त हो जाते हैं । परंतु पर्याप्त मात्रा में नियमित बिजली प्राप्त नहीं होती है । परिवहन, संचार, बाज़ार की अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा के कारण उद्योगों का विकास नहीं होता है । परिणाम स्वरूप नये रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप ग्रामीण विस्तारों में अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ बेरोजगारी की समस्या का एक कारण है । उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त भारत में राष्ट्रीय रोजगार नीति का अभाव, उद्योग-व्यवसाय को प्रोत्साहन मिले ऐसे वातावरण का अभाव, प्राकृतिक संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग भी बेरोजगारी की समस्या बढ़ाने के लिए जवाबदार होते हैं । |
|
| 34. |
चक्रीय बेरोजगारी किसे कहते हैं ? |
|
Answer» अर्थतंत्र में मंदी के कारण सर्जित बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं । |
|
| 35. |
अर्थशास्त्र में बेरोजगारी के किस स्वरूप को समावेश किया है ?(A) अपेक्षित(B) इच्छनीय(C) अनिवार्य(D) स्वैच्छिक |
|
Answer» सही विकल्प है (C) अनिवार्य |
|
| 36. |
प्रच्छन्न बेरोजगारी की सीमांत उत्पादकता कितनी होती है ?(A) शून्य(B) 100(C) बढ़ती है ।(D) कम होती है । |
|
Answer» सही विकल्प है (A) शून्य |
|
| 37. |
बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए किन उद्योगों का विकास करना चाहिए ? |
|
Answer» बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए श्रमप्रधान छोटे एवं मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास करना चाहिए । |
|
| 38. |
बेरोजगारी के स्वरूप की चर्चा कीजिए । |
|
Answer» प्रस्तावना : भारत में आयोजन के वर्षों में बेकारी के प्रमाण में क्रमशः वृद्धि होती गयी है । बेकारी के कारण देश में कई सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का जन्म हुआ है । भारत सरकार द्वारा इस समस्या को हल करने के अनेक प्रयासों के बावजूद अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके हैं । बेकारी की समस्या भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है । भारत में बेकारी अनेक रुपों में दिखाई पड़ती है । भारत में बेकारी का अर्थ : “प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने की इच्छा तथा शक्ति होने के बावजूद व्यक्ति को काम न मिले तो वह व्यक्ति बेकार है, ऐसा कहा जाता है ।” बेकारी के लक्षण : “भारत में दिखाई देनेवाली बेकारी की लाक्षणिकताएँ नीचे दर्शाये अनुसार हैं –
भारत में बेकारी का स्वरूप : अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान जैसे विकसित देशों में बेकारी का स्वरूप तथा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप अलग-अलग है । विकसित देशों में सामान्य रूप से असरकारक मांग के अभाव में काम अवधि की बेकारी अस्तित्व में आती है, जबकि विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप भिन्न है । विकसित देशों में नवीन संशोधनों के कारण किसी वस्तु की मांग घट जाय तो उससे संबंधित अन्य वस्तु की मांग बढ़ जाती है । इस प्रकार जिस वस्तु की मांग घट जाती है उस वस्तु के उत्पादन की इकाई में से श्रम उस उत्पादन इकाई की ओर गति लाते हैं कि जिस इकाई द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग बढ़ी होती है । इस प्रकार एक उत्पादन इकाई में से दूसरी उत्पादन इकाई में जाने तक अत्यंत कम अवधि के लिए बेकारी की समस्या उपस्थित होती है । भारत जैसे विकासशील देशों में प्रवर्तमान बेकारी लंबी अवधि की तथा ढाँचागत होती है । भारत में एक ओर जनसंख्या वृद्धि का दर ऊँचा होने के कारण रोजगारी मांगनेवालों की संख्या में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर पूँजी की कमी, टेक्निकल तालिम प्राप्त व्यक्ति की कमी, साहसिक नियोजकों की कमी, आधारभूत सुविधाओं का अभाव, अत्यंत पिछड़ा हुआ सामाजिक-आर्थिक ढाँचा, रोजगारी के अवसरों का अभाव इत्यादि के कारण लंबी अवधि की बेकारी देखने को मिलती है । विकसित देशों में उत्पन्न बेकारी का प्रश्न असरकारक मांग के अभाव में उपस्थित होता है, जिसे मांग में वृद्धि के द्वारा दूर किया जा सकता है । जबकि भारत जैसे देशों में बेकारी की समस्या आर्थिक ढाँचे में रही हुई कमी के कारण उपस्थित होता है । अर्थतंत्र के ढाँचे में परिवर्तन करके बेकारी के प्रश्न को हल किया जा सकता है । यह प्रक्रिया अत्यंत लंबी होने के कारण भारत में लंबी अवधि की बेकारी अस्तित्व में है ऐसा कहा जाता है । भारत में मौसमी तथा प्रच्छन्न बेकारी का भी अस्तित्व देखने को मिलता है । भारत में मिश्र अर्थतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है । इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्रों को ज्यादा तथा निजी क्षेत्रों को कम महत्त्व दिया गया है । भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों की बिनकार्यक्षमता तथा निजी क्षेत्रों की उपेक्षा होने के कारण औद्योगिक विकास मंद रहा है । परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र पर रोजगारी का बोझ बढ़ जाने के कारण कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेकारी की समस्या उपस्थित हुई है । भारत में कृषि वर्षा पर आधारित होती है । भारत में वर्षा अनियमित तथा अपर्याप्त होती है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र में मौसमी बेकारी की समस्या उपस्थित हई है । भारत में शिक्षित बेकारों की संख्या भी खूब अधिक है । शिक्षित बेकारी की समस्या सामान्य रूप से शहरी विस्तारों में तथा मौसमी एवं प्रच्छन्न बेकारी की समस्या ग्रामीण विस्तारों में देखने को मिलती है । भारत में बेकारी की समस्या को समझने के लिए मुख्य चार मापदंड निम्नानुसार दर्शाये गये हैं :
विकसित देशों में बेकारी मुख्य रुप से चक्रीय बेकारी एवं घर्षणयुक्त बेकारी देखने को मिलती है । चक्रीय बेकारी अर्थात तेजी – मंदी के समय में अल्पकालीन समय के लिए अस्थायी रूप से जो बेकारी सर्जित होती है उसे चक्रीय बेकारी कहते है । पुरानी टेक्नोलॉजी के स्थान पर नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से अस्थायी रूप से अल्पकालीन समय में जो बेकारी सर्जित होती है उसे घर्षणजन्य बेकारी कहते हैं । |
|
| 39. |
प्रच्छन्न बेरोजगारी का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए । |
|
Answer» प्रच्छन्न बेरोजगारी को छिपी बेरोजगारी, गुप्त बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं । यह बेरोजगारी भारत जैसे विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है । ‘किस एक व्यवसाय में प्रवर्तमान टेक्नोलोजी के संदर्भ में आवश्यकता हो उससे अधिक श्रमिक काम करते हो । ऐसे अतिरिक्त श्रमिको को हटा लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई फर्क न पड़ता हो तो उसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं । रग्नार नर्कस प्रच्छन्न बेरोजगारी की परिभाषा निम्नानुसार देते हैं – ‘यदि उत्पादन के साधनो और उत्पादन की टेकनिक दी हो और अधिक जनसंख्या रखनेवाले विकासशील देशो के कृषि क्षेत्र में विशेष प्रमाण में श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य हो, तो । ऐसे देशो में प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रवर्तमान है ऐसा कह सकते हैं ।’ इसे एक उदाहरण से समझें – 5 किसान 10 हेक्टर जमीन में काम करते हों और उत्पादन 500 टन होता हो । अब उसमें से दो किसानों को निकाल दिया जाये तो भी उत्पादन 500 टन ही हो । अर्थात् दो घटाने से उत्पादन में कोई फर्क नहीं पड़ता है । अर्थात् उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य है । इसलिए वे प्रच्छन्न बेरोजगारी के शिकार है । |
|
| 40. |
बेरोजगारी की समस्या आज ………………………….(A) वैश्विक समस्या है ।(B) राष्ट्रीय समस्या है ।(C) प्रादेशिक समस्या है ।(D) स्थानिक समस्या है । |
|
Answer» सही विकल्प है (A) वैश्विक समस्या है । |
|
| 41. |
सक्रिय श्रमपूर्ति में किस आयुवर्ग का समावेश होता है ?(A) 15 से 60(B) 15 से 64(C) 18 से 60(D) 18 से 25 |
|
Answer» सही विकल्प है (B) 15 से 64 |
|
| 42. |
घर्षणजन्य बेरोजगारी किसे कहते हैं ? |
|
Answer» पुरानी उत्पादन पद्धति के स्थान पर नयी उत्पादन पद्धति का उपयोग करने से सर्जित बेरोजगारी को घर्षणजन्य बेरोजगारी कहते है । |
|
| 43. |
चक्रीय बेरोजगारी की संकल्पना को समझाइए । |
|
Answer» अर्थतंत्र में तेजी-मंदी के चक्रो के दरम्यान सर्जित बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं । पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीनिवेशक और बचतकर्ता दोनों अलग-अलग होते हैं । पूँजीनिवेशक और बचतकर्ता के बीच जबतब असंतुलन सर्जित होता है । परिणाम स्वरूप कमी संपूर्ण अर्थतंत्र में तेजी तो कभी मंदी सर्जित होती है । तेजी की स्थिति में अर्थतंत्र में पूंजीनिवेश, उत्पादन, आय, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और बेरोजगारी कम होती है । जबकि मंदी की स्थिति में चीजवस्तुओं और सेवाओं की माँग में कमी आती है । परिणाम स्वरूप असरकारक माँग के अभाव के कारण उद्योगों का यहाँ मंदी बेरोजगारी का कारण है । इसलिए इसे चक्रीय बेरोजगारी या मंदीजन्य बेरोजगारी कहते हैं । |
|
| 44. |
बेरोजगारी का अर्थ बताइए । |
|
Answer» प्रवर्तमान वेतन दर पर व्यक्ति की काम करने की इच्छा शक्ति और तैयारी होने पर भी काम न मिले तो उसे बेरोजगारी कहते है। |
|
| 45. |
प्रच्छन्न बेरोजगारी का अर्थ बताइए । |
|
Answer» किसी एक व्यवसाय में प्रवर्तमान टेक्नोलोजी के संदर्भ में आवश्यकता से अधिक श्रमिक संलग्न हो, ऐसे अतिरिक्त श्रमिकों को इस क्षेत्र में से हटा भी लिया जाये तो भी कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन न हो तो उसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं । देखने में ऐसा लगता हो कि व्यक्ति कार्य कर रहा है लेकिन उसके कार्य का उत्पादन पर किसी प्रकार का फर्क न पड़ता हो । अर्थात् सीमांत उत्पादकता शून्य हो तो उसे प्रच्छन्न बेकार कहते हैं । |
|
| 46. |
बेरोजगारी के प्रकार निश्चित करने के लिए चार मापदण्ड किसने प्रस्तुत किये हैं ?(A) राजकृष्ण(B) महालनोविस(C) केईन्स(D) रोड़ान |
|
Answer» सही विकल्प है (A) राजकृष्ण |
|
| 47. |
किस प्रकार की उत्पादन पद्धति बेरोजगारी में वृद्धि करती है ?(A) श्रमप्रधान(B) पूँजीप्रधान(C) कृषि प्रधान(D) शिक्षण प्रथा |
|
Answer» सही विकल्प है (B) पूँजीप्रधान |
|
| 48. |
भारत में भी बेरोजगारी ने गंभीर ……………………… समस्या का स्वरूप धारण किया है ।(A) राजनैतिक(B) सामाजिक(C) आर्थिक(D) भौगोलिक |
|
Answer» सही विकल्प है (C) आर्थिक |
|
| 49. |
घर्षणजन्य बेरोजगारी का अर्थ और उदाहरण दीजिए । |
|
Answer» जब उत्पादन पद्धति में चीजवस्तुओं की माँग या उत्पादन में परिवर्तन होने से या संशोधन और नयी टेक्नोलोजी के कारण बाज़ार में नयी वस्तु के प्रवेश करने से जो बेरोजगारी सर्जित होती है तो उसे घर्षणजन्य बेरोजगारी कहते हैं । विकसित देशों में पुरानी उत्पादन पद्धति के स्थान पर नयी उत्पादन पद्धति का उपयोग होने से नयी पद्धति को सीखने में समय लगता है, तब तक उसे बेरोजगार रहना पड़ता है । नयी उत्पादन पद्धति सीखकर पुनः रोजगार प्राप्त कर लेते हैं । इस प्रकार यह अल्पकालीन समय की बेरोजगारी होती है । उदाहरण : सादा मोबाइल के स्थान पर स्मार्ट मोबाइल फोन आने से सादा मोबाईल फोन का उत्पादन, विक्रय और सर्विस क्षेत्र में काम करनेवाले मजदूरों को रोजगार न मिलने से बेरोजगार बनते है । यह घर्षणजन्य बेकारी है । |
|
| 50. |
असरकारक मांग के अभाव में किस प्रकार की बेरोजगारी सर्जित होती है ?(A) घर्षणजन्य(B) मौसमी(C) चक्रीय(D) प्रच्छन्न |
|
Answer» सही विकल्प है (C) चक्रीय |
|