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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

7951.

संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य क्या है ?

Answer»

संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य देश तथा विदेश के लिए शासन सम्बन्धी नीतियों का निर्धारण करना है तथा राष्ट्रपति को परामर्श देना है।

7952.

कौन-से संविधान संशोधन द्वारा मन्त्रिपरिषद् में सदस्यों की संख्या सीमित कर दी गयी है?

Answer»

91वें संविधान संशोधन (2003) द्वारा मन्त्रिपरिषद् में सदस्यों की संख्या सीमित कर दी गयी है।

7953.

राष्ट्रीय राजधानी राज्य-क्षेत्र दिल्ली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Answer»

1911 ई० में अंग्रेजों द्वारा दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया गया। तत्पश्चात् स्वतन्त्र भारत में 1956 ई० में दिल्ली को भारत संघ के केन्द्र-शासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया। वर्तमान समय में 69वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा 1991 ई० में संघ राज्य-क्षेत्र दिल्ली को अब ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्य-क्षेत्र दिल्ली के नाम से जाना जाता है। दिल्ली के प्रशासक को ‘उपराज्यपाल’ कहा जाता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था भी की गयी है। मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्ध में स्मरणीय तथ्य यह है कि चुनाव के पश्चात् मन्त्रिपरिषद् के प्रधान अर्थात् मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा मुख्यमन्त्री राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है।

7954.

भारत में कुल कितने राज्य हैं ? हाल में ही नये बनाए गए राज्य की राजधानी का नाम लिखिए।

Answer»

भारत में कुल 29 राज्य हैं। हाल में ही नये बनाए गए राज्य की राजधानी हैदराबाद है।

7955.

पॉण्डिचेरी (आधुनिक पुदुचेरी) के शासकीय संगठन की रूपरेखा दीजिए।

Answer»

इस संघ राज्य-क्षेत्र में सर्वोच्च कार्यपालिका अधिकारी को उपराज्यपाल कहते हैं, जिसे राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है। इस क्षेत्र के लिए लोकप्रिय शासन की व्यवस्था की गयी है जिसके अनुसार इस क्षेत्र में मन्त्रिमण्डल और विधानसभा हैं। अन्य राज्यों की विधान-सभाओं और पुदुचेरी की विधानसभा में अन्तर केवल यह है कि पुदुचेरी विधानसभा की शक्तियाँ अन्य राज्यों की विधानसभाओं की तुलना में सीमित हैं। पुदुचेरी में एक मन्त्रिपरिषद् है, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री है। मन्त्रिपरिषद् उपराज्यपाल को प्रशासनिक कार्यों में सहायता के परामर्श प्रदान करती है।

7956.

दिल्ली के अतिरिक्त अन्य संघीय क्षेत्रों के वर्तमान शासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Answer»

4 दिसम्बर, 1962 ई० को लोकसभा ने भारतीय संविधान का 14वाँ संशोधन पारित किया। बाद में राज्यसभा ने भी इसका अनुमोदन कर दिया तथा राष्ट्रपति ने अपनी अनुमति दे दी। भारतीय संविधान के 14वें संशोधन के द्वारा पुदुचेरी को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया। संविधान के 12वें संशोधन के द्वारा गोवा, दमन, दीव को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया। संविधान के 10वें संशोधन के द्वारा दादरा तथा नगर हवेली को भारतीय क्षेत्र में प्रविष्ट कर लिया गया। पहले ये फ्रांस तथा पुर्तगाल के अधिकार-क्षेत्र में थे।

मणिपुर व त्रिपुरा को 21 जनवरी, 1972 ई० को, हिमाचल प्रदेश को 25 जनवरी, 1981 ई० को, अरुणाचल प्रदेश को 1986 ई० को तथा गोवा को 1987 ई० को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया।

अब भारत में 7 केन्द्रशासित क्षेत्र इस प्रकार हैं –
⦁    चण्डीगढ़
⦁    दिल्ली
⦁    दमन और दीव
⦁    दादरा और नगर हवेली
⦁    पुदुचेरी
⦁    लक्षद्वीप
⦁    अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह।

7957.

भारतीय संघ में सम्मिलित राज्यों की संख्या है(क) 20(ख) 25(ग) 40(घ) 29

Answer»

सही विकल्प है  (घ) 29

7958.

भारत के केन्द्र-प्रशासित क्षेत्रों के नाम लिखिए तथा उनकी शासन व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। यासंघ-शासित क्षेत्र से क्या तात्पर्य है? ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासक की नियुक्ति कौन करता है?याकेन्द्रशासित क्षेत्रों के प्रशासनिक ढाँचे का वर्णन कीजिए।

Answer»

केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र (संघ राज्य क्षेत्रों) का निर्धारण
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में चार प्रकार के राज्यों की स्थापना की गई थी – (1) ‘क’ श्रेणी के राज्यों में पूर्व ब्रिटिश प्रान्तों को रखा गया, इस श्रेणी के राज्यों की संख्या 9 थी। (2) ‘ख’ श्रेणी के राज्यों में कुछ संघ तथा बड़ी-बड़ी देशी रियासतों को सम्मिलित किया गया, इनकी संख्या 8 थी। (3) ‘ग’ श्रेणी के राज्यों में कुछ छोटे प्रान्तों को सम्मिलित किया गया, इनकी संख्या 9 थी, तथा (4) ‘घ’ श्रेणी के राज्यों में अण्डमान तथा निकोबार द्वीपों को सम्मिलित किया गया। ‘क’ तथा ‘ख’ श्रेणी के राज्यों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई परन्तु ‘ग’ श्रेणी के राज्यों में आंशिक उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई तथा ‘घ’ श्रेणी के राज्यों में किसी उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की गई वरन् उनका प्रशासन केन्द्र सरकार के अधीन रहा। इनको ही केन्द्र-प्रशासित क्षेत्रों की संज्ञा दी गई।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ तथा ‘घ’ श्रेणी के राज्यों को समाप्त कर दिया गया तथा सभी राज्यों को मिलाकर 14 नए राज्यों के गठन के साथ-साथ 6 केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई। राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की संख्या कालान्तर में विभिन्न अधिनियमों के अनुसरण के साथ परिवर्तित होती गई।

वर्तमान स्थिति – भारत में वर्तमान समय में 29 राज्य तथा 7 संघीय क्षेत्र हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त न होने के बावजूद भी दिल्ली व पुदुचेरी में 70वें संविधान संशोधन के आधार पर यह व्यवस्था की गई है कि इनकी विधानसभाओं के सदस्यों को भी राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार होगा। उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना को भारतीय संघ में नए राज्यों के रूप में सम्मिलित किया गया है और भारत के कुल 29 राज्यों में ये भी शामिल हैं।
संघीय क्षेत्रों का प्रशासन
संघीय क्षेत्र (केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र) की विधानसभा अपने सम्पूर्ण क्षेत्र या कुछ भाग के लिए। उन नियमों के बारे में कानून का निर्माण कर सकती है जो कि संविधान में दी गई सातवीं अनुसूची में राज्य सूची अथवा समवर्ती सूची में दिए गए हैं और यदि वे विषय इस क्षेत्र पर लागू होते हैं। यदि संघीय क्षेत्र की विधानसभा किसी ऐसे कानून का निर्माण कर देती है जो संसद के कानून के विरुद्ध है तो उस क्षेत्र की विधानसभा का कानून वहाँ तक अवैधानिक समझा जाएगा। जहाँ तक कि वह संसद के कानून के विरुद्ध है।
दिल्ली, पुदुचेरी तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह का प्रशासन उपराज्यपाल के अधीन है। चण्डीगढ़, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव का प्रशासन प्रशासक के अधीन है। उल्लेखनीय है कि संविधान संशोधन (55) के अन्तर्गत अरुणाचल प्रदेश तथा संविधान संशोधन (57) के अन्तर्गत गोआ को राज्य का स्तर प्राप्त हो गया है। गोआ के साथ जुड़े दमन एवं दीव पूर्व की भाँति केन्द्र-शासित क्षेत्र ही हैं। वहाँ प्रशासक प्रशासकीय कार्यों का संचालन करता है। प्रशासन की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

इस प्रकार केन्द्र-शासित क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की शासन व्यवस्था है। दो केन्द्र-शासित क्षेत्रों (दिल्ली एवं पुदुचेरी) में संसदीय अधिनियम के अनुसार लोकप्रिय मन्त्रिपरिषद् व विधानसभाएँ स्थापित की गई हैं और शेष 5 संघ राज्यों को प्रबन्ध पूर्ण रूप से केन्द्र द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति को प्रत्येक संघीय क्षेत्र के लिए प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासक की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। संविधान के द्वारा संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। लेकिन वह अपनी इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही कर सकता है। यदि वह चाहे तो किसी राज्य से लगे केन्द्रीय क्षेत्र को उस राज्य के अन्तर्गत करने का अधिकार भी रखता है। संविधान ने राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया है कि वह अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप, दमन व दीव के प्रशासन एवं व्यवस्था के लिए कोई नियम बना सकता है। इन नियमों को संसद द्वारा पारित अधिनियमों के समान ही मान्यता प्राप्त होगी। इसी प्रकार संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इन क्षेत्रों के लिए कोई अन्य व्यवस्था कर दे। राष्ट्रपति राज्य की कार्यपालिका शक्ति स्वयं भी धारण कर सकता है।

अनुच्छेद 241 के अन्तर्गत संसद विधि द्वारा किसी संघ प्रशासित क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय गठित कर सकती है या ऐसे किसी राज्य-क्षेत्र में किसी न्यायालय को इस संविधान में सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय घोषित कर सकेगी। जब तक ऐसा विधान नहीं बनाया जाता तब तक ऐसे राज्य-क्षेत्रों के सम्बन्ध में विद्यमान उच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते रहेंगे। दिल्ली के लिए 1966 से पृथक् उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है जबकि अन्य 6 केन्द्र शासित प्रदेश निकटवर्ती राज्यों के उच्च न्यायालयों के साथ सम्बद्ध किए गए हैं; जैसेचण्डीगढ़ (पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय), लक्षद्वीप (केरल उच्च न्यायालय), अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह (कलकत्ता उच्च न्यायालय), पुदुचेरी (मद्रास उच्च न्यायालय), दादरा और नगर हवेली (बम्बई उच्च न्यायालय), दमन और दीव (बम्बई उच्च न्यायालय)।

7959.

निम्नलिखित में से कौन संघ राज्य क्षेत्र है? (क) गोवा(ख) दिल्ली(ग) छत्तीसगढ़(घ) मेघालय।

Answer»

सही विकल्प है (ख) दिल्ली

7960.

1963 ई० के अधिनियम के अनुसार संघीय क्षेत्रों का प्रशासन किस प्रकार से संचालित होता है?

Answer»

संघीय क्षेत्र की विधानसभा अपने सम्पूर्ण क्षेत्र अथवा कुछ भाग के लिए उन विषयों के सम्बन्ध में कानून का निर्माण कर सकती है जो कि संविधान में दी गई सातवीं अनुसूची में राज्य सूची अथवा समवर्ती सूची में दिए गए हैं, यदि वे विषय इस क्षेत्र पर लागू होते हैं। यदि संघीय क्षेत्र की विधानसभा कोई ऐसा कानून पारित कर देती है जो संसद के किसी कानून के विरुद्ध है तो उस क्षेत्र की विधानसभा का कानून वहाँ तक अवैधानिक समझा जाएगा जहाँ तक कि वह संसद के कानून का विरोधी है।

7961.

केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में अधिक-से-अधिक कितने मंत्री हो सकते हैं ? उनकी नियुक्ति कौन करता है ?

Answer»

सरकार में जितने भी प्रकार के मन्त्री बनाये जाते हैं वे संयुक्त रूप से मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करते हैं जिनका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मन्त्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं-मन्त्रिमण्डल अथवा कैबिनेट स्तर के मन्त्री, राज्य मन्त्री तथा उपमन्त्री।

मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के अधिकतम 15% तक हो सकती है। इनकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है।

7962.

केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व का क्या अर्थ है ?याकेन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् किस प्रकार संसद के प्रति उत्तरदायी है ?यामन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से किसके प्रति उत्तरदायी होती है?यामन्त्रियों के सामूहिक उत्तरदायित्व’ का क्या अर्थ है ? मन्त्रिपरिषद् किसके प्रति उत्तरदायी है ?

Answer»

भारत में संसदात्मक शासन-प्रणाली की व्यवस्था की गयी है और संसदात्मक शासन-प्रणाली में मन्त्रिपरिषद् को सामूहिक उत्तरदायित्व रहता है। सामूहिक उत्तरदायित्व से मतलब है कि मन्त्रिपरिषद् के सदस्य सभी मन्त्री अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति व्यक्तिगत रूप से तो उत्तरदायी होते ही हैं, सामूहिक रूप से भी प्रशासनिक नीति और समस्त प्रशासनिक कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् एक इकाई के रूप में कार्य करती है, जिससे सभी मन्त्री एक-दूसरे के निर्णय और कार्य के लिए उत्तरदायी होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि मन्त्रिमण्डल की सफलता या असफलता का भार एक मन्त्री पर नहीं पड़ता, वरन् सभी मन्त्रियों पर पड़ता है अर्थात् वे एक साथ तैरते हैं। और एक साथ ही डूबते हैं।

7963.

भारत के प्रथम प्रधानमंन्त्री का नाम बताइए।

Answer»

भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री-पं० जवाहरलाल नेहरू।

7964.

Why is it necessary to amend the Constitution?

Answer»

There comes up a need to make changes or amendments in the provisions of the Constitution due to the changing circumstances.

7965.

दिल्ली को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया(क) 1991 ई० में(ख) 1994 ई० में(ग) 1992 ई० में(घ) 1993 ई० में।

Answer»

सही विकल्प है (क) 1991 ई० में

7966.

संघीय क्षेत्र के रूप में पुदुचेरी किस राज्य के साम्राज्यवाद से मुक्त हुआ था?(क) ब्रिटेन(ख) पुर्तगाल(ग) फ्रांस(घ) जर्मनी।

Answer»

सही विकल्प है (ग) फ्रांस

7967.

केन्द्र प्रशासित कोई दो संघीय क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ विधानसभा नहीं है।

Answer»

⦁    दमन और दीव
⦁    दादरा और नगर हवेली।

7968.

गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा कब प्रदान किया गया?(क) 1985 ई० में(ख) 1986 ई० में(ग) 1987 ई० में(घ) 1988 ई० में।

Answer»

सही विकल्प है (ग) 1987 ई० में

7969.

केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद पर संसद किस प्रकार नियन्त्रण रखती है ?यासंसद मन्त्रिपरिषद् पर कैसे नियन्त्रण रखती है ? इसके द्वारा अपनाये जाने वाले किन्हीं तीन तरीकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् संसद के प्रति उत्तरदायी है; अत: संसद उस पर अग्रलिखित प्रकार से नियन्त्रण रखती है।

1. संसद-सदस्य मन्त्रिपरिषद् के कार्यों एवं नीतियों की आलोचना करते हैं।
2. मन्त्रिपरिषद् द्वारा पेश किये गये वित्तीय विधेयकों पर संसद की पूर्ण नियन्त्रण रहता है।
3. मन्त्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति भी उत्तरदायी होती है, क्योंकि संसद में अविश्वास पारित होने पर । मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
4. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, प्रश्नों तथा पूरक प्रश्नों द्वारा संसद मन्त्रिपरिषद् पर पूर्णत: नियन्त्रण रखती है।

7970.

राज्य में विधानपरिषद के अस्तित्व के पक्ष में चार तर्क दीजिए।

Answer»

उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्यों में विधानपरिषद् का अस्तित्व निश्चित रूप से अपना महत्त्व रखता है। इसके अस्तित्व के पक्ष में प्रमुख तर्क हैं –

⦁    विधेयक को अधिकतम चार महीने की अवधि तक रोके रखकर यह प्रथम सदन विधानसभा की मनमानी पर रोक लगाता है।
⦁    विधानसभा, प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है। विधानपरिषद् अप्रत्यक्ष रूप से। जिन वर्गों को प्रथम सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता, वे द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सकते हैं।
⦁    विधेयक को चार माह तक रोके रखकर विधानपरिषद् विधेयक पर जनमत जाग्रत करने का कार्य करती है।

7971.

सामान्य विधेयक संसद के किस सदन में पहले पेश होता है ?

Answer»

सामान्य विधेयक संसद के किसी भी सदन में पहले पेश हो सकता है ।

7972.

1956 ई० में पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा निम्नलिखित में से किसको केन्द्र शासित क्षेत्र में सम्मिलित नहीं किया गया था?यानिम्नलिखित में से केन्द्र-शासित राज्य कौन-सा है।(क) जम्मू-कश्मीर(ख) मेघालय(ग) चण्डीगढ़(घ) त्रिपुरा।

Answer»

सही विकल्प है (ग) चण्डीगढ़

7973.

कौन-सा केन्द्र-शासित प्रदेश दो राज्यों की राजधानी है?

Answer»

चण्डीगढ़ केन्द्र-शासित प्रदेश दो राज्यों की राजधानी है।

7974.

केन्द्र-शासित क्षेत्र दिल्ली को मुख्य प्रशासक कौन है?

Answer»

केन्द्र-शासित क्षेत्र दिल्ली का मुख्य प्रशासक ‘उपराज्यपाल है, जिसे राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए नियुक्त करता है। वर्तमान में उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल हैं।

7975.

भारतीय संघ में केन्द्र-शासित क्षेत्रों की संख्या कितनी है?

Answer»

भारतीय संघ में केन्द्र-शासित क्षेत्रों की संख्या 9 है।

7976.

वर्तमान समय में किन केन्द्र-शासित क्षेत्रों में लोकप्रिय सरकार है?

Answer»

वर्तमान समय में दो केन्द्र-शासित क्षेत्रों-दिल्ली और पुदुचेरी में लोकप्रिय सरकार/ विधानसभा और मन्त्रिपरिषद् हैं।

7977.

राज्य सूची पर कौन कानून बनाता है?

Answer»

राज्य की विधानसभा राज्य सूची पर कानून बनाती है।

7978.

“विधानसभा, राज्य मन्त्रिपरिषद पर नियन्त्रण रखती है।” दो तर्क देते हुए इस कथनका औचित्य स्पष्ट कीजिए।याविधानसभा मन्त्रिपरिषद पर किस प्रकार नियन्त्रण रखती है ?याविधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिए।

Answer»

संविधान के अनुसार, विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। बेजहाट का कथन है कि “मन्त्रिपरिषद् अपने जन्म की दृष्टि से विधायिका से सम्बन्धित है।” मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। किन्तु वास्तव में स्थिति इसके विपरीत होती है, क्योंकि मन्त्रिपरिषद् बहुमत दल की होती है, इसलिए विधानसभा इस पर अधिक नियन्त्रण नहीं रख पाती है तथा मुख्यमन्त्री भी विधानसभा को भंग कर सकता है। विधानसभा, प्रश्नों, पूरक प्रश्नों तथा काम रोको प्रस्तावों द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है तथा निम्नलिखित आधारों पर मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत कर सकती है –

⦁    अविश्वास के प्रस्ताव द्वारा – विधानसभा के सदस्य मन्त्रिपरिषद् से असन्तुष्ट होकर सदन के सामने अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना होता है।
⦁    विधेयक की अस्वीकृति – मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को यदि विधानसभा स्वीकृति न दे तो ऐसी दशा में भी मन्त्रिपरिषद् को अपना पद त्यागना पड़ता है।
⦁    किसी मन्त्री के प्रति अविश्वास – यदि विधानसभा किसी मन्त्री-विशेष के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो भी सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
⦁    गैर-सरकारी प्रस्तावे – विरोधी दलों के प्रस्ताव को गैर-सरकारी और मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को सरकारी प्रस्ताव कहते हैं। यदि विधानसभा किसी ऐसे गैर-सरकारी प्रस्ताव को स्वीकृत कर दे जिसका मन्त्रिपरिषद् विरोध कर रही हो, तो इस स्थिति में सम्बन्धित मन्त्री को अपना पद त्यागना होगा। सैद्धान्तिक दृष्टि से तो मन्त्रिपरिषद् पर विधानसभा द्वारा नियन्त्रण रखा जाता है, किन्तु व्यवहार में दलीय अनुशासन के कारण मन्त्रिपरिषद् ही विधानसभा पर नियन्त्रण रखती है।

7979.

स्थानीय स्व-शासन के दो मुख्य लाभ लिखिए।

Answer»

⦁    स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान तथा
⦁    नागरिकों के समय तथा धन की बचत।

7980.

विधानसभा के विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।याइस राज्य में विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है” इस कथन का परीक्षण कीजिए।

Answer»

विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के निम्नलिखित तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधानसभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

1. प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में – विधानसभी राज्य की जनता की प्रतिनिधि है, जब कि विधान परिषद् कुछ विशेष वर्गों की।
2. कार्यपालिका के सम्बन्ध में – राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के ही प्रति उत्तरदायी होती है, विधान परिषद् के प्रति नहीं। विधान परिषद् केवल प्रश्न, पूरक प्रश्न तथा स्थगन प्रस्ताव उपस्थित कर मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की जाँच तथा आलोचना ही कर सकती है। मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उसे पदच्युत करने का कार्य विधानसभा के द्वारा ही किया जा सकता है।
3. वित्त के क्षेत्र में – वित्त विधेयक विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं। विधानसभा से स्वीकृत होने पर जब कोई वित्त विधेयक विधान-परिषद् को भेजा जाता है तथा परिषद् 14 दिन के भीतर संशोधन सहित वापस कर देती है, उन संशोधनों को स्वीकार करने का अधिकार विधानसभा को है। यदि परिषद् 14 दिन के भीतर वित्त विधेयक नहीं लौटाती है, तो विधेयक दोनों सदनों से पारितं समझा जाता है। अनुदान की माँगों पर मतदान भी केवल विधानसभा में ही होता है। इस दृष्टि से राज्यों में विधान-परिषद् को वैसी ही स्थिति प्राप्त होती है जैसी स्थिति केन्द्र में राज्यसभा की है।
4. राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में – राष्ट्रपति के निर्वाचन में भी केवल विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते हैं, विधान परिषद् के सदस्य नहीं।
विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधान-सभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। डॉ० ए० पी० शर्मा के शब्दों में, जो समानता का ढोंग लोकसभा और राज्यसभा के बीच है, वह विधानसभा और विधानपरिषद् के बीच नहीं।” विधानसभा का अधिक शक्तिशाली होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि विधानसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है, विधान-परिषद् अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है।

7981.

वित्त विधेयक को विधान-परिषद अधिक-से-अधिक कितने दिनों तक रोक सकती है?

Answer»

वित्त विधेयक को विधानपरिषद अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है।

7982.

वित्त विधेयक विधानमण्डल के किस सदन में पेश होता है?

Answer»

वित्त विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।

7983.

उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए। याउत्तर प्रदेश की विधान-परिषद की रचना पर प्रकाश डालिए। 

Answer»

विधान-परिषद की रचना अथवा संगठन राज्य, विधान परिषद् की संरचना को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है –

1. सदस्य-संख्या – विधान-परिषद् राज्य के विधानमण्डल का उच्च सदन होता है। यह एक स्थायी सदन है। संविधान में व्यवस्था की गयी है कि प्रत्येक राज्य की विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या उसकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या के 1/3 से अधिक न होगी, किन्तु किसी भी स्थिति में उसकी सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए।
2. सदस्यों को निर्वाचन – विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है तथा कुछ सदस्यों को मनोनीत भी किया जाता है। निम्नलिखित निर्वाचक मण्डल विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव करते हैं –

(अ) विधानसभा का निर्वाचक मण्डल – कुल सदस्य संख्या के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्य ऐसे व्यक्तियों में से करते हैं, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
(ब) स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचक मण्डल – समस्त सदस्यों का 1/3 भाग, उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुना जाता है, जैसा संसद कानून द्वारा निश्चित करे।
(स) अध्यापकों का निर्वाचक मण्डल – इसमें वे अध्यापक होते हैं जो राज्य के अन्तर्गत किसी माध्यमिक पाठशाला या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह निर्वाचक मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(द) स्नातकों का निर्वाचक मण्डल – यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों को मण्डल होता है जो इस राज्य में रहते हों तथा स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो और जिन्हें यह परीक्षा पास किये 3 वर्ष से अधिक हो गये हों। यह मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(य) राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य – कुल सदस्य संख्या के 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हों।

3. सदस्यों की योग्यताएँ – विधान-परिषद् की सदस्यता के लिए भी वे ही योग्यताएँ हैं, जो विधानसभा की सदस्यता के लिए हैं। भिन्नता केवल इतनी है कि विधान परिषद् की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। निर्वाचित सदस्य को उस राज्य की विधानसभा के किसी निर्वाचन क्षेत्र का सदस्य तथा निवासी भी होना चाहिए।
4. कार्यकाल – विधान परिषद् इस दृष्टि से स्थायी है कि पूर्ण विधान परिषद् कभी भी भंग नहीं होती। विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। प्रति दो वर्ष के बाद 1/3 सदस्य अपने पद से मुक्त होते रहते हैं और उनके स्थान पर नये सदस्य निर्वाचित होते हैं।
5. वेतन तथा भत्ते – विधान परिषद् के सदस्यों के वेतन और भत्ते विधानसभा सदस्यों के बराबर हैं। उत्तर प्रदेश में पारित किये गये कानून के अन्तर्गत विधानमण्डल के प्रत्येक सदस्य (विधायक) को प्रति माह वेतन, निर्वाचन-क्षेत्र भत्ता, जन सेवा भत्ता, सचिवीय भत्ता, चिकित्सा भत्ता तथा मकान किराया भत्ता मिलता है। इसके अतिरिक्त उसे प्रति वर्ष रेल यात्रा के कूपन भी मिलते हैं। इन कूपनों को हवाई यात्रा कूपनों में परिवर्तित कराने की भी सुविधा प्राप्त है। इन्हें पानी, बिजली, टेलीफोन एवं फर्नीचर की सुविधाओं के साथ-साथ उ० प्र० रा० प० नि० की बसों में मुफ्त यात्रा का भी प्रावधान है। मकान बनवाने अथवा कार खरीदने के लिए ब्याज मुक्त ऋण तथा आजीवन पेन्शन की भी व्यवस्था है। इन्हें प्राप्त होने वाले वेतन तथा भत्तों की राशि में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं।
6. पदाधिकारी – विधान परिषद् में मुख्यत: दो पदाधिकारी होते हैं, जिन्हें सभापति तथा उपसभापति कहते हैं। विधान परिषद् के सदस्य अपने में से इनका चुनाव करते हैं।

विधान-परिषद् के अधिकार तथा कार्य
विधान-परिषद्, विधानसभा की तुलना में एक कमजोर सदन है, फिर भी इसे निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं –

1. कानून-निर्माण कार्य – साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा वे विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। यदि कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान–परिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है। या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है जो विधायकों को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है। तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद् को भेजती है। इस बार विधान परिषद् विधेयक को स्वीकृत करे या न करे, एक माह बाद यह विधान परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।
2. कार्यपालिका शक्ति – विधानपरिषद प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रि परिषद् के विरुद्ध जनमत तैयार करके उसको नियन्त्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कार्यपालिका केवल विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।
3. वित्तीय कार्य – वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं, विधानपरिषद् में नहीं। विधानसभा किसी वित्त विधेयक को पारित कर स्वीकृति के लिए विधान-परिषद्, के पास भेजती है तो विधान-परिषद् या तो 14 दिन के अन्दर उसे ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर सकती है या फिर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस लौटा सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशें माने या न माने। यदि परिषद् 14 दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

7984.

किन्हीं चार केन्द्र-शासित प्रदेशों के नाम लिखिए।

Answer»

⦁    चण्डीगढ़
⦁    दादरा व नगर हवेली
⦁    लक्षद्वीप
⦁    पुदुचेरी।

7985.

उत्तर प्रदेश विधानसभा एवं विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या बताइए। याउत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् में कुल कितने सदस्य हैं? 

Answer»

विधानसभा सदस्य संख्या : 404 तथा विधान-परिषद् सदस्य-संख्या : 100।

7986.

उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल क्या है?

Answer»

उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है। हालांकि राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। परन्तु यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जोकि एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किस्सी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।

7987.

उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। याउत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों के संगठन एवं शक्तियों की परस्पर तुलना कीजिए।याउत्तर प्रदेश की विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।याविधानसभा के संगठन, कार्यकाल तथा अधिकारों (शक्तियों) का उल्लेख कीजिए।याराज्य-मन्त्रिमण्डल की शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।याराज्य विधान सभा की वित्तीय शक्तियों का वर्णन कीजिए। याराज्य विधानसभा के कार्यों का वर्णन कीजिए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन पर प्रकाश डालिए तथा उन उपायों का उल्लेख कीजिए जिनके द्वारा वह मन्त्रिपरिषद् को नियन्त्रित करती है।याराज्य में विधानसभा की दो शक्तियाँ लिखिए। 

Answer»

राज्य विधानमण्डल
संविधान के द्वारा भारत के प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 168 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमण्डल होगा, जो राज्यपाल तथा कुछ राज्यों में दो सदन से मिलकर तथा कुछ में एक संदन से बनेगा। जिन राज्यों के दो सदन होंगे, उनके नाम क्रमशः विधानसभा और विधान-परिषद् होंगे। प्रत्येक राज्य में जनता द्वारा वयस्क मताधिकार द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का सदन होता है। विधानमण्डल के इस प्रथम सदन को ‘विधानसभा’ कहते हैं। जिन राज्यों में विधानमण्डल का दूसरा सदन है, उसे ‘विधानपरिषद्” कहते हैं।

विधानसभा की रचना
विधानसभा विधानमण्डल का प्रथम और लोकप्रिय सदन है। जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहाँ पर विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है।

1. सदस्य-संख्या – संविधान में राज्य की विधानसभा के सदस्यों की केवल न्यूनतम और अधिकतम संख्या निश्चित की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी। सम्पूर्ण प्रदेश को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम-से-कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे। इस नियम का अपवाद केवल असम के स्वाधीन जिले शिलाँग की छावनी और नगरपालिका के क्षेत्र, सिक्किम, गोआ, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश हैं। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर इसके स्थान सुरक्षित किये गये हैं।
2. सदस्यों की योग्यताएँ – विधानसभा के सदस्य के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए –
⦁    वह भारत का नागरिक हो।
⦁    उसकी आयु कम-से-कम 25 वर्ष हो।
⦁    वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
⦁    वह पागल या दिवालिया घोषित न हो।
⦁    वह संसद या राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो।
⦁    किसी न्यायालय द्वारा उसे दण्डित न किया गया हो।
3. निर्वाचन पद्धति – विधानसभा सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है। कम-से-कम 18 वर्ष की आयु प्राप्त राज्य का प्रत्येक स्त्री, पुरुष मतदान का अधिकारी होता है। इस प्रकार ऐसे व्यक्तियों की मतदाता सूची तैयार कर ली जाती है। निश्चित तिथि को मतदान होता है। मतगणना पश्चात् सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यह समस्त चुनाव प्रक्रिया देश का निर्वाचन आयोग सम्पन्न कराता है।
4. कार्यकाल – राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। यदि संकटकाल की घोषणा हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किसी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।
5. पदाधिकारी – प्रत्येक राज्य की विधानसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं – (1) अध्यक्ष (Speaker) तथा (2) उपाध्यक्ष (Deputy Speaker)। इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही करते हैं तथा इनका कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल तक होता है। अध्यक्ष के वही सब कार्य होते हैं जो लोकसभा अध्यक्ष के होते हैं।

राज्य विधानसभा के कार्य और शक्तियाँ
विधानसभा राज्य की व्यवस्थापिका है। संविधान द्वारा राज्य विधानसभा को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। राज्य विधानसभा की शक्तियों का अध्ययन निम्नलिखित सन्दर्भो में किया जा सकता है –

1. निर्वाचन सम्बन्धी शक्ति – राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में द्वितीय सदन (विधान-परिषद्) की व्यवस्था है, उसके 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
2. विधायी शक्ति – राज्य की विधानसभा को सामान्यत: उन सभी विषयों पर कानून-निर्माण की शक्ति प्राप्त होती है जो राज्य सूची और समवर्ती सूची में दिये गये हैं। यद्यपि कोई भी विधेयक कानून का स्वरूप तभी धारण करता है जब उसे दोनों सदनों की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है, किन्तु इस विषय में विधानसभा की शक्तियाँ विधान-परिषद् की शक्तियों से बहुत अधिक हैं। विधान-परिषद् विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को 4 माह के लिए रोककर केवल देरी ही कर सकती है। समवर्ती सूची के विषय पर राज्यसभा द्वारा निर्मित कोई विधि यदि उसी विषय पर संसद द्वारा निर्मित विधि के विरुद्ध हो तो राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि मान्य नहीं होगी। राज्य विधानमण्डल की कानून-निर्माण की शक्ति पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध भी हैं –
(i) अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राज्य में संविधान तन्त्र भंग होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
(ii) कुछ विधेयक राज्य विधानमण्डल में प्रस्तावित किये जाने के पूर्व उन पर राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसे विधेयक वे हैं जिनका सम्बन्ध राज्य के भीतर या विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य व आने-जाने की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने से होता है।
(iii) संघीय संसद अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों और समझौतों का पालन करने के लिए भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।
3. वित्तीय शक्ति – विधानसभा को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त होता है। आय-व्यय का वार्षिक लेखा विधानसभा से स्वीकृत होने पर ही शासन के द्वारा आय-व्यय से सम्बन्धित कोई कार्य किया जा सकता है। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। वित्तीय मामलों में विधान-परिषद् विधानसभा से अत्यधिक दुर्बल सदन है। विधानसभा से विनियोग विधेयक पारित होने पर ही सरकार संचित निधि से व्यय हेतु धन खर्च कर सकती है।
4. प्रशासनिक शक्ति – संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित किये जाने के कारण राज्य का मन्त्रिमण्डल अपनी नीति और कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानसभा सदस्यों द्वारा मन्त्रियों से उनके विभागों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं व काम रोको प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। विधानसभा कभी भी राज्य मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध ‘अविश्वास प्रस्ताव पारित करके इसे उसके पद से हटा सकती है।
5. संविधान संशोधन शक्ति – हमारे संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं कि संसद द्वारा बहुमत के आधार पर पारित प्रस्ताव को कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा स्वीकार किया जाए। इस प्रकार राज्य विधानसभा संविधान संशोधन के कार्य में भी भाग लेती है।

7988.

आपके राज्य में विधानसभा के अध्यक्ष का चयन कौन करता है?

Answer»

राज्य की विधानसभा के सदस्य विधानसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।

7989.

उत्तर प्रदेश की विधायिका के दोनों सदनों के नाम लिखिए।

Answer»

विधानसभा तथा विधान-परिषद्।

7990.

विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Answer»

विधानसभा अध्यक्ष के कार्य निम्नलिखित हैं –

⦁    वह विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता
⦁    सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना उसका मुख्य उत्तरदायित्व है तथा इस हेतु उसे समस्त आवश्यक कार्यवाही करने का अधिकार है।
⦁    सदन का कोई भी सदस्य सदन में उसकी आज्ञा से ही भाषण दे सकता है।
⦁    वह सदन की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को निकाले जाने का आदेश दे सकता है जो असंसदीय या अशिष्ट हैं।
⦁    सदन के नेता के परामर्श से वह सदन की कार्यवाही का क्रम निश्चित कर सकता है।
⦁    वह प्रश्नों को स्वीकार करता या नियम-विरुद्ध होने पर उन्हें अस्वीकार करता है।
⦁    वह किसी प्रश्न पर मतदान कराता और परिणाम की घोषणा करता है।
⦁    सामान्य स्थिति में वह सदन में मतदान में भाग नहीं लेता लेकिन यदि किसी प्रश्न पर पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आयें, तो वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) का प्रयोग करता है।
⦁    कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ (Money Bill) है अथवा नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है।
⦁    विधानसभा और विधान परिषद् के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता वही करता है।
⦁    सदन तथा राज्यपाल के बीच ‘अध्यक्ष’ ही सम्पर्क स्थापित करता है।
⦁    वह सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
⦁    वह विधानमण्डल की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता है।
⦁    वह सदन की दर्शक दीर्घा में दर्शकों और प्रेस प्रतिनिधियों के प्रवेश पर नियन्त्रण भी लगा सकता है।

अध्यक्ष की अनुपस्थिति में इन सभी कार्यों का सम्पादन उपाध्यक्ष करता है। यदि दोनों ही अनुपस्थित हों तो विधानसभा अपने सदस्यों में से एक कार्यवाहक अध्यक्ष चुन लेती है।

7991.

विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?

Answer»

विधेयक दो प्रकार के होते हैं –

⦁    साधारण विधेयक तथा
⦁    धन या वित्त विधेयक।

7992.

उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?

Answer»

श्री पुरुषोत्तम दास टण्डन।

7993.

बिहार में विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या है। (क) 224(ख) 234(ग) 243(घ) 288

Answer»

सही विकल्प है (ग) 243

7994.

निम्नलिखित में से कहाँ द्वि-सदनीय विधानमण्डल है?(क) गुजरात(ख) तमिलनाडु(ग) ओडिशा(घ) जम्मू-कश्मीर

Answer»

सही विकल्प है (घ) जम्मू-कश्मीर

7995.

निम्नलिखित में से कहाँ एक-सदनीय विधानमण्डल है?(क) कर्नाटक(ख) उत्तर प्रदेश(ग) मध्य प्रदेश(घ) बिहार

Answer»

सही विकल्प है (ग) मध्य प्रदेश

7996.

उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है अथवा एक-सदनीय?

Answer»

उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है।

7997.

राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान कौन करता है?

Answer»

राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान राज्यपाल करता है।

7998.

उत्तर प्रदेश की विधानमण्डल के विश्रान्ति में अध्यादेश कौन जारी करता है?

Answer»

उत्तर प्रदेश की विधानमण्डल के विश्रान्ति में अध्यादेश राज्यपाल जारी करता है।

7999.

1930-1942 ई० के बीच की प्रमुख घटनाओं को एक चार्ट द्वारा तिथिक्रमबद्ध कीजिए।

Answer»

1930-1942 ई० के मध्य घटित हुई प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं –

1. मार्च, 1930 : दाण्डी मार्च, सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत।

2. मार्च, 1931 : सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस लिया गया।

3. दिसम्बर, 1931 : दूसरा गोलमेज सम्मेलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू।

4. मार्च, 1942 : सर स्टेफर्ड क्रिप्स का भारत आगमन।

5. अगस्त, 1942 : भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ।

8000.

गांधी-इरविन समझौते के मुख्य चार बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।

Answer»

गांधी-इरविन समझौते (दिल्ली पैक्ट) के चार मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –

1. जिन राजनीतिक बन्दियों पर हिंसा के आरोप हैं, उन्हें छोड़कर शेष को रिहा कर दिया जाएगा।

2. भारतीय लोग समुद्र के किनारे नमक बना सकते हैं।

3. भारतीय लोग शराब व विदेशी वस्त्रों की दुकान पर कानून की सीमा के भीतर धरना दे सकते हैं।

4. सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र देने वालों को सरकार वापस लेने में उदारता दिखाएगी।