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8001.

भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण एवं परिणाम पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।याकांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ क्यों प्रारम्भ किया ? इसकी असफलता के क्या कारण थे?याभारत छोड़ो आन्दोलन के तीन कारण लिखिए। ब्रिटिश सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया थी ? क्या आपके मत में यह असफल रहा ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।याभारत छोड़ो आन्दोलन क्या था ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?याभारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के दो प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिएयाभारत छोड़ो आन्दोलन किसने चलाया ? इसके कोई दो कारण बताइए।या‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के तीन प्रमुख बिन्दुओं को इंगित कीजिए।याभारत छोड़ो आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।

Answer»

मार्च, 1942 ई० में सर स्टेफर्ड क्रिप्स कुछ प्रस्तावों के साथ भारत आये। प्रस्ताव के अनुसार, सुरक्षा के अतिरिक्त भारतीयों को भारत सरकार के सभी विभाग हस्तान्तरित करने की बात कही गयी थी। क्रिप्स का प्रस्ताव स्वीकार करो अथवा छोड़ दो।’ की भावना पर आधारित था। इसे भारतीयों ने स्वीकार नहीं किया। अन्ततः अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ वाला प्रसिद्ध प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा आन्दोलन की बागडोर गांधी जी को सौंप दी। भारत छोड़ो आन्दोलन महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण

भारत छोड़ो आन्दोलन को चलाने के निम्नलिखित कारण थे –

1. पहला कारण यह था कि जापान के आक्रमण का भय बढ़ रहा था। गांधी जी चाहते थे कि भारत को उस आक्रमण से बचाया जाए। यह तभी हो सकता था जब अंग्रेज लोग भारत को छोड़ देते।

2. दूसरा कारण यह था कि अंग्रेजों की हर जगह हार हो रही थी। उनके हाथों से सिंगापुर और बर्मा निकल 1गये। गांधी जी का यह विचार था कि यदि अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान को न छोड़ा तो इस देश के लोगों की भी वही दुर्दशा होगी जो बर्मा और मलाया के लोगों की हुई थी। गांधी जी का विचार था कि यदि अंग्रेज लोग भारत छोड़ जाएँ तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा।

3. आन्दोलन को आरम्भ करने का एक और कारण यह था कि हिटलर और उसके साथियों का प्रोपेगण्डा बढ़ रहा था और उसका प्रभाव भारतीयों पर भी पड़ रहा था। सुभाषचन्द्र बोस स्वयं बर्लिन से हिन्दुस्तानी भाषा में ब्रॉडकास्ट कर रहे थे। ऐसा महसूस किया गया कि भारत की रक्षा के लिए उत्साह पैदा किया जाए और ऐसा तभी हो सकता था जब देश में एक व्यापक आन्दोलन हो।

4. बर्मा (म्यांमार) छोड़ने के समय हिन्दुस्तान के लोगों से अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। उनको भारत लौटते समय अनगिनत कष्ट सहने पड़े। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध बहुत रोष उत्पन्न हो गया। इस वातावरण ने भी गांधी जी को आन्दोलन चलाने के लिए विवश किया।

5. द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में अंग्रेजों ने भारत में सब-कुछ जलाने की नीति को अपनाया। इस नीति से बहुत-से हिन्दुस्तानियों की हानि हुई। कई लोगों की जमीनें नष्ट हो गयीं और उनको पर्याप्त मुआवजा न दिया गया। कइयों की रोटी छिन गयी, चीजों की कीमतें बढ़ गयीं, देश में असन्तोष बढ़ गया। ऐसी स्थिति से लाभ उठाने के लिए गांधी जी ने अपना आन्दोलन आरम्भ किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम / प्रभाव
अथवा
असफलता के कारण

भारत छोड़ो आन्दोलन के अग्रलिखित परिणाम/प्रभाव हुए –

1. आन्दोलन का तात्कालिक परिणाम यह था कि ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को जेल भेज दिया। कांग्रेस संस्था को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया गया। उसके कार्यालय पर पुलिस ने कब्जा कर लिया। यह नीति सरकार ने कांग्रेस को कुचलने के लिए अपनायी।

2. साधारण जनता हाथ-पर-हाथ रखकर बैठी न रही, उसने भी सरकार के विरुद्ध विद्रोह आरम्भ कर दिया। गांधी जी के मन में यह विचार ही न था कि सरकार उन्हें अकस्मात् बन्दी बना लेगी। इसका परिणाम यह हुआ कि गांधी जी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के गिरफ्तार होने के बाद आन्दोलन का पथ-प्रदर्शन करने के लिए कोई नेता न रहा। जैसा लोगों के मन में आया उन्होंने वैसा ही किया।

3. जब सरकार ने निर्दोष पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों को गोली से उड़ा दिया, तब लोगों ने भी हिंसा की नीति अपनायी। जहाँ कहीं विदेशी मिले, उनको मार डाला गया। बहुत कठिनाइयों के बाद ब्रिटिश सरकार अपनी सत्ता को देश में फिर से स्थापित करने में सफल हुई।

8002.

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे ? उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए।यासविनय अवज्ञा आन्दोलन किन परिस्थितियों में प्रारम्भ किया गया ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?यासविनय अवज्ञा आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।

Answer»

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अर्थ है–विनम्रतापूर्वक आज्ञा या कानून की अवमानना करना। मार्च, 1930 ई० में गांधी जी ने यह आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में गुजरात में स्थित डाण्डी नामक स्थान से समुद्र तट तक उन्होंने पैदल यात्रा की, जिसमें हजारों नर-नारियों ने उनका साथ दिया। वहाँ उन्होंने स्वयं नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। शीघ्र ही हजारों लोगों तथा राष्ट्रीय नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन निम्नलिखित परिस्थितियों में बाध्य होकर आरम्भ किया गया था –

1. अंग्रेजों द्वारा पारित नमक कानून के कारण भारत की निर्धन जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा था; अत: उनमें अंग्रेजों के इस अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध भारी रोष था।

2. साइमन कमीशने में भारतीयों को प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण जनता में रोष व्याप्त था।

3. अंग्रेजों ने नेहरू रिपोर्ट के तहत भारतीयों को डोमिनियन स्तर देना अस्वीकार कर दिया था।

4. बारदोली के किसान-आन्दोलन’ की सफलता ने गांधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने को प्रोत्साहित किया।

आन्दोलनको प्रारम्भ(सन् 1930-31 ई०) – सविनय अवज्ञा आन्दोलन गांधी जी की डाण्डी-यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने 12 मार्च, 1930 ई० को पैदल यात्रा आरम्भ की और 6 अप्रैल, 1930 ई० को डाण्डी के निकट समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वहीं से यह आन्दोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन-चक्र आरम्भ कर दिया। गांधी जी सहित अनेक आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया, परन्तु आन्दोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गांधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गांधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना तथा आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह सन् 1931 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

आन्दोलन की प्रगति (सन् 1930-33 ई०) तथा अन्त सन् 1931 ई० में लन्दन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया। इसमें कांग्रेस की ओर से गांधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस सम्मेलन में भी भारतीय प्रशासन के लिए उचित हल न निकल सका। गांधी जी निराश होकर भारत लौट आये और उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आन्दोलन के दमन के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आन्दोलन की गति कुछ धीमी पड़ गयी। कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आन्दोलन को बन्द कर दिया।

परिणाम / प्रभाव

इस आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम/प्रभाव थे –

1. इस आन्दोलन में पहली बार बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया।

2. इस आन्दोलन में मजदूर, किसानों, महिलाओं से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक सम्मिलित थे।

3. सरकारी अत्याचारों के बावजूद लोगों ने अहिंसा का रास्ता नहीं छोड़ा, जिससे भारतीयों में आत्म-बल की वृद्धि हुई।

इस आन्दोलन ने कांग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया। कांग्रेस के पास भविष्य के लिए आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह भारतीय जनता में व्याप्त रोष का पूर्णतया उपयोग न कर सकी।

8003.

गांधी जी द्वारा चलाये गये किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए। सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ होने के क्या कारण थे? कोई दो कारण लिखिए।यामहात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किये गये किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए।

Answer»

गांधी जी द्वारा चलाये गये दो आन्दोलनों के नाम हैं –

1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा

2. भारत छोड़ो आन्दोलन

सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं –

1. साइमन कमीशन में भारतीयों को प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण रोष।

2. अंग्रेजों ने नेहरू रिपोर्ट के तहत भारतीयों को डोमिनियन स्तर देना अस्वीकार किया।

8004.

स्वराज पार्टी का गठन क्यों किया गया था ?

Answer»

महात्मा गांधी को बन्दी बनाये जाने से जनता का उत्साह क्षीण पड़ गया। उधर कौन्सिल में प्रवेश के प्रश्न को लेकर कांग्रेस दो दलों में विभक्त हो गयी। एक दल का कहना था कि कौन्सिल में प्रवेश कर सरकार के कार्यों में बाधा उत्पन्न करनी चाहिए। यह दल परिवर्तनवादी कहलाया। दूसरा दल अपरिवर्तनवादी कहलाया, जिसका कहना था कि कौन्सिल का परित्याग कर दिया जाए। परिवर्तनवादियों जिनमें मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजनदास प्रमुख थे, ने एक नयी पार्टी ‘स्वराज पार्टी’ का निर्माण किया। स्वराज पार्टी को विधानसभाओं में बहुत स्थान मिले। इस पार्टी ने सरकार के कार्यों में विघ्न डालने प्रारम्भ किये और अपने लक्ष्य में आंशिक सफलता प्राप्त की, किन्तु सन् 1925 ई० में इसके नेता सी०आर० दास की मृत्यु से इस पार्टी का प्रभाव क्षीण हो गया।

8005.

भारत छोड़ो आन्दोलन में गांधी जी ने कौन-सा नारा दिया ?

Answer»

भारत छोड़ो आन्दोलन में गांधी जी ने “करो या मरो’ का नारा दिया।

8006.

प्रथम गोलमेज सम्मेलन कहाँ पर आयोजित किया गया ?

Answer»

प्रथम गोलमेज सम्मेलन लन्दन में आयोजित किया गया।

8007.

साइमन कमीशन कब भारत पहुँचा ?(क) 1923 ई० में(ख) 1928 ई० में(ग) 1929 ई० में(घ) 1930 ई० में

Answer»

सही विकल्प है (ख) 1928 ई० में

8008.

स्वराज पार्टी का गठन किसने किया था ?

Answer»

स्वराज पार्टी का गठन मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने किया था।

8009.

गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत किस कानून को तोड़कर प्रारम्भ की ?

Answer»

गांधी जी ने ‘नमक कानून’ को तोड़कर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की।

8010.

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का मुख्य केन्द्र कहाँ था ?(क) साबरमती आश्रम(ख) पोरबन्दर(ग) खेड़ा(घ) सूरत

Answer»

सही विकल्प है (क) साबरमती आश्रम

8011.

उत्तर प्रदेश की मन्त्रिपरिषद् के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। 

Answer»

⦁    राज्य प्रशासन की नीति का निर्धारण और संचालन तथा
⦁    राज्य में शान्ति व सुव्यवस्था की स्थापना।

8012.

गांधी जी ने नमक सत्याग्रह कहाँ प्रारम्भ किया था?(क) पोरबन्दर(ख) डाण्डी(ग) वर्धा(घ) चम्पारन

Answer»

सही विकल्प है (ख) डाण्डी

8013.

गांधी जी ने डाण्डी यात्रा की थी(क) रोलेट ऐक्ट के विरोध में(ख) क्रिप्स प्रस्ताव के विरोध में(ग) उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु(घ) नमक कानून तोड़ने हेतु

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सही विकल्प है (घ) नमक कानून तोड़ने हेतु

8014.

जनता पार्टी के शासन काल में भारत के प्रधानमन्त्री कौन थे-(a) चौ० देवीलाल(b) चौ० चरण सिंह(c) मोरारजी देसाई(d) ए० बी० वाजपेयी

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सही विकल्प है (c) मोरारजी देसाई।

8015.

उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री का नाम बताइए।

Answer»

स्वतन्त्र भारत में उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री श्री गोविन्द वल्लभ पन्त थे।

8016.

उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री कौन थीं?

Answer»

उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री श्रीमती सुचेता कृपलानी थीं।

8017.

निम्नलिखित में से राज्यपाल कौन-सा कदम उठाएगा यदि मुख्यमन्त्री त्याग-पत्र दे देता है?(क) विधानसभा अध्यक्ष को मुख्यमन्त्री पद के लिए आमन्त्रित करेगा(ख) विधानमण्डल को नया नेता चुनने को कहेगा।(ग) विधानसभा को भंग कर देगा और नये चुनाव करने का आदेश देगा(घ) सत्ता पक्ष को नया नेता चुनने को कहेगा

Answer»

 (घ) सत्ता पक्ष को नया नेता चुनने को कहेगा

8018.

लेखक को किस बात का अंदाजा नहीं था ?

Answer»

लेखक को यह अंदाजा नहीं था कि उसकी फिल्म ढाई साल में पूरी होगी। उसे फिल्म निर्माण में आनेवाली कठिनाइयों का अंदाजा नहीं था।

8019.

राज्य का मुख्यमन्त्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? (क) राज्यपाल के प्रति(ख) विधानसभा के प्रति(ग) प्रधानमन्त्री के प्रति(घ) राज्यसभा के प्रति

Answer»

सही विकल्प है  (ख) विधानसभा के प्रति

8020.

उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री किस दल से सम्बद्ध है? 

Answer»

भारतीय जनता पार्टी से।

8021.

दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमन्त्री कौन थे ?(क) लाल बहादुर शास्त्री(ख) मोरारजी देसाई(ग) चरण सिंह(घ) गुलजारी लाल नन्दा

Answer»

सही विकल्प है (ग) चरण सिंह

8022.

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? किसी राज्य में राज्यपाल के पद का क्या महत्त्व है? क्या राज्यपाल किसी परिस्थिति में अपने विवेक के अनुसार कार्य कर सकता है? याभारतीय संविधान के अन्तर्गत राज्यपाल की भूमिका का परीक्षण कीजिए। याप्रदेश के शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है?

Answer»

राज्यपाल की स्थिति एवं महत्त्व
राज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या करने पर यह ज्ञात हो जाता है कि उसे संविधान द्वारा व्यापक अधिकार दिये गये हैं। एक प्रकार से उसे राज्य का राष्ट्रपति कहा जा सकता है। दुर्गादास बसु ने राज्यपाल की शक्तियाँ राष्ट्रपति के समान बतायीं, केवल कूटनीतिक, सैनिक तथा संकटकालीन शक्तियों को छोड़कर। राज्यपाल को अपने राज्य के शासन-तन्त्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए काफी विस्तृत अधिकार दिये गये हैं। जिन विषयों में वह अपने विवेक से काम लेता है उनमें वह मन्त्रिपरिषद् का परामर्श नहीं लेता है। इस प्रकार राज्यपाल को स्व-विवेक के आधार पर प्रयुक्त शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। विधानसभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर। तथा संविधान की विफलता की स्थिति में भी उसे स्वविवेकी अधिकार प्राप्त हैं; अतः इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक शक्ति का उपयोग करता है। संकटकाल की स्थिति में वह केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करता है। इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक स्थिति का प्रयोग कर सकता है।
इस पर भी वह केवल वैधानिक अध्यक्ष ही होता है। वास्तविक कार्यपालिका शक्तियाँ तो राज्य मन्त्रिपरिषद् में निहित होती हैं। राज्यपाल बाध्य है कि वह मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही कार्य करे। संविधान के अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार जिन बातों में संविधान द्वारा या संविधान के अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्यों को स्वविवेक से करे। उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कार्यों का निर्वहन करने में सहायता और मन्त्रणा देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी। संविधान राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों का विशेष रूप से उल्लेख नहीं करता है। केरल, असम, अरुणाचल, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय, त्रिपुरा और नागालैण्ड के राज्यपाल को ही इस प्रकार की कुछ स्वविवेकी शक्तियाँ प्राप्त हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि साधारणतया राज्यपाल शासन का वैधानिक अध्यक्ष ही है और उसकी शक्तियाँ वास्तविक नहीं हैं। डॉ० एम० वी० पायली का कथन है कि “जब तक राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य करता है और विधानमण्डल के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल को उसके शासनकार्य में सहायता तथा परामर्श देता है, तब तक राज्यपाल के लिए उनके परामर्श की अवहेलना करने की बहुत ही कम सम्भावना है।” महाराष्ट्र के भूतपूर्व राज्यपाल स्वर्गीय श्री प्रकाश ने कहा था कि “मुझे पूरा विश्वास है कि संवैधानिक राज्यपाल के अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं करना होगा।’ इस प्रकार राज्यपाल का पद शक्ति व अधिकार का नहीं वरन् सम्मान व प्रतिष्ठा का है। राज्यपाल की वास्तविक स्थिति का वर्णन करते हुए डॉ० अम्बेडकर ने कहा था कि “राज्यपाल दल का प्रतिनिधि नहीं है, वरन् वह राज्य की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधि है; अतः उसे सक्रिय राजनीति से पृथक् रहना चाहिए। वह एक निष्पक्ष निर्णायक की भाँति है। उसे देखते रहना चाहिए कि राजनीति का खेल नियमानुसार खेला जाए, उसे स्वयं एक खिलाड़ी नहीं बनना चाहिए।’

राज्य प्रशासन में राज्यपाल की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस विषय में पं० जवाहरलाल नेहरू का यह कथन उपयुक्त जान पड़ता है, “भूतकाल में राज्यपालों का महत्त्व काफी अधिक था और आगे भी बना रहेगा। ये राज्य के विभिन्न हितों और दलों के विवादों को मध्यस्थ बनकर दूर करते हैं। वह मन्त्रियों को बहुमूल्य सुझाव दे सकता है। यदि राज्य के शासन द्वारा संविधान का उल्लंघन किया जाए तो राज्यपाल उसकी सूचना तुरन्त राष्ट्रपति को दे सकता है। राज्यपाल के पद का महत्त्व संवैधानिक भी है और परम्परागत भी। इस पद का महत्त्व राज्यपाल के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है।”

8023.

लेखक को धोबी के कारण क्या परेशानी होती थी ?

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लेखक बोडाल गाँव के जिस घर में शूटिंग करते थे, उसके पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह अक्सर ‘भाइयों और बहनों’ कहकर किसी राजनीतिक मामले पर लंबा-चौड़ा भाषण शुरू कर देता था। शूटिंग के समय उसके भाषण से साउंड रिकार्डिंग का काम प्रभावित होता था। बाद में धोबी के रिश्तेदारों ने उसे सँभाला।

8024.

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है ? उसके अधिकारों एवं कार्यों (कर्तव्यों) का वर्णन | कीजिए।याप्रधानमन्त्री के किन्हीं दो कार्यों एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए।याप्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है? भारतीय शासन में प्रधानमन्त्री की स्थिति की व्याख्या कीजिए।

Answer»

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति

प्रधानमन्त्री केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का मुखिया होता है । संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, “प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। किन्तु व्यवहार में राष्ट्रपति उस राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है, जिसका लोकसभा में बहुमत होता है। यदि लोकसभा में एक दल का बहुमत न होने पर दो या अधिक दल परस्पर अपना गठबन्धन बनाकर नेता चुन लेते हैं तो राष्ट्रपति ऐसे गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। यदि लोकसभा में किसी भी दल या दलों के गठबन्धन को बहुमत प्राप्त नहीं होता तो राष्ट्रपति स्वविवेक से किसी भी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है। जुलाई, 1979 ई० में चौ० चरण सिंह की प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेक के प्रयोग का एक ज्वलन्त उदाहरण है।

प्रधानमन्त्री के कार्य (शक्तियाँ) तथा महत्त्व

प्रधानमन्त्री के निम्नलिखित कार्यों से उसकी शक्तियों तथा महत्त्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है

1. मन्त्रिपरिषद्को निर्माताराष्ट्रपति प्रधानमन्त्री को नियुक्त करता है तथा उसके बाद प्रधानमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों तथा उनके विभागों का वितरण करता है। प्रधानमन्त्री किसी भी मन्त्री के विभाग में फेर-बदल कर सकता है।

2. मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष– प्रधानमन्त्री केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष तथा नेता होता है। वह मन्त्रिपरिषद् की बैठकों में अध्यक्षता करता है तथा उसकी कार्यवाही का संचालन भी करता है। मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं। मन्त्रिपरिषद् यदि देश की नौका है तो प्रधानमन्त्री उसका नाविक। यदि किसी मन्त्री की राय प्रधानमन्त्री से नहीं मिलती है तो प्रधानमन्त्री ऐसे मन्त्री को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य कर सकता है अथवा उसे राष्ट्रपति द्वारा मन्त्रिपरिषद् से हटवा सकता है।

3. कार्यपालिका का प्रधानराष्ट्रपति देश की कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री में निहित होती है। अत: अप्रत्यक्ष रूप से देश का मुख्य शासक प्रधानमन्त्री होता है।

4. शासन का प्रमुख प्रबन्धकदेश की शासन-व्यवस्था को विभिन्न विभागों तथा मन्त्रालयों में बाँटना, मन्त्रियों में विभागों का वितरण करना, मन्त्रालयों की नीतियाँ तय करना तथा उनमें समय-समय पर अपेक्षित परिवर्तन करना आदि कार्य प्रधानमन्त्री की इच्छा तथा निर्देश पर निर्भर होते हैं। इस प्रकार प्रधानमन्त्री ही देश के शासन का प्रमुख प्रबन्धक होता है।

5. लोकसभा का नेतालोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के कारण वह लोकसभा काअधिवेशन बुलाने, कार्यक्रम निश्चित करने तथा सत्र स्थगित करने का निर्णय लेती है। वह लोकसभा में अपने मन्त्रिमण्डल का नेतृत्व करता है तथा शासन सम्बन्धी नीतियों की घोषणा करता है। वह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का भी परामर्श दे सकता है।

6. राष्ट्रपति एवं मन्त्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति एवं संसद के बीच की कड़ी– प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति और मन्त्रिपरिषद् के बीच की कड़ी का कार्य करता है। वह मन्त्रिमण्डल की नीतियों, निर्णयों आदि की। जानकारी राष्ट्रपति को देता है तथा राष्ट्रपति के निर्णयों से वह मन्त्रियों को अवगत कराता है। इसी प्रकार प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति तथा संसद के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह राष्ट्रपति को संसद की कार्यवाही से अवगत कराता है तथा राष्ट्रपति के सुझावों को संसद तक पहुँचाता है।

7. नियुक्तियाँ सम्बन्धी अधिकारराष्ट्रपति के द्वारा मन्त्रियों, राज्यपालों, न्यायाधीशों, राजदूतों, विभिन्न आयोगों, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य इत्यादि की जितनी भी नियुक्तियाँ की जाती
हैं, वे सभी प्रधानमन्त्री के परामर्श पर की जाती हैं।

8. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व– अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारतीय प्रधानमन्त्री का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चाहे विदेश विभाग प्रधानमन्त्री के हाथ में हो या नहीं, फिर भी अन्तिम रूप से | विदेश नीति का निर्णय प्रधानमन्त्री ही करता है। भारत की पुट-निरपेक्षता की विदेश नीति भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू जी की ही देन है।

9. शासन का प्रमुख प्रवक्ता– देश तथा विदेश में प्रधानमन्त्री ही शासन की नीति को प्रमुख तथा अधिकृत प्रवक्ता होता है। यदि कभी संसद में किन्हीं दो मन्त्रियों के आपसी विरोधी वक्तव्यों के कारण भ्रम और विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो प्रधानमन्त्री का वक्तव्य ही इस स्थिति को समाप्त कर सकता है।

10. देश का सर्वोच्च नेता तथा शासकप्रधानमन्त्री देश का सर्वोच्च नेता तथा शासक होता है। देश का समस्त शासन उसी की इच्छानुसार संचालित होता है। यह व्यवस्थापिका से अपनी इच्छानुसार कानून बनवा सकता है और संविधान में आवश्यक संशोधन भी करवा सकता है।

11. आम चुनाव प्रधानमन्त्री के नाम पर- देश के आम चुनाव (सामान्य निर्वाचन) प्रधानमन्त्री के नाम पर ही कराये जाते हैं। आम चुनाव प्रधानमन्त्री का ही चुनाव होता है। इस प्रकार आम चुनाव | स्वाभाविक रूप से प्रधानमन्त्री की प्रतिष्ठा व शक्ति में बहुत वृद्धि कर देते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रधानमन्त्री राष्ट्र का नेता होता है; क्योंकि देश के शासन की सम्पूर्ण बागडोर उसके हाथ में होती है। व्यावहारिक दृष्टि से देश का समस्त शासन उसी की इच्छानुसार संचालित होता है।

8025.

मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है? उसकी प्रमुख शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।यामुख्यमन्त्री के कार्य एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। याराज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है? राज्यपाल तथा मन्त्रि-परिषद से उसके क्या सम्बन्ध होते हैं?यामुख्यमन्त्री के अधिकारों और कार्यों की विवेचना कीजिए तथा उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।यामुख्यमन्त्री के महत्त्वपूर्ण कार्यों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए। यामुख्यमन्त्री की स्थिति एवं शक्तियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। याराज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री की भूमिका का वर्णन कीजिए तथा राज्यपाल के साथ उसके सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। 

Answer»

राज्य की मन्त्रिपरिषद् के प्रधान को मुख्यमन्त्री कहा जाता है। मुख्यमन्त्री राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान है। अत: राज्य के प्रशासनिक ढाँचे में उसे लगभग वही स्थिति प्राप्त है जो केन्द्र में प्रधानमन्त्री की है।

मुख्यमन्त्री की नियुक्ति – संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल यह कहा गया है कि मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा। व्यवहार के अन्तर्गत राज्यपाल के द्वारा विधानसभा के बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता है। मुख्यमन्त्री की नियुक्ति के सम्बन्ध में राज्यपाल दो परिस्थितियों में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है। प्रथम, विधानसभा में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो और एक से अधिक पक्ष मुख्यमन्त्री पद के लिए दावे कर रहे हों। द्वितीय, स्थिति उस समय हो सकती है जब कि विधानसभा के बहुमत दल की कोई सर्वमान्य नेता ने हो। 1966 ई० से लेकर 1970 ई० और उसके बाद 1977-2000 ई० के काल में भारतीय संघ के कुछ राज्यों में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो चुकी हैं और भविष्य में भी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उत्तर प्रदेश में एक दशक में सम्पन्न विधानसभा चुनावों (1989, 1991, 1993 और 1996 ई० में सम्पन्न विधानसभा चुनाव) ने निरन्तर ऐसी ही स्थिति को जन्म दिया है।

मुख्यमन्त्री के अधिकार तथा कार्य
मुख्यमन्त्री राज्य की मन्त्रिपरिषद् का प्रधान होता है; अतः वह शासन के सभी विभागों की देखभाल निम्नलिखित अधिकार-क्षेत्र के अन्तर्गत करता है –

1. मन्त्रिपरिषद् का निर्याता – मुख्यमन्त्री अपनी मन्त्रिपरिषद् का स्वयं निर्माण करता है। इस सन्दर्भ में राज्यपाल भी स्वतन्त्र नहीं है। अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति मुख्यमन्त्री की इच्छा से ही होती है तथा मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या मुख्यमन्त्री ही निर्धारित करता है।
2. शासन का मुखिया – मुख्यमन्त्री को शासन का मुखिया कहना अतिशयोक्ति नहीं है। वह शासन के सभी विभागों की देखभाल करता है। किन्हीं विभागों में मतभेद हो जाने पर उनका समाधान भी करता है। शासन के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य उसी की अध्यक्षता में होते हैं तथा सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर उसकी सहमति आवश्यक होती है। उसी के द्वारा सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को मूर्त रूप मिलती है।
3. मन्त्रियों में विभागों का वितरण – मन्त्रियों में विभागों का वितरण भी मुख्यमन्त्री ही करती है। वह ही यह निश्चित करता है कि शासन को कितने विभागों में बाँटा जाए और कौन-सा विभाग किस मन्त्री को दिया जाए।
4. कैबिनेट का अध्यक्ष – मुख्यमन्त्री अपनी कैबिनेट का अध्यक्ष होता है। वह कैबिनेट की। बैठकों में सभापति का आसन ग्रहण करता है। कैबिनेट की बैठकों में जो निर्णय लिये जाते हैं। उनमें मुख्यमन्त्री की व्यापक सहमति होती है। यदि कोई मन्त्री मुख्यमन्त्री से किसी नीति पर सहमत नहीं है तो उसे या तो अपने विचार बदलने पड़ते हैं या फिर मन्त्रिपरिषद् से त्याग-पत्र देना पड़ता है।
5. विधानसभा का नेता – मुख्यमन्त्री विधानसभा का नेता तथा शासन की नीति का प्रमुख वक्ता होता है। वही महत्त्वपूर्ण बहसों का सूत्रपात करता है तथा नीति सम्बन्धी घोषणा भी करता है। विधानसभा के विधायी कार्यक्रमों में उसकी निर्णायक भूमिका होती है।
6. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार – राज्यपाल को राज्य के अनेक उच्च अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार है, लेकिन उसके इस अधिकार का वास्तविक प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है।
7. नीति निर्धारित करना – यद्यपि राज्य की नीति मन्त्रिपरिषद् निर्धारित करती है, किन्तु इसका रूप मुख्यमन्त्री की इच्छा पर निर्भर होता है। मन्त्रिपरिषद् की नीतियों पर मुख्यमन्त्री का स्पष्ट प्रभाव होता है।
8. विधानसभा को भंग करने की सहमति – मुख्यमन्त्री राज्यपाल को परामर्श देकर विधानसभा को उसकी अवधि से पहले ही भंग करा सकता है।
9. राज्यपाल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच की कड़ी – मुख्यमन्त्री राज्यपाल को प्रमुख परामर्शदाता होता है। वही मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता है। राज्यपाल अपनी बात मुख्यमन्त्री के माध्यम से ही अन्य मन्त्रियों तक पहुँचाता है एवं उसी के माध्यम से शासन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करता है।
10. कार्यपालिका का प्रधान – राज्यपाल कार्यपालिका का मात्र वैधानिक प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति मन्त्रिपरिषद् के हाथ में होती है। इसलिए कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान मुख्यमन्त्री होता है।
राज्यपाल द्वारा विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता है। चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में राज्यपाल स्वविवेक से मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है।

मुख्यमन्त्री का महत्त्व
मुख्यमन्त्री के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है –

1. सरकार का प्रधान प्रवक्ता – मुख्यमन्त्री राज्य सरकार का प्रधान प्रवक्ता होता है और राज्य सरकार की ओर से अधिकृत घोषणा मुख्यमन्त्री द्वारा ही की जाती है। यदि कभी किन्हीं दो मन्त्रियों के परस्पर विरोधी वक्तव्यों से भ्रम उत्पन्न हो जाए, तो इसे मुख्यमन्त्री के वक्तव्य से ही दूर किया जा सकता है।
2. राज्य में बहुमत दल का नेता – उपर्युक्त के अतिरिक्त मुख्यमन्त्री राज्य में बहुमत दल का नेता भी होता है। उसे दलीय ढाँचे पर नियन्त्रण प्राप्त होता है और यह स्थिति उसके प्रभाव तथा शक्ति में और अधिक वृद्धि कर देती है।
3. राज्य की समस्त शासन-व्यवस्था पर नियन्त्रण – मुख्यमन्त्री राज्य की शासन-व्यवस्था पर सर्वोच्च और अन्तिम नियन्त्रण रखता है। चाहे शान्ति और व्यवस्था का प्रश्न हो, कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य और शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना हो और चाहे कोई विकास सम्बन्धी प्रश्न हो, अन्तिम निर्णय मुख्यमन्त्री पर ही निर्भर करता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को उनके विभागों के सम्बन्ध में आदेश-निर्देश दे सकता है। मन्त्रिपरिषद् के सदस्य विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं किन्तु अन्तिम रूप में यदि किसी एक व्यक्ति को राज्य के प्रशासन की अच्छाई या बुराई के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है तो वह निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री ही है।
मुख्यमन्त्री राज्य के शासन का प्रधान है किन्तु किसी भी रूप में उसे राज्य के शासन का तानाशाह नहीं कहा जा सकता है। वह राज्य का सर्वाधिक लोकप्रिय जननेता है।

मुख्यमन्त्री तथा राज्यपाल का सम्बन्ध
मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है। विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। मुख्यमन्त्री का राज्यपाल से गहरा सम्बन्ध है, राज्य के शासन में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मुख्यमन्त्री के कार्यों के विवरण से राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। मुख्यमन्त्री, राज्यपाल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच एक कड़ी का कार्य करता है। वह राज्यपाल को मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों के सम्बन्ध में सूचना देता है। वास्तव में मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष होने के नाते संविधान ने उसका यह कर्तव्य निश्चित किया है कि वह राज्यपाल को न केवल मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों से सम्बद्ध सूचना ही दे, अपितु शासन और विधान सम्बन्धी सुझावों के सम्बन्ध में भी सूचित करे। उसे राज्यपाल के कहने पर किसी भी ऐसे मामले को, जिस पर मन्त्रिपरिषद् ने विचार न किया हो, मन्त्रिपरिषद् के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। वस्तुत: मुख्यमन्त्री राज्य प्रशासन की धुरी तथा वास्तविक प्रधान होता है। राज्यपाल को जो शक्तियाँ प्राप्त हैं, वास्तविक रूप में उनका प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है। शान्तिकाल में राज्यपाल मुख्यमन्त्री के परामर्श के अनुसार कार्य करता है, किन्तु संकटकाल में राज्यपाल के अधिकार वास्तविक हो जाते हैं। इस समय वह मन्त्रिमण्डल का परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं होता।

मूल्यांकन – राज्य शासन में मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् को आदि तथा अन्त होता है। राज्य के सम्पूर्ण शासन का उत्तरदायित्व मुख्यमन्त्री पर रहता है। यही कारण है कि राज्य के शासन के लिए हम उसी की प्रशंसा या आलोचना करते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री की प्रधान भूमिका होती है।

8026.

लेखक को शूटिंग के समय किससे बहुत परेशानी होती थी ?

Answer»

लेखक को शूटिंग के समय उनके पड़ोस में रहनेवाले धोबी से बहुत परेशानी होती थी।

8027.

लेखक ने आधे सीन की शूटिंग कब की तथा क्यों ?

Answer»

लेखक ने रेलगाड़ीवाले दृश्य का आधा भाग शरद ऋतु में शूट किया। इस समय यह मैदान पुनः काशफूलों से भर गया। इसके लिए पूरे साल भर इंतजार किया गया।

8028.

भारतीय सेना के विभिन्न अंग क्या हैं ? भारत की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है ?

Answer»

भारतीय सेना के अंग हैं—जल सेना, थल सेना तथा नौ-सेना। भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति भारत का राष्ट्रपति होता है।

8029.

अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता ? – उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती’ – इस कथन के पीछे क्या भाव है ?

Answer»

पथेर पांचाली फिल्म के दृश्य में अपू के साथ काशफूलों के बन में शूटिंग करनी थी। सुबह शूटिंग करके शाम तक सीन का आधा भाग चित्रित हुआ। निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता-अभिनेत्री सभी इस क्षेत्र में नवागत होने के कारण बौराए हुए ही थे, बाकी का सीन बाद में चित्रित करने का निर्णय लेकर सब घर चले गए।

सात दिन बाद शूटिंग के लिए उस जगह गए. बीच के सात दिनों में जानवरों ने ये सारे काशफूल खा डाले थे। उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल नहीं बैठता। उसमें ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती। दृश्य दर्शकों के गले नहीं उतरता, वह उन्हें अस्वाभाविक लगता।

8030.

किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है ?

Answer»

पथेर पांचाली फिल्म के एक दृश्य में श्रीनिवास नामक घूमते मिठाईवाले से मिठाई खरीदने के लिए अपू और दुर्गा के पास पैसे नहीं है। वे तो मिठाई खरीद ही नहीं सकते, इसलिए अपू और दुर्गा उस मिठाईवाले के पीछे-पीछे मुखर्जी के घर के पास जाते हैं। मुखर्जी अमीर आदमी हैं। उनका मिठाई खरीदना देखने में ही अपू और दुर्गा की खुशी है।

इस दृश्य का कुछ अंश कि फिल्मांकन होने के बाद शूटिंग कुछ महिनों तक के लिए स्थगित हो गई। पैसे हाथ में आने पर फिर जब उस गाँव में शूटिंग करने के लिए गए, तब खबर मिली कि श्रीनिवास मिठाईवाले की भूमिका जो व्यक्ति कर रहे थे, उनकी मृत्यु हो चुकी थी। अब पहलेयाले श्रीनिवास का मिलता-जुलता दूसरा आदमी ढूँढ़कर दृश्य का बाकी अंश चित्रित किया गया।

पहला शॉट – श्रीनिवास बाँसबन से बाहर आता है। दूसरा शॉट (नया आदमी) – श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। यही कारण है कि दर्शक मूल श्रीनिवास और नये श्रीनिवास के बीच के अंतर को समझ नहीं पाते।

एक दृश्य में अपू खाते-खाते ही कमान से तीर छोड़ता है। उसके बाद खाना छोड़कर तीर वापस लाने के लिए जाता है। सर्वजया बाएँ हाथ में वह थाली और दाहिने हाथ में निवाला लेकर बच्चे के पीछे दौड़ती है, लेकिन बच्चे का भाव देखकर जान जाती है कि यह अब कुछ नहीं खाएगा। भूलो कुत्ता भी खड़ा हो जाता है।

उसका ध्यान सर्यजया के हाथ में जो भात की थाली है, उसकी ओर है। इसके बाद वाले शॉट में ऐसा दिखाना था कि सर्यजया थाली में बचा भात एक गमले में डाल देती है, और भूलो वह भात खाता है। लेकिन यह शॉट निर्देशक ले नहीं सके, क्योंकि सूरज की रोशनी और पैसे दोनों खत्म हो गए।

छह महिने बाद, फिर से पैसे इकट्ठा होने पर गाँव में उस सीन का बाकी अंश चित्रित करने के लिए गए। तब भूलो मर चुका था। फिर भूलो जैसे दिखनेवाले एक कुत्ते के साथ शूटिंग पूरी की गई। यह इतना स्वाभाविक था कि दर्शक मूल भूलो और नये भूलो को एक ही समझ लेता है।

8031.

फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुज़र जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया ?

Answer»

फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचनेवाले की थी। उसके देहांत के बाद उसकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फिल्मकार ने तरकीब लगाई। नया – आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता है अतः कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।

8032.

फिल्म के एक दृश्य में मैदान ………… के फूलों से भरा हुआ था।(a) काश(b) गुलाब(c) मोगरा(d) चम्पा

Answer»

सही विकल्प है (a) काश

8033.

लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) सदन की मर्यादा का रक्षक है । समझाइए ।।

Answer»

लोकसभा का अध्यक्ष व्यवस्थित रूप से तथा निर्धारित नियमों के अनुसार कामकाज चलें इस पर निगरानी रखता है ।

  • सदन में शिष्टता, व्यवस्था तथा सदन की गरिमा को बनाए रखने का कार्य लोकसभा अध्यक्ष करता है ।
  • अध्यक्ष लोकसभा की बैठक के दरम्यान अध्यक्ष के रूप में उसकी कार्यवाही का संचालन और नियमन करता है ।
  • अध्यक्ष सदन के सदस्यों से शिष्टाचार की अपेक्षा रखता है ।
  • उसका निर्णय सदन में अन्तिम निर्णय होता है ।
  • वह सदन की मर्यादा का रक्षक होता है ।
  • अध्यक्ष चुने जाने पर वह सदन की कार्यवाही का संचालन तटस्थ और निष्पक्ष रहकर करता है ।
8034.

फिल्म में मिठाईवाले का किरदार कौन निभा रहा था ?

Answer»

फिल्म में मिठाईवाले का किरदार श्रीनिवास निभा रहा था।

8035.

फिल्म में मिठाईवाले का नाम ……… था।(a) सधुआ(b) श्रीनिवास(c) बद्रीनाथ(d) कन्हैया

Answer»

सही विकल्प है (b) श्रीनिवास

8036.

धर्म ने किसको पैरों तले कुचल डाला ?

Answer»

धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला ।

8037.

गवाह किससे डाँवाडोल था ?

Answer»

गवाह लोभ से डाँवाडोल था।

8038.

‘पथेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग ………. गाँव में हुई थी।(a) बस्ती(b) कोड़ाल(c) बोडाल(d) टेकारी

Answer»

सही विकल्प है (c) बोडाल

8039.

दुर्गा और अप्पू की माँ का नाम …….. था।(a) सावित्री(b) सर्वजया(c) सरस्वती(d) दुर्गा

Answer»

सही विकल्प है (b) सर्वजया

8040.

न्याय के मैदान में किनके बीच युद्ध ठन गया ?

Answer»

न्याय के मैदान में धर्म और धन की बीच युद्ध ठन गया ।

8041.

वृद्ध मुंशी को पढ़ा-लिखा सब अकारथ क्यों लगा ?

Answer»

वृद्ध मुंशी के समझाने पर भी वंशीधर ने रिश्वत न लेकर अलोपीदीन की गाड़ी को पकड़ लिया । नौकरी छूट गई । जिसके कारण वृद्ध मुंशी को पढ़ा-लिखा सब अकारथ लगा।

8042.

अपू का किरदार निभानेवाले लड़के का नाम ………… था।(a) सुबीर बनर्जी(b) राहुल चेटर्जी(c) कुमार दा(d) धीरज बनर्जी

Answer»

सही विकल्प है (a) सुबीर बनर्जी

8043.

अपू की भूमिका निभाने के लिए ……………… साल का लड़का चाहिए था।(a) पाँच(b) आठ(c) छह(d) सात

Answer»

सही विकल्प है (c) छह

8044.

अपू की बहन का नाम ……….. था।(a) सीता(b) पार्वती(c) लक्ष्मी(d) दुर्गा

Answer»

सही विकल्प है (d) दुर्गा

8045.

न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती हैं ।

Answer»

वर्तमान में न्यायालय भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं रहा है । वकीलों का धर्म भी मानो धन कमाना ही हो । धन के लिए गलत व्यक्ति के लिए लड़ते हैं तभी अलोपीदीन जैसे भ्रष्ट, न्यायालय से मुक्त हो जाते हैं । इस प्रकार न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने है, इन्हें वह जैसे चाहती है नचाती है ।

8046.

आशय स्पष्ट कीजिए: न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं।

Answer»

किसी भी काम को नौति-सिद्धांत के अंतर्गत करने की व्यवस्था होती है। नियम-कानून के विरुद्ध कोई काम करने को अपराध माना जाता है और उसके लिए दंड की व्यवस्था होती है। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अधिकारियों को पैसे खिलाकर उनसे गलत-सही हर प्रकार का काम करवा लेते हैं। वे यह समझने लगते हैं कि न्याय और नीति उनके हाथ के खिलौने हैं और पैसों के बल पर उन्हें जब चाहें तब खरीदा जा सकता है। पंडित अलोपीदीन की यही मान्यता है।

8047.

अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आप क्या-क्या करते हैं?

Answer»

आज हमारे देश में डॉक्टरों और इंजीनियरों की कमी नहीं है। कमी है अच्छे वैज्ञानिकों की। इसलिए एक महान वैज्ञानिक बनकर देश का नाम रोशन करना – यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। इसे पाने के लिए मैं अपने पाठ्यक्रम की विज्ञान की पुस्तकें बड़े ध्यान से पढ़ता हूँ। विज्ञान की अन्य पुस्तकें भी स्कूल के पुस्तकालय से लाकर पढ़ता हूँ। मैं वैज्ञानिकों के जीवन पर लिखी पुस्तकें भी पढ़ता हूँ। घर पर मैं छोटे-छोटे प्रयोग भी करता हूँ।

8048.

स्वर्ग में भी किसका राज्य है ?

Answer»

स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है।

8049.

आपकी यादगार घटना बताइए।

Answer»

गर्मी की छुट्टियाँ थीं। मैं अपने गाँव गया हुआ था। गाँव के पास नदी थी। मेरा बड़ा भाई अच्छा तैराक था। मैं भी नदी में तैरना चाहता था, लेकिन डरता था। मेरा भाई मुझे नदीकिनारे ले गया और बातें करने लगा। इसी बीच उसने मुझे धक्का दिया और मैं नदी में जा गिरा। डूबने के डर से मेरे हाथ-पाँव चलने लगे और मैं किनारे तक आ गया। भाई ने कहा – डरते क्यों हो? इसी तरह पानी में हाथ-पैर हिलाते रहो। डरो मत, डूबोगे नहीं। डूबने लगोगे तो मैं बचा लूँगा। बस फिर क्या था! मैं निडर होकर पानी में हाथ-पैर हिलाता रहा एवं इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर लगाता रहा। उसी दिन से मुझे तैरना आ गया। बचपन की वह घटना मैं कभी भूल नहीं सकता।

8050.

स्वर्ग में भी किसका राज्य है ?(A) सरस्वती(B) लक्ष्मी(C) दुर्गा(D) सीता

Answer»

सही विकल्प है (B) लक्ष्मी