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8101.

वित्तीय विश्लेषण के कोई भी तीन उपयोगों की चर्चा कीजिए ।

Answer»

वित्तीय विश्लेषण के निम्न उपयोग है :

(1) डिविडन्ड संबंधी निर्णय (for Dividend Decision) : कंपनी स्वरूप में वर्तमान विनियोग कर्ता, संभवित विनियोग कर्ता और स्वयं कंपनी के द्वारा डिविडन्ड संबंधी निर्णय लिया जाता है । डिविडन्ड कितना चुकाना यह कंपनी के संचालकों द्वारा तय किया जाता है । डिविडन्ड संबंधी निर्णय लाभकारकता विश्लेषण के आधार पर तय किया जाता है । कंपनी की कमाई की क्षमता डिविडन्ड का भुगतान करना तय करती है । डिविडन्ड भुगतान के निर्णय के लिये वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण उपयोगी है ।

(2) विनियोग संबंधी निर्णय (for Investment Decision) : कंपनी में पूँजी लगानेवाला वर्ग निम्न दो बातों के लिये अपनी पूँजी का विनियोग कंपनी में करता है –

  1. डिविडन्ड या ब्याज की नियमित आय प्राप्त करने के लिये
  2. पूँजी में वृद्धि के लिये । ये दोनों बातें क्रमश: लाभकारकता और संपन्नता के विश्लेषण के आधार पर जान सकते है ।

(3) ऋण देने के निर्णय के लिये (for Lending Decision) : धंधाकीय इकाईयों को अल्पकालीन और दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करने के लिये बैंक और वित्तीय संस्थाओं की मदद लेनी पड़ती है । यह ऋण कितने प्रमाण में सुरक्षित है, यह जानने के लिये अल्पकालीन और दीर्घकालीन संपन्नता के लिये भी यह विश्लेषण उपयोगी है ।

8102.

वित्तीय विश्लेषण के कोई भी तीन उद्देश्यों की चर्चा कीजिए ।

Answer»

विविध पक्षकार वित्तीय विश्लेषण के लिये विविध प्रकार के उद्देश्य रखते है ।

वित्तीय विश्लेषण के विभिन्न उद्देश्यों की चर्चा निम्न है :

(1) कमाई की क्षमता का मूल्यांकन (Evaluation of Earning Capacity) : सामान्यतः वित्तीय हिसाब 12 मास की समय अवधि के लिये तैयार किये जाते है । इस समयावधि के दरम्यान इकाई की कमाई की क्षमता एवं आनेवाले वर्षों में इकाई की क्षमता के बारे में अनुमान कर सकते है । सभी प्रकार के पक्षकारों द्वारा अपने विनियोग का निर्णय लेने में तथा इकाई की वर्तमान और भविष्य की कमाई की क्षमता विश्लेषण द्वारा प्राप्त करते है ।

(2) कार्यक्षमता का मूल्यांकन (Efficiency Evaluation) : धंधाकीय इकाई अपने धंधे के अनुरुप विविध प्रकार की संपत्तियाँ रखती है । इन संपत्तियों के उपयोग के द्वारा उत्पादन करके बिक्री की जाती है, एवं सेवा दी जाती है । इन संपत्तियों के अधिकतम उपयोग के द्वारा अधिक कमाई का सर्जन होता है । वित्तीय विश्लेषण की मदद से संपत्तियों के उपयोग की कार्यक्षमता का मूल्यांकन किया जा सकता है ।

(3) संचालकों की कार्यक्षमता का मूल्यांकन (Evaluation of Managerial Efficiency) : कंपनी स्वरुप में धंधे के मालिक और कंपनी चलानेवाले संचालक अलग पक्षकार होते है । शेयरधारकों द्वारा कंपनी को दी गई राशि का संचालन संचालक मंडल के द्वारा किया जाता है । धंधाकीय इकाई के अधिकारियों द्वारा संचालक मंडल द्वारा लिये गये निर्णयों का अमल करना होता है । संचालक मंडल के निर्णयों की असरकारकता और योग्यता का मूल्यांकन वित्तीय विश्लेषण द्वारा किया जाता है ।

8103.

उर्ध्व विश्लेषण किसे कहते हैं ?

Answer»

किसी निर्धारित वर्ष के अलग-अलग गुणोत्तरों की मदद से एक ही वर्ष में अलग-अलग इकाइयों अथवा विभागों की कार्यदक्षता की तुलना करने को उर्ध्व विश्लेषण कहते हैं ।

8104.

वित्तीय विश्लेषण के सोपानों (चरणों) की संक्षेप में चर्चा कीजिए ।

Answer»

वित्तीय विश्लेषण के चरण / सोपान (Stages of Analysis of Financial Statements):

वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण करने के लिये उनके विविध चरण विकसित किये गये है, जो व्यवस्थित और वैज्ञानिक स्वरूप से । विश्लेषण कर सकते है ।

यह चरण निम्न अनुसार है :

(1) नया संरचनात्मक विन्यास (New Structural Arrangement of Financial Statements) : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण करने के अलग-अलग साधनों में समान माप का पत्रक तुलनात्मक पत्रक, गुणोत्तर आदि का समावेश होता है । इन साधनों के उपयोग के द्वारा वित्तीय पत्रकों में बतायी गयी जानकारी को पुन: वर्गीकृत करके पुनः विन्यास किया जाता है, जिससे उससे जुड़े हुए साधन के लिये वह अनुकूल बनता है ।

(2) तुलनात्मकता (Comparision) : इस चरण में पुनः वर्गीकृत और पुन: विन्यास की जानकारी की तुलना की जाती है । पहले वर्ष की तुलना दूसरे वर्ष के साथ, दूसरे वर्ष की तुलना तीसरे वर्ष के साथ, तीसरे की चौथे, चौथे की पाँचवे वर्ष के साथ तुलना की जाती है । इस तुलना के आधार पर विश्लेषण और अर्थघटन किया जाता है ।

(3) अर्थघटन और विश्लेषण (Interpretation and Analysis) : उपरोक्त दर्शाये गये अनुसार जानकारी की तुलना कर आंकड़ाओं के साथ शब्दों के स्वरूप को समझने का प्रयास किया जाता है । विश्लेषण अर्थात् जानकारी का मूल्यांकन, जिसमें जानकारी को अलग-अलग भागों में बाँटकर उनके बीच का संबंध दर्शाया जाता है । इन संबंधों का स्पष्टीकरण देने का काम अर्थघटन का रहा हुआ है । विश्लेषण और अर्थघटन के आधार पर कंपनी की कार्यवाही का मूल्यांकन होता है ।

8105.

तुलनात्मक वित्तीय पत्रकों का महत्त्व समझाइए ।

Answer»

सामान्य पक्षकारों द्वारा वित्तीय पत्रकों को समझने में सरलता रहे उसके लिये अलग अलग पद्धति से उनकी पुनः रचना करके प्रस्तुत किया जाता है । तुलनात्मक वित्तीय पत्रकों का महत्त्व निम्न है :

(1) पेढ़ी की आंतरिक तुलना (Intra Firm Comparision) : धंधाकीय इकाई के द्वारा अपने पिछले वर्षों के हिसाबों के साथ – तुलना को आंतरिक तुलना कहते हैं । इस तुलना के आधार पर धंधे की कार्यक्षमता में कितनी वृद्धि हुई, लाभदायकता में कितनी वृद्धि हुई, समृद्धता बढ़ी या नहीं इन बातों का विश्लेषण किया जाता है । इसके अलावा एक ही धंधाकीय इकाई के विविध विभागों की वित्तीय कार्यवाही का भी मूल्यांकन किया जाता है । इन सभी का समावेश आंतरिक तुलना में किया जाता है ।

(2) अंतरापेढ़ी तुलना (Interfirm Comparision) : एक ही उद्योग में शामिल विविध धंधाकीय इकाइयों के आपसी वित्तीय पत्रकों की तुलना दूसरी धंधाकीय इकाइयों के साथ की जाये उसे अंतरापेढ़ी तुलना कहते हैं । इस तुलना के द्वारा कौन-सी धंधाकीय इकाई आर्थिक रूप से मजबूत और कौन-सी धंधाकीय इकाई आर्थिक रूप से कमजोर है यह जाना जा सकता है । दो पेढ़ी की वित्तीय स्थिति की तुलना करने के लिये वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण उपयोगी है ।

(3) रूख की प्रस्तुती (Indicates Trend): धंधाकीय इकाईयों की आर्थिक स्थिति और लाभदायकता के रून संबंधी जानकारी वित्तीय पत्रकों की तुलना से प्राप्त होती है । इस रूख के आधार पर विविध पक्षकार अपने निर्णय के बारे में अनुमान करते है । वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण अलग-अलग पहलुओं का रूख दशति है ।

(4) लेनदारों को उपयोगी (Useful to Creditors) : धंधाकीय इकाइयों के दीर्घकालीन और अल्पकालीन लेनदार इकाई की शाखपात्रता निश्चित करने के लिये वित्तीय हिसाबों के विविध पहलुओं की असरकारकता दर्शाते है । इस आधार पर लेनदार इकाई की शाखपात्रता का अनुमान करते है ।

(5) जानकारी की सरल और तुलनात्मक प्रस्तुती (Simple and Comparable Presentation of Information) : वित्तीय पत्रकों में दर्शायी गयी जानकारी हिसाबी पद्धति के आधार पर तैयार किये जाते है । वित्तीय पत्रकों की पुनः रचना के बाद जानकारी विश्लेषण करने के लिये और समझने के हेतु से अधिक सरल और उपयोगी बनती है ।

8106.

समान माप के पत्रक समझाइए ।

Answer»

समान माप के पत्रक (Common Size Statements) :

वित्तीय पत्रकों में दर्शाये जानेवाले विवरण को प्रतिशत में दर्शानेवाले पत्रक को समान माप के पत्रक कहते हैं । आर्थिक चिट्ठे में दर्शायी जानेवाली कुल संपत्ति को 100% मानकर प्रत्येक संपत्ति की रकम को प्रतिशत में बदलकर दर्शाया जाता है । उसी प्रकार कुल दायित्व को भी प्रतिशत में बदलकर दर्शाया जाता है । लाभ-हानि खाते के प्रत्येक खर्च और आय के विवरण कुल बिक्री के प्रमाण में कितने प्रतिशत है यह दर्शाया जाता है । इस पत्रक में सभी विवरण प्रतिशत के प्रमाण में दर्शाये जाने के कारण इन्हें 100% के पत्रक के रूप में भी जाना जाता है । दो कंपनियों की परिस्थिति की तुलना करने में भी समान माप के पत्रक उपयोगी है । इस प्रकार के पत्रक से कंपनी के वित्तीय पत्रकों की तुलना सरलता से की जा सकती है । समान माप के पत्रकों द्वारा कंपनी की कुल संपत्ति में स्थिर, चलित और अदृश्य संपत्तियाँ कितने प्रतिशत है यह ज्ञात किया जाता है । साथ ही कल दायित्व में से पूँजी कितने प्रतिशत है तथा बाह्य दायित्व कितने प्रतिशत है यह भी आसानी से ज्ञात किया जाता है । बिक्री के प्रमाण में विभिन्न प्रकार के खर्च कितने प्रतिशत है इसकी जानकारी भी ज्ञात की जा सकती है ।

8107.

वित्तीय विश्लेषण के उपयोगकर्ता बताइए ।

Answer»

अलग-अलग पक्षकारों के लिये वित्तीय पत्रकों का उद्देश्य अलग-अलग है, जो निम्नानुसार दर्शाया जाता है ।

  • इक्विटी अंशधारी : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा अंशधारी अपनी लगाई गई पूँजी पर नियमित या बढ़ते दर से डिविडंड मिलेगा या नहीं तथा अपनी लगाई गई पूँजी सुरक्षित है या नहीं यह जान सकता है । कंपनी के इक्विटी अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि होगी या नहीं यह भी ज्ञात किया जा सकता है ।
  • अधिमान अंशधारी : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा अंशधारी अपनी पूँजी सुरक्षित है या नहीं, निश्चित दर से डिविडन्ड मिलता रहेगा या नहीं, मुद्दत (अवधि) पूर्ण होने पर पूँजी वापस मिलेगी या नहीं इस सभी बातों की जानकारी प्राप्त कर सकता है ।
  • संभवित अंशधारी : जो अंशधारी कंपनी के अंशों में निवेश करना चाहता हो उसे कम्पनी की लाभकारकता, पूँजी की सुरक्षा, कम्पनी की प्रगति आदि का ख्याल वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण से ज्ञात कर सकते है ।
  • ऋणपत्रधारी और अन्य ऋण देनेवाला वर्ग या संस्था : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा इस वर्ग को अपना निर्धारित मुआवजा नियमित मिलेगा या नहीं और लोन (उधार कम) की सुरक्षा के बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है ।
  • लेनदार : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा लेनदारों ने कंपनी को बेचे उधार माल या सेवा की रकम मिलेगी या नहीं तथा भविष्य में कंपनी के साथ व्यापार करना या नहीं इसकी जानकारी मिलती है ।
  • संचालक : संचालक कंपनी के वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा कंपनी संबंधी भविष्य के निर्णय लेने के लिए आवश्यक माहिती प्राप्त कर सकते हैं । कंपनी की प्रगति, विकास, कार्यक्षमता तथा विस्तार की माहिती भी प्राप्त की जा सकती है ।
  • कर्मचारी वर्ग या ट्रेड युनियन (कर्मचारी – संघ) : कर्मचारियों के वेतन, बोनस या अन्य सुविधाओं की मांग का विश्लेषण करने तथा कार्य करने की स्थिति की जानकारी वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण से प्राप्त कर सकते हैं ।
  • समाज या आमजनता : कंपनी समाज का ही एक अंग है, कंपनी के समाज के प्रति कुछ दायित्व व जिम्मेदारियाँ है, कंपनी ने यह जिम्मेदारी किस हद तक निभाई है उसकी जानकारी समाज या आमजनता को प्राप्त हो सकती है ।
  • सरकार : कंपनियों द्वारा देश के विकास का आयोजन तथा उनसे प्राप्त करवेरा का आयोजन करने में वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण उपयोगी है ।
  • ग्राहक : ग्राहकों को भविष्य में कंपनी की तरफ से योग्य गुणवत्तावाली वस्तुएँ या सेवाएँ योग्य कीमत पर मिलेगी या नहीं इसकी जानकारी वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।
  • प्रतिस्पर्धक : वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण द्वारा प्रतिस्पर्धकों को भविष्य के आयोजनों तथा व्यूह रचना के लिए जानकारी प्राप्त होती है । जिससे वे अपनी भविष्य की व्यूहरचना तथा आयोजन तैयार कर सके ।
8108.

वित्तीय विश्लेषण की कोई भी तीन मर्यादाओं की चर्चा कीजिए ।

Answer»

वित्तीय पत्रकों के विश्लेषण की मर्यादाएँ निम्न है :

(1) ऐतिहासिक जानकारी (Historical Data) : वित्तीय हिसाबों को ऐतिहासिक हिसाबों के रूप में भी जाना जाता है । वित्तीय पत्रकों का विश्लेषण भूतकाल की बातों पर आधारित होता है । इस विश्लेषण में भविष्य का सिर्फ अनुमान ही किया जा सकता है । परंतु शेयरधारकों एवं विविध पक्षकारों को धंधाकीय इकाईयों के भविष्य संबंधी जानकारी में ही ज्यादा रूचि होती है । ये बाते इस विश्लेषण में प्राप्त नहीं होती ।

(2) मुद्रास्फीति (Ignorance of Inflation) : वित्तीय पत्रकों में दर्शायी गयी किंमते मुद्रास्फीति के कारण अवास्तविक चित्र प्रस्तुत करती है । वित्तीय पत्रकों में संपत्तियों के मूल्यांकन के समय भाव परिवर्तन को ध्यान में नहीं लिया जाता । संपत्तियाँ पुरानी किंमत पर से दर्शायी जाती है, परंतु उसकी पुनः स्थापना किंमत जो वास्तव में अधिक पायी जाती है उसे ध्यान में नहीं लिया जाता । लाभ-हानि का पत्रक (आवक का पत्रक) वर्तमान किंमत जबकि पक्की तलपट भूतकाल की किंमत दर्शाता है । इस प्रकार, एक पत्रक वर्तमान किंमत से और दूसरा पत्रक भूतकाल की किंमत दर्शाता होने से द्रव्य के पूर्ण मूल्य को इसमें ध्यान में नहीं लिया जाता ।

(3) निजी मंतव्य (Personal Opinion) : वित्तीय हिसाबों में निजी मंतव्य महत्त्वपूर्ण स्थान रखते है । जैसे : घिसाई गिनने की कौन-सी पद्धति गिननी, स्टोक के मूल्यांकन की कौन-सी पद्धति योग्य है । इन सभी बातों में संचालक के अपने निजी अभिप्राय को अवकाश रहता है । यह मर्यादा भी वित्तीय विश्लेषण में अवरोध पैदा करता है ।

8109.

तारीख 1.1.2016 के रोज रोकड़बड़ी रु. 3,000 की बैंक शेष दर्शाती है, जबकि तारीख 31.1.2016 के रोज रोकड़बही रु. 1,000 का बैंक ओवरड्राफ्ट दर्शाती है । तारीख्न 1.1.2016 के रोज पासबुक रु. 4,000 का बैंक शेष दर्शाती है । जनवरी 2016 के लिये तैयार किये जानेवाले बैंक समाधान विवरण का प्रारंभ किस शेष से किया जायेगा ? क्यों ?

Answer»

जनवरी 2016 के लिये तैयार किये जानेवाले बैंक समाधान विवरण का प्रारंभ तारीख 31.1.2016 के रोज रोकड़बही के अनुसार जमा बाकी अर्थात् बैंक ओवरड्राफ्ट रु. 1,000 से किया जायेगा । कारण की प्रारंभ की और अंत की तारीख की दोनों शेष दी गई हो तब अंत की तारीख की शेष को ध्यान में रखकर सवाल प्रारंभ किया जायेगा । एवं व्यापारी के पास रोकड़बही होती है इसलिए रोकड़बही और पासबुक दोनों की शेष दी गई हो तब रोकड़बही की शेष को ध्यान में रखकर सवाल प्रारंभ किया जायेगा ।

8110.

Why do the Japanese stay in houses built of plywood, hardboard, bamboo and cardboard?

Answer»

Buildings collapse in severe earthquakes. People can get buried under the debris of buildings, which mainly comprises of heavy materials like bricks and stones, etc. Japan is a country of earthquakes. Here earthquakes occur frequently. Should such heavy building materials be used there would certainly be heavy casualties. To avoid this, people of Japan, make houses of plywood, hardboard, bamboo and cardboard which are very light in weight.

8111.

यदि सार्वजनिक अभिदान में आवेदन के समय प्रकाशित शेयर की अपेक्षा ……………………….. कम शेयर के लिये आवेदन आयें, तो शेयर का अभिदान रद्द किया जाता है ।(अ) 50% से(ब) 75% से(क) 90% से(ड) 100% से

Answer»

सही विकल्प है (क) 90% से

8112.

सेबी के नियम के अनुसार शेयर आवेदन के समय मँगायी प्रति शेयर रकम उस शेयर की इस्यु किंमत की अपेक्षा …………………… प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए ।(अ) 25(ब) 30(क) 5(ड) 20

Answer»

सही विकल्प है (अ) 25

8113.

कंपनी को शेयर के अभिदान के लिये किसकी संमति लेनी पड़ती है ?(अ) केन्द्र सरकार(ब) सेबी(क) राज्य सरकार(ड) रिजर्व बैंक

Answer»

सही विकल्प है (ब) सेबी

8114.

निम्नलिखित में से कौन-सी पूँजी कंपनी की पक्की तलपट में ‘शेयरपूँजी’ के शीर्षक के अंतर्गत नहीं दर्शायी जाती है ?(अ) अधिकृत पूँजी(ब) प्रकाशित/निर्गमित पूँजी(क) अनामत पूँजी(ड) भरपाई पूँजी

Answer»

सही विकल्प है (क) अनामत पूँजी

8115.

जब जप्त किये गये सभी शेयर पुनः प्रकाशित किये जाये तब शेयर जप्ती खाता की बाकी …………………….. खाते ले जायी जाती(अ) शेयर पूँजी(ब) लाभ-हानि खाता(क) पूँजी अनामत(ड) सामान्य अनामत

Answer»

सही विकल्प है (क) पूँजी अनामत

8116.

शेयर जप्त हो तब जप्त हुए शेयर पर मँगायी गयी कुल रकम ………………………… की जाती है ।(अ) शेयर जप्ती खाता उधार(ब) शेयर जप्ती खाता जमा(क) शेयर पूँजी खाता जमा(ड) शेयर पूँजी खाता उधार

Answer»

सही विकल्प है (ड) शेयर पूँजी खाता उधार

8117.

कंपनी अपने शेयर, शेयर की मूल किंमत से अधिक से अधिक कितने प्रतिशत प्रीमियम से प्रकाशित कर सकती है ?(अ) 10%(ब) 100%(क) 25%(ड) कोई मर्यादा नहीं है ।

Answer»

सही विकल्प है (ड) कोई मर्यादा नहीं है

8118.

जप्त हुए शेयर पुन: किन शरतों पर प्रकाशित कर सकते है ?

Answer»

जप्त हुए शेयरों को मूल किंमत पर, प्रीमियम से या बट्टा से पुन: प्रकाशित किया जा सकता है । इन शेयरों को घुनः प्रकाशित करते समय कंपनी को कम से कम इन शेयरों पर जो रकम पूँजी पेटे वसूल नहीं मिली है, कम से कम उतनी राशि तो मिलनी . ही चाहिए । अर्थात् कंपनी ने जप्त किये शेयर पर जप्त की हुई राशि जितना बट्टा नये शेयरधारकों को दिया जा सकता है । इस प्रकार से दिये जानेवाले बट्टे के संदर्भ में कोई इजाजत नहीं ली जाती ।

8119.

शेयर जप्ती अर्थात् क्या ?

Answer»

यदि कोई शेयर धारक उसे आबंटित किये शेयरों पर निश्चित समय मर्यादा में रकम न चुकाये तो कंपनी योग्य कार्यवाही करने के बाद उनके शेयर जप्त कर सकती है । शेयर जप्त करने की इस कार्यवाही को शेयर जप्ती कहते हैं । शेयर जप्त यह कंपनी के आर्टिकल्स ओफ एशोसियेशन (A/A) के अंतर्गत किया जाता है । और यदि आर्टिकल्स ओफ एशोसियेशन में उल्लेख न हो तो कंपनी कानून, 2013 के शेड्युल I के टेबल F में दर्शाये गये अनुसार शेयर जप्ती की जाती है ।

8120.

शेयर और शेयर पूँजी अर्थात क्या ?

Answer»

कंपनी की कुल पूँजी को परिवर्तित (हस्तान्तरण) कर सके ऐसे छोटे-छोटे स्वरूप में विभाजित की जाती है, ऐसे प्रत्येक विभाजित इकाई को शेयर (Share) कहते हैं । ऐसे विभिन्न इकाइयों से बनी कंपनी की कुल पूँजी को शेयर पूँजी (Share Capital) कहते हैं । कंपनी अपनी पूँजी एकत्रित करने के लिये विज्ञापन पत्र कानूनन रूप से प्रकाशित करके सामान्य लोगों को शेयर खरीदने के लिये आमंत्रित करती है । जो लोग कंपनी के शेयर खरीदते है वह कंपनी के सदस्य अर्थात् शेयरधारक के रूप में जाने जाते है । शेयर यह स्थानांतरित और परिवर्तित की जा सके इस प्रकार की संपत्ति है ।

8121.

कंपनी की बाकी माँग की रकम पर शिड्युल I के टेबल F के अनुसार अधिक से अधिक कितने प्रतिशत की दर से ब्याज वसूल कर सकेंगे ?(अ) वार्षिक 15% की दर से(ब) वार्षिक 10% की दर से(क) प्रति मास 2% की दर से(ड) प्रति मास 1% की दर से

Answer»

सही विकल्प है (ब) वार्षिक 10% की दर से

8122.

वर्तमान कंपनी कानून के नियम के अनुसार कंपनी प्रति शेयर कम से कम कितनी किंमत पर अपने शेयर प्रकाशित कर सकती है ?(अ) रु. 100(ब) रु. 1000(क) रु. 1(ड) रु. 0.50

Answer»

सही विकल्प है (क) रु. 1

8123.

शेयर अर्थात् क्या ? शेयर के प्रकार बताइए ।

Answer»

कंपनी स्वरूप में कंपनी की पूँजी को छोटे-छोटे विभाजित किया जाता है । ऐसे प्रत्येक विभाजित इकाई को शेयर के रूप में जाना जाता है । इस शेयर को धारण करनेवाला शेयर धारक के रूप में जाना जाता है । जब तक शेयर की मालिकी सदस्य के पास रहेगी तब तक वह कंपनी का शेयर धारक या सहमालिक गिना जायेगा । प्रत्येक शेयर को एक नंबर दिया जाता है । शेयर यह स्थान्तरित और परिवर्तित कर सकनेवाली संपत्ति है ।

कंपनी कानून के अनुसार शेयर के दो प्रकार है :

(1) प्रेफरन्स शेयर (अधिमान शेयर)
(2) इक्विटी शेयर (सामान्य शेयर)

(1) प्रेफरन्स शेयर (Preference Share) : प्रेफरन्स शेयर अर्थात् इस शेयर को धारण करनेवाला शेयरधारक इक्विटी शेयर से पहले ‘ निश्चित किये दर से डिविडन्ड प्राप्त करने का प्रथम अधिकार रखता है । कंपनी के विसर्जन के समय भी पूँजी वापस प्राप्त करने के लिए इक्विटी शेयरधारकों से पहले पूँजी प्राप्त करने का प्रथम अधिकार रखता है ।

प्रेफरन्स शेयर के प्रकार निम्नलिखित है :

(i) क्युम्युलेटिव/संचयी और नोन क्युम्युलेटिव/असंचयी प्रेफरन्स शेयर : क्युम्युलेटिव प्रेफरन्स शेयर में अगर कंपनी पर्याप्त लाभ न करे और डिविडन्ड न चुका पाये तब यह डिविडन्ड एकत्रित होता जाता है और जिस वर्ष कंपनी पर्याप्त लाभ करे उस वर्ष का डिविडन्ड और पहले का एकत्रित डिविडन्ड प्रेफरन्स शेयरधारकों को चुका दिया जाता है । जबकि इसके विपरीत नोन-क्युम्युलेटिव प्रेफरन्स शेयर पर नहीं चुकाया डिविडन्ड भविष्य में चुकाया नहीं जाता ।

(ii) रिडीमेबल और इर-रिडीमेबल प्रेफरन्स शेयर : प्रेफरन्स शेयर धारक को यदि प्रेफरन्स शेयर की रकम अमुक निश्चित समय के बाद वापस लौटा दी जाये तो उसे रिडीमेबल प्रेफरन्स शेयर के रूप में जाना जाता है । कंपनी का विसर्जन होने पर जिस प्रेफरन्स शेयर की रकम वापस की जाये उसे इर-रिडीमेबल प्रेफरन्स शेयर कहते हैं ।

(iii) पार्टिसिपेटिंग और नोन-पार्टिसिपेटिंग शेयर : पार्टिसिपेटिंग प्रेफरन्स शेयरधारक निश्चित दर पर डिविडन्ड तो प्राप्त करते ही है, उसके अलावा कंपनी के लाभ में से भी कुछ शर्तों के आधीन रहकर डिविडन्ड प्राप्त करने के अधिकारी बनते है । इसके अलावा, कंपनी के विसर्जन के समय भी प्रेफरन्स और इक्विटी शेयरधारकों को उनकी पूँजी की रकम चुकाने के बाद यदि कोई रकम बढ़े तो उसमें भी प्रमाणसर रकम प्राप्त करने के अधिकारी बनते है ।

नोन-पार्टिसिपेटिंग प्रेफरन्स शेयर धारक को निश्चित किये गये दर के अनुसार ही डिविडन्ड प्राप्त करने का अधिकार है । उन्हें अतिरिक्त लाभ या पूँजी में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता ।

(iv) कन्वर्टिबल और नोन कन्वर्टिबल प्रेफरन्स शेयर : जो प्रेफरन्स शेयर अमुक निश्चित समयावधि के बाद संपूर्णत: अथवा अंशत: इक्विटी शेयर में परिवर्तित किये जा सकते हो ऐसे प्रेफरन्स शेयर को कन्वर्टिबल प्रेफरन्स शेयर कहते हैं । जिन प्रेफरन्स शेयर को इक्विटी शेयर में परिवर्तित न किया जा सकता हो उसे नोन-कन्वर्टिबल प्रेफरन्स शेयर कहते हैं ।

(2) इक्विटी शेयर अथवा ओर्डिनरी शेयर (Equity Share or ordinary Share) : इक्विटी शेयर धारण करनेवाले कंपनी के सही मालिक गिने जाते है । इन्हें कंपनी की सभा में मत देने का अधिकार मिलता है । प्रेफरन्स शेयरधारकों को निश्चित दर से डिविडन्ड देने के बाद बचे लाभ में से इक्विटी शेयरधारकों को डिविडन्ड दिया जाता है । कंपनी के विसर्जन के समय प्रेफरन्स शेयरधारकों को पूँजी वापस करने के बाद इक्विटी शेयरधारकों को पूँजी वापस की जाती है । इक्विटी शेयर पूँजी कंपनी की मुख्य शेयर पूँजी के रूप में जानी जाती है । कंपनी कानून के अनुसार इक्विटी शेयर की प्रति शेयर कीमत कम से कम 1 रु. होनी चाहिए । वर्तमान में कंपनियाँ प्रति शेयर मूलकिंमत रु. 1 अथवा रु. 10 अथवा रु. 100 होती है ।

8124.

शेयर पूँजी अर्थात् क्या ? शेयर पूँजी के प्रकार बताइए ।

Answer»

कंपनी की कुल पूँजी को हस्तान्तरण कर सके ऐसे छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित किया जाता है, ऐसे प्रत्येक विभाजित इकाई को शेयर कहते हैं । ऐसे विभिन्न इकाइयों से बनी कंपनी की कुल पूँजी को शेयर पूँजी कहते हैं । कंपनी अपनी पूँजी एकत्रित करने के लिये कानूनन विज्ञापन पत्र प्रकाशित कर लोगों को शेयर खरीदने के लिए आमंत्रित करती है । लोगों द्वारा शेयर की खरीदी करके कंपनी को पूँजी दी जाती है ।

शेयर पूँजी के प्रकार निम्नानुसार है :

(1) अधिकृत पूँजी (Authorised/Nominal / Registered Capital) : वर्तमान या भविष्य में कंपनी अंशों द्वारा अधिक से अधिक कितनी रकम शेयर पूँजी के रूप में एकत्रित कर सकती है उसे कंपनी की अधिकृत पूँजी कहते हैं । इस पूँजी को कंपनी के मेमोरेन्डम में तथा पंजीयन के समय भी दर्शाये जाने से इसे रजिस्टर्ड पूँजी के रूप में भी जाना जाता है । भविष्य में आवश्यकता अनुसार विशेष सभा में सहमति से प्रस्ताव पास कर इसमें वृद्धि भी की जा सकती है । इस पूँजी को पंजीकृत, सत्तावार या नाम की पूँजी के रूप में भी जाना जाता है ।

(2) निर्गमित पूँजी/प्रकाशित पूँजी (Issued Capital) : अधिकृत पूँजी में से कंपनी अपनी आवश्यकता को ध्यान में रखकर संपूर्ण संख्या में या कम संख्या में शेयर प्रकाशित करे तो उस पूँजी को निर्गमित पूँजी या प्रकाशित पूँजी कहते हैं ।

(3) प्रार्थित पूँजी/आवेदित पूँजी (Subscribed Capital) : प्रकाशित शेयरों में से जितनी कीमत के शेयरों के लिये आवेदनपत्र आए उसे प्रार्थित या आवेदित पूँजी कहते हैं । प्रार्थित पूँजी प्रकाशित पूँजी जितनी अथवा उससे कम हो सकती है । प्रकाशित शेयर की अपेक्षा अधिक शेयर के लिए आवेदन आये तो कंपनी प्रकाशित शेयर जितने ही शेयर स्वीकार कर सकती है । अतिरिक्त शेयर आवेदनपत्र की रकम शेयर आवेदकों को वापस कर दी जाती है ।

(4) याचित पूँजी अथवा माँगी गयी पूँजी (Called up Capital) : कंपनी आवेदकों से दार्शनिक किंमत या उससे कम रकम माँग सकती है । इस प्रकार से मँगवाई गई शेयरपूँजी को याचित पूँजी या माँगी गई पूँजी कहते हैं ।

(5) नहीं माँगी गयी पूँजी (Uncalled Capital) : कंपनी के संचालक आवेदकों से शेयर की दार्शनिक किंमत से कम कीमत माँग सकते है, इस प्रकार नहीं मँगाई गई रकम को नहीं माँगी गयी पूँजी कहते हैं । नहीं माँगी गयी पूँजी अर्थात् प्रार्थित पूँजी और याचित पूँजी की रकम के बीच का अंतर ।

(6) वसूली आयी पूँजी या भरपाई हुई पूँजी (Paid-up Capital) : माँगी गयी पूँजी की रकम में से जितनी रकम शेयरधारकों के पास से कंपनी को मिले उस रकम को वसूल आयी पूँजी या भरपाई हुई पूँजी कहते हैं । यदि किसी कारण से कोई शेयर धारक मँगायी गयी रकम अंशत: या संपूर्ण न भरे तो मंगायी गयी पूँजी और वसूल आयी पूँजी की रकम में अंतर देखने को मिलता है ।

(7) अनामत पूँजी (Reserve Capital) : जब कंपनी के संचालकों को ऐसा लगे की याचित पूँजी अपने व्यवसाय के लिए पर्याप्त है और भविष्य में और अतिरिक्त पूँजी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ऐसी परिस्थितियों में शेयरधारकों की सभा में विशेष प्रस्ताव द्वारा नहीं माँगी गयी पूँजी अनामत पूँजी रखी जाती है । इस प्रकार अनामत के रूप में रखी गयी पूँजी को अनामत पूँजी या सुरक्षित पूँजी कहते हैं ।

8125.

प्रतिभूति प्रीमियम अर्थात् क्या ? प्रतिभूति प्रीमियम के संदर्भ में ध्यान में रखने योग्य मुद्दे बताइए ।

Answer»

जब कंपनी की बाजार में प्रतिष्ठा (शाख) अच्छी हो, उसकी लाभ कमाने की क्षमता अधिक हो, आन्तरिक तथा बाह्य परिबल अनुकूल हो, तब कंपनी शेयर मूलकिंमत से अधिक किंमत पर प्रकाशित करती है । इस प्रकार दार्शनिक किंमत से अधिक किंमत पर शेयर प्रकाशित करने को शेयर प्रीमियम से प्रकाशित करना कहते हैं । इस प्रकार से प्राप्त प्रीमियम की रकम को प्रतिभूति प्रीमियम खाते ले जाया जाता है ।

कंपनी जब शेयर प्रीमियम से प्रकाशित करे तब शेयर की किंमत की अपेक्षा अधिक प्राप्त रकम एक अलग खाते में जमा करने । को प्रतिभूति प्रीमियम खाता अथवा प्रतिभूति प्रीमियम अनामत खाता ले जाया जाता है ।

प्रतिभूति प्रीमियम के संदर्भ में ध्यान में रखने योग्य मुद्दे :

  1. प्रीमियम की राशि तय करने के लिये किसी भी प्रकार का कोई कानूनी नियंत्रण नहीं है ।
  2. कंपनी अगर रोकड़ में डिविडन्ड देना चाहे तो उसके लिये प्रतिभूति प्रीमियम की राशि का उपयोग नहीं कर सकती । शेयर पर प्राप्त प्रीमियम पूंजी लाभ गिना जाता है ।
  3. प्रतिभूति प्रीमियम की बाकी पक्की तलपट के इक्विटी दायित्व पक्ष में ‘अनामत और आधिक्य’ शीर्षक के तहत प्रतिभूति प्रीमियम अनामत के रूप में दर्शाया जाता है ।
  4. शेयर पर प्रीमियम की रकम आवेदन, आबंटन या माँग के साथ अलग-अलग या एक साथ मँगवाई जा सकती है ।
8126.

 ‘अप्राप्त माँग’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

Answer»

अप्राप्त माँग (Class-in-Arrears) : 

जब कंपनी के द्वारा शेयरधारकों के पास से शेयर आबंटन तथा माँग की रकम मँगवाई जाये और यदि कोई शेयरधारक यह रकम समयसर न चुका पाये, तब यह नहीं चुकाई गई राशि ‘मिलना बाकी हप्ता-अप्राप्त माँग’ के रूप में जानी जाती है । इस परिस्थिति में अप्राप्त माँग संबंधी हिसाबी असर दो तरह से दी जा सकती है –

(i) अप्राप्त माँग खाता उपस्थित किये बिना : इस पद्धति में कंपनी अप्राप्त माँग की खाता उपस्थित नहीं करती, परंतु जितनी राशि शेयरधारकों के पास से प्राप्त होती है उतनी ही राशि बैंक खाते उधार करके, संबंधित माँग खाते जमा की जाती है । और भविष्य ‘ में शेयर धारक के द्वारा बाकी मांग की रकम चुकायी जाती है तब बैंक खाता उधार करके संबंधित मांग खाते जमा की जाती है ।

(ii) अप्राप्त माँग खाता उपस्थित किया जाये तब : इस पद्धति में संबंधित माँग की राशि मँगवाई जाये तब जितनी रकम शेयरधारकों द्वारा चुकाई जाये उसे बैंक खाते उधार किया जाता है और जितनी रकम शेयरधारकों द्वारा नहीं चुकाई जाती उसे अप्राप्त मांग खाते उधार किया जाता है । भविष्य में जब शेयरधारकों द्वारा यह राशि दी जाती है तब बैंक खाता उधार करके अप्राप्त माँग खाता जमा किया जाता है, जिससे अप्राप्त माँग का खाता बंद हो जाता है ।

अप्राप्त माँग संबंधी ध्यान में रखने योग्य बातें :

  1. वार्षिक हिसाब बनाते समय अगर अप्राप्त मांग की रकम वसूल न हुई हो, तब अप्राप्त मांग की रकम मंगायी शेयरपूँजी में से घटाकर दर्शाया जाता है ।
  2. कंपनी द्वारा मांग की लेनी रकम की तारीख से वास्तव में भुगतान तारीख तक के समय तक आर्टिकल्स ओफ एशोसियेशन में बताये दर से ब्याज वसूल कर सकती है ।
  3. कंपनी कानून, 2013 के शेड्यूल I के टेबल F के अनुसार अप्राप्त मांग पर अधिक से अधिक वार्षिक 10% तक कंपनी द्वारा ब्याज वसूल किया जा सकता है ।
8127.

निजी स्तर पर शेयर प्रकाशित करने की पद्धति बताइए ।

Answer»

नये कंपनी कानून, 2013 में बताये गये अनुसार निजी स्तर पर भी कंपनीयाँ शेयर प्रकाशित कर सकती है । सार्वजनिक कंपनी के संचालक अपने स्वयं के आपसी संबंधों के कारण कंपनी की पूँजी वृद्धि में सक्षम होते है । इन परिस्थितियों में कंपनी शेयर खरीदने के लिये आम जनता को आमंत्रित नहीं करती है, परंतु निजी स्तर पर कंपनी के संचालक स्वयं अपने मित्र, रिश्तेदारों, म्युच्युअल फंड़, ग्रुप कंपनी के शेयरधारक, उन प्रवासी भारतीय जीवन बीमा निगम, युनिट ट्रस्ट ओफ इण्डिया, इन्डस्ट्रीयल क्रेडिट एन्ड इन्वेस्टमेन्ट कोर्पोरेशन ऑफ इण्डिया वगैरह खरीद लेते है ।

यह शेयर आमजनता के बीच प्रकाशित नहीं किये जाते, इसलिये कंपनियों को विज्ञापनपत्र प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं रहती । परंतु विज्ञापन पत्र के बदले कंपनी के संचालक एक ड्राफ्ट या निवेदन तैयार करते है जिसे बदले के निवेदन के रूप में जाना जाता है ।

निजी स्तर पर प्रकाशित शेयर धारण करनेवाले शेयरधारकों, शेयर स्वीकृति की तारीख से निर्धारित समय तक शेयर की बिक्री नहीं कर सकते । इसे लोक-इन-पिरियड के नाम से जाना जाता है ।

8128.

प्रतिभूति प्रीमियम अनामत की रकम का कोई भी दो उपयोग बताइए ।

Answer»

प्रतिभूति प्रीमियम अनामत की रकम का उपयोग निम्न है :

  1. कंपनी द्वारा शेयर या डिबेन्चर प्रकाशित करते समय हुआ खर्च, कमीशन या दिया बट्टा को अपलिब्रित करने के लिये प्रतिभूति प्रीमियम अनामत की रकम का उपयोग होता है ।
  2. कंपनी के शेयरधारकों को पूर्ण भरपाई हुए बोनस शेयर देने के लिए प्रतिभूति प्रीमियम अनामत की रकम का उपयोग होता है ।
8129.

डिबेन्चर धारकों को कंपनी अपने डिबेन्चर पर ………………………. देती हैं ।(अ) डिविडन्ड(ब) ब्याज(क) लाभ में हिस्सा(ड) ब्याज और डिविडन्ड दोनों

Answer»

सही विकल्प है (ब) ब्याज

8130.

डिबेन्चर यह कंपनी के लिये ………………………. हैं ।(अ) पूँजी(ब) लेना(क) दायित्व(ड) संपत्ति

Answer»

सही विकल्प है (क) दायित्व

8131.

जब कंपनी द्वारा डिबेन्चर की संपूर्ण रकम आवेदन के समय ही मँगायी जाये तब वह रकम किस खाते जमा की जाती है ?(अ) डिबेन्चर आवेदन खाते(ब) डिबेन्चर आवेदन और आबंटन खाते(क) डिबेन्चर आबंटन खाते(ड) डिबेन्चर धारकों खाते

Answer»

सही विकल्प है (ब) डिबेन्चर आवेदन और आबंटन खाते

8132.

कंपनी ने निर्गमित डिबेन्चर पक्की तलपट में किस शीर्षक के अंतर्गत दर्शाया जाता है ?(अ) बिन – चालु दायित्व(ब) शेयर पूँजी और अनामत(क) चालु दायित्व(ड) विनियोग

Answer»

सही विकल्प है (अ) बिन – चालु दायित्व

8133.

‘प्रतिभूति प्रीमियम अनामत खाता’ पक्की तलपट में कहाँ दर्शाया जाता है ?

Answer»

‘प्रतिभूति प्रीमियम अनामत खाता’ कंपनी के पक्की तलपट में ‘इक्विटी और दायित्व’ पक्ष में ‘बिन-चाल दायित्व’ के शीर्षक के तहत्दी र्घकालीन दायित्व के रूप में दर्शाया जाता है ।

8134.

कंपनी कानून, 2013 के अनुसार कितने वर्ष की अवधि के डिबेन्चर निर्गमित कर सकते है ?

Answer»

कंपनी कानून, 2013 में बताये गये अनुसार कोई भी कंपनी 10 वर्ष से अधिक समय के डिबेन्चर प्रकाशित नहीं कर सकती। जो कंपनियाँ इन्फ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट में काम करती हो वह 10 वर्ष से अधिक समय के डिबेन्चर प्रकाशित कर सकती है । परंतु अधिक से अधिक 30 वर्ष तक के डिबेन्चर प्रकाशित कर सकती है ।

8135.

कंपनी लाभ में से डिबेन्चर वापस करने का तय करे उसके पहले उसने निर्गमित डिबेन्चर की कुल दार्शनिक किंमत की रकम का ……………………… प्रतिशत डिबेन्चर वापसी अनामत खाते ले जाना पड़ेगा ।(अ) 10(ब) 25(क) 100(ड) 15

Answer»

सही विकल्प है (क) 100

8136.

डिबेन्चर बट्टा अर्थात् क्या ?

Answer»

कंपनी के आर्टिकल्स में अगर कोई नियंत्रण न हो तब कंपनी मूलकिंमत की अपेक्षा कम किंमत से डिबेन्चर बाहर प्रकाशित कर सकती है, यह कम ली गई रकम ‘बट्टा’ कहलाती है । जब बट्टे से डिबेन्चर बाहर प्रकाशित किया जाये तब जो रकम कंपनी को मिले वह बैंक खाते उधार होती है, बट्टे की रकम ‘डिबेन्चर बट्टा’ खाते उधार होती है और डिबेन्चर की पूरी किंमत डिबेन्चर खाते जमा होती है ।

8137.

डिबेन्चर धारक किसे कहते हैं ?

Answer»

बाजार में से कंपनी को रकम देकर डिबेन्चर खरीदनेवाले डिबेन्चर धारण करते है, वह कंपनी के डिबेन्चर धारक (Debenture holder) कहलाते है । कंपनी डिबेन्चर धारक को जो दस्तावेज देती है उसमें डिबेन्चर धारक का नाम, डिबेन्चर की संख्या, प्रति डिबेन्चर की रकम, डिबेन्चर को दिया हुआ क्रमांक नंबर, ब्याज के भुगतान की दर, ब्याज भुगतान का समय तथा डिबेन्चर की रकम भविष्य में कब वापस की जायेगी इसका उल्लेख इसमें किया होता है ।

8138.

डिबेन्चर अर्थात् क्या ?

Answer»

व्यवसाय करनेवाली कंपनीयों को रकम उधार लेने की गर्भित अधिकार है । इस अधिकार के आधार पर कंपनी आम जनता के पास से रकम उधार लेती है और जो व्यक्ति कंपनी को इस प्रकार रकम देता है उसे कंपनी खुद के दायित्व का स्वीकार करनेवाला दस्तावेज देती है । यह दस्तावेज डिबेन्चर कहलाता है । डिबेन्चर यह कंपनी का दायित्व दर्शानेवाला और दायित्व का स्वीकार करनेवाला दस्तावेज है, जिसे कंपनी की सामान्य महोर (Comman Seal) के साथ प्रकाशित किया जाता है । इस पर निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है । शेयर की तरह इसका पंजीकरण भी शेयर बाजार में किया जाता है और बाजार किंमत के आधार पर इसका क्रय-विक्रय किया जा सकता है ।

8139.

कंपनी कानून 2014 के अनुसार, वित्तीय वर्ष के अंत में अर्थात् कि 31 मार्च के दिन, जो डिबेन्चर वापस करने हो उसकी कुल अंकित मूल्य (Face Value) का कम से कम ……………………….. प्रतिशत जितनी रकम वर्ष के प्रारंभ में अर्थात् कि 30 अप्रैल तक 1 में विनियोग करना पड़ेगा ।(अ) 25(ब) 15(क) 100(ड) 10

Answer»

सही विकल्प है (ब) 15

8140.

कंपनी पूँजी में से डिबेन्चर वापस करने का तय करे उसके पहले, कंपनी ने अपने निर्गमित डिबेन्चर की कुल अंकित मूल्य की रकम का …………………………… प्रतिशत डिबेन्चर वापसी अनामत खाते ले जाना पड़ेगा ।(अ) 10(ब) 25(क) 100(ड) 15

Answer»

सही विकल्प है (ब) 25

8141.

In ……… the government took over all mines. A) 1980s B) 1970s C) 1950s D) 1920s

Answer»

In 1970s the government took over all mines.

8142.

डिबेन्चर वापस करने की रीतियाँ (पद्धतियाँ) बताइए ।

Answer»

डिबेन्चर वापस करने की पद्धतियाँ निम्न हैं :

  1. डिबेन्चर मूलकिंमत से प्रकाशित कर, मूलकिंमत पर वापस किया जाये
  2. डिबेन्चर प्रीमियम से प्रकाशित कर, मूलकिंमत से वापस किया जाये
  3. डिबेन्चर बट्टा से प्रकाशित कर, मूलकिंमत पर वापस किया जाये
  4. डिबेन्चर प्रीमियम से प्रकाशित किये हो और प्रीमियम से वापस किया जाये
  5. डिबेन्चर बट्टा से प्रकाशित किये हो और प्रीमियम से वापस किया जाये
8143.

डिबेन्चर बट्टा से निर्गमित करने संबंधी टिप्पणी लिखिए ।

Answer»

डिबेन्चर बट्टा से निर्गमित करना (Issue of Debentures at discount) : कंपनी के आर्टिकल्स में अगर कोई नियंत्रण न हो तब कंपनी मूलकिंमत की अपेक्षा कम किंमत से डिबेन्चर बाहर प्रकाशित कर सकती है । यह कम ली जानेवाली रकम बट्टा के रूप में जाना जाता है । जब बट्टा डिबेन्चर से बाहर प्रकाशित किया जाये तब जो रकम कंपनी को प्राप्त हो उसे बैंक खाते उधार किया जाता है । बट्टे की रकम डिबेन्चर बट्टा खाते उधार की जाती है और डिबेन्चर की पूरी किंमत डिबेन्चर खाते जमा की जाती है । डिबेन्चर अधिक से अधिक कितने बट्टे से बाहर प्रकाशित किया जा सकता है इस संदर्भ में कंपनी कानून में कोई नियंत्रण नहीं है, परंतु अगर आर्टिकल्स में ऐसा प्रावधान हो तो उसका पालन करना पड़ता है । डिबेन्चर बट्टा कंपनी के पक्की तलपट के सम्पत्ति पक्ष में ‘अन्य बिन चालु संपत्ति’ के शीर्षक के अंतर्गत दर्शाया जाता है ।

8144.

डिबेन्चर प्रीमियम से निर्गमित करने संबंधी टिप्पणी लिखिए ।

Answer»

जिस प्रकार प्रतिष्ठित कंपनीयाँ खुद के शेयर मूलकिंमत से अधिक रकम लेकर बाहर प्रकाशित करती है, उसी प्रकार डिबेन्चर भी मूलकिंमत से अधिक किंमत लेकर बाहर प्रकाशित किया जाता है । अतिरिक्त ली गई रकम को प्रीमियम कहा जाता है । कंपनी कानून 2013, के अनुसार डिबेन्चर पर की प्रीमियम की रकम ‘प्रतिभूति प्रीमियम अनामत खाते’ ले जायी जाती है । शेयर प्रीमियम की तरह डिबेन्चर प्रीमियम भी पूँजी लाभ है । अर्थात् उसका उपयोग डिविडन्ड वितरण में नहीं किया जा सकता । परंतु डिबेन्चर बाहर प्रकाशित करते हुए हुआ खर्च, प्राथमिक खर्च, ख्याति वगैरह अपलिखित करने में इसका उपयोग किया जा सकता है ।

‘प्रतिभूति प्रीमियम अनामत खाता’ कंपनी के पक्की तलपट के इक्विटी और दायित्व पक्ष में ‘अनामत और आधिक्य’ के शीर्षक के अंतर्गत दर्शाया जाता है ।

8145.

डिबेन्चर निर्गमित करने संबंधी विधि बताइए ।

Answer»

डिबेन्चर निर्गमित करने संबंधी विधि निम्न है :

  • डिबेन्चर प्रकाशित करने के लिये सर्वप्रथम कंपनी के डिरेक्टर बोर्ड की सभा में ऋणपत्र की संख्या, रकम और ब्याज के दर की शर्तों की स्पष्टता की जाती है ।
  • आम जनता ऋणपत्र खरीद सके इसलिये विज्ञापनपत्र अथवा विज्ञापनपत्र के बदले का निवेदन प्रकाशित करना पड़ता है ।
  • शेयर प्रकाशित करने की तरह ही यहाँ भी आमजनता को डिबेन्चर खरीदने के लिये एक अलग आवेदनपत्र तैयार करना पड़ता है ।
  • डिबेन्चर सार्वजनिक अभिदान द्वारा प्रकाशित किये जाये तब उस पर प्राप्त रकम शिड्युल्ड बैंक में एक अलग खाते में रखी जाती है । इस प्रकार शेयर अभिदान की तरह ही डिबेन्चर अभिदान के समय भी आवेदन पर प्राप्त रकम सीधी बैंक खाते में भरी जाती है ।
  • कंपनी कानून, 2013 के नियमानुसार कम से कम 90% अभिदान भरा जाना आवश्यक है ।
  • कंपनी डिबेन्चर की राशि एकसाथ अथवा किश्तों में मँगवा सकती है ।
  • डिबेन्चर की राशि शिड्यूल बैंक में जमा होने के बाद जिन आवेदकों के डिबेन्चर स्वीकृत किये हो उन्हें स्वीकृत पत्र (Allotmentletter) भेजा जाता है और जिन आवेदकों के डिबेन्चर अस्वीकृत किये हो उनको डिबेन्चर आवेदनपत्र की रकम वापस की जाती है ।
  • डिबेन्चर मूल किंमत, प्रीमियम या बट्टा से प्रकाशित कर सकते है । प्रीमियम और बट्टा का दर डिरेक्टर्स द्वारा तय किया जाता है ।
8146.

सार्वजनिक बचत का अर्थ देकर इनके लाभ व मर्यादाएँ समझाइये ।

Answer»

सार्वजनिक बचत (Public Deposits) : कम्पनी को जब अल्पकालीन पूँजी की आवश्यकता होती हैं तब आम जनता से इस बचत के माध्यम से जो पूँजी प्राप्त की जाती है उसे सार्वजनिक बचत कहते हैं । सार्वजनिक बचत द्वारा पूँजी निश्चित समय 6 मास से 3 वर्ष तक की अवधि के लिए होती है । विनियोजित रकम पर निश्चित दर से ब्याज मासिक, त्रिमासिक, अर्द्धवार्षिक या वार्षिक रुप . से अथवा पकने की तारीख पर मूलधन के साथ रकम चुकाई जाती है ।

प्रारम्भ के वर्षों में अहमदाबाद व बम्बई की सूती कपड़े की मिलों में लोग इस प्रकार की बचत के रूप में पूँजी लगाते थे । क्रमशः चाय उद्योग, जूट (सन) उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, चीनी उद्योग इत्यादि में यह प्रथा प्रचलित बनी है । किसी संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी होने से ऐसी बचत से आसानी से पूँजी प्राप्त की जा सकती है । सार्वजनिक बचत पर ब्याज की दर बैंक की अपेक्षा अधिक होती है । इसलिए आमजनता अपनी बचत रखने के लिए आकर्षित होती है । ऐसी बचत सुन के साथी के समान होती है, दुःख के साथी की तरह नहीं । क्योंकि कमजोर अथवा कम ख्याति प्राप्त कम्पनियों में आम जनता ऐसी बचत के रूप में पूँजी नहीं लगाती है । सन् 2013 कम्पनी कानून की व्यवस्था के अनुसार बैंकिंग व बिन बैंकिंग फाइनेंस के अलावा सार्वजनिक बचत आम जनता के पास से स्वीकार नहीं कर सकती ।

लाथ : (Advantages of Public Deposits):

  1. किसी भी प्रकार की गारंटी या मिलकत गिरवी रख्खे बिना पूँजी सरलता से मिलती है । मिलकतों पर बोझ नहीं रहता है ।
  2. डिपोजिट धारकों का कंपनी पर किसी प्रकार का दबाव नहीं रहता है कारण कि डिपोजिट असंख्य लोगों से छोटी-बड़ी रकम के रूप में प्राप्त की जाती है । इस प्रकार डिपोजिट धारकों का संचालन में कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है ।
  3. इक्विटी पर के व्यापार का लाभ मिलता है ।
  4. आवश्यकतानुसार डिपोजिट रखकर अतिरिक्त डिपोजिट वापस कर सकते हैं और ब्याज चुकाने से मुक्ति मिल जाती है ।
  5. बैंक ब्याज की तुलना में यहाँ पर ब्याज की दर नीची रहती है इसलिए यह डिपोजिट सस्ती पड़ती है ।
  6. डिपोजिट वापस करते समय कंपनी की कार्यशील पूँजी में कमी नहीं आती है । नयी डिपोजिट स्वीकार करके पुरानी डिपोजिट की रकम लौटा दी जाती है ।
  7. यदि वही डिपोजिट बार-बार रखी जाये तो कंपनी को दीर्घकालीन ऋण की प्राप्ति होती है ।

मर्यादाएँ :

  1. सार्वजनिक बचत सुख की साथी है । मात्र कंपनी के अच्छे दिनों में ही लोग बचत रखते हैं । आर्थिक मंदी या कंपनी की प्रतिष्ठा कम हो तब डिपोजिट वापस माँग लेते हैं ।
  2. कंपनी की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़े तब विनियोग-कर्ता बचत वापस प्राप्त करने के लिए भारी उत्साह दिखाते हैं और कंपनी की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो जाती है ।
  3. डिपोजिट प्राप्त करने का खर्च भी चुकाना पड़ता है । दलाल व वित्तीय सलाहकारों को दलाली व कमीशन देना पड़ता है ।
  4. डिपोजिट किसी भी प्रकार की कंपनी की मिलकत गिरवी रख्खे बिना प्राप्त की जाती है । इसलिए यदि संचालन पर्याप्त विवेक रख्ने बिना रकम का उपयोग करें तो पूँजी की कार्यक्षमता घटती है, आय घटती है और अतिपूँजीकरण की स्थिति पैदा होती है ।
  5. नयी कंपनियों की बाजार में प्रतिष्ठा स्थापित न होने से उन्हें इस प्राप्ति-स्थान द्वारा पूँजी एकत्र करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।
  6. सट्टाखोरी को प्रोत्साहन मिलता है । डिपोजिट सरलता से मिलने से संचालक व्यापार के अधिक विस्तार के लिए ललचाते हैं ।
  7. पूँजी बाजार के विकास को मर्यादित करती है । इकाईयाँ प्रतिभूतियाँ कम प्रमाण में निर्गमित करती हैं ।
8147.

खुले बाजार में अपने डिबेन्चर खरीदकर डिबेन्चर वापस करने संबंधी टिप्पणी लिखिए .

Answer»

खुले बाजार में अपने डिबेन्चर खरीदकर डिबेन्चर वापस करना
(Redemption of Debentures by the purchase of own Debentures in the open market) :

कंपनी के आर्टिकल्स ओफ एसोसिएशन अगर मान्यता प्रदान करे तब कंपनी कानून के अनुसार कंपनी डिबेन्चर वापस करने के बदले मान्य स्टोक मार्केट (खला बाजार) में से अपने डिबेन्चर की खरीदी कर सकती है । जब कंपनी के डिबेन्चर उस पर छपी हुई किंमत की अपेक्षा कम किंमत से या बट्टा से मिलते हो तब इस पद्धति का उपयोग किया जाता है ।

खुले बाजार में से डिबेन्चर खरीदने के बाद कंपनी उसका उपयोग निम्न दो तरह से कर सकती है :

  1. बोर्ड ओफ डिरेक्टर्स द्वारा प्रस्ताव पारित करके खरीदे गये डिबेन्चर तुरंत रद्द किये जाये ।
  2. कंपनी खुद के द्वारा खरीदे गये डिबेन्चर रद्द करने के बदले खुद के पास रखती है, जो भविष्य में कंपनी पुनः प्रकाशित कर सकती है ।
8148.

This kind of employees are more in government offices at present. A) Regular B) Contract C) LabourD) None

Answer»

Answer is (A) Regular

8149.

Open cast mining means A) blasting and removing granite etc. B) arranging and blasting bombs at a depth C) making a large pit and keep extracting the minerals D) all the above

Answer»

A) blasting and removing granite etc.

8150.

कार्यालय यन्त्रीकरण के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।अथवाआधुनिक व्यवसाय में समय तथा श्रम की बचत करने वाले यन्त्रों का क्या महत्त्व है? 

Answer»

समय तथा श्रम बचाने वाले यन्त्रों का महत्त्व अथवा उद्देश्य आधुनिक व्यापारिक युग में समय एवं श्रम को बचाने वाले यन्त्रों के महत्त्व को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है-

1. समय की बचत मशीनों के द्वारा शीघ्र व शुद्धतापूर्वक कार्य करने से समय की बचत होती है। आधुनिक यन्त्र मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों से कई गुना कार्य करते हैं और समय की बचत करके हम इस शेष समय को अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में उपयोग कर सकते हैं। कहा भी गया है, “समय ही धन है।”

2. श्रम की बचत आधुनिक यन्त्रों के प्रयोग के कारण श्रम की भी बचत होती है। इन यन्त्रों के द्वारा कार्य को कुशलतापूर्वक किया जा सकता है। ये यन्त्र मनुष्य की अपेक्षा अधिक कार्य कम व्यय पर कर देते हैं।

3. मितव्ययिता आधुनिक यन्त्रों के द्वारा कम समय व कम श्रम में अधिक कार्य को पूरा किया जा सकता है, जिससे आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।

4. शुद्धतापूर्ण कार्य आधुनिक मशीनों के द्वारा प्रत्येक कार्य को  शुद्धता से पूर्ण किया जा सकता है, जिससे व्यवसाय के सभी प्रकार के कार्यों में सरलता रहती है। प्रत्येक कार्य शुद्धतापूर्ण किए जाने से व्यवसाय की अच्छी छवि बनती है।

5. कार्य में एकरूपता आधुनिक मशीनों के द्वारा किया गया कार्य, मानव द्वारा किए गए कार्य की तुलना में अधिक सुन्दर होता है। सुन्दरता से किए गए कार्य में एकरूपता भी नजर आती है

6. सरलता आधुनिक मशीनों के द्वारा कठिन से कठिन कार्य को आसानी से सम्पन्न किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यन्त्रों के द्वारा प्रत्येक कार्य का सरलीकरण किया जा सकता है।

7. धोखे से मुक्ति यन्त्रों द्वारा किए जाने वाले कार्यों में जालसाजी की सम्भावना नहीं रहती है। यन्त्रों के द्वारा किया गया कार्य निष्कपट व सावधानी से पूर्ण किया जाता है तथा प्रत्येक कार्य की आवश्यक सूचना भी हमेशा उपलब्ध रहती है।

8. उदासीनता की समाप्ति एक ही प्रकार का कार्य करते-करते मनुष्य उदासीन प्रवृत्ति का बन जाता है और प्रत्येक कार्य को अच्छे ढंग से निष्पादित नहीं कर पाता है। लेकिन आधुनिक यन्त्रों के प्रयोग से मनुष्य की उदासीनता व नीरसता समाप्त हो जाती है।

9. व्यापार की साख आधुनिक यन्त्रों को उपयोग में लिए जाने से संस्था की साख में वृद्धि होती है। इन यन्त्रों के द्वारा प्रत्येक कार्य को शुद्धता व कार्यकुशलता से सम्पन्न किया जाता है तथा इन साधनों के प्रभाव से संस्था/व्यापार की साख बढ़ती है।

10. कार्य-विभाजन सम्भव आधुनिक श्रम व समय बचाने  वाले यन्त्रों के माध्यम से कार्यालय में कार्य विभाजन करके नियमितता व कुशलता को प्राप्त किया जा सकता है।