This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता की विवेचना कीजिए। |
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Answer» भारत में वैदिक और उत्तर-वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के बराबर रही है। तथा उन्हें पुरुषों के समान ही सब अधिकार प्राप्त रहे हैं। धीरे-धीरे पुरुषों में अधिकार-प्राप्ति की लालसा बढ़ती गयी। परिणामस्वरूप स्मृति काल, धर्मशास्त्र काल तथा मध्यकाल में इनके अधिकार छिनते गये और इन्हें परतन्त्र, निस्सहाय और निर्बल मान लिया गया। परन्तु समय ने पलटा खाया। अंग्रेजी शासनकाल में देश में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में जागृति आने लगी। समाज-सुधारकों एवं नेताओं का ध्यान स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर गया। यहाँ पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। विवेकानन्द ने कहा है – ‘स्त्रियों की अवस्था में सुधार हुए बिना विश्व के कल्याण का कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं। यदि स्त्री-समाज निर्बल रहा तो हमारा सामाजिक ढाँचा भी निर्बल रहेगा, हमारी सन्तानों का विकास नहीं होगा, समाज में सामंजस्य स्थापित नहीं होगा, देश का विकास अधूरा रहेगा, स्त्रियाँ पुरुषों पर बोझ बनी रहेंगी, देश के विकास में 56 प्रतिशत जनता की भागीदारी नहीं होगी तथा देश में स्त्री-सम्बन्धी अपराधों में वृद्धि होगी। अतः भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है। |
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महिला उद्यमिता को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है ? |
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Answer» महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने हेतु कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं ⦁ महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार के द्वारा कुछ ऐसे उद्योगों की सूची तैयार की जाए जिनके लाइसेन्स केवल महिलाओं को ही दिये जाएँ। ऐसा होने पर महिलाएँ बाजार की प्रतिस्पर्धा से बच सकेंगी। ⦁ महिलाएँ जिन उद्योगों को स्थापित करना चाहें, उनके सम्बन्ध में उन्हें पूरी औद्योगिक जानकारी दी जानी चाहिए। स्त्रियों को आय प्रदान करने वाले व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाए। ⦁ महिला औद्योगिक सहकारी समितियों का गठन किया जाए जिससे कम पूँजी में महिलाओं द्वारा उद्योगों की स्थापना की जा सके। ⦁ ऋण सम्बन्धी प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए तथा सुगमता से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। ⦁ महिला उद्यमियों को सरकारी एजेन्सी द्वारा आसान शर्तों पर कच्चा माल उपलब्ध कराया जाना चाहिए। ⦁ इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि महिला उद्यमियों द्वारा जो वस्तुएँ उत्पादि। की जाएँ, वे अच्छी किस्म की हों जिससे प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। ⦁ महिला उद्यमियों को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को बेचने की समस्या का सामना करना पड़ता है। यदि सरकार स्वयं महिला उद्यमियों से कुछ निर्धारित मात्रा में माल खरीद ले तो उनके माल की बिक्री भी हो सकेगी तथा उन्हें तीव्र प्रतिस्पर्धा से भी बचाया जा सकेगा। |
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महिला उद्यमिता द्वारा पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं का किस प्रकार निराकरण किया जा सकता है ? समझाइए। |
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Answer» पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अधिकांश समस्याएँ किसी-न-किसी रूप में स्त्रियों से ही जुड़ी हुई हैं। इन समस्याओं की तह तक जाने पर पता चलता है कि इसका मुख्य कारण स्त्रियों का सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों से वंचित रहना है। जब महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाएगा तो इसके परिणामस्वरूप स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनेगी और वे कई महत्त्वपूर्ण निर्णय स्वयं ले सकेंगी। विधवा पुनर्विवाह की संख्या बढ़ेगी, पर्दाप्रथा समाप्त होगी और पुरुषों के द्वारा सामान्यत: स्त्रियों का शोषण नहीं किया जा सकेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्त्रियों में सामाजिक एवं आर्थिक चेतना का विकास किया जाए। |
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भारत में महिला उद्यमियों के मार्ग में क्या बाधाएँ हैं ? |
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Answer» हमारे देश में स्त्रियाँ सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण विकासात्मक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पाती हैं, जब कि देश की लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं की है। लोगों की आम धारणा है कि स्त्रियाँ अपेक्षाकृत कमजोर होती हैं और उन्हें व्यक्तित्व के विकास के समुचित अवसर नहीं मिल पाते। इसलिए वे शिक्षा, दक्षता, विकास और रोजगार के क्षेत्र में पिछड़ गयी हैं। भारत में महिला उद्यमिता के मार्ग में प्रमुखत: दो प्रकार की बाधाएँ या समस्याएँ हैं – प्रथम, सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ व द्वितीय, आर्थिक समस्याएँ।। ⦁ सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ – महिला उद्यमिता के क्षेत्र में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ हैं–परम्परागत मूल्य, पुरुषों द्वारा हस्तक्षेप सामाजिक स्वीकृति तथा प्रोत्साहन का अभाव।। ⦁ आर्थिक समस्याएँ – महिला उद्यमिता के मार्ग में आने वाली प्रमुख आर्थिक कठिनाइयाँ हैं – पंजीकरण एवं लाइसेन्स की समस्या, वित्तीय कठिनाइयाँ, कच्चे माल का अभाव, तीव्र । प्रतिस्पर्धा एवं बिक्री की समस्या। इसके अतिरिक्त महिला उद्यमियों को अनेक अन्य बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है; यथा – सृजनता व जोखिम मोल लेने की अपेक्षाकृत कम क्षमता, प्रशिक्षण को अभाव, सरकारी बाबुओं व निजी क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा उत्पन्न अनेक कठिनाइयाँ आदि। |
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महिलाओं को उद्यमिता के परामर्श से क्या उनमें आत्मनिर्भरता का विकास हुआ है? |
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Answer» अनुभव यह बताता है कि आर्थिक अधिकारों से वंचित होने के कारण ही स्त्रियों पर समय-समय पर अनेक प्रकार की निर्योग्यताएँ लाद दी गयीं। यदि उद्योगों के क्षेत्र में स्त्रियों को आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए तो उनमें आत्मविश्वास जाग्रत होगा, वे स्वतन्त्र रूप से निर्णय ले सकेंगी और आर्थिक दृष्टि से उनको पुरुषों की कृपा पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होने पर स्त्रियाँ सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सकेंगी। स्त्रियों की आर्थिक आत्मनिर्भरता उनके लिए वरदान सिद्ध होगी और वे स्वयं सामाजिक विकास में बहुत कुछ योग दे सकेंगी। |
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महिला उद्यमिता ने स्त्रियों में आत्मनिर्भरता का विकास किस प्रकार किया है? |
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Answer» महिला उद्यमिता के जरिए वर्तमान में स्त्रियाँ देश की उत्पादन शक्ति में अहम योगदान कर रही हैं। इसके जरिए वे आर्थिक रूप से मजबूत हुई हैं तथा उनमें नवचेतना और जागरुकता का प्रसार हुआ है। साथ ही उत्पादन की नवीनतम विधियों ने स्त्रियों के परम्परावादी विचारों को ध्वस्त कर उन्हें नया दृष्टिकोण तथा आत्मविश्वास दिया है। इस प्रकार महिला उद्यमिता ने स्त्रियों में आत्मनिर्भरता का विकास किया है। |
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देश की आर्थिक प्रगति में महिला उद्यमिता का क्या योग है ?यासामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» इस देश में 25 वर्ष से 40 वर्ष की आयु समूह में आने वाली स्त्रियों की संख्या करीब 20 करोड़ है। इनमें से करीब 5 करोड़ स्त्रियाँ घरों में ही रहती हैं। इन 5 करोड़ में से अधिकांश स्त्रियाँ शिक्षित हैं। यदि इन सब स्त्रियों में उद्यमिता के प्रति रुचि उत्पन्न की जाए तो देश के कुल उत्पादन में काफी वृद्धि होगी। यदि इस महिला शक्ति का उद्यमिता के क्षेत्र में अधिकतम उपयोग किया जाए तो देश आर्थिक दृष्टि से काफी कुछ प्रगति कर सकता है। यदि महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाए तो महिलाएँ उत्पादक-शक्ति के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में काफी योग दे सकती हैं। |
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राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना कब की गयी ?(क) 1983 ई० में(ख) 1984 ई० में(ग) 1985 ई० में(घ) 1986 ई० में |
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Answer» (क) 1983 ई० में |
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जवाहर रोजगार योजना में महिलाओं को क्या विशेष लाभ दिया गया है ? |
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Answer» जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत लाभ प्राप्तकर्ताओं में 30 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण किया गया है। |
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उद्यमिता एक नव प्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा एक नेतृत्व कार्य हो।” यह परिभाषा किसने दी है?(क) बी० आर० गायकवाड़(ख) जोसेफ ए० शुम्पीटर(ग) ए० एच० कोल(घ) हिगिन्स |
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Answer» (ख) जोसेफ ए० शुम्पीटर |
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कूड़े-कर्कट से खाद कैसे बनाई जाती है? इसका क्या लाभ है? |
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Answer» कड़े-कर्कट को खाद में परिवर्तित कर देना सदियों पुराना लाभदायक ढंग है। इस ढंग से मल-मूत्र और कूड़ा कर्कट को विशेष प्रकार के गड्ढों में भर कर ऊपर सूखी मिट्टी डालकर ढक दिया जाता है। इस तरह कई गड्ढे भर लिए जाते हैं। गर्मियों के दिनों में कभी-कभी पानी फेंका जाता है। 4-6 महीनों के पश्चात् यह कूड़ा-कर्कट खाद में परिवर्तित हो जाता है। कूड़े-कर्कट को खाद में परिवर्तित कर लेना बहुत लाभदायक ढंग है। बहुत कम मेहनत से कूड़ा केवल सम्भाला ही नहीं जाता बल्कि उसको खाद में परिवर्तित करके फ़सलों, सब्जियों आदि में प्रयोग किया जाता है, जिससे फ़सलें भी अच्छी होती हैं। |
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घरेलू कूड़े में कौन-कौन सी वस्तुएं होती हैं? |
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Answer» घर में वस्तुओं का प्रयोग करते समय कूड़े-कर्कट का पैदा होना स्वाभाविक है। इस कूड़े-कर्कट में हम रसोई की जूठन, राख, फल और सब्जियों के छिलके, गत्ते के डिब्बे, पोलीथीन के लिफाफे, कागज़-पत्र आदि शामिल होते हैं। |
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आस-पास की सफ़ाई से आप क्या समझते हैं? |
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Answer» आस-पास से अभिप्राय घर का इर्द-गिर्द है जिसमें गली, पार्क और शैड शामिल किए जा सकते हैं। घर की भीतरी सफ़ाई के साथ-साथ आस-पास की सफ़ाई को इर्द-गिर्द की सफ़ाई कहा जाता है। |
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कूड़े को जलाया क्यों जाता है? |
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Answer» वातावरण की सफाई के लिए कूड़े-कर्कट का निपटारा करना बहुत आवश्यक है। वैसे तो कूड़े के निपटारे के लिए कई ढंग हैं, परन्तु कूड़े को जलाना सब से अच्छा समझा जाता है। कूड़े-कर्कट को इकट्ठा करके खुले स्थान पर आग लगा कर नष्ट किया जा सकता है, परन्तु कूड़े को जलाने का सबसे बढ़िया ढंग भट्ठी बनाकर उसमें कूड़े को जलाना है, इस प्रकार कूड़ा भी नष्ट हो जाता है और धुआं भी चिमनी द्वारा ऊपर चला जाता है और वातावरण भी साफ़-सुथरा रहता है। |
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पाखानों की उचित सफ़ाई न की जाए तो कौन-से रोग हो सकते हैं? |
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Answer» सही उत्तर है टाईफाईड, हैजा |
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घरेलू कूड़े में क्या कुछ होता है? |
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Answer» रसोई की जूठन, फल, सब्जियों के छिलके आदि। |
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आसपास की सफ़ाई किसे कहते हैं? |
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Answer» घर के आसपास की सफ़ाई को। |
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कूड़े से खाद कितने दिनों में तैयार हो सकती है? |
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Answer» सही उत्तर है 4-6 महीनों में |
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घर के कूड़े-कर्कट को कितने भागों में बांटा जा सकता है तथा इसका निपटारा कैसे करना चाहिए? |
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Answer» घर के कूड़े-कर्कट को सम्भालना घर की सफ़ाई के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। घर के कूड़े-कर्कट को हम चार भागों में विभाजित कर सकते हैं-
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नालियों को साफ रखने के लिए यह कैसी होनी चाहिए? |
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Answer» सही उत्तर है पक्की होनी चाहिए |
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कूड़े का निपटारा करने के ढंगों के नाम लिखो। |
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Answer» कूड़े के निपटारे की निम्नलिखित विधियां हैं
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कूड़े-कर्कट से गड्ढे भरने का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है? |
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Answer» कूड़े-कर्कट से खुले गड्ढे भरने से मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि कूड़े-कर्कट को गड्ढे में डाल कर ऊपर से ढका न जाए तो जब कूड़ा गल जाता है उससे चारों ओर बदबू फैलती है। कई तरह के बैक्टीरिया और अन्य कीड़े-मकौड़े भी पैदा हो जाते हैं। इससे पूरा वातावरण दूषित हो जाता है और आस-पास रहते लोग कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा के पानी के साथ मिलकर यह कूड़ा-कर्कट धरती निचले पानी को प्रदूषित कर देता है। इसलिए खुले गड्ढों में कूड़ाकर्कट फेंकने से मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। |
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आस-पास की सफ़ाई क्यों आवश्यक है? इसके लिए क्या-क्या करना चाहिए? |
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Answer» घर की सफ़ाई परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिये घर के आस-पास की सफ़ाई से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। इसलिए परिवार के सदस्यों को बीमारियों से बचाने के लिए घर की सफ़ाई के साथ-साथ घर के आस-पास की सफ़ाई का भी ध्यान रखना चाहिए। घर के आस-पास की गन्दगी कई प्रकार के कीड़े-मकौड़े, बैक्टीरिया, मक्खी, मच्छर पैदा करने में सहायक होती है। इनसे मलेरिया, दस्त, टाइफाइड, फ्लू आदि बीमारियां लग सकती हैं और आस-पास की सफ़ाई करके हम काफ़ी हद तक इन बीमारियों से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त घर का साफ़-सुथरा आस-पास आए गए मेहमानों को सुन्दर लगता है और मेहमान भी खुश हो कर मिलने आते हैं। यदि घर के आस-पास गन्दगी होगी तो कोई सफ़ाई पसन्द मित्र और रिश्तेदार आप को मिलने आने से झिझकते हैं। इसलिए घर के आस-पास की गन्दगी परिवार का सामाजिक स्तर कम करती है। आस-पास की सफ़ाई के लिए करना चाहिए: 1. पानी के सही नियम का प्रबन्ध- गाँव और उन शहरों, कस्बों में जहां भूमिगत सीवरेज का प्रबन्ध नहीं है। घर के पानी से आस-पास प्रदूषित होता है क्योंकि खाना बनाना, बर्तन साफ़ करने, नहाना, पशुओं को साफ़ रखने के लिए, आंगन को साफ़ रखने के लिए पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है और यदि इसका निकास ठीक न हो तो यह पानी घर के किसी कोने या घर के बाहर गली या किसी गड़े में इकट्ठा होता रहता है। इकट्ठा हुआ पानी केवल बदबू ही नहीं फैलाता बल्कि मच्छर, मक्खियों 2. गलियों की सफाई करके- प्रायः यह देखने में आता है कि अधिकतर लोग अपना फर्ज केवल घर के अन्दर को साफ़ करना ही समझते हैं या घर का कूड़ा-कर्कट बाहर गली में फेंक देते हैं। इससे केवल गली में ही गन्दगी नहीं फैलती बल्कि पूरा वातावरण ही दूषित हो जाता है। इसलिए घर के बाहर गली को घर का भाग समझ कर ही सफ़ाई करनी चाहिए। 3. घर के आस-पास पड़े खाली स्थान साफ़ करके- कई बार घरों के आसपास खाली स्थान पड़े होते हैं, जिसमें घास-फूस पैदा हो जाता है, गड्ढों में पानी भर जाता है, झाड़ियां पैदा हो जाती हैं, अन्धेरे में कई लोग जंगल पानी जाने लगते हैं। इस तरह गन्दगी बढ़ती जाती है और यह गन्दगी कई तरह की बीमारियों का कारण बनती है। ऐसे इलाके में बने खूबसूरत घर भी गन्दे लगते हैं। इसलिए ऐसे इलाके के निवासियों को खाली पड़े स्थान की सफ़ाई रखने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे स्थान में घास-फूस काट कर बच्चों के खेलने के लिए जगह बन सकती है या घास, फूल, पौधे लगा कर इसको खूबसूरत पार्क में परिवर्तित किया जाता है। 4. मुहल्ले के बच्चों को सफ़ाई प्रति चेतन करके- बच्चों को सफ़ाई प्रति चेतन करके बच्चों को घर के आस-पास की सफ़ाई करने के लिए लगाया जा सकता है। यह तर्जुबा कई समाज सेवी जत्थेबंदियां सफलतापूर्वक कर चुकी हैं। बच्चे आदर्शवादी और शक्ति भरपूर होते हैं। बस थोड़ी सी सीध देने और उत्साहित करने से वह घरों के आस-पास की सफ़ाई आसानी से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मुहल्ला निवासी पैसे इकट्ठे करके भी मज़दूरों से सफ़ाई करवा सकते हैं। |
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मल-मूत्र को ठिकाने लगाना सबसे जरूरी है, क्यों? |
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Answer» मल-मूत्र को ठिकाने लगाने का कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मल-मूत्र में हानिकारक बैक्टीरिया, वाइरस और जीवाणु होते हैं यदि इसको जल्दी ठिकाने न लगाया जाए तो बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। कई बीमारियां जैसे टाइफाइड, हैज़ा और आंतों के रोग हो सकते हैं। |
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घर की नालियां साफ़ करना क्यों ज़रूरी है? |
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Answer» घर की सफ़ाई तभी ठीक रह सकती है यदि घर में फालतू पानी का निकास ठीक हो। आजकल बड़े शहरों में तो भूमिगत (Underground) सीवरेज़ का प्रबन्ध हो चुका है, परन्तु गाँवों और कस्बों में फालतू पानी के निकास को ठीक रखने के लिए नालियों की रोज़ाना सफ़ाई आवश्यक है। |
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भौतिक अथवा प्राकृतिक पर्मवरण से का तात्पर्य है?याभौतिक पर्यावरण को परिभाषित कीजिए। |
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Answer» प्राकृतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन समस्त भौतिक शक्तियों (सूर्यातप, पृथ्वी की गतियाँ, गुरुत्वाकर्षण, ज्वालामुखी आदि), प्रक्रियाओं (भूमि अपक्षय अवसादीकरण, विकिरण, चालन, संवहन, वायु-जल की गति, जीवन-मरण विकास आदि) से है; जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव-जीवन पर पड़ता है। |
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पर्वतों का मानव को सबसे बड़ा लाभ है-(क) प्राकृतिक वनस्पति की प्राप्ति(ख) प्राकृतिक पर्यावरण की प्राप्ति(ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा(घ) (क) एवं (ख) दोनों की प्राप्ति |
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Answer» (ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा। |
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मानव प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त कर चुका है।” आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। |
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Answer» वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान तथा प्रविधियों द्वारा मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया है। उसने ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को पार कर लिया है, नदियों के प्रवाह मार्ग को अपनी इच्छानुसार मोड़ लिया है। वह अन्तरिक्ष में गया है तथा अनेक नवीन नक्षत्रों की खोज की है। जो अभी उससे अछूते हैं, उन्हें खोजने का प्रयास अभी जारी है। भौगोलिक पर्यावरण मानवे पर अपना व्यापक प्रभाव डालता है। उसे जहाँ पर भी परिवर्तन की सम्भावनाएँ दिखलाई पड़ती हैं, वह अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर लेता है, परन्तु पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। अतः मानव सबसे उत्तम भौगोलिक कारक है, वह उसका उपयोग अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर करता है। इस सम्बन्ध में बोमैन ने भी कहा है कि “वातावरण के भौगोलिक तत्त्व मानव का सम्पर्क पाकर परिवर्तनशील हो जाते हैं।’ यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं की है। उस पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए, ध्रुवीय शीत प्रदेशों में चावल का उत्पादन तथा विषुवत्रेखीय प्रदेशों में रेण्डियर का पालना आज भी असम्भव है, परन्तु उन्होंने अनुकूलन द्वारा कुछ प्रायोगिक प्रयास किये हैं। उसे अनुकूलता के लिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है तथा परिस्थितियाँ अनुकूल होते ही वह इन तत्त्वों को अपने पक्ष में कर लेगा। कुमारी सेम्पुल ने कहा है, “मानव प्रकृति पर विजय उसकी आज्ञा मानकर ही प्राप्त कर सकता है। मानव अपनी बुद्धि एवं शक्ति का प्रयोग करता है, क्योंकि पर्यावरण उसे उन्नति का अवसर प्रदान करता है। अत: मानव तथा पर्यावरण का सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ है।” |
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वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय माना जाता है –(क) उस राष्ट्र की सैनिक क्षमता(ख) उस राष्ट्र का कृषि उत्पादन(ग) उस राष्ट्र की जनसंख्या(घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा |
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Answer» (घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा। |
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पर्यावरण से क्या अभिप्राय है? पर्यावरण के तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।याप्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।याभौतिक पर्यावरण के चार क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। पर्यावरण के दो प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए। यापर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए तथा मानव के क्रियाकलापों पर उनके प्रभावों की व्याख्या कीजिए। |
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Answer» पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment पर्यावरण भूगोल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण’ भूतल पर चारों ओर का वह आवरण है जो मानव को प्रत्येक ओर से घेरे हुए है और उसके जीवन तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालता है तथा संचालित करता है। इस दशा में मानव से सम्बन्धित समस्त बाह्य तथ्य, वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशाएँ शामिल होती हैं, जिनकी क्रिया-प्रतिक्रियाएँ मानव के जीवन-विकास को प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा मानव के सभी । क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं। ये प्राकृतिक परिस्थितियाँ–धरातलीय बनावट, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी, खनिज-सम्पदा तथा जैविक तत्त्व-किसी-न-किसी प्रकार मानव को प्रभावित करते हैं; अर्थात् मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण की देन है। पर्यावरण के सम्बन्ध में सभी भूगोलवेत्ता एकमत नहीं हैं। अत: पर्यावरण को समझने के लिए निम्नांकित विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होगा – जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “जीव के परिस्थिति कारकों का योग पर्यावरण है; अर्थात् जीवन की परिस्थिति के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।” एम० जे० हर्सकोविट्ज के अनुसार, “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है। जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं।” पर्यावरण के प्रकार एवं तत्त्व पर्यावरण को निम्नलिखित दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है – 1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physicalor Natural Environment) – इसके अन्तर्गत वे समस्त भौतिक शक्तियाँ, तत्त्व एवं क्रियाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जिनको प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक शक्तियों में पृथ्वी की गतियाँ, सूर्यातप, गुरुत्वाकर्षण बल, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया, भू-पटल की गतियाँ तथा प्राकृतिक तथ्यों से सम्बन्धित सभी दृश्य सम्मिलित किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा भू-तल पर अनेक क्रियाओं का जन्म होता है, जिनसे पर्यावरण के तत्त्वों का जन्म होता है। इन शक्तियों अथवा क्रियाओं और तत्त्वों का सम्मिलित प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक क्रियाओं में भूमि का अपक्षय, अपरदन, निक्षेपण, ताप विकिरण, संचालन, संवाहन, वायु एवं जल की गतियाँ, जीवधारियों की उत्पत्ति तथा उनका विकास एवं विनाश आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इन प्रक्रियाओं से प्राकृतिक वातावरण अपनी अनेक क्रियाओं का क्रियान्वयन करता है, जिनका प्रत्यक्ष । प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक पर्यावरण के तत्त्व – इनकी उत्पत्ति एवं विकास धरातल पर विभिन्न शक्तियों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं – ⦁ भौगोलिक स्थिति उपर्युक्त सभी तत्वों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इन सभी का सम्मिलित एवं व्यापक प्रभाव मानव-जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। ये सभी तत्त्व मानव के लिए महत्त्वपूर्ण नि:शुल्क प्राकृतिक उपहार हैं। प्रो० हरबर्टसन के अनुसार, “भौतिक शक्तियों को मानव पर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि वे मानव-जीवन एवं उसके क्रियाकलापों में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।” 2. सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment) – प्राकृतिक पर्यावरण को मनुष्य ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी विकास द्वारा परिवर्तित कर उन्हें अपने अनुरूप ढालने का प्रयास करता है; क्योकि वह (मानव) एक सजीव तथा क्रियाशील इकाई है। भूमि को जोतकर कृषि करना, उसमें नहरें, रेलपथ एवं सड़कें बनाना, वनों को साफ करना, पर्वतों को काटकर सुरंगें बनाना, नवीन बस्तियाँ बसाना, विभिन्न इमारतों का निर्माण करना, भू-गर्भ से खनिज पदार्थों का शोषण करना, उद्योग-धन्धे स्थापित करना आदि मानवीय क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। इस प्रकार मानव एक केन्द्रीय कारक है। मानव-निर्मित इस प्रकार के पर्यावरण को सांस्कृतिक या प्राविधिक पर्यावरण के नाम से पुकारा जाता है। मानव-निर्मित वातावरण में भी विभिन्न शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ क्रियाशील रहती हैं। सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों में क्षेत्र-विशेष के जनसमूह के विभिन्न पहलुओं; जैसे-जनसंख्या, वितरण, लिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीकी आदि को सम्मिलित किया जाता है। सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पोषण, समूहीकरण, पुन: उत्पादन, प्रभुत्व स्थापन, प्रवास, पृथक्करण, अनुकूलन, समाचौर्जन, विशेषकरण तथा अनुक्रमण आदि सम्मिलित किये जाते हैं। साँस्कृतिक वातावरण के तत्त्व – सांस्कृतिक वातावरण के तत्त्व मानव एवं उसके समूह दोनों की प्रभावित करते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं – ⦁ प्राथमिक या अनिवार्य आवश्यकताएँ – भोजन, वस्त्र एवं आवास। प्राकृतिक पर्यावरण का मानव के क्रियाकलापों से सम्बन्ध प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही वातावरणों का सामूहिक प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत समय तत्त्व भी महत्त्वपूर्ण है। मानव भूगोल में दोनों ही प्रकार के वातावरण का विशेष महत्त्व है। वातावरण के सभी प्राकृतिक तत्त्व, सांस्कृतिक तत्त्वों से जुड़े हुए हैं। कुमारी सेम्पुल के शब्दों में, “मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है। सभी जड़ एवं चेतन पदार्थों में भौगोलिक वातावरण का प्रभाव अन्तिम है।” प्रो० वायने सांस्कृतिक पर्यावरण को मानव-क्रियाओं और भौतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार, “मानवीय क्रियाएँ जो विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्पन्न की जाती हैं, भौतिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित करती हैं। इनके फलस्वरूप भौतिक पर्यावरण परिवर्तित होता है और सांस्कृतिक पर्यावरण का विकास होता है। मनुष्य स्वयं भी इस पर्यावरण का अभिन्न अंग बन जाता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल के अध्ययन के लिए पर्यावरण के दोनों अंगों अर्थात् प्राकृतिक व सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रारम्भिक ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। |
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द्वीपीय स्थिलि मानव-विकास के लिए कैसी मानी गयी है? |
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Answer» द्वीपीय स्थिति मानव-विकास के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों पर व्यापार की व्यापक सुविधाएँ रहती हैं। उदाहरणार्थ- जापान एवं ब्रिटेन। |
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उदाहरण देकर मानव की आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।याउदाहरण देते हुए मानवीय क्रियाकलापों पर भौतिक वातावरण के प्रभाव को समझाइए।यामैदानों को सभ्यता का पालना” क्यों कहा जाता है ? |
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Answer» मानव भूगोल में उन प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध मानव और उसके जीवन के क्रियाकलापों से होता है। ये तथ्य पर्यावरण से सम्बन्धित होते हैं। पर्यावरण के दो भेद हैं- ⦁ प्राकृतिक पर्यावरण एवं प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा उनका सम्मिलित प्रभाव मानवीय जीवन एवं उसके कार्यों पर पड़ता है। यह भौगोलिक पर्यावरण ही होता है जो मानव के क्रियाकलापों एवं उसकी आदतों को निर्धारित करता है। इस सम्बन्ध में रैटजेल ने कहा है कि पर्यावरण एवं मानव के पारस्परिक सम्बन्धों में पर्यावरण अधिक शक्तिशाली है, यहाँ तक कि संसार के विभिन्न प्रदेशों में मनुष्यों के रहन-सहन, आर्थिक, औद्योगिक, सामाजिक एवं संस्कृति को वातावरण की ही देन माना गया है। कुमारी सेम्पुल ने इनके साथ-साथ मानने के विचारों, भावनाओं एवं धार्मिक विश्वासों पर भी प्राकृतिक़ पर्यावरण का प्रभाव बताया है। कार्ल रिट्र का मत था कि पृथ्वी और उसके निवासियों में परस्पर गहनतम सम्बन्ध होता है तथा एक के बिना दूसरे का वर्णन नहीं हो सकता। इस प्रकार-इस विचारधारा के समर्थकों को वातावरण निश्चयवाद‘ के प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है। इस आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण का प्रभाव मानव पर अनेक रूपों में पड़ता है, जिसे निम्नलिखित रूपों में समझा जा सकता है – 1. भौगोलिक स्थिति एवं मानव – पृथ्वीतल पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और स्थानों की स्थिति की विभिन्नता देखी जाती है तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के पर्यावरण का प्रभाव मानव-जीवन पर भी भिन्न-भिन्न होता है। भौगोलिक स्थिति का प्रभाव उस प्रदेश के निवासियों के रूप, रंग, आकृति, भोजन, वस्त्र, आवास, रहन-सहन और रीति-रिवाजों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। यही कारण है कि द्वीपीय स्थिति मानव-निवास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों द्वारा व्यापार की सुविधाएँ रहती हैं। इन्हीं कारणों से जापान एवं ब्रिटेन ने अपनी द्वीपीय स्थिति का लाभ उठाया है तथा उनके निवासी प्रगति के चरम बिन्दु पर पहुँचे हैं। महाद्वीपीय स्थिति किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में बाधक होती है। यही कारण है कि मंगोलिया एवं अफगानिस्तान सदृश देश आर्थिक प्रगति में अभी भी बहुत पीछे हैं। व्यापारिक मार्गों एवं उन्नत संसाधन-प्रदेशों के निकट स्थित देश भी विकास की गति में आगे रहते हैं। सिंगापुर एवं कोरिया इसके महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भौगोलिक स्थिति का मानव पर्यावरण पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है। तथा यह उसके आर्थिक विकास में सहायक होती है। 2. जलवायु एवं मानव – प्राकृतिक पर्यावरण का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व जलवायु है। मानवीय जीवन को प्रभावित करने और दिशा निर्धारित करने में जलवायु सबसे शक्तिशाली कारक है। मानव के लिए भोजन, वस्त्र, मकानों की आकृति तथा कृषि-फसलों को जलवायु ही निर्धारित करती है। पृथ्वीतल पर मानव का निवास जलवायु द्वारा निश्चित होता है। मानसूनी, उपोष्ण कटिबन्धीय तथा सम-शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में विश्व की 98% जनसंख्या निवास करती है। इसके विपरीत शीत-प्रधान टुण्ड्रा, उष्ण मरुस्थलों तथा आर्कटिक एवं हिमाच्छादित प्रदेशों के अस्थायी निवासों में विरल जनसंख्या निवास करती है। जलवायु द्वारा मानव-जीवन के निम्नलिखित पक्ष प्रभावित होते हैं – ⦁ मानव का स्वास्थ्य एवं किसी प्रदेश में रह सकने की क्षमता तथा मानवीय भौतिक शक्ति जलवायु द्वारा ही मानव के व्यवसाय एवं कृषि-फसलें निर्धारित होती हैं। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले भागों में चावल एवं गन्ने का उत्पादन किया जाता है, जब कि 50 से 100 सेमी वर्षा वाले भागों में मिश्रित खाद्यान्न फसलें निर्धारित हुई हैं। अनुकूल जलवायु के कारण ही भूमध्यसागरीय प्रदेशों में गेहूं व फलों आदि की कृषि की जाती है। कठोर एवं विषम जलवायु के कारण विषुवतेरेखीय प्रदेशों में प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य है, परन्तु औद्योगिक पिछड़ापन पाया जाता है। 3. स्थलाकृतियाँ एवं मानव – धरातल पर स्थलाकृतियाँ, पहाड़ी, पठारी, मरुस्थलीय तथा मैदानी प्रतिरूपों में मिलती हैं। मानव-आवास के लिए सर्वोत्तम क्षेत्र मैदान हैं। यहाँ पर जीविका चलाने के लिए कृषि, सिंचाई, पशुपालन, निर्माण उद्योग, परिवहन, संचार आदि सभी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। अतः जनसंख्या तथा मानव-आवासों के लिए मैदान सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं। ⦁ कृषि के लिए समतल एवं उपजाऊ भूमि उपर्युक्त कारणों से ही विश्व की 97 प्रतिशत जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। चीन, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पश्चिमी यूरोपीय देश, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों में अधिकांश जनसंख्या मैदानों में निवास करती है तथा ये मैदान’जनसंख्या का पालना’ (Cradle of Mankind) कहे जाते हैं। विश्व की प्राचीन सभ्यताओं का विकास भी इन्हीं मैदानों में हुआ है। 4. मिट्टियाँ और मानव – विश्व के सभी प्राणियों का भोजन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी पर निर्भर करता है। शाकाहारी मानव को भोजन कृषि उत्पादन से प्राप्त होता है, जबकि मांसाहारी लोगों को भोजन पशुओं से प्राप्त होता है। इस प्रकार मानव के साथ-साथ पशुओं के भोज्य पदार्थों में भी मिट्टी को होथ रहता है। कांप एवं लावा मिट्टियों की उत्पादकता के कारण इनमें अधिक मानव आवास मिलते हैं; जैसे-सतलुज-गंगा का मैदान, यांगटिसीक्यांग का मैदान, डेन्यूब, राइन, डॉन, वोल्गा नदियों की घाटियों तथा मिसीसिपी के बेसिन में। 5. प्राकृतिक वनस्पति एवं मानव – प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन होती है। प्रत्येक प्रकार की वनस्पति का मानव-जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। वनों में निवास करने वाले लोगों को लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है; अत: उनके मकानों में लकड़ी का प्रयोग अधिक होता है। पेड़-पौधों द्वारा वायु-प्रदूषण कम होता है तथा मानव को पर्याप्त प्राणदायिनी ऑक्सीजन प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त इनसे बाढ़, जलवृष्टि, अपरदन तथा मरुस्थलों के प्रसार जैसी समस्याओं पर नियन्त्रण पाया जा सकता है एवं वे आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। वन नमीयुक्त पवनों के मार्ग में बाधा उपस्थित कर वर्षा कराने में सहायक होते हैं। ये कृषि-कार्यों में भी सहायक हैं एवं पशुओं को चार उपलब्ध कराते हैं। इनसे उद्योग-धन्धों को कच्चा माल प्राप्त होता है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में वन ही आजीविका के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। घास के मैदानों में पशुपालन का कार्य अधिक किया जाता है। इसीलिए प्रेयरी, स्टेप्स, पम्पाज आदि घास के मैदानों में कृषि के बड़े-बड़े फार्म हैं। इस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति किसी-न-किसी रूप में मानव को प्रभावित करती है। 6. जन्तु-जगत् एवं मानव-मानव पशु – जगत् की सहायता से अपने पर्यावरण के साथ समायोजन में लगा रहता है। वास्तव में मानव और जन्तु एक-दूसरे को सहायता एवं सहयोग देकर, दूसरे का सहयोग प्राप्त कर सह-जीवन द्वारा अपने सहअस्तित्व की स्थापना करते हैं। पशुओं से मानव को दूध, मांस, खाल, ऊन, समूर, सवारी तथा सुरक्षा प्राप्त होती है। खिरगीज लोगों की अर्थव्यवस्था का आधार पशु ही हैं। डेनमार्क में दुधारू पशु पाले जाने के कारण यह विश्व का महत्त्वपूर्ण दुग्ध उत्पादक, देश बन गया है। ऑस्ट्रेलिया में उत्तम नस्ल की भेड़े पाले जाने के कारण वह विश्व का मुख्य ऊन उत्पादक देश बन गया है। पश्चिमी यूरोपीय तट व मध्य-पूर्वी प्रशान्त सागरीय तटे मछली के अक्षय भण्डार होने के कारण जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मरुस्थलों में ऊँट परिवहन का एकमात्र साधन है तथा ‘रेगिस्तान का जहाज‘ कहलाता है, परन्तु यहाँ पर कम जनसंख्या निवास करती : है। पर्वतीय एवं उच्च पठारी क्षेत्रों में याक नामक पशु बोझा एवं सवारी ढोने के काम आता है। एस्किमो प्रजाति अपने आर्थिक विकास के लिए पूर्णत: पशुओं पर आधारित है। 7. शैल एवं खनिज पदार्थ तथा मानव – मानव सभ्यता का विकास खनिजों द्वारा हुआ है। पाषाण युग से लेकर अणु युग तक मानव ने विकास की अनेक सीढ़ियाँ पार की हैं। कुछ खनिज पदार्थ शक्ति के स्रोत होते हैं; जैसे- कोयला एवं पेट्रोलियम। इनसे कारखाने चलाये जाते हैं। यूरेनियम, थोरियम आदि खनिज़ों से परमाणु शक्ति गृहों का संचालन किया जाता है। 8. महासागर एवं मानव – पृथ्वीतल के भाग पर जलमण्डल (सागर एवं महासागर) का विस्तार है। महासागर और उसका तट मानव-जीवन के लिए बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इनके प्रभाव निम्नलिखित हैं- ⦁ जलवायु में परिवर्तन एवं उसका समकारी प्रभाव सागरों एवं महासागरों में प्रवाहित गर्म एवं ठण्डे जल की धाराएँ किसी स्थान अथवा प्रदेश की जलवायु में परिवर्तन ला देती हैं। महासागरे मत्स्य उत्पादन के अक्षय भण्डार हैं; जैसे- ग्रान्ड बैंक्स (Grand Banks) एवं डॉगर बैंक्स। इनमें नमक, पोटाश, मैग्नीशियम, मोती, मूंगा, सीप आदि बहुमूल्य खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। स्वेज एवं पनामा नहर मार्गों ने विश्व को एक-दूसरे के समीप ला दिया है। महासागरीय ज्वार-भाटे से जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन भी किया जाता है। बहुत-से समुद्र तटवर्ती नगर एवं पत्तन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हुए हैं। इस प्रकार महासागर मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं एवं उनकी भावी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकने की सामर्थ्य रखते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राकृतिक पर्यावरण मानवीय क्रियाकलापों को बहुत अधिक प्रभावित करता है तथा पर्यावरण में उसकी केन्द्रीय भूमिका है, क्योंकि प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का मानव वर्ग द्वारा ही उपभोग किया जाता है अथवा उपयोगिता प्राप्त की जाती है। |
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पर्यावरण के दो प्रकार बताइए। |
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Answer» पर्यावरण के दो प्रकार निम्नवत् हैं – ⦁ भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण तथा |
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वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय किसे माना जाता है? |
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Answer» वर्तमान काल में जो देश अपनी खनिज सम्पदा का जितना अधिक दोहन कर रहा है वह शक्तिशाली होता जा रहा है। अत: किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा है। |
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प्राकृतिक वनस्पति किसकी देन है? |
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Answer» प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन है। |
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कौन-सी सिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं-पर्वतीय मिट्टियाँ या मैदानी मिट्टियाँ? |
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Answer» मैदानी मिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं, क्योंकि ये अधिक बारीक होती हैं तथा इनकी परतें भी अधिक गहरी होती हैं। इनमें पोषक तत्त्व भी अधिक पाये जाते हैं। |
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“पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं। पर्यावरण की यह परिभाषा दी है –(क) प्रो० डेविस ने(ख) जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने(ग) ए०जी० तांसले ने(घ) एमजे० हर्सकोविट्ज ने |
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Answer» (घ) एम०जे० हर्सकोविट्ज ने। |
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निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन असत्य है। (क) पर्यावरण की कार्यप्रणाली प्राकृतिक नियमों से संचालित होती है।(ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है।(ग) पर्यावरणीय व्यवस्था में स्वयं संवर्द्धन की क्षमता है।(घ) पर्यावरणीय तत्त्वों में पार्थिव एकता विद्यमान है। |
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Answer» (ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है। |
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“मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है। (क) डिमाजियाँ(ख) रेटजैल(ग) हेटनर(घ) कुमारी सेम्पुल |
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Answer» (घ) कुमारी सेम्पुल। |
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निम्नांकित में कौन भौतिक पर्यावरण का तत्त्व नहीं है ?(क) भूमि के रूप(ख) मिट्टियाँ(ग) खनिज पदार्थ(घ) अधिवास |
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Answer» सही विकल्प है (घ) अधिवास। |
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पर्यावरण ज्ञान के लिए प्रयुक्त होने वाले पारिस्थितिकी शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘इकोलॉजी सर्वप्रथम किस जर्मन जैव वैज्ञानिक ने प्रस्तावित किया था? (क) ओडम(ख) अर्नस्ट हैकल(ग) डेविस(घ) हरबर्टसन |
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Answer» (ख) अर्नस्ट हैकल |
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प्राथमिक सूचना के लिए निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?(A) प्राथमिक सूचना गौण सूचना की तुलना में अधिक विश्वसनीय है ।(B) प्राथमिक सूचना गौण सूचना की तुलना में कम विश्वसनीय है।(C) प्राथमिक सूचना सावधानीपूर्वक एकत्रित की गई है या नहीं उस पर आधारित है ।(D) प्राथमिक सूचना प्रकाशित हुए सरकारी प्रकाशनों में से प्राप्त की जाती है । |
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Answer» सही विकल्प है (C) प्राथमिक सूचना सावधानीपूर्वक एकत्रित की गई है या नहीं उस पर आधारित है । |
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समावेशी श्रृंखला (Inclusive Series) से क्या आशय है? |
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Answer» समावेशी श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें एक वर्ग की ऊपरी सीमा दूसरे वर्ग की निचली सीमा के बराबर नहीं होती। अत: इसमें एक वर्ग की ऊपरी सीमा का मूल्य भी उसी वर्ग में शामिल होता है। |
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सूचना देनेवाले के निजी लक्षणों संबंधित सूचना प्राप्त करने की योग्य पद्धति निम्न में से कौन-सी है ?(A) डाक द्वारा प्रश्नावली(B) प्रत्यक्ष जाच(C) अप्रत्यक्ष जाँच(D) समाचार पत्रों में से |
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Answer» सही विकल्प है (B) प्रत्यक्ष जाच |
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निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?(A) प्रत्यक्ष जांच द्वारा प्राप्त सूचना अधिक विश्वसनीय हो सकती है ।(B) प्रत्यक्ष जाँच द्वारा प्राप्त सूचना कम विश्वसनीय हो सकती है ।(C) प्रत्यक्ष जाँच द्वारा सूचना विश्वसनीय नहीं हो सकती ।(D) ई-मेल द्वारा प्राप्त सूचना प्रत्यक्ष जाच कहलाती है। |
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Answer» सही विकल्प है (A) प्रत्यक्ष जांच द्वारा प्राप्त सूचना अधिक विश्वसनीय हो सकती है । |
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प्रश्नावली की विधि की चर्चा करो। |
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Answer» विशाल क्षेत्र में से कम खर्च से सूचना एकत्रित करने की यह एक प्रचलित पद्धति है । इस पद्धति में उद्देश्य के अनुरूप प्रश्नों को तैयार करके उनको तर्कबद्ध रीति से क्रम में रखकर संबंधित प्रश्नों के सामने ही उत्तर लिखने की जगह का आयोजन करके एक पत्रिका तैयार की जाती है जिसे प्रश्नावली कहते है । जिस प्रणाली से प्रश्नावली द्वारा सूचना प्राप्त की जाती है उसे प्रश्नावली की विधि कहते हैं । जब विशाल क्षेत्र से सूचना एकत्र करनी हो तब यह विधि अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है । इस विधि में खर्च व समय की बचत होती है । इस विधि का उपयोग अधिकांशतः निजी या सार्वजनिक संस्थाओं में संशोधक या औद्योगिक कंपनी करती है । प्रश्नावली की सफलता का आधार प्रश्नावली तैयार करनेवाले की निपुणता और प्रश्नावली को समझकर उसका लिखित उत्तर दे सके ऐसे सूचको या उत्तरदाता के साक्षरता या शैक्षणिक स्तर समझ व सहयोग की भावना पर निरभर है । प्रश्नावली इस प्रकार तैयार करनी चाहिए जो स्पष्ट हो एवं पढ़नेवाले के मन में कोई शंका-कुशंका उत्पन्न न करे । |
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प्राथमिक सूचना के उदाहरण दीजिए । |
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Answer» प्राथमिक सूचना के उदाहरण निम्न है :
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गौण सूचना के लिए निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?(A) कभी उपयोग नहि करना चाहिए ।(B) सावधानीपूर्वक जाँच करने के बाद उपयोग करना चाहिए ।(C) उसके उपयोग के दौरान उसकी जाच आवश्यक नहीं है।(D) गौण सूचना ही प्राथमिक सूचना है । |
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Answer» सही विकल्प है (B) सावधानीपूर्वक जाँच करने के बाद उपयोग करना चाहिए । |
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निम्न में से कौन-सा उदाहरण गुणात्मक सूचना का है ?(A) आय की कम, मध्यम, उच्च ऐसे वर्गों में(B) उत्पादन (टन में)(C) कर्मचारियों की उम्र (वर्ष में)(D) व्यक्तियों की ऊँचाई (मीटर में) |
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Answer» सही विकल्प है (A) आय की कम, मध्यम, उच्च ऐसे वर्गों में |
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गाणितिय अंकशास्त्र के स्थापक कौन थे ?(A) कार्लपियर्सन(B) लाप्लास(C) महालनोबिस(D) गोसेट |
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Answer» सही विकल्प है (A) कार्लपियर्सन |
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