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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

10401.

Which Commission has been set up for protecting the rights, interest, welfare and for progress of minorities?(a) National Rights Commission(b) National Minority Commission(c) National Minority Service Commission(d) National Minority Development Commission

Answer»

(b) National Minority Commission

10402.

Explain the difference between rebellions and terrorism.

Answer»

Difference between rebellions and terrorism:

  • The dividing line between rebellion (insurgency) and terrorism is very thin. The acts of terrorism in Kashmir is a form of insurgency. A section of the terrorists favour ‘Azad Kashmir, whereas Pakistan-sponsored terrorist organizations seek to make Kashmir a part of Pakistan.
  • In a limited sense, insurgency is a domestic national problem; whereas terrorism has become a domestic as well as a global problem.
  • Insurgency is defiance of the sovereign authority of one’s own country and
  • Seeking independence by secession. Terrorism is an instrument used by the insurgent organizations.
  • On the other hand, terrorism, per say, is directed against ‘enemy’ country and to destroy its major installations and international prestige.
  • Insurgency is a local movement and has the support of the local people. The terrorist organizations, operating in a foreign land, may or may not have local support. However, the quantum of local support is insignificant. Only a handful misguided persons are acting against their own country.
  • Both insurgency and terrorism are destructive forces and adversely affect the national economy of the subject country and hinder its economic development.
10403.

On what is India’s social structure based?(a) Communalism(b) Casteism(c) Language(d) Groupism

Answer»

Correct option is (b) Casteism

10404.

State the social effects of terrorism.

Answer»

The social effects of terrorism are as follows:

  1. Terrorism creates feeling of fear and anxiety among the people. They become suspicious of the sections of people that indulge in the anti-social activities like looting and robbery, stabbing and other violent acts.
  2. The effects of terrorism are felt by people of all age groups. Parents are worried about their children, wives are worried about their office-going husbands and children Eire worried about their elderly parents.
  3. It has adverse effect on education in the areas affected by terrorism, like Jammu and Kashmir.
  4. There is atmosphere of destruct, mutual suspicious which destroys social harmony and feeling of brotherhood among the people.
  5. It creates social tension and communal conflicts. That results in chaos and uncertainty which shatters normal day-to-day life of the people cannot celebrate social occasions with festivity.
  6. It results first in social disintegration and later threatens national integration.
10405.

“जो गुरु से मार खाते हैं उनका भविष्य उज्जवल होगा ही।”

Answer»

पढ़ाई के लिए विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में होना जरूरी है। गुरु पढ़ा रहा है और विद्यार्थी का ध्यान कहीं और है तो वह जो पढ़ाया जा रहा है उसे ग्रहण नहीं कर सकता। गुरु के मार से विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में लग जाता है। इस तरह जब वह एकान होकर पढ़ता है तो उसे सचमुच ज्ञानप्राप्ति होती है, उसकी बुद्धि का विकास होता है और उसमें योग्यता आती है। ऐसा होने पर ही उसका भविष्य उज्ज्वल होने में संदेह नहीं रहता।

10406.

सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए :उपनिषदों में आचार्यों ने कहाँ है। (सामान्य भूतकाल)

Answer»

उपनिषदों में आचार्यों ने कहा।

10407.

सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए :इसमें ओर मुजमें फरक ही कुछ नहीं है। (भविष्यकाल)

Answer»

इसमें और मुझमें फरक ही कुछ नहीं होगा।

10408.

मुहावरों का अर्थ देकर वाक्यप्रयोग कीजिए :1. ताकते रहना2. पसीने की कमाई3. रंग जाना

Answer»

1. ताकते रहना – आश्चर्य से देखते रहना
वाक्य : मेरे हाथ में ट्रॉफी देखकर पिताजी मुझे ताकते रह गए।

2. पसीने की कमाई – कठिन परिश्रम का फल
वाक्य : इंजीनियरिंग की यह डिग्री मेरे पसीने की कमाई है।

3. रंग जाना – गहरा प्रभाव पड़ना
वाक्य : विदेश में रहकर वे वहीं के रंग में रंग गए।

10409.

आज हमारे समाज में कैसी संस्कृति का बोलबाला है?

Answer»

आज हमारे समाज में व्यावसायिक संस्कृति का बोलबाला है।

10410.

प्राचीनकाल में गुरु की शिक्षादान-क्रिया क्या थी?

Answer»

प्राचीनकाल में गुरु की शिक्षादान-क्रिया उनका आध्यात्मिक अनुष्ठान और परमेश्वरप्राप्ति का एक माध्यम था।

10411.

गामा पहलवान अपने शिष्य से लड़ने के लिए क्यों तैयार नहीं थे?

Answer»

गामा पहलवान भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा को मानते थे। इसके अनुसार गुरु-शिष्य को अपने से अधिक यशस्वी देखना चाहता है। इसलिए वे अपने नामी शिष्य से लड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

10412.

व्यावसायिक संस्कृति की जड़ कहाँ है?

Answer»

व्यावसायिक संस्कृति की जड़ यूरोप में हैं।

10413.

भगवान ईसा का कौन-सा कथन सदा स्मरणीय है?

Answer»

भगवान ईसा का यह कथन सदा स्मरणीय है- मेरे अनुयायी मुझसे कहीं अधिक महान हैं और उनकी जूतियां धोने लायक योग्यता भी मुझमें नहीं है।

10414.

भगवान रामकृष्ण बरसों तक योग्य शिक्षा पाने के लिए क्या करते थे?

Answer»

भगवान रामकृष्ण परमहंस योग्य शिष्य पाने के लिए बरसों तक रो-रोकर भगवान से प्रार्थना करते थे।

10415.

भारतवासी मालाएँ लेकर किसका स्वागत करने दौडे?

Answer»

भारतवासी मालाएं लेकर स्वामी विवेकानंद का स्वागत : करने दौड़े क्योंकि उन्होंने अमेरिका में अपना नाम कमाया था।

10416.

भारत के लोगों को अपनी मूल्यवान चीजों का मूल्य : कब समझ में आता है?

Answer»

भारत के लोगों को अपनी मूल्यवान चीजों का मूल्य तब – समझ में आता है, जब विदेशों में उनकी कदर की जाती है।

10417.

Give an introduction of constitutional provisions for welfare and development of the Scheduled Caste and Scheduled Tribe.

Answer»

The Constitution-makers were aware of the fact that the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes were the weaker sections of the Indian society. 

The following constitutional steps have been taken for the welfare and development of the Scheduled Castes (SC) and the Scheduled Tribes (ST):

  1. Article 15 has provided access to all public places to the SC and the ST.
  2. Article 16(4) empowers the state to make reservation in the government services for the SC and the ST.
  3. Article 17 has abolished the practice . of untouchability and prohibited its
    practice in any form.
  4. Article 46 directs the state to protect the SC and the ST from exploitation and to look after their educational, social and economic welfare.
  5. Articles 330, 332 and 334 provide reservation of seats for the SC and the ST in proportion to their population in the Lok Sabha and the Vidhan Sabhas of the States.
  6. There is reservation of seats for the SC and the ST in the rural and urban local governments.
  7. Article 19(5) has given power to the state to restrict the movement and right to settle down in the tribal areas to protect the interests of the Scheduled Tribes.
  8. The Constitution has set up the National Scheduled Castes Commission as well as the Scheduled Tribes Commission to protect interests and their rights as well as promote welfare and development of the SC and the ST.
10418.

सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए :हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहें। (पूर्ण भूतकाल)

Answer»

हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहे थे।

10419.

प्रारंभ में किसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था?

Answer»

प्रारंभ में स्वामी विवेकानंद को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था।

10420.

स्वामी विवेकानंद किन्हें अच्छे लगते हैं?

Answer»

स्वामी विवेकानंद उन्हें अच्छे लगते हैं, जिनमें विवेकानंद बनने की अद्भुत शक्ति निहित है।

10421.

गुरु-शिष्य संबंधों में परिवर्तन आ गया है, क्योंकि …(अ) अब पहले की तरह गुरुकुल नहीं रह गए हैं।(ब) वर्तमान शिक्षा में अनुशासन का महत्त्व नहीं रहा है।(क) आज हमारी संस्कृति व्यावसायिक हो गई है।

Answer»

गुरु-शिष्य संबंधों में परिवर्तन आ गया है, क्योंकि आज हमारी संस्कृति व्यावसायिक हो गई है।

10422.

गुरु को संतान न होने पर उतना दु:ख नहीं होता था, जितना …..(अ) सम्मान न पाने पर होता था।(ब) उत्तम शिष्य न पाने पर होता था।(क) अच्छा शिक्षण संस्थान न पाने पर होता था।

Answer»

गुरु को संतान न होने पर उतना दुःख नहीं होता था, जितना उत्तम शिष्य न पाने पर होता था।

10423.

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में लिखिए :प्राचीन समय में भारत में विद्यालय किसके समान थे?शिक्षक आज कैसे बन गए हैं?विदेश जाना भारतीय लोगों को कैसा लगता है?रामकृष्ण परमहंस के बहुत प्रार्थना करने के बाद कौन-सा शिष्य मिला?

Answer»

1. आश्रम अथवा मंदिर के समान

2. वेतनभोगी

3. स्वर्ग जैसा

4. स्वामी विवेकानंद

10424.

उपनिषदों में आचार्यों ने कहा है कि ….(अ) सेवा देने की वस्तु है, लेने की नहीं।(ब) मूर्ति की पूजा ही सच्ची पूजा है।(क) बिना दंड के शिक्षा नहीं दी जा सकती।

Answer»

उपनिषदों में आचार्यों ने कहा है कि सेवा देने की वस्तु है, लेने की नहीं।

10425.

निम्नलिखित विधान ‘सही’ है या ‘गलत’ यह बताइए :आज शिष्यों को शुल्क देकर विद्या प्राप्त करनी पड़ती है।विदेशों में कदर होने के बाद भारत में लोग व्यक्ति को सम्मान देते हैं।संगीतकार की अपेक्षा श्रोता अधिक मूल्यवान है।सेवा लेने और देने की वस्तु है।हमारे देश में ज्ञान पाने के लिए मैक्समूलर ने जीवनभर प्रार्थना की।

Answer»

1. सही

2. सही

3. सही

4. गलत

5. सही

10426.

विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इस देश में अधिक महत्त्व कब मिला?

Answer»

विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। आरंभ में उन्हें भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था। वे जब अमेरिका गए और उन्होंने वहाँ नाम कमाया, तब भारतवासियों ने उन्हें सम्मान देना शुरू किया। इसी प्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर को यहां कोई नहीं जानता था। उन्हें जब नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया तब बंगालवासियों ने उनकी प्रतिभा पहचानी। वे बंगाल के नहीं, सारे देश के लिए गौरव बन गए। इस प्रकार विदेशों में सम्मानित होने पर ही विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इस देश में महत्व मिला।

10427.

गृह-परिचारिका का रोगी के लिए क्या महत्त्व है?

Answer»

रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कराने में परिचारिका का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। वह रोगी एवं चिकित्सक के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो कि

  1. रोगी की देखभाल करती है।
  2. रोगी व उसके आस-पास की सफाई की व्यवस्था करती है।
  3. चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी को औषधि देती है।
  4. घावों की आवश्यक मरहम-पट्टी करती है।
  5. रोगी को स्नान व स्पंज कराती है।
  6. रोगी को मल-मूत्र विसर्जन में सहायता करती है।
  7. रोगी के आहार की व्यवस्था करती है।
  8. रोगी के ताप आदि का चार्ट बनाती है।
  9. रोगी की निराशा दूर कर उसे धैर्य बँधाती है।
  10. रोगी से मित्रतापूर्ण व्यवहार करती है तथा उसकी सभी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखती है।
10428.

परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से क्या कर्तव्य होते हैं?

Answer»

परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं।

  1. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।
  2. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी के शरीर की स्वच्छता एवं अनिवार्य प्रसाधन को ध्यान रखे। रोगी के बालों में कंघा करके उसे साफ-सुथरे वस्त्र पहनाने का कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  3. परिचारिका को रोगी के भोजन की भी व्यवस्था करनी होती है; अतः रोगी के भोजन को पकाना भी उसे आना चाहिए।
  4. रोगी यदि स्वयं मल-मूत्र का त्याग न कर सकता हो, तो बिस्तर पर ही मल-त्याग कराने की सुविधा होनी चाहिए। यह कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  5. रोगी के कमरे एवं आवश्यक सामान को साफ एवं सही ढंग से रखना भी परिचारिका का ही कार्य है।
  6. परिचारिका का कार्य है कि वह अपने व्यवहार से रोगी को मानसिक रूप से प्रसन्न रखे।
  7. परिचारिका को रोगी के प्रति मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।
  8.  यदि रोगी के लिए आराम आवश्यक हो, तो परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी से मिलने वाले व्यक्तियों को रोके तथा रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।
10429.

गृह-परिचारिका का चिकित्सक के प्रति क्या कर्तव्य है?

Answer»

परिचारिका रोगी और चिकित्सक के बीच की कड़ी है, अतः जहाँ उसका रोगी के प्रति देखभाल का कर्तव्य है, वहाँ चिकित्सक को उसके कार्यों में सहायता प्रदान करना भी उसका दायित्व है। ” वह चिकित्सक के निर्देशों के अनुसार रोगी की देख-रेख करते हुए चिकित्सक को निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध कराती है

  1. रोगी के दर्द, बेचैनी, वमन, खाँसी आदि के विषय में जानकारी देना।
  2. रोगी के मल-मूत्र विसर्जन की स्थिति की सूचना देना।
  3. रोगी की भूख-प्यास सम्बन्धी सूचना देना।
  4. रोगी का ताप, नाड़ी श्वास इत्यादि का उपयुक्त चार्ट तैयार कर चिकित्सक को दिखाना।
  5. रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना देना।
  6. रोगी की निद्रा तथा अन्य शारीरिक परिवर्तनों के विषय में चिकित्सक को सूचित करना।
10430.

सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :विदेश जाना भारतीय लोगों को …… जैसा लगता है। (स्वर्ग, नर्क)रवीन्द्रनाथ ठाकुर को ……….. पुरस्कार मिला था। (ज्ञानपीठ, नोबल)एक बार सुप्रसिद्ध भारतीय ………. गामा मुंबई गए। (संगीतकार, पहलवान)रामकृष्ण परमहंस वर्षों तक योग्य ………. खोजते रहे। (गुरु, शिष्य)अब शिक्षण-कार्य …….. पालने का साधन बन गया है। (पेट, परिवार)

Answer»

1. स्वर्ग

2. नोबल

3. पहलवान

4. शिष्य

5. पेट

10431.

रोगी को औषधि देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

Answer»

रोगी को औषधि देते समय एक अच्छी परिचारिका निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखती है

  1. चिकित्सक के निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करना।
  2. निश्चित समय पर ही औषधि देना।
  3. औषधि देते समय रोगी से मधुर व्यवहार करना तथा उसे धैर्य बँधाना।
  4. रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना चिकित्सक को उपलब्ध कराना।
  5. रोगी पर औषधि का विपरीत प्रभाव होने पर उसकी सूचना अविलम्ब चिकित्सक तक पहुँचाना तथा आवश्यकता पड़ने पर रोगी को आपातकाल सहायता देना।
10432.

परिचारिका का दूरदर्शी होना क्यों आवश्यक है?

Answer»

परिचारिका को अपने कार्यों में चतुर एवं विवेकशील होना आवश्यक है। उसका दूरदर्शी होना अति अनिवार्य है, क्योंकि

  1. रोगी की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कर एक दूरदर्शी परिचारिका समय पर ही उनकी पूर्ति कर देती है।
  2. रोगी पर औषधियों का विपरीत प्रभाव पड़ने पर वह उन्हें तत्काल देना बन्द कर चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करती है।
  3. रोगी की हालत बिगड़ने पर उसे परिस्थिति के अनसार कृत्रिम श्वसन, हृदय स्पन्दन अथवा ऑक्सीजन देने जैसी आपातकाल सहायता के विषय में तत्काल निर्णय लेकर उनके क्रियान्वयन की अविलम्ब व्यवस्था एक दूरदर्शी परिचारिका ही कर सकती है।
10433.

गृह-परिचारिका का प्रमुख कर्त्तव्य क्या है?

Answer»

रोगी को उचित समय पर उचित वस्तु उपलब्ध कराना तथा चिकित्सक के परामर्श के अनुसार कार्य करना गृह-परिचारिका के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य हैं।

10434.

परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना क्यों आवश्यक है?

Answer»

रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को, चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर, तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।

10435.

महिलाओं के उन्नयन (उत्थान) के लिए किये जाने वाले विभिन्न उपाय बताइए। याभारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के उपाय बताइए। 

Answer»

नारी-मुक्ति को स्वर सदैव प्रतिध्वनित होता रहा है। भारत के अनेक मनीषियों और समाज-सुधारकों ने नारी को समाज में सम्मानजनक पद दिलाने का भरसक प्रयास किया। राष्ट्र की आधारशिला और पुरुष प्रेरणा-स्रोत नारी को सबल बनाने के लिए अनेक सामाजिक आन्दोलन किये गये। ब्रह्म समाज, आर्य समाज तथा अन्य सुधारवादी सामाजिक आन्दोलनों ने नारी-मुक्ति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये।
बीसवीं शताब्दी में नारी को शोषण और अन्याय से बचाने के लिए अनेक सामाजिक विधान पारित किये गये। आज के दौर में, अनेक महिला संगठनों ने नारी को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान कराने के कई आन्दोलन चला रखे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने नारी-सुधार के क्षेत्र में श्लाघनीय प्रयास किये। स्वतन्त्रता के पश्चात् नारी की दशा में गुणात्मक सुधार आया और, युगों-युगों से पुरुष के अन्याय की कारा में पिसती नारी को उन्मुक्त वातावरण में साँस लेने का अवसर मिला। भारत में स्त्रियों की सामाजिक परिस्थिति सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

1. पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव – पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय विद्वानों का ध्यान नारी-शोषण और उनकी दयनीय दशा की ओर आकृष्ट किया। भारतीय समाज एकजुट होकर इस अभिशाप को मिटाने में लग गया। अतः समाज में नारी को सम्मानजनक स्थान मिल गया।

2. स्त्री-शिक्षा-स्त्री – शिक्षा का प्रचलन होने से शिक्षित नारी में अपने अधिकारों के प्रति जागृति उत्पन्न हुई। उसने शोषण, अन्याय और कुरीतियों के पुराने लबादे को उतारकर प्रगतिशीलता का नया कलेवर धारण किया। महिला-जागृति ने नारी को समाज में ऊँची परिस्थिति प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।

3. महिला संगठन – भारत में नारी की दशा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए वुमेन्स इण्डियन एसोसिएशन, कौंसिल ऑफ वुमेन्स, आल इण्डिया वुमेन्स कॉन्फ्रेन्स, विश्वविद्यालय महिला संघ, कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक निधि आदि महिला संगठनों की स्थापना की गयी। इन महिला संगठनों ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठायी और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिलवाकर उनका उत्थान किया।

4. आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता – शिक्षित नारी ने धीरे-धीरे व्यवसाय, नौकरी, प्रशासन था उद्योगों में भागीदारी प्रारम्भ कर दी। आर्थिक क्षेत्र में निर्भरता ने उन्हें स्वयं वित्तपोषी बना दिया। आजीविका के साधन कमाने पर उनकी पुरुषों पर निर्भरता घट गयी है और समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता गया।

5. औद्योगीकरण तथा नगरीकरण – विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने औद्योगीकरण और नगरीकरण को बढ़ावा दिया। इन दोनों के कारण समाज में प्रगतिशील विचारों का जन्म हुआ। प्राचीन रूढ़ियाँ समाप्त हो गयीं। स्त्री-शिक्षा, व्यवसाय, प्रेम-विवाह, अन्तर्जातीय विवाह तथा नारी संगठनों ने नारी को पुरुष के समकक्ष ला दिया।

6. यातायात एवं संचार-व्यवस्था – भारत में यातायात और संचार के साधनों का विकास होने पर भारतीय नारी देश तथा विदेश की नारियों के सम्पर्क में आयी। इन साधनों ने उसे महिला आन्दोलनों और उनकी सफलताओं से परिचित कराया। अतः भारतीय नारी भी अपनी मुक्ति तथा अधिकारों की प्राप्ति के लिए जुझारू हो उठी।।

7. अन्तर्जातीय विवाहों का प्रचलन – स्व-जाति में विवाह की अनिवार्यता समाप्त करके अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सहशिक्षा, साथ-साथ नौकरी करना तथा पाश्चात्य शिक्षा के उन्मुक्त विचारों ने नारी में अन्तर्जातीय विवाहों का बीज रोप दिया है। अन्तर्जातीय विवाहों के कारण वर-मूल्य में कमी आ गयी है और नारी की समाज में परिस्थिति ऊँची उठ गयी है।

8. संयुक्त परिवारों का विघटन – संयुक्त परिवार में पुरुषों का स्थान स्त्रियों की अपेक्षा ऊँचा था। संयुक्त परिवारों में विघटन पैदा होने से एकाकी परिवारों का जन्म हो रहा है। एकाकी परिवारों में स्त्री और पुरुष का स्तर एक समान होता है।

9. दहेज-प्रथा का उन्मूलन – दहेज-प्रथा के कारण समाज में नारी का स्थान बहुत नीचा बना हुआ था। सरकार ने 1961 ई० में दहेज निरोधक अधिनियम पारित करके दहेज-प्रथा को उन्मूलन कर दिया। दहेज-प्रथा समाप्त हो जाने से समाज में नारी की परिस्थिति स्वतः ऊँची हो गयी।

10. सुधार आन्दोलन – भारतीय स्त्रियों की दयनीय दशा सुधारने के लिए ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज तथा रामकृष्ण मिशन ने अनेक समाज-सुधार के आन्दोलन चलाये। गाँधी जी ने महिला सुधार के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन चलाया। सुधार आन्दोलनों ने सोयी हुई स्त्री जाति को जगा दिया। उनमें नयी चेतना, जागृति और आत्मविश्वास का सृजन हुआ। समाजने उनके महत्त्व को समझकर उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान प्रदान किया।

11. सामाजिक विधान – भारतीय समाज में नारी को सम्मानजनक स्थान दिलवाने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका सामाजिक विधानों ने निभायी है। हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1956; बाल-विवाह निरोधक अधिनियम, 1929; हिन्दू स्त्रियों को सम्पत्ति पर अधिकार अधिनियम, 1937; विशेष विवाह अधिनियम, 1954; हिन्दू विवाह तथा विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1955; हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956; हिन्दू नाबालिग और संरक्षकता का अधिनियम, 1956; हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956; स्त्रियों का अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम, 1956 तथा दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 ने स्त्रियों की दशा में गुणात्मक सुधार किये। स्त्री का शोषण दण्डनीय अपराध बन गया। अतः नारी की समाज में परिस्थिति ऊँची होती चली गयी।

12. विधायी संस्थाओं में महिला आरक्षण – 1990 ई० से भारतीय राजनीति में यह चर्चा है। कि विधायी संस्थाओं (विधानसभाओं और लोकसभा) में एक-तिहाई (33%) स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किये जाने चाहिए। इस सम्बन्ध में महिला आरक्षण का विधेयक प्रस्ताव 1996, 1997 तथा 1998 ई० में लोकसभा में पेश किया जा चुका है, किन्तु वह राजनीतिक दलों के विरोध के कारण अभी पारित नहीं किया जा सका। लेकिन संविधान के 73वें संशोधन (1993 ई०) के द्वारा पंचायती राज में 1/3 सीटों पर महिलाओं के लिए आरक्षण कर दिया गया है। तदानुसार अब वे ग्राम-पंचायत, क्षेत्र-समितियों और जिला पंचायतों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनके इस सशक्तिकरण के परिणामस्वरूप उनकी स्थिति में उन्नयन होने की पूरी आशा है।

13. महिला-कल्याण की विभिन्न केन्द्रीय योजनाएँ – 31 जनवरी, 1992 को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना कर दी गयी है, जो उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी उन्नति के लिए प्रयासरत है। इसी प्रकार, उनके रोजगार, स्वरोजगार आदि के प्रोग्राम चल रहे हैं। अन्य योजनाएँ इन्दिरा महिला योजना, बालिका समृद्धि योजना, राष्ट्रीय महिला कोष आदि उनके विकास का प्रयास कर रही हैं।

14. परिवार-कल्याण कार्यक्रम – स्त्रियों की हीन दशा का एक कारण अधिक बच्चे भी थे। परिवार-कल्याण कार्यक्रमों ने परिवार में बच्चों की संख्या सीमित करके स्त्रियों की दशा में गुणात्मक सुधार किया है। परिवार में बच्चों की संख्या कम होने से स्त्री का स्वास्थ्य ठीक हुआ है, घर का स्तर ऊँचा उठा है तथा स्त्री को अन्य स्थानों पर काम करने, आने-जाने तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर मिलने लगा है। इस प्रकार परिवार कल्याण कार्यक्रमों ने भी नारी को समाज में ऊँचा स्थान दिलवाने में भरपूर सहयोग दिया है। नारी उत्थान एवं नारी जागृति में शिक्षा और विज्ञान का सहयोग सराहनीय रहा है। समाज में नारी को सम्मानजनक स्थान प्रदान कराने के लिए आवश्यक है-‘नारी स्वयं को सँभाले और अपना महत्त्व समझे।’ मानव के मानस को सरस तथा स्वच्छ बनाने में नारी को जितना योगदान है वह शब्दों से परे है। नारी को समाज में सम्मानजनक स्थान मिले बिना हमारी संस्कृति अधूरी है। नारी, जो समाज के निर्माण में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है, समाज से आस्था और सम्मान की पात्रा है। नारी को सम्मान देकर, आओ! हम सब एक नये और प्रगतिशील समाज का निर्माण करें।

10436.

परिचारिका को रोगी व चिकित्सक के मध्य की कड़ी क्यों कहा जाता है?

Answer»

परिचारिका रोगी की देख-रेख करती है। वह रोगी के उपचार में चिकित्सक की सहायता करती है। चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी की देख-रेख करती है तथा रोगी की रोग सम्बन्धी स्थिति की जानकारी चिकित्सक को देती है। इस भूमिका के कारण ही परिचारिका को रोगी एवं चिकित्सक के मध्य की कड़ी कहा जाता है।

10437.

हिन्दू एवं मुस्लिम समाज में स्त्रियों की स्थिति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।याहिन्दू एवं मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति की तुलना कीजिए।

Answer»

मुस्लिम स्त्रियों में बहुपत्नीत्व, पर्दा-प्रथा, धार्मिक कट्टरता, अशिक्षा एवं स्त्रियों द्वारा वास्तव में तलाक देने सम्बन्धी कई समस्याएँ पायी जाती हैं। हिन्दू और मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति में कुछ समानताएँ पायी जाती हैं; जैसे – पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह एवं बहुपत्नी–प्रथा का प्रचलन दोनों में ही है। किसी क्षेत्र में हिन्दू स्त्री की स्थिति अच्छी है, तो किसी में मुस्लिम स्त्री की। हम यहाँ विभिन्न आधारों पर दोनों की ही स्थिति की तुलना करेंगे

1. पर्दा-प्रथा – दोनों में ही पर्दा-प्रथा पायी जाती है, किन्तु हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों में इसका कठोर रूप पाया जाता है।

2. शिक्षा – मुस्लिम स्त्रियों की तुलना में हिन्दू स्त्रियों में शिक्षा का प्रचलन अधिक है।

3. आर्थिक – राजनीतिक स्थिति – आर्थिक, राजनीतिक एवं सार्वजनिक क्षेत्र में मुस्लिम स्त्रियों की अपेक्षा हिन्दू स्त्रियाँ अधिक कार्यरत हैं और उनकी स्थिति भी ऊँची है। हिन्दू स्त्रियाँ सामाजिक कल्याण, सार्वजनिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में अधिक भाग लेती हैं।

4. तलाक – हिन्दू स्त्री को तलाक देने का अधिकार प्राप्त नहीं है, जब कि मुस्लिम स्त्री को है। 1955 ई० के हिन्दू विवाह अधिनियम ने हिन्दू स्त्रियों को भी तलाक का अधिकार दिया है, किन्तु व्यवहार में इसका प्रयोग कम ही होता है।

5. विधवा पुनर्विवाह – हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था, जब कि मुस्लिम विधवाओं को है। 1856 ई० के हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम ने हिन्दू स्त्रियों को भी यह अधिकार दिया है, किन्तु व्यवहार में इसका प्रयोग कम ही होता है।

6. बाल-विवाह – हिन्दुओं में बाल-विवाह का प्रचलन है, मुसलमानों में बाल-विवाह संरक्षकों व माता-पिता की स्वीकृति से ही होते हैं। ऐसे विवाह को लड़की बालिग होने पर चाहे तो मना भी कर सकती है।

7. दहेज – हिन्दुओं में दहेज-प्रथा पायी जाती है, जिसके कारण स्त्रियों की स्थिति निम्न हो जाती है, उन्हें परिवार पर भार और उनका जन्म अपशकुन माना जाता है, जब कि मुसलमानों में ‘मेहर’ की प्रथा है जिसमें वर विवाह के समय वधू को कुछ धन देता है। या देने का वादा करता है। इससे स्त्री की सामाजिक, पारिवारिक व आर्थिक स्थिति ऊँची होती है।

8. सम्पत्ति – सम्पत्ति की दृष्टि से मुस्लिम स्त्रियों को माँ, पुत्री एवं पत्नी के रूप में हिस्सेदार व उत्तराधिकारी बनाया गया है और वह अपनी सम्पत्ति का मनमाना उपयोग कर सकती है, किन्तु सन् 1937 तथा 1956 ई० के सम्पत्ति सम्बन्धी अधिनियमों से पूर्व हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं था। व्यवहार में आज भी उनकी स्थिति पूर्ववत् ही है।

9. बहुपत्नीत्व – मुसलमानों में बहुपत्नीत्व के कारण हिन्दू स्त्री की तुलना में मुस्लिम स्त्री की स्थिति निम्न है। हिन्दुओं में भी बहुपत्नीत्व पाया जाता है, किन्तु यह अधिकांशतः सम्पन्न लोगों तक ही सीमित है।

10. विवाह की स्वीकृति – मुसलमानों में विवाह से पूर्व लड़की से इसकी स्वीकृति ली जाती है, जब कि हिन्दुओं में ऐसा नहीं होता था, यद्यपि अब ऐसा होने लगा है।

11. सार्वजनिक जीवन – हिन्दू स्त्रियों को सार्वजनिक जीवन एवं राजनीति में भाग लेने की स्वीकृति दी गयी है, जब कि मुस्लिम स्त्रियों को इसकी मनाही है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति हिन्दू स्त्रियों से उच्च है, किन्तु व्यवहार में नहीं।

10438.

निम्नलिखित शब्दों का लिंग-परिवर्तन कीजिए :(1) साधु(2) कुतिया(3) युवक(4) पुत्र(5) पड़ोसिन(6) बाघ(7) ठाकुर(8) संन्यासी(9) सम्राट(10) वर

Answer»

(1) साध्वी

(2) कुत्ता

(3) युवती

(4) पुत्री

(5) पड़ोसी

(6) बाघिन

(7) ठकुराइन

(8) संन्यासिनी

(9) सम्राज्ञी

(10) वधू

10439.

चित्र के आधार पर काव्य लिखिए :

Answer»

कितना सुंदर प्यारा फूल,

देखो, रहा हवा में झूल।

मधुर मधुर इसकी मुस्कान,

यह तो है बाग की शान।

10440.

गृह-परिचर्या से क्या आशय है?

Answer»

घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं।

10441.

गृह-परिचारिका किसे कहते हैं?

Answer»

घर पर रहकर रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की परिचर्या करने वाली स्त्री को गृह-परिचारिका कहते हैं।

10442.

अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुण हैं

  1. उत्तम स्वास्थ्य
  2. विनम्र एवं हँसमुख स्वभाव
  3. प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना तथा
  4. हर प्रकार की स्वच्छता का ध्यान रखना।
10443.

गृह-परिचर्या की परिभाषा देते हुए उसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।यागृह-परिचर्या का क्या महत्त्व है?

Answer»

गृह-परिचर्या का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं ही किया करते हैं अर्थात् प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति नहाना-धोना, शौच, कपड़े बदलना तथा भोजन ग्रहण करना आदि कार्य स्वयं ही करता है, परन्तु अस्वस्थ अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अनेक बार अपने इंन व्यक्तिगत कार्यों को स्वयं करने में असमर्थ हो जाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति के ये सभी साधारण कार्य भी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ही किए जाते हैं। रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के इन कार्यों तथा कुछ अन्य सहायक कार्यों को ही सम्मिलित रूप से रोगी की परिचर्या कहते हैं। रोगी की परिचर्या के अन्तर्गत रोगी व्यक्ति को आवश्यक औषधि देना, उसकी मरहम-पट्टी करना, उठने-बैठने आदि में सहायता प्रदान करना आदि सभी कुछ सम्मिलित होता है। रोगी के इन सेवा-सुश्रूषा सम्बन्धी समस्त कार्यों को रोगी की परिचर्या कहते हैं। यदि रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हो, तो उसकी परिचर्या का कार्य वहाँ के कर्मचारी ही करते हैं। सामान्य रूप से यह कार्य नस द्वारा किया जाता है। जब रोगी घर पर होता है, उस समय रोगी की परिचर्या या सेवा-सुश्रूषा का कार्य घर पर ही किया जाता है। इस स्थिति में होने वाली परिचर्या को . ‘गृह-परिचय’ कहते हैं। इस प्रकार गृह-परिचय को इन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है, घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं। रोगी के रोग-काल में गृह-परिचर्या का विशेष महत्व होता है। गृह-परिचर्या के माध्यम से ही रोगी का सफल उपचार सम्भव हो पाता है। उत्तम गृह-परिचर्या के अभाव में चिकित्सक द्वारा रोगी का सफल उपचार कर पाना प्रायः कठिन ही होता है।

गृह-परिचर्या का महत्त्व

रोगी की स्नेहपूर्वक देख-रेख औषधीय चिकित्सा. के समान ही महत्त्वपूर्ण है, बल्कि कई बार (मानसिक रोग आदि में) तो यह औषधियों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। औषधियाँ यदि रोग का निवारण करती हैं, तो रोगी से किया जाने वाला प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी को साहस एवं धैर्य बँधाता है। गृह-परिचर्या एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है जिसका निर्वाह करने के लिए विनम्र, हँसमुख, बुद्धिमान एवं कार्यकुशल परिचारिका की आवश्यकता होती है। परिचारिका को स्वास्थ्य के नियमों एवं उनके पालन के महत्त्व को भली-भाँति समझना चाहिए। उसे चिकित्सक से रोगी के लिए देख-रेख एवं औषधि सम्बन्धी आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लेने चाहिए, क्योंकि तब ही वह रोगी की नियमित परिचर्या कर सकती है। औषधियों का उचित प्रयोग, विनम्र एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी की रोग की अवधि में अत्यधिक सहायता करता है।

रुग्ण होने की दशा में यदि, उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध हो, तो रोगी को सर्वोत्तम परिचर्या घर पर ही मिलती है। घर पर परिवार के सदस्यों को प्रेमपूर्ण व्यवहार, आस-पास का परिचित वातावरण एवं अन्य सुख-सुविधाएँ रोगी में असुरक्षा की भावनाओं को दूर करती हैं तथा उसकी दशा में सुधार शीघ्रतापूर्वक होता है।

रोग की गम्भीर अवस्था में रोगी डर एवं सदमे का शिकार हो सकता है। इस खतरनाक एवं गम्भीर परिस्थिति में अस्पताल अथवा नर्सिंग होम की परिचारिका की अपेक्षा गृहिणी (गृह-परिचारिका) अधिक प्रभावी ढंग से रोगी को धैर्य बँधा सकती है तथा रोगमुक्त होने के लिए आशान्वित कर सकती है। गृह-परिचारिका को चिकित्सक के निर्देशों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए अन्यथा हानि होने की सम्भावना भी हो सकती है। उसमें पर्याप्त आत्मविश्वास होना चाहिए। रोगी की गम्भीर अवस्था में भी उसे उत्तेजित अथवा घबराना नहीं चाहिए। इस प्रकार के गुणों से युक्त गृह-परिचारिका रोगी की अस्पताल से भी अच्छी परिचर्या कर सकती है।

आधुनिक काल में रोग एवं दुर्घटनाएँ प्रत्येक घर एवं परिवार के लिए सामान्य घटनाओं के समान बन चुकी हैं। अत: गृह-परिचर्या के महत्त्व को भली-भाँति समझा जा सकता है। प्रत्येक गृहिणी एवं परिवार के अन्य सदस्यों को परिचर्या के आवश्यक नियमों का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि गृह-परिचर्या में दक्ष गृहिणी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में घर में अस्पताल की सभी सुविधाएँ सुलभ कर परिवार के पीड़ित सदस्य अथवा सदस्यों की उपयुक्त देख-रेख कर सकती है।

10444.

अस्पतालों में परिचर्या का कार्य कौन करता है?

Answer»

अस्पतालों में परिचर्या का कार्य नर्स करती हैं।

10445.

महिला उद्यमिता की परिभाषा देते हुए भारत में इसके वर्तमान स्वरूप का उल्लेख कीजिए।

Answer»

अक्षर महिला उद्यमी वह स्त्री है जो एक व्यावसायिक या औद्योगिक इकाई का संगठनसंचालन करती है और उसकी उत्पादन-क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, महिला उद्यमिता से आशय किसी महिला की उस क्षमता से है, जिसका उपयोग करके वह जोखिम उठाकर किसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाई को संगठित करती है तथा उसकी उत्पादनक्षमता बढ़ाने का भरपूर प्रयास करती है।”
वास्तव में, महिला उद्यमिता वह महिला व्यवसायी है जो व्यवसाय के संगठन व संचालन में लगकर जोखिम उठाने के कार्य करती है। भारत में महिला उद्यमिता से आशय किसी नये उद्योग के संगठन और संचालन से लगाया जाता है।

महिला उद्यमिता का वर्तमान स्वरूप

वर्तमान युग में नारी की स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। शिक्षा-प्रसार के लिए लड़कियों की शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया और हाईस्कूल तक की शिक्षा को नि:शुल्क रखा गया। बालिकाओं के अनेक विद्यालय खोले गये। सह-शिक्षा का भी खूब चलन हुआ। स्त्रियाँ सार्वजनिक चुनावों में निर्वाचित होकर एम० एल० ए०, एम० पी० तथा मन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री भी होने लगी हैं। उन्हें पिता की सम्पत्ति में भाइयों के बराबर अधिकार प्राप्त करने की कानूनी छूट मिली है। पति की क्रूरता के विरोध में या मनोमालिन्य हो जाने पर तलाक प्राप्त करने का भी वैधानिक अधिकार उन्हें प्रदान किया गया है। विधवा-विवाह की पूरी छूट हो गयी है; हालाँकि व्यवहार में अभी इनका चलन कम है।

उन्हें कानून के द्वारा सभी अधिकार पुरुषों के बराबर प्राप्त हो गये हैं। आज स्त्रियाँ सभी सेवाओं में जिम्मेदारी के पदों पर कार्य करते हुए देखी जा सकती हैं; जैसे-डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, शिक्षिका, लिपिक, अफसर इत्यादि। बाल-विवाहों पर कठोर प्रतिबन्ध लग गया है। पर्दा-प्रथा काफी हद तक समाप्त हो गयी है। युवक समारोहों, क्रीड़ा समारोहों और राष्ट्रीय खेलों में उनका सहभाग बढ़ा है। वे पढ़ने, नौकरी करने और टीमों के रूप में विदेश भी जाने लगी हैं। अन्तर्जातीय विवाह बढ़े हैं। हिन्दुओं में बहुपत्नी-प्रथा पर रोक लग गयी है। अन्तर्साम्प्रदायिक विवाह भी होने लगे हैं। स्त्रियों को अपने जीवन का रूप निर्धारित करने की अधिक स्वतन्त्रता मिली है।
उपर्युक्त सुधार नगरों में अधिक मात्रा में हुए हैं। गाँवों में अब भी अशिक्षा, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता, पर्दा-प्रथा, परम्पराओं, दरिद्रता व पिछड़ेपन का ही बोलबाला है। इन सुधारों का गाँवों की स्त्रियों की परिस्थितियों पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।

10446.

भारतीय समाज में स्त्रियों की वर्तमान परिस्थिति पर प्रकाश डालिए। यावर्तमान (स्वतन्त्र) भारत में स्त्रियों की स्थिति में हुए परिवर्तन की विवचेना कीजिए।यास्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात स्त्रियों ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या प्रगति की है?

Answer»

भारतीय समाज में स्त्रियों की वर्तमान स्थिति

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद पिछले 61 वर्षों में भारतीय स्त्रियों की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। डॉ० श्रीनिवास के अनुसार, “पश्चिमीकरण, लौकिकीकरण तथा जातीय गतिशीलता ने स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उन्नत करने में पर्याप्त योगदान दिया है। वर्तमान में स्त्री-शिक्षा का प्रसार हुआ है। अनेक स्त्रियाँ औद्योगिक संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने लगी हैं। अब वे आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होती जा रही हैं। उनके पारिवारिक अधिकारों में वृद्धि हुई है। वर्तमान में स्त्रियों की स्थिति में निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आये हैं

1. स्त्री-शिक्षा में प्रगति – स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् स्त्री-शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। सन् 1882 में पढ़ी-लिखी स्त्रियों की कुल संख्या मात्र 2,054 थी, जो 1971 ई० में बढ़कर 5 करोड़ 94 लाख तथा 1981 ई० में 7 करोड़ 91.5 लाख से अधिक थी। 2001 ई० में स्त्रियों का साक्षरता प्रतिशत 53.67 तथा 2011 ई० में यह बढ़कर 64.64 हो गया है। स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1964-65 से दसवीं कक्षा तक लड़कियों की शिक्षा नि:शुल्क कर दी है। वर्तमान में शिक्षण से सम्बन्धित ट्रेनिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज आदि में लड़कियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। स्त्री-शिक्षा के व्यापक प्रसार ने स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में समुचित अवसर प्रदान किये हैं, उन्हें रूढ़िवादी विचारों से पर्याप्त सीमा तक मुक्त किया है, पर्दा-प्रथा को कम किया है तथा बाल-विवाह के प्रचलन को घटाने में योगदान दिया है।

2. आर्थिक क्षेत्र में प्रगति – शिक्षा के व्यापक प्रसार, नयी-नयी वस्तुओं के प्रति आकर्षण, उच्च जीवन बिताने की बलवती ईच्छा तथा बढ़ती हुई कीमतों ने अनेक मध्यम व उच्च वर्ग की स्त्रियों को नौकरी यो आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई काम करने के लिए प्रेरित किया है। अब मध्यम वर्ग की स्त्रियाँ उद्योगों, दफ्तरों, शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों, समाज-कल्याण केन्द्रों एवं व्यापारिक संस्थाओं में काम करने लगी हैं। वर्तमान में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की संख्या 35 लाख से भी अधिक है। 1956 ई० के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम ने हिन्दू स्त्रियों को पत्नी, बहन एवं माँ के रूप में पारिवारिक सम्पत्ति में अधिकार प्रदान किया है। सरकार ने स्त्रियों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए कई नयी योजनाएँ भी बनायी हैं। परिणामस्वरूप उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

3. राजनीतिक चेतना में वृद्धि – स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् स्त्रियों की राजनीतिक चेतना में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। जहाँ सन् 1937 में महिलाओं के लिए 41 स्थान सुरक्षित थे, वहाँ केवल 10 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा; जब कि 1984 ई० के चुनावों में 65 स्त्रियों ने सांसद के रूप में चुनाव में सफलता प्राप्त की। इसके बाद के लोकसभा चुनावों में स्त्री सांसदों की संख्या कम ही हुई है, परन्तु उनकी राजनीतिक चेतना बढ़ी है। ग्राम पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में स्त्रियों के लिए 33% स्थान आरक्षित किये गये हैं। इसके साथ ही पार्लियामेण्ट और विधानमण्डलों में स्त्री-प्रतिनिधियों की संख्या और विभिन्न गतिविधियों में उनकी सहभागिता, राज्यपाल, मन्त्री, मुख्यमन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री तक के रूप में उनकी भूमिकाओं से स्पष्ट है कि भारत में स्त्रियों में राजनीतिक चेतना दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। भारतीय महिलाओं ने राज्यपालों, कैबिनेट स्तर के मन्त्रियों और राजदूतों के रूप में यश प्राप्त किया है। स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद स्त्रियों की राजनीतिक चेतना में वृद्धि हुई है और उनकी स्थिति में सुधार हुआ है।

4. सामाजिक जागरूकता में वृद्धि – पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों की सामाजिक जागरूकता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। अब स्त्रियाँ पर्दा-प्रथा को बेकार समझने लगी हैं। बहुत-सी स्त्रियाँ घर की चहारदीवारी के बाहर खुली हवा में साँस ले रही हैं। वर्तमान में कई स्त्रियों के विचारों के दृष्टिकोणों में इतना परिवर्तन आ चुका है कि अब वे अन्तर्जातीय-विवाह, प्रेम-विवाह और विलम्ब-विवाह को अच्छा समझने लगी हैं। अब वे रूढ़िवादी बन्धनों से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील हैं। आज अनेक स्त्रियाँ महिला संगठनों और क्लबों की सदस्य हैं तथा समाजकल्याण के कार्यों में लगी हुई हैं।

5. विवाह एवं पारिवारिक क्षेत्र में अधिकारों की प्राप्ति – वर्तमान में स्त्रियों के पारिवारिक अधिकारों में वृद्धि हुई है। वर्तमान में स्त्रियाँ संयुक्त परिवार के बन्धनों से मुक्त होकर एकाकी परिवार में रहना चाहती हैं। आज बच्चों की शिक्षा, परिवार के आय के उपयोग, पारिवारिक अनुष्ठानों की व्यवस्था और घर के प्रबन्ध में स्त्रियों की इच्छा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिन्दू स्त्रियों को अन्तर्जातीय विवाह करने और कष्टमय वैवाहिक जीवन से मुक्ति पाने के लिए तलाक के अधिकार प्रदान किये हैं। बाल-विवाह दिनों-दिन कम होते जा रहे हैं और विधवाओं को भी पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त है। स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय स्त्रियों के शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व पारिवारिक जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है।

भारतीय स्त्रियों में सुधार के कुछ प्रमुख कारक

स्त्रियों की सामाजिक स्थिति को परिवर्तित करने में निम्नलिखित कारकों का योगदान रहा है

1. संयुक्त परिवारों का विघटन – परम्परागत प्राचीन भारतीय संयुक्त परिवारों में स्त्रियों को पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था, उनका कार्य-क्षेत्र घर की चहारदीवारी के अन्दर था, किन्तु नगरीकरण के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। ग्रामीण परिवार की स्त्रियों के नगरों के सम्पर्क में आने से उनकी स्थिति में काफी परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। यह सब नये-नये नगरों के उदय के कारण ही सम्भव हुआ है, क्योंकि रूढ़िवादी व्यक्तियों के बीच में रहकर उनकी स्थिति में सुधार होना सम्भव नहीं था।

2. शिक्षा का विस्तार – वर्ममान में स्त्री-शिक्षा का दिन-प्रतिदिन विस्तार हो रहा है। शिक्षा के प्रसार से स्त्रियाँ रूढ़िवादिता और जातिगत बन्धनों से मुक्त हुई हैं। उनमें त्याग, तर्क और वितर्क के भाव जगे हैं और ज्ञान के द्वार खुले हैं। स्त्रियों के शिक्षित होने से वे अपने आपको आत्मनिर्भर बनाने में सफल सिद्ध हो सकी हैं तथा राजनीतिक जागरूकता भी उनमें आज देखने को मिलती है।

3. अन्तर्जातीय विवाह – वर्तमान में स्कूलों में लड़के-लड़कियों के साथ-साथ पढ़ने तथा दफ्तरों में काम करने से प्रेम-विवाह एवं अन्तर्जातीय विवाह पर्याप्त संख्या में होते दिखाई पड़ रहे हैं। इससे स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन हुआ है। अब वे परिवार पर भार नहीं समझी जाती हैं। ऐसे विवाह से बने परिवार में पति-पत्नी में समानता के भाव पाये जाते हैं और स्त्री को पुरुष की दासी नहीं समझा जाता।।

4. औद्योगीकरण – औद्योगीकरण के कारण स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता कम हुई है। स्त्रियों ने पुरुषों के समान आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए नौकरी करना आरम्भ किया है। इससे उन्हें आत्म-विकास करने में पर्याप्त सहायता मिली है।

5. सुधार आन्दोलन – 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही कुछ चिन्तनशील व्यक्तियों ने स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के सम्बन्ध में अपना बहुमूल्य योगदान दिया; जैसे – राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर और स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि। उन्होंने सती – प्रथा, पर्दा-प्रथा, बहुपत्नी विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध आदि को समाप्त करने के लिए सुधार आन्दोलन किये और इस क्षेत्र में किसी हद तक सफलता भी प्राप्त की। महात्मा गाँधी भी स्त्री-पुरुषों की समानता के समर्थक थे। उन्होंने भी स्त्रियों को राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

6. सरकारी प्रयास – स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार की तरफ से कई अधिनियम भी पास किये गये, जिससे स्त्रियों की स्थिति में अत्यधिक परिवर्तन हुए। इस सम्बन्ध में ‘बालविवाह निरोधक अधिनियम, 1929’, ‘मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939’, ‘दहेज निरोधक अधिनियम, 1961’, ‘हिन्दू विवाह तथा विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1955’ तथा ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ आदि महत्त्वपूर्ण अधिनियम हैं।

10447.

महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में देश का नाम रोशन कर सकती हैं। इसके बारे में आपका क्या मत है?

Answer»

बुद्धि, प्रतिभा और योग्यता पर केवल पुरुषों का ही अधिकार नहीं है। महिलाएँ भी प्रत्येक क्षेत्र में अपना नाम उजागर कर सकती हैं। आज वे ऊँचे-सेऊँचे पदों पर आसीन हैं। श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भारत के राष्ट्रपति पद का गौरव बढ़ाया है। इसके पहले श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नाम कमा चुकी हैं। संगीत के क्षेत्र में लता मंगेशकर और आशा भोंसले आज भी सारे विश्व में लोकप्रिय हैं। मेरा मत है कि पुरुषों की तरह महिलाएँ भी प्रत्येक क्षेत्र में भारत का नाम रोशन कर सकती हैं।

10448.

क्या गृह-परिचर्या का कार्य केवल महिलाएँ ही कर सकती हैं?

Answer»

नहीं, यह अनिवार्य नहीं है। गृह-परिचर्या का कार्य पुरुष भी कर सकते हैं। गृह-परिचर्या के कार्य को करने वाले पुरुष को ‘गृह-परिचारक’ कहते हैं।

10449.

डेविड क्लिलैण्ड ने उद्यमी की क्या परिभाषा दी है ?

Answer»

डेविड क्लिलैण्ड ने लिखा है कि “उद्यमी व्यक्ति वह है जो किसी व्यापारिक व औद्योगिक इकाई को संगठित करता है या उसकी उत्पादन-क्षमता बढ़ाने का प्रयत्न करता है।” भारतीय सन्दर्भ में उद्यमी की यह परिभाषा अधिक उपयुक्त मालूम पड़ती है, क्योंकि यहाँ अधिकांश उद्यमी किसी औद्योगिक इकाई को संगठित करते हैं, अपनी औद्योगिक इकाई की क्षमता व उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं और लाभ कमाते हैं।

10450.

महिला उद्यमिता के नारी उत्थान पर होने वाले लाभ बताइए। यामहिला उद्यमिता एवं नारी उत्थान एक-दूसरे के पूरक हैं। व्याख्या कीजिए। 

Answer»

महिला उद्यमिता के नारी उत्थान पर निम्नलिखित लाभ हैं।

1. आत्मनिर्भरता – महिला उद्यमिता के कारण महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं, इससे अन्य कार्यों के लिए भी इनकी पुरुष सदस्यों पर निर्भरता कम हुई है।

2. जीवन स्तर में सुधार – परम्परागत संयुक्त परिवारों में महिलाओं की शिक्षा-स्वास्थ्य इत्यादि आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया जाता था, जिससे इनका जीवन स्तर निम्न था। महिला उद्यमिता के कारण इनके जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हुआ है।

3. नेतृत्व क्षमता का विकास – महिलाओं द्वारा उद्यम एवं व्यवसायों के संचालन से उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ है, फलतः महिलाएँ सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों में भी नेतृत्व सम्भालने लगी हैं।

4. सामाजिक समस्याओं में कमी – महिला उद्यमिता से महिलाओं की परिवार व समाज में स्थिति सुधरी है, इससे घरेलू हिंसा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी महिला सम्बन्धी समस्याएँ कम होने लगी हैं।

5. नारी सशक्तिकरण – महिला उद्यमिता, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही उनमें संचालन, नेतृत्व, संगठन आदि गुणों का विकास करती है, इससे नारी सशक्तिकरण को बल मिलता है। अत: इन सब कारणों से कहा जा सकता है कि महिला उद्यमिता तथा नारी उत्थान
एक-दूसरे के पूरक हैं।