This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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वेस्टइंडीज को प्रथम अश्वेत कप्तान कौन था? |
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Answer» फ्रैंक वॉरेल वेस्टइंडीज के प्रथम अश्वेत कप्तान थे। |
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| 10302. |
वसूली खाते की दूसरी पद्धति में देनी हंडी के भुगतान की रकम किस खाते लिखी जाती है ? |
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Answer» वसूली खाते की दूसरी पद्धति में देनी हुंडी के भुगतान की रकम देनी हूंडी खाते उधार कर रोकड़ खाते जमा किया जाता है और देनी हुंडी की अंतिम बाकी देनी हुंडी खाते उधार कर वसूली खाते जमा किया जायेगा, जिससे देनी हूंडी खाता बंद किया जायेगा । |
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| 10303. |
पेढ़ी के विसर्जन के समय आर्थिक चिट्ठे में देनदार ₹ 24,500 और डूबत ऋण अनामत ₹ 2,500 है, तो वसूली खाते के जमा पक्ष में कौन सी रकम लिखी जायेगी ?(अ) ₹ 24,500(ब) ₹ 2,500(क) ₹ 22,000(ड) ₹ 27,000 |
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Answer» सही विकल्प है (ब) ₹ 2,500 |
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| 10304. |
क्रिकेट के नियमों को पहली बार कब लिखा गया? |
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Answer» सन् 1774 ई० में क्रिकेट के नियमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया। |
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| 10305. |
भारत में क्रिकेट के प्रसार का विवरण प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» भारत में क्रिकेट की शुरुआत औपनिवेशिक शासन काल में हुई। 1721 ई० में अंग्रेज जहाजियों ने कैम्बे में अपना प्रथम मैच भारत में खेला। भारत में पहला क्रिकेट क्लब कलकत्ता में 1792 ई० में स्थापित किया गया। शुरुआत में भारत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित था। यह खेल भारत में 18वीं शताब्दी में अंग्रेज सैनिकों और सिविल सर्वेट्स द्वारा उनके (गोरे लोगों के लिए अधिकृत) क्लबों और जिमखानों में खेला जाता था। भारतीयों द्वारा इस खेल की शुरुआत का श्रेय पारसी समुदाय को जाता है। अंग्रेजों के संपर्क में आकर सबसे पहले पारसियों ने 1848 ई0 में प्रथम भारतीय क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटेल क्रिकेट क्लब’ की स्थापना बंबई में की। इस क्लब के प्रायोजक टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी थे। अंग्रेज प्रायः इनके पार्क को घोड़ों द्वारा रौंदकर खराब कर देते थे परंतु प्रशासन ने इनकी कोई सहायता नहीं की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए ‘पारसी जिमखाना क्लब’ की स्थापना की। 1889 में पारसियों की एक टीम ने अंग्रेजों के बोम्बे जिमखाना को एक मैच में हरा कर भारतीय श्रेष्ठता सिद्ध की। पारसी जिमखाना क्लब की स्थापना के पश्चात् अन्य भारतीय समुदायों ने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने की शुरुआत की। इससे भारत में सांप्रदायिक एवं नस्ली आधार पर क्लबों का प्रचलन आरंभ हुआ। शीघ्र ही भारत में एक क्वाड्रेग्युलर (चतुष्कोणीय) टूर्नामेंट आरंभ हुआ जिसमें धर्म के आधार पर चार टीमें (यूरोपीय, पारसी, हिंदू तथा मुस्लिम) खेलती थीं। कुछ समय पश्चात् इस टूर्नामेंट में ‘द रेस्ट’ के नाम से पाँचवीं टीम को शामिल किया गया जिसमें भारतीय ईसाई जैसे बचे-खुचे समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया। धर्म के आधार पर होने वाले इस टूर्नामेंट के विरुद्ध महात्मा गाँधी सहित अनेक भारतीय नेताओं ने आवाज उठाई परंतु यह टूर्नामेंट 1947 ई० तक चलता रहा। 1947 ई0 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इस टूर्नामेंट के स्थान पर नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन शुरू हुआ जिसे वर्तमान में रणजी ट्राफी के नाम से जाना जाता है। |
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| 10306. |
19वीं शताब्दी के दौरान क्रिकेट के खेल में क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए? |
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Answer» 19वीं सदी के दौरान क्रिकेट के खेल में निम्नलिखित परिवर्तन घटित हुए.- ⦁ चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग किए जाने लगे। ⦁ बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था। ⦁ ओवरआर्म बॉलिंग कानूनी ठहरायी गई। ⦁ वाइड बॉल के लिए नियम लागू किया गया। ⦁ गेंद का सटीक व्यास तय किया गया। |
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| 10307. |
‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए। |
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Answer» 1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे। उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे। औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई |
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| 10308. |
‘वाटरलू का युद्ध ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।’ इस कथन का क्या निहितार्थ है? |
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Answer» इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की सैन्य सफलता का रहस्य उसके उत्कृष्ट पब्लिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षण के दौरान सिखाए गए नैतिक मूल्यों में निहित था। इन पब्लिक स्कूलों में ईटन सर्वाधिक प्रसिद्ध था। अंग्रेजी आवासीय विद्यालय में अंग्रेज लड़कों को शाही इंग्लैण्ड के तीन अहम् संस्थानों-सेना, प्रशासनिक सेवा व चर्च में कैरियर के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के शुरुआत तक टॉमस आर्नल्ड-जो मशहूर रग्बी स्कूल के हेडमास्टर होने के साथ-साथ आधुनिक पब्लिक स्कूल प्रणाली के प्रणेता थे-रग्बी व क्रिकेट जैसे टीम खेलों को पढ़ाई का एक सुनियोजित तरीका मानते थे। अंग्रेज लड़के अनुशासन, अनुक्रम का महत्त्व, कौशल, स्वाभिमान की रीति-नीति और नेतृत्व क्षमता सीखते थे जो उनकी ब्रिटिश साम्राज्य चलाने में सहायता करते थे। विक्टोरियाई साम्राज्य-निर्माता दुसरे देशों की जीत को यह कह कर सही ठहराते थे कि उन्हें जीतना निःस्वार्थ समाज सेवा थी जिससे पिछड़े समाज ब्रितानी कानून व पश्चिम ज्ञान के संपर्क में आकर सभ्यता का सबक सीख सकते थे। क्रिकेट ने अभिजात अंग्रेजों की इस शौकिया आत्मछवि को पुष्ट करने में मदद की-जहाँ पर क्रिकेट फायदे या जीत के लिए न होकर केवल सीखने के लिए और ‘स्पिरिट ऑफ फेयरप्ले’ (न्यायोचित खेल भावना) के लिए खेला जाता था। |
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| 10309. |
पेढी के विसर्जन के समय आर्थिक चिट्ठे में बही में नहीं लिखे गये संपत्ति की उपज प्राप्त हो, और नहीं लिखे दायित्व का भुगतान करना पड़े, तब उसका हिसाबी हल किस प्रकार किया जायेगा ? समझाओ । |
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Answer» यदि साझेदारी पेढी के विसर्जन के समय यदि बही में नहीं दर्शायी गयी मिल्कत को कोई उपज (आय) हो उसे वसूली खाते के जमा तरफ नकद खाते के अंतर्गत लिखा जायेगा । यदि बही में नहीं दर्शायी गयी मिल्कत की जो वास्तविक उपज (आय) या बिक्री किंमत हो उसे ही वसूली खाते दर्शाया जाता है। उसकी बही किंमत को नहीं । उसी प्रकार बही में नहीं दर्शाये गये दायित्व की रकम चुकाई जाये तो जितनी रकम चुकाई जाये उसे वसूली खाते के उधार तरफ नकद खाते के अंतर्गत दर्शायी जायेगी नहीं की उसकी बही किंमत से। अर्थात् पेढी के विसर्जन के समय यदि बही में नहीं दर्शायी गई मिलकत से कोई रकम मिले या नहीं दर्शाये गये दायित्व से कोई रकम चुकानी पड़े तो उसे प्राप्त रकम या चुकाई गई रकम से बही के माल-मिलकत (वसूली खाते) में दर्शाया जाता है। |
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| 10310. |
अंतर स्पष्ट करो : वसूली खाते की प्रथम पद्धति और दूसरी पद्धति |
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Answer»
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| 10311. |
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा को हम इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं- ⦁ वेस्टइंडीज भारत की ही तरह इंग्लैण्ड का उपनिवेश था। ⦁ 19वीं शताब्दी के अंत में वेस्टइंडीज में पहले स्थानीय क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब के सभी सदस्य मुलेट्टो समुदाय के थे। मुलेटों समुदाय में मिश्रित यूरोपीय और अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे। ⦁ वेस्टइंडीज के स्थानीय लोगों ने क्रिकेट के खेल को गोरी और काली प्रजाति, मध्य नस्ली समानता व राजनीतिक प्रगति के रूप में स्वीकार किया। ⦁ वेस्टइंडीज के लोगों ने इस खेल को अपने आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न माना। इसी भावना की परिणति थी कि जब इन लोगों ने 1950 ई0 के दशक में इंग्लैण्ड के विरुद्ध पहली टेस्ट श्रृंखला जीती तो इस जीत को वहाँ राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया गया। फ्रैंक वारेलु 1960 ई0 में वेस्टइंडीज टीम के प्रथम अश्वेत कप्तान बने। |
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| 10312. |
अदालत के हस्तक्षेप के सिवाय (समान्य विसर्जन) विसर्जन की पद्धतियाँ समझाइए । |
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Answer» अदालत के हस्तक्षेप के सिवाय नीचे दिये गये किसी भी पद्धति से साझेदारी पेढ़ी का विसर्जन हो सकता है : (1) सर्व संमति से : पेढ़ी के सभी साझेदार जब आपसी सहमति से विसर्जन करने के लिये सहमति प्रकट करते हों और साझेदारी पेढी का विसर्जन किसी भी समय हो सकता है, उसे स्वैच्छिक विसर्जन कहते है । नीचे दिये गये संयोगों में पेढी का विसर्जन होता है : (अ) किसी निश्चित उद्देश्य के लिये पेढ़ी की स्थापना की गई हो और उस उद्देश्य के पूरा होते ही पेढ़ी का अपने आप विसर्जन होता है। (2) करार के द्वारा : साझेदारों के बीच पहले से तय किये गये करारनामा की शर्तों के आधार पर साझेदारी पेढी का विसर्जन हो सकता है। (3) नोटिस के द्वारा : स्वैच्छिक साझेदारी के अनुसार के संयोग में किसी भी साझेदार के द्वारा साझेदारी पेढी का विसर्जन करने का खुद का इरादा दर्शाती लिखित नोटिस अन्य साझेदार को दी जाती है। इस नोटिस में दर्शायी गयी तारीख से अथवा नोटिस मिलने की तारीख से उनके बीच की साझेदारी का अंत आता है । इस प्रकार पेढ़ी का विसर्जन होता है। (4) कानूनन विसर्जन : नीचे दिये गये संयोगों में पेढी का कानून के द्वारा अनिवार्य रूप से विसर्जन होता है : (अ) पेढी का धंधा चालु रखना जब गैरकानूनी बन जाये तब पेढी का विसर्जन होता है । |
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| 10313. |
क्रिकेट के नियमों में समयानुसार परिवर्तन की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» क्रिकेट के खेल का महत्त्व आज इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसमें निरन्तर परिवर्तन किए जाते रहे। क्रिकेट के खेल में किए गए परिवर्तनों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं- (1) क्रिकेट का मैदान – क्रिकेट के खेल के मैदान का आकार निश्चित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रिकेट के खेल को नियंत्रित एवं संचालित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई.सी.सी. ने इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाया है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट कॉमन्स (गाँव की सामूहिक भूमि) पर खेला जाता था और प्रत्येक गाँव में इस मैदान का आकार पृथक्पृथक् होता था। इसलिए वर्तमान में भी क्रिकेट क मैदान का आकार अलग-अलग होता है, जोकि स्टेडियम के आकार पर निर्भर करता है। इसमें विकेट से विकेट के बीच की दूरी (पिच) 22 गज (17.68 मी.) होती है। (2) क्रिकेट की गेंद – क्रिकेट की गेंद का निर्माण चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है। पहले गेंद का वजन साढ़े पाँच औंस होता था जो बाद में बढ़ाकर पौने छः औंस हो गया। वर्तमान में इसका वजन 156 ग्राम तथा गेंद की परिधि 8 से 9 इंच होती है। गेंद का रंग दिन के मैच में लाल तथा रात के मैच में सफेद होता है। (3) बल्ले का आकार – क्रिकेट के बल्ले की आकृति 18वीं सदी के मध्य तक हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी हुई होती थी। बल्ले को बाद में लकड़ी के एक साबुत टुकड़े से बनाया जाने लगा। वर्तमान में बल्ले के दो हिस्से होते हैं—ब्लेड या फट्टा जो विलों (बैद) नामके पेड़ की लकड़ी से बनता है और हत्था (हैंडल) बेंत से बनता है। नए नियमों के अनुसार बल्ले की चौड़ाई 44 इंच (10.8 सेमी) तथा इसकी लम्बाई 38 इंच (96.5 सेमी) निर्धारित की गई हैं। (4) गेंद फेंकने का तरीका – शुरुआती दिनों में क्रिकेट की गेंद को पिच पर लुढ़काकर (अण्डर आर्म) फेंका जाता था। 1761-70 के दशक में गेंद को हवा में लहरा कर फेंकने का प्रज्वलन आरंभ हुआ। इससे गेंदबाजों को विभिन्न लंबाइयों की गेंद फेंकने के साथ-साथ गेंद को घुमाने में भी सहायता मिली। इसके कारण गेंदबाजी में गति, स्पिन तथा स्विंग जैसी तकनीकों का समावेश हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों ने ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’ के रूप में गेंदबाजी की नवीन तकनीकों का विकास किया है। |
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| 10314. |
साझेदारी पेढी का विसर्जन करने के लिये अदालत किन संजोगों में आदेश कर सकती है ? समझाओं। |
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Answer» साझेदारी पेढ़ी का कोई भी साझेदार अदालत में आवेदन करे, तब नीचे दिये गये संजोगों में अदालत पेढ़ी का विसर्जन करने का आदेश कर सकती है –
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साझेदारी पेढी के विसर्जन की सामान्य विधि/प्रक्रिया समझाइए । |
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Answer» साझेदारी पेढ़ी के विसर्जन के बाद पेढ़ी की सभी मिलकतो को बेचकर – पेढ़ी के दायित्वों को निम्न क्रमो में चुकाया जायेगा।
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साझेदारी पेढी के विसर्जन से जुड़ी हुई हानि/नुकसान संबंधी कानूनी प्रावधान बताइए । |
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Answer» भारतीय साझेदारी कानून के अनुसार विसर्जन के समय होनेवाला नुकसान नीचे दिये गये अनुसार तय किया जाता है :
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संपादन खाता किस प्रकार का खाता है ?(अ) आर्थिक-चिठ्ठा(ब) व्यक्ति(क) माल-संपत्ति(ड) उपज-खर्च |
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Answer» सही विकल्प है (क) माल-संपत्ति |
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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएसावधान, मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार ।हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान;फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान ।खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) कवि ने भौतिकवादी और वैज्ञानिक युग के मानव को क्या चेतावनी दी है?(iv) कवि ने तलवार किसे बताया है और इसका इस्तेमाल करने से मनुष्य को क्यों मना किया(v) ‘तलवार’ शब्द के दो पर्यायवाची लिखिए। |
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Answer» (i) प्रस्तुत पद्यांश कविवर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के छठे सर्ग से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।। |
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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएवे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है।मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) कवि ने रोगी किसे बताया है?(iv) किनको संवेदनाहीन मृतक की संज्ञा दी गयी है?(v) कवि ने यह कैसे सिद्ध किया है कि प्रेम यज्ञ की ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी |
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Answer» (i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘मैंने आहति बनकर देखा’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। |
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विसर्जन के समय साझेदारी पेढी की संपत्तियों और दायित्वों की हिसाबी असर देने के लिये तैयार किये जानेवाला खाता ………………………. ।(अ) लाभ-हानि खाता(ब) लाभ-हानि वितरण खाता(क) पुनः मूल्यांकन खाता(ड) संपादन खाता |
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Answer» सही विकल्प है (ड) संपादन खाता |
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‘सत्य की जीत’ के प्रमुख पात्रों का संक्षेप में परिचय दीजिए।या“‘सत्य की जीत के पात्र पूर्णतः जीवन्त हैं।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? |
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Answer» ‘सत्य की जीत’ के प्रमुख पात्र हैं-द्रौपदी, दु:शासन और धृतराष्ट्र। इनके अतिरिक्त दुर्योधन, विकर्ण, कर्ण और युधिष्ठिर भी उल्लेखनीय पात्र हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है (1) द्रौपदी-यह प्रस्तुत खण्डकाव्य की नायिका है। यह द्रुपद राजपुत्री और पाण्डव-कुल की वधू है, जो युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पत्नी है। यह सशक्त, ओजस्वी, आत्म-सम्मान से युक्त वीरांगना नारी है। इसके चरित्र पर आधुनिक नारी-जागरण का प्रभाव है। इसका व्यक्तित्व अत्यन्त तेजस्वी एवं प्रखर है। इसी के माध्यम से कवि ने अधर्म, अन्याय, असत्य और अत्याचार पर सत्य एवं न्याय की विजय प्रदर्शित की है। नीति समझो मेरी यह स्पष्ट, जियें हम और जियें सब लोग। धृतराष्ट्र के चरित्र के माध्यम से कवि ने आज के शासनाध्यक्षों को इसी नीति के अनुसरण का सन्देश दिया है। इसमें आपाधापी के इस युग के लिए बड़े कल्याण का भाव छिपा है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि कवि ने सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक संस्पर्शों के सहारे पात्रों को पूर्णत: जीवन्त और युगानुकूल चित्रित किया है। |
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‘सत्य की जीत के आधार पर दुःशासन का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन) कीजिए। या“दुःशासन में पौरुष का अहम् और भौतिक शक्ति का दम्भ है।” ‘सत्य की जीत’ के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।या‘सत्य की जीत के एक प्रमुख पुरुष-पात्र (दुःशासन) के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। |
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Answer» प्रस्तुत खण्डकाव्य में दु:शासन एक प्रमुख पात्र है जो दुर्योधन का छोटा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं- (1) अहंकारी एवं बुद्धिहीन-दु:शासन को अपने बल पर बहुत अधिक घमण्ड है। विवेक से उसे कुछ लेना-देना नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण मानता है तथा पाण्डवों का भरी सभा में अपमान करता है। सत्य, प्रेम और अहिंसा की अपेक्षा वह पाशविक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है- शस्त्रे जो कहे वही है सत्य, शस्त्र जो करे वही है कर्म। इसीलिए परिवारजन और सभासदों के बीच द्रौपदी को निर्वस्त्र करने में वह तनिक भी लज्जा नहीं मानता है। कहाँ नारी ने ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम। (3) शस्त्र-बल विश्वासी–दुःशासन शस्त्र-बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्म-शास्त्र और धर्मज्ञों में कोई विश्वास नहीं है। इन्हें तो वह शस्त्र के आगे हारने वाले मानता है- धर्म क्या है और क्या है सत्य, मुझे क्षणभर चिन्ता इसकी न । (4) दुराचारी-दु:शासन हमारे समक्ष एक दुराचारी व्यक्ति के रूप में आता है। वह मानवोचित व्यवहार भी नहीं जानता। वह अपने बड़ों व गुरुजनों के सामने भी अभद्र व्यवहार करने में संकोच नहीं करता। वह शास्त्रज्ञों, धर्मज्ञों व नीतिज्ञों पर कटाक्ष करता है और उन्हें दुर्बल बताता है- लिया दुर्बल मानव ने ढूँढ़, आत्मरक्षा का सरल उपाय । (5) धर्म और सत्य का विरोधी-धर्म और सत्य का शत्रु दुःशासन आध्यात्मिक शक्ति का विरोधी एवं भौतिक शक्ति का पुजारी है। वह सत्य, धर्म, न्याय, अहिंसा जैसे उदार आदर्शों की उपेक्षा करता है। (6) सत्य व सतीत्व से पराजित–दुःशासन की चीर-हरण में असमर्थता इस तथ्य की पुष्टि करती है। कि सत्य की ही जीत होती है। वह शक्ति से मदान्ध होकर तथा सत्य, धर्म एवं न्याय की दुहाई देने को दुर्बलता का चिह्न बताता हुआ जैसे ही द्रौपदी का चीर खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है, वैसे ही द्रौपदी के शरीर से प्रकट होने वाले सतीत्व की ज्वाला से पराजित हो जाता है। दुःशासन के चरित्र की दुर्बलताओं या विशेषताओं का उद्घाटन करते हुए डॉ० ओंकार प्रसाद माहेश्वरी लिखते हैं कि, “लोकतन्त्रीय चेतना के जागरण के इस युग में अब भी कुछ ऐसे साम्राज्यवादी प्रकृति के दु:शासन हैं, जो दूसरों के बढ़ते मान-सम्मान को नहीं देख सकते तथा दूसरों की भूमि और सम्पत्ति को हड़पने के लिए प्रतिक्षण घात लगाये हुए बैठे रहते हैं। इस काव्य में दु:शासन उन्हीं का प्रतीक है।” |
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अज्ञेय के जीवन-परिचय और कृतियों पर प्रकाश डालिए। यासच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» जीवन-परिचय-अज्ञेय जी का जन्म सन् 1911 ई० में करतारपुर (जालन्धर) में हुआ था। इनके पिता पं० हीरानन्द शास्त्री भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता थे। ये वत्स गोत्र के और सारस्वत ब्राह्मण परिवार के थे। संकीर्ण जातिवाद से ऊपर उठकर वत्स गोत्र के नाम से ये वात्स्यायन कहलाये। अज्ञेय जी का शैशव अपने पिता के साथ वन और पर्वतों में बिखरे पुरातत्त्व अवशेषों के मध्य व्यतीत हुआ। माता और भाइयों से अलग एकान्त में रहने के कारण इनका जीवन और व्यक्तित्व कुछ विशेष प्रकार का बन गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुराने ढंग से अष्टाध्यायी रटकर संस्कृत में हुई। इसके बाद इन्होंने फारसी और अंग्रेजी सीखी। इनकी आगे की शिक्षा मद्रास (चेन्नई) और लाहौर में हुई। सन् 1929 ई० में बी० एस-सी० उत्तीर्ण करने के उपरान्त ये अंग्रेजी में एम० ए० के अन्तिम वर्ष में ही थे कि क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिये गये। चार वर्ष जेल में और एक वर्ष घर में ही नजरबन्द रहकर व्यतीत करना पड़ा। इन्होंने मेरठ के किसान आन्दोलन में भाग लिया था और तीन वर्ष तक सेना में भरती होकर असम-बर्मा सीमा पर और यहाँ युद्ध समाप्त हो जाने पर पंजाब के पश्चिमोत्तर सीमान्त पर सैनिक रूप में सेवा भी की। सन् 1955 ई० में यूनेस्को की वृत्ति पर आप यूरोप गये तथा सन् 1957 ई० में जापान और पूर्वेशिया का भ्रमण किया। कुछ समय तक ये अमेरिका में भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्राध्यापक रहे तथा जोधपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य और भाषा अनुशीलन विभाग में निदेशक पद पर भी कार्य किया। ये ‘दिनमान’ और ‘नया प्रतीक’ पत्रों के सम्पादक भी रहे। साहित्यिक सेवाएँ-अज्ञेय जी की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व बहुत मुखर रहा है। वे प्रयोगवादी कवि के रूप में विख्यात हैं और उनकी प्रतिभा निरन्तर परिमार्जित होती रही है। प्रगतिवादी काव्य का ही एक रूप प्रयोगवादी काव्य के आन्दोलन में प्रतिफलित हुआ। इसका प्रवर्तन ‘तार सप्तक’ के द्वारा अज्ञेय जी ने ही किया था। इन्होंने अपने कलात्मक बोध, समृद्ध कल्पना-शक्ति और संकेतमयी अभिव्यंजना द्वारा भावना के अनेक नये अनछुए रूपों को उजागर किया। |
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साझेदारी पेढ़ी का विसर्जन कितनी पद्धतियों से किया जा सकता है ?(अ) एक(ब) तीन(क) दो(ड) चार |
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Answer» सही विकल्प है (क) दो |
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‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर नायिका द्रौपदी का चरित्र-चित्रण कीजिए। या‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन) कीजिए।या‘सत्य की जीत के किसी मुख्य नारी-पात्र की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए। या‘सत्य की जीत’ में कवि ने द्रौपदी के चरित्र में जो नवीनताएँ प्रस्तुत की हैं, उनका उद्घाटन करते हुए उसके चरित्र-वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।यासिद्ध कीजिए कि “द्रौपदी सत्य की अपराजेय आत्मिक शक्ति से ओतप्रोत नारी है।” |
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Answer» ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं- (1) नायिका-द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका है। सम्पूर्ण कथा उसके चारों ओर घूमती है। वह राजा द्रुपद की पुत्री, धृष्टद्युम्न की बहन तथा युधिष्ठिर सहित पाँचों पाण्डवों की पत्नी है। ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में अत्यधिक विकट समय होते हुए भी वह बड़े आत्मविश्वास से दु:शासन को अपना परिचय देती हुई कहती है- जानता नहीं कि मैं हूँ कौन ? द्रौपदी धृष्टद्युम्न की बहन। (2) स्वाभिमानिनी सबला-द्रौपदी स्वाभिमानिनी है। वह अपना अपमान नारी-जाति का अपमान समझती है और वह इसे सहन नहीं करती। ‘सत्य की जीत’ की द्रौपदी महाभारत की द्रौपदी की भाँति असहाय, अबला और संकोची नारी नहीं है। यह द्रौपदी तो अन्यायी, अधर्मी पुरुषों से जमकर संघर्ष व विरोध करने वाली है। इस प्रकार उसका निम्नलिखित कथन द्रष्टव्य है- समझकर एकाकी, निशंक, दिया मेरे केशों को खींच। (3) विवेकशीला--द्रौपदी पुरुष के पीछे-पीछे आँख बन्द कर चलने वाली नारी नहीं, वरन् विवेक से कार्य करने वाली नारी है। आज की नारी की भाँति वह अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए सजग है। द्रौपदी की स्पष्ट मान्यता है कि नारी में अपार शक्ति और आत्मबल विद्यमान है। पुरुष स्वयं को संसार में सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न समझता है, किन्तु द्रौपदी इस अहंकारपूर्ण मान्यता का खण्डन करती हुई कहती हे– नहीं कलिका कोमल सुकुमार, नहीं रे छुई-मुई-सा गात ! वह केवल दु:शासन ही नहीं वरन् अपने पति को भी प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर स्पष्टीकरण माँगती है। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जुए में स्वयं को हारने वाले युधिष्ठिर को मुझे दाँव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं है—- पूछती हूँ मैं केवल एक प्रश्न, उसका उत्तर मिल जाय। द्रौपदी के ये वचन सुनकर सम्पूर्ण सभा स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है और द्रौपदी के तर्को पर न्यायपूर्वक विचार करने के लिए विवश हो जाती है। द्रौपदी के ये कथन उसकी वाक्पटुता एवं योग्यता के परिचायक हैं। द्रौपदी धर्मनिष्ठ है सती, साध्वी न्याय सत्य साकार। (5) ओजस्विनी-‘सत्य की जीत’ की नायिका द्रौपदी ओजस्विनी है। वह अपना अपमान होने पर सिंहनी की भाँति दहाड़ती है- सिंहनी ने कर निडर दहाड़, कर दिया मौन सभा को भंग ।। दु:शासन द्वारा केश खींचने के बाद वह रौद्र-रूप धारण कर लेती है। कवि कहता है– खुली वेणी के लम्बे केश, पीठ पर लहराये बन काल। (6) सत्य, न्याय और धर्म की एकनिष्ठ साधिका-द्रौपदी सत्य और न्याय की अजेय शक्ति और असत्य तथा अधर्म की मिथ्या शक्ति का विवेचन बहुत संयत शब्दों में करती हुई कहती है- सत्य का पक्ष, धर्म का पक्ष, न्याय का पक्ष लिये मैं साथ। (7) नारी-जाति की पक्षधर-‘सत्य की जीत’ की द्रौपदी आदर्श भारतीय नारी है। भारतीय संस्कृति के आधार वेद हैं और वेदों के अनुसार आदर्श नारी में अपार शक्ति, सामर्थ्य, बुद्धि, आत्म-सम्मान, सत्य, धर्म, व्यवहार-कुशलता, वाक्प टुता, सदाचार आदि गुण विद्यमान होते हैं। द्रौपदी में भी ये सभी गुण विद्यमान हैं। अपने सम्मान को ठेस लगने पर वह सभा में गरज उठती है- मौन हो जा मैं सह सकतीन, कभी भी नारी का अपमान । द्रौपदी को पता है कि नारी में अपार शक्ति-सामर्थ्य, बुद्धि और शील विद्यमान हैं। नारी ही मानवजाति के सृजन की अक्षय स्रोत है। वह नारी-जाति को पुरुष के आगे हीन सिद्ध नहीं होने देती है। नारी की गरिमा का वर्णन करती हुई वह कहती है- पुरुष उस नारी की ही देन, उसी के हाथों का निर्माण। (8) वीरांगना—वह पुरुष को विवश होकर क्षमा कर देने वाली असहाय अबला नहीं वरन् चुनौती देकर दण्ड देने को कटिबद्ध है– अरे ओ दुःशासन निर्लज्ज, देख तू नारी का भी क्रोध ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पाण्डव-कुलवधू, वीरांगना, स्वाभिमानिनी, आत्मगौरवसम्पन्न, सत्य और न्याय की पक्षधर, सती-साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मण्डित एवं नारी जाति का आदर्श है। |
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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :ऊधौ हम आजु भई बड़-भागी।जिन अँखियन तुम स्याम बिलोके, ते अँखियाँ हम लागीं।जैसे समन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी।अति आनंद होत है तैसैं, अंग-अंग सुख रागी। |
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Answer» प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है, जिसके रचयिता सूरदास जी हैं। संदर्भ : प्रस्तुत पद में गोपियाँ उद्धव को संबोधित करती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! आज हम स्वयं को बहुत भाग्यशाली मान रहे हैं क्योंकि जो आँखे हमारे प्यारे कृष्ण के दर्शन करके आयीं हैं उन्हीं आँखों के दर्शन हमें मिल गए हैं। भाव स्पष्टीकरण : सूरदास ने भ्रमर गीत में ब्रज की गोपिकाओं की विरह-व्यथा का बहुत ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। श्रीकृष्ण कंस को मारने मथुरा गए लेकिन बहुत दिनों तक वापस ब्रज नहीं आये। यहाँ श्रीकृष्ण के बिना गोपिकाएँ बहुत ही उदास थीं। वे कृष्ण की राह देखती थीं। श्रीकृष्ण अपने सखा उद्धव को ब्रज के बारे में जानने के लिए भेजते हैं। उद्धव से गोपिकाएँ कहती हैं – ‘आज हम बहुत ही भाग्यशालिनी बन गईं। जिन आँखों से तुमने श्याम को देखा उन आँखों को देखने का सौभाग्य हमें मिल रहा है। जैसे फूल सुगंध ले आता है, हवा प्यारे भौरे को, वैसे ही हमें श्रीकृष्ण का संदेश मिल गया है। श्रीकृष्ण के बारे में सुनकर बहुत ही आनंद हो रहा है और हमारे अंग-अंग में सुख का अनुभव हो रहा है नहीं तो हमारा विरह-व्यथा से जीना मुश्किल हो जाता। विशेष : अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार। ब्रज भाषा। |
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| 10327. |
रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर किस डाली पर बसना चाहते हैं? |
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Answer» रसखान पक्षी रूप में कालिंदी नदी के किनारे, कदंब के वृक्षों की डाली पर बसेरा करना चाहते हैं। |
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गोपी गले में कौन-सी माला पहनना चाहती है? |
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Answer» गोपी गले में गुंज की माला पहनना चाहती हैं। |
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गोपी क्या-क्या स्वांग भरती है? |
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Answer» गोपी अपने प्रियतम श्रीकृष्ण को पाने के लिए मोर-पंख का मुकुट पहनकर, गुंज की माला (रत्नों की माला) गले में धारण कर, पितम्बर ओढ़कर हाथ में लकुटिया लेना चाहती है। वह कृष्ण के सभी स्वाँग भरकर गोधन और ग्वालिनों के संग फिरना चाहती है परन्तु मुरलीधर की मुरली अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती है। |
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रसखान ब्रजभूमि में क्यों जन्म लेना चाहते हैं? |
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Answer» रसखान को कृष्ण की क्रीड़ा-स्थली ब्रजभूमि से बड़ा लगाव है। अतः वे कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ, तो गोकुल के ग्वालों के बीच मेरा जन्म हो, पशु हो तो नंदबाबा की गौओं में, पक्षी हों तो कालिंदी-कूल या यमुना के तट स्थित कदंब डालों पर और यदि पत्थर भी बनूँ तो गोवर्धन पर्वत के पत्थर के रूप में जन्म लूँ। |
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रसखान पशु रूप में जन्म लेने पर कहाँ रहना चाहते हैं? |
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Answer» रसखान पशु रूप में जन्म लेने पर नंदबाबा की गौओं में किसी गौ के रूप में जन्म लेना चाहते हैं। |
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रसखान मनुष्य रूप में अगला जन्म कहाँ लेना चाहते हैं? |
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Answer» रसखान मनुष्य रूप में अगला जन्म ब्रजभूमि (बृंदावन) में लेना चाहते हैं। |
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गोपी कृष्ण की मुरली कहाँ नहीं रखना चाहती? |
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Answer» गोपी कृष्ण की मुरली अपने अधरों या ओंठों पर नहीं रखना चाहती। |
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गोपी सिर पर क्या धारण करना चाहती है? |
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Answer» गोपी सिर पर मोर-मुकुट धारण करना चाहती हैं। |
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गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम कैसा है? |
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Answer» गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। वे अपने कृष्ण को पाने के लिए. कृष्ण को रिझाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं; परन्तु अपनी मर्यादा के साथ रहना चाहती हैं। गोपियाँ ब्रजभूमि, ब्रज के पशु-पक्षी तथा ब्रज की गौएँ आदि को कृष्णभक्ति में सहायक मानती हैं। |
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रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर किस डाली पर बसना चाहते हैं? |
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Answer» रसखान पक्षी रूप में जन्म लेने पर कदम्ब की डाल पर बसना चाहते हैं। |
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दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है। संस्कृति परम्परा से नि:सृत होने पर भी, परिवर्तनशील और गतिशील है। उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उद्भूत नयी सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा के परम्परागत प्रयोग पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए नये प्रयोगों की, नयी भाव-योजनाओं को व्यक्त करने के लिए नये शब्दों की खोज की महती आवश्यकता है।(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) प्रस्तुत अवतरण के माध्यम से लेखक ने किस बात पर बल दिया है?(iv) संस्कृति का एक अटूट अंग क्या है?(v) किसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है? |
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Answer» (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा श्रेष्ठ विचारक वे निबन्धकार जी० सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक शोधपरक निबन्ध से अवतरित है। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-भाषा में जो प्रयोग प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं, वे नये सांस्कृतिक परिवर्तनों को व्यक्त करने में समर्थ नहीं हैं। नित्यप्रति संस्कृति में हुए परिवर्तनों को भाषा द्वारा व्यक्त करने के लिए भाषा में नये-नये प्रयोगों, नये-नये शब्दों की खोज का कार्य होना बहुत आवश्यक है, जिससे बदलते हुए नये भावों को उचित रूप से व्यक्त किया जा सके। (iii) प्रस्तुत गद्यावतरण में लेखक ने विज्ञान की प्रगति के कारण जो सांस्कृतिक परिवर्तन होता है, उसे शब्दों द्वारा व्यक्त करने के लिए भाषा में नये प्रयोगों की आवश्यकता पर बल दिया है। (iv) संस्कृति का एक अटूट अंग भाषा है। (v) संस्कृति की गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है। |
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दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।नये शब्द, नये मुहावरे एवं नयी रीतियों के प्रयोगों से युक्त भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करना ही भाषा में आधुनिकता लाना है। दूसरे शब्दों में केवल आधुनिक-युगीन विचारधाराओं के अनुरूप नये शब्दों के गढ़ने मात्र से ही भाषा का विकास नहीं होता; वरन् नये पारिभाषिक शब्दों को एवं नूतन शैली-प्रणालियों को व्यवहार में लाना ही भाषा को आधुनिकता प्रदान करना है।(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) किसके गढ़ने मात्र से भाषा का विकास नहीं होता?(iv) किन चीजों को व्यवहार में लाना ही भाषा को आधुनिकता प्रदान करना है?(v) उपर्युक्त गद्यांश के माध्यम से लेखक ने कौन-सी बात बताई है? |
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Answer» (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा श्रेष्ठ विचारक व निबन्धकार जी० सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक शोधपरक निबन्ध से अवतरित है। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-किसी भाषा में आधुनिकता का समावेश तभी हो सकता है, जब उसमें नये-नये जनप्रचलित शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों को समाहित कर लिया जाए। इन बातों के समावेश से भाषा व्यावहारिक हो जाती है। (iii) आधुनिक युगीन विचारधाराओं के अनुरूप नये शब्दों के गढ़ने मात्र से भाषा का विकास नहीं होता। (iv) नये पारिभाषिक शब्दों को एवं नूतन शैली प्रणालियों को व्यवहार में लाना ही भाषा को आधुनिकता प्रदान करना है। (v) उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने भाषा को आधुनिक बनाने के उपाय बताए हैं। |
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दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।विज्ञान की प्रगति के कारण नयी चीजों का निरंतर आविष्कार होता रहता है। जब कभी नया आविष्कार होता है, उसे एक नयी संज्ञा दी जाती है। जिस देश में उसकी सृष्टि की जाती है वह देश उस आविष्कार के नामकरण के लिए नया शब्द बनाता है; वही शब्द प्रायः अन्य देशों में बिना परिवर्तन के वैसे ही प्रयुक्त किया जाता है। यदि हर देश उस चीज के लिए अपना-अपना अलग नाम देता रहेगा, तो उस चीज को समझने में ही दिक्कत होगी। जैसे रेडियो, टेलीविजन, स्पुतनिक।(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) कौन-सा देश किसी आविष्कृत चीज के नामकरण के लिए नया शब्द देता है?(iv) यदि हर देश आविष्कृत चीजों को अपना-अपना अलग नाम देता रहे तो क्या होगा?(v) नई चीजों के आविष्कार होने का क्या कारण है? |
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Answer» (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा श्रेष्ठ विचारक वे निबन्धकार जी० सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ शीर्षक शोधपरक निबन्ध से अवतरित है। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि यदि कोई विदेशी शब्द अपने भाव का सम्प्रेषण करने में सक्षम है तो उसमें परिवर्तन नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए-आज प्रत्येक देश में विज्ञान के क्षेत्र में भिन्न-भिन्न आविष्कार हो रहे हैं और उन्हें नये-नये नाम दिये जा रहे हैं। प्रत्येक देश अपने द्वारा आविष्कृत वस्तु का अपनी भाषा के अनुसार नामकरण कर रहा है और दूसरे देशों में भी वही नाम प्रचलित होता जा रहा है। (iii) जिस देश में किसी चीज की सृष्टि की जाती है वही देश उस आविष्कृत चीज के नामकरण के लिए नया शब्द देता है। (iv) यदि हर देश आविष्कृत चीजों को अपना-अपना अलग नाम देता रहे तो उस चीज को समझने में दिक्कत होगी। (v) नई चीजों के आविष्कार होने का कारण विज्ञान की प्रगति है। |
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निम्नलिखित परिच्छेद पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिएहर किसी को आत्मरक्षा करनी होगी, हर किसी को अपना कर्तव्य करना होगा । मैं किसी की सहायता की प्रत्याशा नहीं करता। मैं किसी का भी प्रत्याह नहीं करता । इस दुनयिा से मदद की प्रार्थना करने का मुझे कोई अधकिार नहीं है । अतीत में जनि लोगों ने मेरी मदद की है या भविष्य में भी जो लोग मेरी मदद करेंगे, मेरे प्रति उन सबकी करुणा मौजूद है, इसका दावा कभी नहीं किया जा सकता। इसीलिए मैं सभी लोगों के प्रति चरि कृतज्ञ हूँ । तुम्हारी परिस्तिति इतनी बुरी देखकर मैं बेहद चिंतति हूँ । लेकनि यह जान लो कि-‘तुमसे भी ज्यादा दुखी लोग इस संसार में हैं । मैं तुमसे भी ज्यादा बुरी परसि्थतिि में हूँ । इंग्लैंड में सब कुछ के लिए मुझे अपनी ही जेब से खर्च करना पड़ता है । आमदनी कुछ भी नहीं है । लंदन में एक कमरे का किराया हर सप्ताह के लिए तीन पाउंड होता है । ऊपर से अन्य कई खर्च हैं । अपनी तकलीफों के लिए मैं किससे शकिायत करूँ ? यह मेरा अपना कर्मफल है, मुझे ही भुगतना होगा ।’(१) कृति पूर्ण कीजिए :(२) उत्तर लिखिए :१. परिच्छेद में उल्लिखित देश - ______२. हर किसी को करना होगा - ______३. लेखक की तकलीफें - ______4. हर किसी को करनी होगी - ______(३) निर्देशानुसार हल कीजिए :(अ) निम्नलिखित अर्थ से मेल खाने वाला शब्द उपर्युक्त परिच्छेद से ढूँढ़कर लिखिए :१. स्वयं की रक्षा करना - ______२. दूसरों के उपकारों को मानने वाला - ______(ब) लिंग पहचानकर लिखिए :१. जेब - ______२. दावा - ______३. साहित्य - ______4. सेवा - ______(४) ‘कृतज्ञता’ के संबंध में अपने विचार लिखिए । |
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Answer» (१) १. कमरे का किराया: १. हर सप्ताह २. लेखक इनके प्रति कृतज्ञ हैं १. अतीत में जिन लोगों ने लेखक की मदद की है। (२) १. परिच्छेद में उल्लिखित देश - इंग्लैंड (३) (अ) १. स्वयं की रक्षा करना - आत्मरक्षा (ब) १. जेब - स्त्रीलिंग (४) कृतज्ञता का अर्थ है स्वयं की सहायता करनेवाले के प्रति कृतज्ञ होना। यह प्रार्थना, श्रद्धा, साहस, संतोष, प्रेम और परोपकार जैसे सद्गुणों के विकास की आधारशिला है। कृतज्ञता का भाव मानव के अंदर सद्चरित्र तथा परोपकार की भावना को लंबे समय तक जीवित रखता है। कृतज्ञता इंसानियत और परोपकार की एक स्नेहपूर्ण श्रृंखला है, जो मानव को मानव से जोड़ती है। यदि किसी के द्वारा किया गया कार्य हमारे लिए सुखकर या हितकारी है, तो उस कार्य के प्रति आभार प्रकट करना मानव-हृदय की सुंदर प्रवृत्ति को दर्शाता है। यही विनम्रता दूसरे व्यक्ति को भी सच्चा व्यवहार तथा परोपकार करने के लिए प्रेरित करती है। कृतज्ञता का भाव मनुष्य के हृदय की विशालता व उसके चरित्र को दर्शाता है। अत: कृतज्ञता जैसे श्रेष्ठ मानवीय गुण को अपने जीवन में उतारना चाहिए। |
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निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिएइतिहास न तुमको माफ करेगी याद रहे। |
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Answer» श्रमिक के अभ्युत्थान के लिए कवि ने चेतावनी दी है। भाषा-खड़ी बोली, शब्द शक्ति-लक्षणा, शैली-भावात्मक, गीत एवं रस-रौद्र |
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रसखान ब्रज में किन रूपों में जन्म लेने की इच्छा प्रकट करते हैं? |
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Answer» रसखान कहते हैं- यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनकर आऊँ, तो ब्रज के गोकुल गाँव में ग्वाला बनकर ही आऊँ। यदि पशु बनूँ तो नंद बाबा की गौओं के बीच में ही कोई गाय बनूँ। यदि पत्थर ही बन जाऊँ, तो वही गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ, जिसे कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए उठाया था। यदि पक्षी बनूँ तो यमुना नदी के किनारे कदम्ब वृक्षों पर रहने वाले पक्षियों के बीच मेरा बसेरा हो। |
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निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिएतन का, मन को पावन नाता कैसे तोड़ें? |
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Answer» कवि ने जीवन और मृत्यु की यथार्थता को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भाषा–खड़ी बोली, शब्द शक्तिलक्षणी, शैली-गीत एवं रस-शान्त |
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‘युगवाणी’ कविता का तात्पर्य बताइए। |
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Answer» युगवाणी कविता का तात्पर्य है-समयाधारित विचार। समय की माँग है कि राष्ट्र का विकास अनवरत गति से किया जाये ताकि मानवता का कल्याण हो। |
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शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» ‘सुमन’ जी की भाषा जनजीवन के समीप सरल तथा व्यावहारिक भाषा है।’सुमन’ जी की शैली में ओज और प्रसाद गुणों की प्रधानता है। |
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शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की रचनाओं का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» ‘सुमन’ जी की चर्चित रचनाएँ हैं-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया, विन्ध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरीं, मिट्टी की बारात आदि। |
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शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ किस धारा के कवि हैं? |
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Answer» शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी धारा के कवि हैं। |
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जी० सुन्दर रेड्डी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।याप्रो० जी० सुन्दर रेड्डी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं (कृतियों) का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» जीवन-परिचय–प्रोफेसर रेड्डी का जन्म आन्ध्र प्रदेश में सन् 1919 ई० में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा यद्यपि संस्कृत और तेलुगू में हुई, लेकिन ये हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। 30 वर्षों से भी अधिक समय तक ये आन्ध्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे। ये वहाँ के स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसन्धान विभाग के अध्यक्ष एवं प्रोफेसर भी रहे। इनके निर्देशन में हिन्दी और तेलुगू साहित्यों के विविध पक्षों के तुलनात्मक अध्ययन पर पर्याप्त शोधकार्य हुए हैं। साहित्यिक योगदान–जी० सुन्दर रेड्डी ने दक्षिण भारत की चारों भाषाओं तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम तथा उनके साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करते हुए उनकी आधुनिक गतिविधियों को सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया है। इनके साहित्य में इनका मानवतावादी दृष्टिकोण स्पष्ट झलकता है। तेलुगूभाषी होते हुए भी हिन्दी-भाषा में रचना करके इन्होंने एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऐसा करके आपने दक्षिण भारतीयों को हिन्दी और उत्तर भारतीयों को दक्षिण भारतीय भाषाओं के अध्ययन की प्रेरणा दी है। आपके निबन्ध हिन्दी, तेलुगू और अंग्रेजी भाषा की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। भाषा की समस्याओं पर अनेक विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है, किन्तु भाषा और आधुनिकता पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने वालों में प्रोफेसर रेड्डी सर्वप्रमुख हैं। रचनाएँ-अब तक प्रोफेसर रेड्डी के कुल 8 ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं(1) साहित्य और समाज, (2) मेरे विचार, (3) हिन्दी और तेलुगू : एक तुलनात्मक अध्ययन, (4) दक्षिण की भाषाएँ और उनका साहित्य, (5) वैचारिकी, (6) शोध और बोध, (7) तेलुगू वारुल (तेलुगू ग्रन्थ), (8) लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इण्डिया (सम्पादित अंग्रेजी ग्रन्थ)। साहित्य में स्थान-प्रोफेसर रेड्डी एक श्रेष्ठ विचारक, समालोचक और निबन्धकार हैं। अहिन्दी भाषी प्रदेश के निवासी होते हुए भी हिन्दी भाषा के ये प्रकाण्ड विद्वान् हैं। शोधकार्य एवं तुलनात्मक अध्ययन इनके प्रमुख विषय हैं। अहिन्दी क्षेत्र में आपका हिन्दी-रचना कार्य, हिन्दी-साहित्य के लिए वरदानस्वरूप है। गैर हिन्दी भाषी होते हुए भी प्रो० रेड्डी हिन्दी-साहित्य में एक आदर्श उदाहरण बने हुए हैं। |
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पद का भावार्थ लिखें:मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।ओढि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी ॥२॥ |
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Answer» भावार्थ : प्रस्तुत सवैये में एक गोपी दूसरी गोपी (सखी) से कहती है कि मैं अपने प्रिय कृष्ण को पाने के लिए उनकी इच्छानुसार सभी स्वाँग करने के लिए तैयार हूँ। कवि रसखान वर्णन करते हैं – मोर-पंख वाले मुकुट (किरीट) को सिर पर धारण करके, गुंजों (रत्नों) की माला गले में पहनूंगी। पीताम्बर ओढ़कर, हाथ में लकुटिया लेकर वन में गौओं के संग ग्वालिनी के साथ फिरूँगी। परन्तु कृष्ण के अधरों पर सुशोभित होने वाली वंशी को अपने होठो पर नहीं रदूंगी क्योंकि उनका यह विश्वास था कि कृष्ण हमारी अपेक्षा इस मुरली को अधिक प्रेम करते हैं। तथा यह हमसे अधिक सौभाग्यशाली है, हर समय कृष्ण के अधरों का प्यार पाती रहती है। इसलिए गोपियाँ इससे सौतिया डाह करती हैं। अतः वह सब कुछ करने को तैयार हैं, केवल मुरली को धारण करना नहीं चाहती। |
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ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिएःमोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माला गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥भावतो वोहि मेरो ‘रसखानि’, सो तेरे कहें सब स्वांग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की, अधरान-धरी अधरा न धरौंगी॥ |
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Answer» प्रसंग : प्रस्तुत सवैया हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘रसखान के सवैये’ नामक शीर्षक से लिया गया है जिसके रचयिता रसखान हैं। संदर्भ : गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम है। वे अपने कृष्ण को पाने के लिए, कृष्ण को रिझाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। स्पष्टीकरण : एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने पर सारा स्वांग भर लूँगी। वह मोर का पंख अपने सिर पर रख लेगी, गुंज की माला गले में पहन लेगी, पीला वस्त्र बदन पर ओढ़कर हाथ में लकुटी लेकर गोधन को ले ग्वालों के साथ वन में फिरेगी। जैसी सखी की इच्छा वह सब करेगी परन्तु कृष्ण की मुरली को अपने होटों से छूकर अपवित्र नहीं कर सकती। |
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