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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

10551.

दैव निदर्शन रीति के दो गुण बताइए।

Answer»

⦁    इस रीति द्वारा चयन में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
⦁    यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें श्रम, समय व धन की बचत होती है।

10552.

“एक दैव प्रतिदर्श वह प्रतिदर्श है, जिनका चयन इस प्रकार हुआ हो कि समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने का समान अवसर रहा हो।” यह कथन किसका है?(क) पीगू का(ख) प्रो० हाटे का(ग) हार्पर का(घ) पार्टन का

Answer»

सही विकल्प है (ग) हार्पर का

10553.

इनमे से कौन-सी विधि द्वारा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं, और क्यों?(क) गणना(जनगणना),(ख) प्रतिदर्श।

Answer»

गणना विधि की तुलना में प्रतिदर्श विधि द्वारा आँकड़े एकत्र करने से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। सांख्यिकी में प्रतिदर्श विधि को निम्नलिखित कारणों से प्राथमिकता दी जाती है

⦁    प्रतिदर्श कम खर्च में एवं अल्प समय में पर्याप्त विश्वसनीय एवं सही सूचनाएँ उपलब्ध करा सकते
⦁    प्रतिदर्श में सघन पूछताछ के द्वारा अधिक विस्तृत जानकारियाँ संगृहीत की जा सकती हैं।
⦁    प्रतिदर्श के लिए परिगणकों की छोटी टोली की ही जरूरत होगी जिन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है तथा उनके कार्य की निगरानी भली-भाँति की जा सकती है।
⦁    गणना संबंधी त्रुटियों की संभावना घट जाती है।

10554.

अभिनत एवं अनभिनत विभ्रम से क्या आशय है?

Answer»

सांख्यिकी विभ्रम दो प्रकार के होते हैं–
1. अभिनत विभ्रम तथा
2. अनभिनत विभ्रम।

1. अभिनत विभ्रम – अभिनत विभ्रम (biased error) प्रमाणकों अथवा सूचकों के पक्षपात अथवा दोषपूर्ण मापक यंत्रों के कारण उत्पन्न होते हैं। इन विभ्रमों का प्रभाव एक ही दिशा में होता है; अतः इनकी प्रकृति संचयी होती है।

2. अनभिनत विभ्रम – अनभिनत विभ्रम (unbiased error) बिना किसी पक्षपात की भावना के कारण उत्पन्न होते हैं और एक-दूसरे को काटने की प्रवृत्ति रखते हैं, इसीलिए इन्हें क्षतिपूरक विभ्रम’ भी कहते हैं।

10555.

यादृच्छिक संख्या सारणी का उपयोग करते हुए, अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 छात्रों के चयन के लिए यादृच्छिक प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

Answer»

10 छात्रों को दिए जाने वाले अंक हैं –  01 02 03 04 05 06 07 08 09 10
इन संख्याओं में से किसी एक संख्या को दैव आधार पर चयन किया जाएगा। इसके बाद दो क्रमागत संख्याओं का चयन करके 3 छात्रों का चुनाव कर लिया जाएगा। माना, दैव आधार पर चयनित संख्या 5 है तो चयनित छात्रों की संख्याएँ होंगी-5, 6 व 7.

10556.

प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की प्रमुख रीतियाँ बताइए।

Answer»

⦁    प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान,
⦁    अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान,
⦁    स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति,
⦁    सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ/प्रश्नावली भरना तथा
⦁    प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरना।

10557.

केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) का मुख्य कार्य क्या है?

Answer»

राष्ट्रीय आय के आँकड़ों का संकलन करना एवं उन्हें प्रकाशित करना।

10558.

दैव निदर्शन की परिभाषा दीजिए।

Answer»

दैव निदर्शन एक ऐसा रूप है जिसको चुनने की विधि के रूप में प्रयोग करने से यह निश्चित हो जाता है कि समग्र की प्रत्येक इकाई अथवा तत्त्व को चुने जाने का समान अवसर हो।

10559.

प्रश्नावली क्या है? प्रश्नावली व अनुसूची में क्या अन्तर है? प्रश्नावली बनाते समय किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए?

Answer»

सूचना दो प्रकार से प्राप्त हो सकती है
1. प्रश्नावलियों के प्रयोग से तथा
2. अनुसूचियों के द्वारा।

1. प्रश्नावली – प्रश्नावली में प्रश्न दिए रहते हैं। इनमें प्रश्नों के उत्तर के लिए रिक्त स्थान नहीं होता। उत्तर सूचकों द्वारा अलग प्रपत्रों पर लिखे जाते हैं। आजकल प्रश्नावली में प्रत्येक प्रश्न के साथ वैकल्पिक उत्तर छाप देने की पद्धति अपनाई जाती है जिससे सूचक सही उत्तर पर निशान लगा देता है।

2. अनुसूची – ‘अनुसूची’ प्रश्नों की वह सूची है जिसे प्रगणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता हैं यह एक रिक्त सारणी के रूप में होती है जिसमें प्रत्येक मद के सामने या नीचे प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिए रिक्त स्थान होता है।
प्रश्नावली तथा अनुसूची में अंतर – सामान्यतः प्रश्नावली एवं अनुसूची को एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है क्योंकि दोनों का ही उद्देश्य सूचना देने वालों से सूचना प्राप्त करना है किंतु प्रयोग विधि के आधार पर इन दोनों में सूक्ष्म अंतर है। प्रश्नावली में प्रश्नों के उत्तर सूचकों द्वारा स्वयं दिए जाते हैं। इसके विपरीत, अनुसूची में प्रश्नों की सूची के प्रगणकों द्वारा सूचकों से सूचना प्राप्त करके भरा जाता है। प्रश्नों के उत्तर के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिया जाता है। व्यवहार में दोनों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है।

प्रश्नावली का उदाहरण

आप अपने नगर में महाविद्यालय के छात्रों के व्ययों का अध्ययन करना चाहते हैं। इसके लिए प्रश्नावली का नमूना तैयार कीजिए।

मेरठ नगर के महाविद्यालयों में छात्रों की व्यय प्रवृत्ति का सर्वेक्षण
1. छात्र/छात्रा …………………………………………………………..
2. कक्षा-स्नातक/स्नातकोत्तर                                                                           संकाय : विधि/विज्ञान/कला/वाणिज्य
3. कॉलेज का नाम …………………………………………………………..
4. स्थायी निवास (गाँव/नगर का नाम)
5. यदि आप मेरठ के निवासी नहीं हैं तो मेरठ में रहने की व्यवस्था क्या है? छात्रावास/किराये का कमरा/रिश्तेदारों या परिचित के यहाँ आवास/प्रतिदिन आना-जाना।
6. आयु ……………………. वर्ष ……………………. माह ………………………….
7. पिता का नाम …………………………………………………………..
8. माँ का नाम …………………………………………………………..
9. पिता का व्यवसाय …………………………………………………………..
10. पिता की आय …………………………………………………………..
11. परिवार के अन्य सदस्यों की आय (यदि कोई हो) …………………………………………………………..
12. छात्र की मासिक आय (यदि कोई हो) …………………………………………………………..
13. छात्र की प्रतिमाह व्यय के लिए प्राप्त होने वाली राशि ………………………………..
(अ) परिवार से …………………………………………………………..
(ब) निजी आय से …………………………………………………………..
(स) छात्रवृत्ति से …………………………………………………………..
कुल राशि …………………………………………………………..
14. छात्र के मासिक व्यय के मद और राशि मद व्यय की राशि (निकटतम रुपया)
(i) कॉलेज की फीस …………………………………………………………..
(ii) पुस्तक एवं पाठ्य-सामग्री …………………………………………………………..
(iii) छात्रावास का किराया …………………………………………………………..
(iv) भोजन …………………………………………………………..
(v) बस/रेल का किराया …………………………………………………………..
(vi) खेलकूद व मनोरंजन पर व्यय …………………………………………………………..
(vii) अन्य व्यय …………………………………………………………..
15. क्या आपको मिलने वाली राशि पर्याप्त है? यदि नहीं, तो कितनी आवश्यकता और समझते हो? ……………………………….
16. क्या आप अपने वर्तमान मासिक व्यय में से कुछ बचत कर सकते हैं? यदि हाँ, तो मद और बचत का अनुमानित विवरण ……………..
17. अन्य संबंधित सूचना …………………………………………………………..

उत्तम प्रश्नावली के लिए सावधानियाँ

सांख्यिकीय अनुसंधान की सफलता मुख्य रूप से प्रश्नावली की उत्तमता पर निर्भर करती है; अतः प्रश्नावली तैयार करते समय सावधानी व सतर्कता बरतनी आवश्यक है। एक प्रश्नावली की रचना करते समय अग्रलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए

1. निवेदन पत्र – अनुसंधानकर्ता को प्रश्नावली के साथ एक निवेदन पत्र लगाना चाहिए जिससे वह अपना परिचय दे, अनुसंधान का उद्देश्य बताए तथा सूचना को गुप्त रखने तथा इसका दुरुपयोग न करने का विश्वास दिलाए।

2. प्रश्नों की संख्या कम – प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या कम होनी चाहिए। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न इतने कम न हो जाएँ कि पर्याप्त सूचना ही प्राप्त न हो सके।

3. सरल व स्पष्ट प्रश्न – प्रश्न सरल, स्पष्ट व सूक्ष्म होने चाहिए। अधिकांश प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर ‘हाँ’ या नहीं में दिया जा सके। प्रश्नों में अप्रचलित, जटिल व असम्मानसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

4. उचित क्रम – प्रश्न प्राथमिकता अथवा महत्त्व के क्रम में रखे जाने चाहिए। परस्पर संबंधित प्रश्नों ” को एक ही स्थान पर केन्द्रित किया जाना चाहिए।

5. वर्जित प्रश्न – प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न सम्मिलित नहीं किए जाने चाहिए जिनसे सूचक के आत्मसम्मान तथा सामाजिक व धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचे, जो उनके मन में संदेह, उत्तेजना या विरोध उत्पन्न करे अथवा जो उसके व्यक्तिगत व्यवहार से संबंधित हों। प्रो० सेक्राइस्ट के शब्दों में-“यदि कठिन तथा अपरिचित प्रश्नों अथवा अविश्वास या संदेह उत्पन्न करने वाले प्रश्नों को पूछा जाता है तो उनके उत्तर अपूर्ण, संक्षिप्त, अर्थहीन, सामान्य या जानबूझकर टालने वाले होने की संभावना रहती है।”
6. प्रश्नों की प्रकृति – प्रश्न चार प्रकार के हो सकते हैं—
(i) सामान्य विकल्पीय प्रश्न – ऐसे प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ या नहीं’ अथवा ‘गलत’ या ‘सही’ दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए क्या आपके पास कार है? अथवा क्या आप किराये के मकान में रहते हैं? इस प्रकार के प्रश्नों का गठन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

(ii) बहुविकल्पीय प्रश्न – इस प्रकार के प्रश्नों में अनेक संभव उत्तर होते हैं। ये उत्तर प्रश्नावली में छपे होते हैं और सूचक उनमें से किसी एक पर निशान लगा देता है।
(iii) विशिष्ट जानकारी देने वाले प्रश्न – ये प्रश्न विशिष्ट जानकारी प्रदान करते हैं; जैसे-आपकी आयु क्या है? आपके कितने बच्चे हैं?

(iv) खुले प्रश्न – इन प्रश्नों का उत्तर सूचक को अपने शब्दों में देना होता है। उदाहरण के लिए भारत में मुद्रा स्फीति को किस प्रकार नियन्त्रित किया जा सकता है? प्रश्नावली में जहाँ तक संभव हो सके, प्रथम प्रकार के प्रश्न पूछे जाने चाहिए।

7. प्रश्नों में उचित शब्दों का प्रयोग – प्रश्नों के गठन में सही स्थान पर सही शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनके अर्थ प्रमापित एवं सर्वविदित हों।

8. प्रत्यक्ष संबंध – प्रश्न अनुसंधान से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होने चाहिए ताकि व्यर्थ की सूचना एकत्र करने में धन, श्रम व समय का अपव्यय न हो।

9. सत्यता की जाँच – प्रश्नावली में ऐसे प्रश्नों को भी समावेश होना चाहिए जिससे उत्तरों की यथार्थता की परस्पर जाँच की जा सके।

10. प्रश्नावली का गठन – प्रश्नावली के गठन पर उपयुक्त ध्यान दिया जाना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ना चाहिए।

11. सूचक की योग्यता के अनुसार प्रश्न – प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न होने चाहिए जिनके उत्तर सूचक सरलता से दे दें।

12. आवश्यक निर्देश – प्रश्नावली भरने के संबंध में प्रश्नावली के प्रारम्भ में अथवा अंत में स्पष्ट रूप से आवश्यक निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि सूचक को सूचना देने में आसानी हो।

13. पूर्व परीक्षण एवं संशोधन – प्रश्नावली के तैयार हो जाने पर, अनुसंधान कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व उसका कुछ लोगों पर परीक्षण कर लेना चाहिए। इससे प्रश्नावली के दोषों को दूर करने में सहायता मिलेगी।

10560.

क्या सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं? अपने उत्तर की कारण सहित व्याख्या करें।

Answer»

हाँ, यह सत्य है कि सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—
⦁    प्रतिदर्श प्रणाली में समय, धन व श्रम सर्वेक्षणों की तुलना में कम व्यय होता है।
⦁    इस प्रणाली का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत क्षेत्र में किया जा सकता है।
⦁    इस प्रणाली में गणना संबंधी त्रुटियाँ कम होती हैं।
⦁    इस प्रणाली में अपेक्षाकृत कम गणनाकारों व पर्यवेक्षकों की आवश्यकता होती है।
संक्षेप में प्रतिदर्श प्रणाली अधिक सरल, मितव्ययी व शुद्ध निष्कर्ष देने वाली हैं।

10561.

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति के दो गुण बताइए।

Answer»

⦁    एकत्रित समंक अत्यधिक विश्वसनीय होते हैं।
⦁    समंकों में मौलिकता रहती है।

10562.

समग्र से क्या आशय है?

Answer»

अनुसंधान क्षेत्र की संपूर्ण इकाइयाँ सामूहिक रूप से ‘समग्र’ कहलाती हैं।

10563.

निदर्शन अनुसंधान रीति के लिए उपयुक्त चार दशाएँ बताइए।

Answer»

⦁    जब समग्र अनंत हो,
⦁    जब समग्र विस्तृत हो,
⦁    जब धन, समय की बचत करनी हो तथा
⦁    जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो।

10564.

ऊन धारण करने वाले जन्तु हैं।(अ) ऊँट तथा याक(ब) ऐल्पेका तथा लामा(स) अंगोरा बकरी तथा कश्मीरी बकरी(द) उपरोक्त सभी

Answer»

सही विकल्प है (द) उपरोक्त सभी

10565.

भेड़ तथा रेशम कीट होते हैं-(अ) शाकाहारी(ब) मांसाहारी(स) सर्वाहारी(द) अपमार्जक

Answer»

सही विकल्प है (अ) शाकाहारी

10566.

रेशम है-(अ) मानव निर्मित रेशे(ब) पादप रेशे(स) जन्तु रेशे(द) उपरोक्त सभी

Answer»

सही विकल्प है (स) जन्तु रेशे

10567.

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति का प्रयोग सर्वप्रथम भारत में किसने किया?(क) ली प्ले ने(ख) आर्थर यंग ने(ग) यूल ने(घ) सैलिगमैन ने

Answer»

सही विकल्प है  (ख) आर्थर यंग ने

10568.

संकलन के विचार से समंकों के प्रकार हैं(क) दो(ख) तीन(ग) चार

Answer»

सही विकल्प है (क) दो।

10569.

निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान क्या है? प्रतिदर्श प्रणाली के गुण व दोष बताइए।

Answer»

निदर्शन याप्रतिदर्श अनुसंधान

संगणना के विपरीत, इस प्रणाली के अंतर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को छाँटकर (दूसरे शब्दों में समस्त समूह के एक अंग का) उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है; उदाहरण के लिए यदि किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से संबंधित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थी का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं। इससे जो निष्कर्ष निकलेंगे, वे समस्त समग्र पर लागू होंगे। प्रतिदर्श प्रणाली का आधार यह है कि छाँटे हुए प्रतिदर्श (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएँ होती हैं, जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।

वास्तव में, प्रतिदर्श प्रणाली को संगणना प्रणाली से अधिक अच्छा समझा जाता है; क्योंकि संगणना प्रणाली की समस्त सीमाओं को प्रतिदर्श प्रणाली द्वारा दूर किया जाता है। प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग कहीं-कहीं तो आवश्यक हो जाता है; क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएँ व समग्र होते हैं, जहाँ संगणना प्रणाली का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता।

प्रतिदर्श अनुसंधान के लिए उपयुक्त दशाएँ – निम्नलिखित दशाओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।

1. जब समग्र अनंत हो – जब समग्र अनंत अथवा कभी न समाप्त होने वाला हो तो संगणना अनुसंधान संभव नहीं हो पाता जैसे नवजात शिशुओं की किसी निश्चित समय पर गणना करना संभव नहीं है। इस प्रकार की समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इसमें समय, धन व परिश्रम की बचत होती है।

2. जब समग्र नाशवान् प्रकृति का हो – कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनका सर्वेक्षण संगणना प्रणाली द्वारा करने पर समस्या या समग्र के ही नष्ट हो जाने की संभावना हो जाती है; उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के शरीर में पाए जाने वाले रक्त का परीक्षण संगणना प्रणाली के आधार पर नहीं किया जा सकता। ऐसी समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग करना ही उचित होता है।

3. जब समग्र विस्तृत हो – विस्तृत समग्र के लिए प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इससे अनुसंधान कार्य कम समय, कम धन वे कम श्रम से ही संपन्न किया जा सकता है।

4. जब संगणना प्रणाली अव्यावहारिक हो – कुछ समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली को ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि संगणना द्वारा उन समस्याओं का अध्ययन अव्यावहारिक होता है; उदाहरण के लिए भूगर्भ में छिपे हुए खनिज पदार्थों का अनुमान सदैव प्रतिदर्श प्रणाली के आधार पर ही किया जाता है।

5. जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो – प्रतिदर्श प्रणाली एक मितव्ययी प्रणाली है। अतः जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो तो इसी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
6. जब नियमों का प्रतिपादन करना हो – जब व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो तो इस प्रणाली का प्रयोग ही श्रेयस्कर होता है।

7. जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो – यदि अनुसंधान से संबंधित वस्तुएँ शीघ्र परिवर्तनशील हैं तो प्रतिदर्श प्रणाली ही अपनाई जाती है।

प्रतिदर्श प्रणाली के गुण
⦁    यह रीति मितव्ययी है। इसमें समय, धन तथा श्रम सभी की बचत होती है।
⦁    शीघ्रता से बदलती हुई आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में यह प्रणाली अधिक उपयोगी है।
⦁    ऐसे सामाजिक अनुसंधानों में, जहाँ विस्तृत तथा निरन्तर अन्वेषण की आवश्यकता होती है, प्रतिदर्श अनुसंधान ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।
⦁    इस प्रणाली द्वारा गहन अनुसंधान संभव है।
⦁    इस प्रणाली के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष पूर्णत: विश्वसनीय तथा शुद्ध होते हैं।
⦁    प्रतिदर्श अनुसंधान कार्य का संगठन व प्रशासन करना अधिक सुविधाजनक होता है।
⦁    कुछ विशेष दशाओं में प्रतिदर्श अनुसंधान ही एकमात्र उपयुक्त प्रणाली होती है।
प्रतिदर्श प्रणाली के दोष
⦁    यदि प्रतिदर्श की इकाइयों का चुनाव निष्पक्ष रूप से नहीं किया गया तो निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं।
⦁    प्रतिनिधि प्रतिदर्श बनाना कठिन होता है।
⦁    प्रतिदर्श अनुसंधान प्रणाली के प्रयोग के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है, जिसके अभाव में अनुसंधानकर्ता भयंकर त्रुटियाँ कर सकता है।
⦁    कभी-कभी समग्र इतना छोटा होता है कि उनमें से प्रतिदर्श बनाना संभव ही नहीं होता।
⦁    विजातीय और अस्थिर समग्र में प्रतिदर्श प्रणाली अधिक उपयुक्त नहीं होती है।

10570.

संगणना अनुसंधान किसे कहते हैं?

Answer»

जब अनुसंधान के विषय में संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है। तो वह ‘संगणना अनुसंधान’ कहलाएगा।

10571.

संगणना (सर्वेक्षण) अनुसंधानें क्या है? इसके गुण व दोष बताइए।

Answer»

अनुसंधान क्षेत्र की संपूर्ण इकाइयाँ सामूहिक रूप से ‘समग्र’ कहलाती हैं। समग्र दो प्रकार का होता है

(अ) निश्चित अथवा अनन्त समग्र – निश्चित समग्र में इकाइयों की संख्या निश्चित होती है; जैसे—किसी कॉलेज के छात्र या मिल के श्रमिक। इसके विपरीत, अनंत समग्र में इकाइयों की संख्या भी अनंत होती है; जैसे-नवजात शिशुओं का भार अथवा स्वास्थ्य के विषय में अनुसंधान।
(ब) वास्तविक अथवा काल्पनिक समग्र – ठोस विषय वाले समग्र को वास्तविक समग्र कहते हैं; जैसे – विश्वविद्यालय के छात्र। काल्पनिक विषय वाले समग्र को काल्पनिक समग्र कहते हैं; जैसे – सिक्कों की उछाल के आधार पर चित्र-पट के गिरने की संख्या में बना समग्र।
अनुसंधान के प्रकार अनुसंधान की प्रकृति दो प्रकार की हो सकती है
(अ) संगणना अनुसंधान,
(ब) प्रतिदर्श अनुसंधान।

संगणना अनुसंधान

जब अनुसंधान के विषय में संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है तो वह ‘संगणना अनुसंधान’ कहलाता है। इस रीति के अनुसार, अनुसंधान करते समय अनुसंधानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसंधान से संबंधित प्रत्येक इकाई के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना।

उपयुक्तता – संगणना अनुसंधान का प्रयोग वहाँ उचित है|
⦁    जहाँ समग्र या क्षेत्र का आकार सीमित हो।
⦁    जहाँ सांख्यिकीय इकाई में विजातीयता अथवा विविध गुण पाए जाते हैं।
⦁    जहाँ परिशुद्धता का ऊँची स्तर आवश्यक हो।
⦁    जहाँ विषय का गहन अध्ययन करना हो अथवा व्यापक सूचनाएँ एकत्र करनी हों।

संगणना अनुसंधान के गुण
⦁    गहन अध्ययन–इस रीति द्वारा विषय का गहन अध्ययन संभव है। इससे अनुसंधानकर्ता को उस विषय को पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
⦁    अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय परिणाम-इस रीति द्वारा संकलित समंक अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। अत: उनसे निकाले गए परिणाम भी अधिक सत्य एवं विश्वसनीय होते हैं।
⦁    विस्तृत जानकारी—इस रीति द्वारा समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है। अत: अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आ जाते हैं।
⦁    उपयुक्तता-जब समग्र का आकार सीमित हो और सांख्यिकीय इकाइयों में विजातीयता अथवा विविधता का गुण पाया जाता हो तो यह रीति सर्वथा उपयुक्त होती है।
⦁    कुछ दशाओं में आवश्यक-यदि जाँच की प्रकृति ऐसी हो कि सभी पदों का समावेश आवश्यक हो तो इस रीति का प्रयोग आवश्यक होता है।

संगणना अनुसंधान के दोष
⦁    अधिक व्ययसाध्य-यह विधि अत्यधिक खर्चीली है, क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता को समग्र की प्रत्येक इकाई से संबंध स्थापित करना पड़ता है।
⦁    अधिक समय व परिश्रम-इस रीति में समय भी अधिक लगता है और अनुसंधानकर्ता को परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है।
⦁    सांख्यिकीय विभ्रम—इस रीति में सांख्यिकीय विभ्रम (Statistical errors) का पता नहीं लगाया जा सकता।
⦁    व्यापक संगठन की आवश्यकताइस रीति द्वारा अनुसंधानकर्ता को कार्य में व्यापक संगठ की आवश्यकता पड़ती है।
⦁    अनेक परिस्थितियों में असंभव-यदि समग्र अनंत है, अनुसंधान क्षेत्र विशाल व जटिल है, समग्र की प्रत्येक इकाई से संपर्क स्थापित करना संभव नहीं है अथवा अनुसंधान विधि में समग्र की संपूर्ण इकाइयाँ नष्ट हो जाती हैं तो संगणना अनुसंधान असंभव हो जाता है।

10572.

संगणना अनुसंधान रीति के दो गुण बताइए।

Answer»

⦁    इस रीति द्वारा संकलित समंक अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं।
⦁    इस रीति के द्वारा समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है।

10573.

निदर्शन अनुसंधान के लिए आवश्यक दशाएँ बताइए।

Answer»

निम्नलिखित दशाओं में निदर्शन प्रणाली का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है
⦁    जब समग्र अनंत अथवा कभी भी समाप्त न होने वाला हो।
⦁    जब समग्र अत्यधिक विस्तृत हो।
⦁    जब संगणना प्रणाली द्वारा समस्या का अध्ययन असंभव हो।
⦁    जब समग्र नाशवान प्रकृति का हो।
⦁    जब धन, समय व परिश्रम की बचत करनी हो।
⦁    जब व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो।
⦁    जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो।

10574.

भेड़ के रेशों की चिकनाई, धूल और गर्त निकालने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया कहलाती है।(अ) अभिमार्जन(ब) संसाधन(स) रीलिंग(द) कटाई तथा छैटाई

Answer»

सही विकल्प है (अ) अभिमार्जन

10575.

द्वितीयक समंकों का प्रयोग करने से पूर्व इनमें से किस बात की जाँच कर लेनी चाहिए?(क) समंकों की उद्देश्य के प्रति अनुकूलता(ख) समंकों की विश्वसनीयता(ग) समंकों की पर्याप्तता(घ) उपर्युक्त सभी की

Answer»

सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी की।

10576.

प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों से क्या आशय है? प्रत्येक की एक-एक परिभाषा दीजिए। 

Answer»

संकलन के विचार से समंक दो प्रकार के होते हैं
⦁    प्राथमिक समंक तथा
⦁    द्वितीयक समंक।

1. प्राथमिक समंक – प्राथमिक समंक, वे समंक होते हैं, जिन्हें अनुसंधानकर्ता प्रयोग में लाने के लिए पहली बार स्वयं एकत्रित करता है। दूसरे शब्दों में, यह अनुसंधाने मौलिक होता है। होरेस सेक्राइस्ट के शब्दों में-“प्राथमिक समंकों से यह आशय है कि वे मौलिक हैं अर्थात् उनका समूहीकरण बहुत ही कम हुआ है या नहीं हुआ है, घटनाओं का अंकन या गणन उसी प्रकार किया गया है जैसा पाया गया है। मुख्य रूप से वे कच्चे पदार्थ होते हैं।”

2. द्वितीयक समंक – “द्वितीयक समंक, वे समंक हैं, जो पहले से किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा अपने किसी निजी उद्देश्य के लिए एकत्रित किए हुए होते हैं। इन्हें अनुसंधानकर्ता स्वयं संकलित नहीं करता अपितु वह किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित सामग्री का प्रयोग करता है। ब्लेयर के शब्दों में “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किए गए हैं।”

10577.

सर्वेक्षण अथवा संगणना एवं निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान से क्या आशय है?

Answer»

संगणना अथवा सर्वेक्षण अनुसंधान-जब अनुसंधान के विषय से संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है तो वह संगणना अथवा सर्वेक्षण अनुसंधान कहलाता है। इस रीति के अनुसार अनुसंधान करते समय अनुसंधानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसंधान से संबंधित प्रत्येक इकाई के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना।

निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान – निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान के अंतर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को छाँटकर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि हमें किसी कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से संबंधित सर्वेक्षण करना हो तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थी का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनको अध्ययन कर सकते हैं। इससे जो निष्कर्ष निकलेंगे, वे समस्त समग्र पर लागू होंगे।

10578.

सफेद कपड़ों को रंगीन कपड़ों के साथ क्यों नहीं धोना चाहिए?

Answer»

सफेद कपड़ों को यदि रंगीन कपड़ों के साथ धोया जाता है तो सफेद कपड़ों पर रंगीन कपड़ों का रंग लग जाने की आशंका रहती है।

10579.

धुलाई के काम आने वाली मुख्य वस्तुएँ बताइए।

Answer»

धुलाई के काम आने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं-जल, टब, बाल्टी, मग, ब्रश, साबुन या डिटर्जेण्ट पाउडर, नील, कलफ तथा चाहें तो कपड़े धोने की मशीन।

10580.

वस्त्रों की धुलाई के मुख्य चरण कौन-कौन से हैं?

Answer»

वस्त्रों की धुलाई के मुख्य चरण हैं

(1) कपड़ों को पानी में भिगोना
(2) साबुन या कोई शोधक पदार्थ लगाना
(3) मैल निकालना
(4) साफ पानी में खंगालना
(5) सुखाना

10581.

वस्त्रों की धुलाई के मुख्य उद्देश्य बताइए।

Answer»

वस्त्रों की सफाई, उनकी दुर्गन्ध समाप्त करना, सुरक्षा, सुन्दर बनाना, व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा बचत करना वस्त्रों की धुलाई के मुख्य उद्देश्य हैं।

10582.

धूल तथा चिकनाई मिलकर क्या बन जाती है?(क) गन्दगी(ख) मिट्टी(ग) मैल(घ) हानिकारक पदार्थ

Answer»

सही विकल्प है (ग) मैल

10583.

वस्त्रों और कालीन को धूप में सुखाना क्यों आवश्यक है?

Answer»

वस्त्रों और कालीन को धूप में सुखाने से उनकी नमी एवं दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है तथा विभिन्न जीवाणु भी मर जाते हैं।

10584.

चिकनाई का धब्बा किस प्रकार छुड़ाया जा सकता है?

Answer»

चिकनाई का धब्बा छुड़ाने के लिए कपड़े को साबुन तथा गर्म पानी से धोया जाता है।

10585.

कीड़ों तथा फफूदी से वस्त्रों की रक्षा आप किस प्रकार करेंगी?

Answer»

वस्त्रों को कीड़ों से बचाने के लिए उन्हें सुरक्षित स्थान पर सँभालकर रखना चाहिए। ऊनी वस्त्रों को बन्द करते समय उनमें नेफ्थलीन की गोलियाँ या नीम की सूखी पत्तियाँ रखनी चाहिए। फफूदी से बचाव के लिए कपड़ों को कभी भी नम या गीली दशा में बन्द करके नहीं रखना चाहिए। यदि अधिक समय तक बन्द रखना हो तो वस्त्रों में कलफ भी नहीं लगा होना चाहिए।

10586.

ऊनी कपड़ों को समतल स्थान पर क्यों सुखाते हैं?

Answer»

ऊनी कपड़ों के आकार को बिगड़ने से बचाने के लिए समतल स्थान पर सुखाते हैं।

10587.

नायलॉन व टेरीलीन वस्त्रों की धुलाई किस प्रकार की जाती है?

Answer»

मानवकृत तन्तुओं से निर्मित इन वस्त्रों को धोने के लिए मध्यम तापक्रम के जल का उपयोग किया जाता है। कम क्षार वाले साबुन, सर्फ, जेण्टील तथा रीठों का सत आदि कृत्रिम वस्त्रों को धोने के लिए उपयुक्त रहते हैं। कृत्रिम वस्त्रों को धोते समय उन्हें बलपूर्वक रगड़ना नहीं चाहिए। इन्हें साबुन लगाकर अथवा झागयुक्त साबुन के घोल में डालकर हल्के-हल्के मलकर धोना चाहिए। अधिक मैले भाग पर अतिरिक्त साबुन लगाकर धोना चाहिए। अब वस्त्रों को 2-3 बार साफ पानी में खंगालना चाहिए।

कृत्रिम वस्त्रों को निचोड़ना नहीं चाहिए। इन्हें तौलिए में लपेटकर दबा-दबाकर इनका पानी निकालना चाहिए। अब इन्हें हैंगर पर लटकाकर सुखाना चाहिए। इस प्रकार सुखाने से इनमें सलवटें नहीं पड़ती हैं, जिससे इन पर इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं रहती है। रंगीन वस्त्रों को धूप में नहीं सुखाना चाहिए।

10588.

वस्त्रों की धुलाई के सामान्य सिद्धान्त लिखिए।

Answer»

वस्त्रों की धुलाई को कार्य दैनिक पारिवारिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। अतः इस कार्य के व्यावहारिक पक्ष के साथ-ही-साथ सैद्धान्तिक पक्ष को जानना भी आवश्यक है। वस्त्रों की धुलाई के सैद्धान्तिक पक्ष के अन्तर्गत दो तथ्यों की जानकारी आवश्यक है। प्रथम यह कि वस्त्र कैसे गन्दे या मैले हो जाते हैं तथा दूसरा यह कि इन्हें साफ करने का क्या उपाय है? | वस्त्रों की गन्दगी के लिए दो कारक जिम्मेदार होते हैं। प्रथम है धूल या उड़ने वाली गन्दगी। इस प्रकार की गन्दगी वस्त्रों पर चिपकती नहीं है। वस्त्रों से इस प्रकार की गन्दगी को अलग करने के लिए वस्त्रों को ब्रश से अच्छी प्रकार से झाड़ा जाता है। इसके अतिरिक्त सरलता से धोये जाने वाले वस्त्रों को भली-भाँति पानी द्वारा खंगाल लेने से भी धूल-मिट्टी अलग हो जाती है। वस्त्रों को गन्दा करने वाला दूसरा कारक है-स्थिर गन्दगी यो मैल। नमी, चिकनाई या पसीने में बाहरी धूल मिट्टी पड़ जाने पर वह चिपककर स्थिर गन्दगी या मैल का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार की गन्दगी को वस्त्रों से अलग करने के लिए कुछ अतिरिक्त उपाय करने पड़ते हैं। इसके लिए जिस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, उसे ही व्यवस्थित धुलाई कहा जाता है। धुलाई के लिए जल एवं शोधक पदार्थ (साबुन आदि) की आवश्यकता होती है। शोधक पदार्थों द्वारा मैल को घोलकर वस्त्रों से अलग किया जाता है तथा बार-बार साफ पानी में खंगाल कर वस्त्रों को पूरी तरह से साफ कर लिया जाता है।

10589.

द्वितीयक सामग्री का प्रयोग करैते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?

Answer»

द्वितीयक सामग्री का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रक्नी चाहिए
⦁    पिछला अनुसंधानकर्ता योग्य, कार्यकुशल, ईमानदार व अनुभवी होना चाहिए।
⦁    उद्देश्य एवं क्षेत्र समान होना चाहिए।
⦁    न्यादर्श का आकार उपयुक्त होना चाहिए।
⦁    समंक संकलन के लिए अपनाई गई रीति विश्वसनीय होनी चाहिए।
⦁    इकाई उपयुक्त होनी चाहिए।
⦁    शुद्धता का स्तर ऊँचा होना चाहिए।
⦁    उपसादन कम-से-कम अंशों तक किया जाना चाहिए।
⦁    इस बात की जाँच कर लेनी चाहिए कि समंक किस ‘समय’ में तथा किन ‘परिस्थितियों में प्रयुक्त किए गए थे।
⦁    यदि अनेक स्रोतों से समंक लिए जाएँ तो उनकी तुलनीयता की जाँच कर लेनी चाहिए।
⦁    प्रतिशत, दर, गुणांक आदि की गणना करके उनकी सत्यता की जाँच कर लेनी चाहिए। द्वितीयक समंकों का प्रयोग करते समय यह देख लेना चाहिए कि समंक विश्वसनीय पर्याप्त एवं उपयुक्त

10590.

सफेद सूती वस्त्रों का पीलापन आप कैसे दूर करेंगी?

Answer»

सूती वस्त्रों को साबुन के पानी में उबालने से उनकी चिकनाई व प्रोटीन के धब्बे दूर हो जाते हैं तथा उनका पीलापन दूर हो जाता है। धोने के उपरान्त किसी अच्छे श्वेतक का प्रयोग भी किया जा सकता है। नील लगाने से भी सूती वस्त्रों की सफेदी खिल उठती है।

10591.

सफेद सूती वस्त्रों की धुलाई की विधि लिखिए।

Answer»

सूती वस्त्रों की धुलाई

सूती वस्त्रों को धोते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
⦁    सफेद व रंगीन वस्त्रों को अलग-अलग कर देना चाहिए।
⦁     टूटे बटन वाले व फटे वस्त्रों की मरम्मत कर लेने चाहिए।
⦁    वस्त्रों पर लगे दाग-धब्बे छुड़ा लेने चाहिए।
⦁    वस्त्रं धोने की सामग्री; जैस – टब, बाल्टी, मग, साबुन, स्टार्च, नील आदि; को सुविधाजनक स्थान पर एकत्रित कर लेना चाहिए।
⦁    सूती वस्त्रों को ठण्डे गुनगुने पानी में 4-5 घण्टे तक भिगो देने से उनका मैल गल जाता है।
 
धोने की विधि:
मजबूत सूती वस्त्रों पर साबुन लगाकर दबाव के साथ रगड़ा जाता है। एक बाल्टी में पानी भरकर साबुन के फ्लेक्स अथवा पाउडर घोलकर झाग उत्पन्न कर लेने चाहिए। अब सूती वस्त्रों को इसमें भिगोकर कसकर रगड़े। अधिक मैले स्थानों पर अतिरिक्त साबुन लगाकर दोबारा रगड़ना चहिए। अब इन्हें निचोड़कर 3-4 बार साफ पानी में खंगालें।

कई बार धोने पर सफेद वस्त्रों में पीलापन आने लगता है। इस प्रकार के वस्त्रों को धोने के लिए खौलते हुए पानी को प्रयोग में लाना चाहिए। एक बड़े भगौने में पानी व साबुन का घोल बनाकर वस्त्र भिगोकर उन्हें 15-20 मिनट तक उबालना चाहिए तथा वस्त्रों को लकड़ी की थपकी से चलाते रहना चाहिए। अब जल को ठण्डा होने दें। वस्त्रों को अच्छी प्रकार से रगड़कर निचोड़ लें तथा साफ पानी में 3-4 बार खंगालकर इनसे साबुन के अंश दूर करें। इस विधि द्वारा वस्त्रों का नि:संक्रमण हो जाता है। तथा चिकनाई एवं प्रोटीन के धब्बे भी दूर हो जाते हैं।

सूती वस्त्रों में धुलाई के पश्चात् नील व कलफ लगाया जाता है। इसके लिए एक टब में एक लीटर पानी लेकर उपयुक्त मात्रा में नील व कलफ (स्टार्च) घोल लिया जाता है। अब इसमें धुले वस्त्रों को भिगोकर तथा हल्के दबाव से निचोड़कर सुखा देना चाहिए। ध्यान रहे कि रंगीन कपड़ों को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। सफेद वस्त्रों में अतिरिक्त चमक-दमक लाने के लिए रानीपाल का प्रयोग भी किया जाता है।

10592.

रीठे के घोल में कौन-कौन से वस्त्र धोये जाते हैं और क्यों?

Answer»

रीठे के घोल में मुख्य रूप से ऊनी तथा रेशमी वस्त्र धोये जाते हैं। वास्तव में रीठे के घोल में किसी प्रकार का क्षार नहीं होता। इस स्थिति में क्षार से खराब होने वाले ऊनी एवं रेशमी वस्त्र रीठे के घोल में धोने पर खराब नहीं होते।

10593.

रंगीन वस्त्रों को धोकर धूप में क्यों नहीं सुखाना चाहिए?

Answer»

रंगीन वस्त्रों को धोकर धूप में सुखाने से इन वस्त्रों का रंग बिगड़ जाने की आशंका रहती है।

10594.

धुलाई से पूर्व वस्त्रों की छंटाई करना क्यों आवश्यक है?

Answer»

सफेद एवं रंगीन कपड़ों को अलग-अलग धोना आवश्यक होता है ताकि सफेद वस्त्रों पर रंग न लगे। इसी प्रकार रेशमी, ऊनी तथा सूती वस्त्रों को भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा धोना आवश्यक होता है। अतः धुलाई से पूर्व वस्त्रों की छंटाई करनी आवश्यक होता है।

10595.

कपड़ों को इस्त्री करना क्यों आवश्यक है?

Answer»

कपड़ों में आकर्षण, सुन्दरता तथा चमक लाने के लिए इस्त्री करना आवश्यक होता है। इस्त्री करने से कपड़े की सलवटें समाप्त हो जाती हैं।

10596.

किन वस्त्रों पर इस्त्री करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती?

Answer»

नाइलॉन, टेरीलीन तथा ‘वाश एण्ड वीयर’ प्रकार के वस्त्रों पर इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं होती।

10597.

गोंद का कलफ बनाने की विधि लिखिए।

Answer»

गोंद को पीसकर गर्म पानी में उबाल लेते हैं। अब इसे छानकर कलफ के रूप में प्रयुक्त करते हैं।

10598.

शुष्क धुलाई से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।

Answer»

यह सत्य है कि शुष्क धुलाई को धुलाई की एक उत्तम विधि माना जाता है, परन्तु धुलाई की इस विधि से कुछ हानियाँ भी हैं; जैसे

⦁    यह धुलाई साधारण धुलाई की तुलना में बहुत महँगी होती है, क्योंकि पेट्रोल आदि विलायक बहुत महँगे होते हैं तथा शीघ्र ही उड़ने वाले होते हैं।
⦁    शुष्क धुलाई में इस्तेमाल होने वाले विलायकों में एक विशेष प्रकार की तीखी गन्ध होती है। कुछ लोगों को यह गन्ध अच्छी नहीं लगती तथा कभी-कभी इससे एलर्जी के कारण जुकाम आदि की शिकायत भी हो जाती है।
⦁    शुष्क धुलाई द्वारा कपड़ों की हर प्रकार की गन्दगी को अलग नहीं किया जा सकता। इस विधि द्वारा कपड़ों से केवल उन्हीं धब्बों को हटाया जा सकता है, जो पेट्रोल आदि विलायकों में सरलता से घुल जाते हैं, परन्तु कुछ दाग-धब्बे ऐसे भी हो सकते हैं जो इन विलायकों में नहीं घुलते। इस प्रकार के दाग-धब्बों को शुष्क धुलाई द्वारा साफ नहीं किया जा सकता।

10599.

शुष्क धुलाई से क्या तात्पर्य है? शुष्क धुलाई के काम आने वाले प्रतिकर्मकों के नाम लिखिए।

Answer»

शाब्दिक रूप से शुष्क धुलाई का अर्थ है–सुखी धुलाई, परन्तु वास्तव में यह सूखी नहीं होती वास्तव में यह धुलाई की वह विधि है जिसमें कपड़े को साफ करने के लिए जल का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। जल का इस्तेमाल न होने के कारण ही इसे सूखी धुलाई कहा जाता है। वैसे इस धुलाई में अन्य गीले द्रव विलायक के रूप में अवश्य ही अपनाए जाते हैं। शुष्क धुलाई के मुख्य प्रतिकर्मक हैं–पेट्रोल, डीजल, बेन्जीन तथा कार्बन टेट्राक्लोराइड।

10600.

सफेद वस्त्रों को धूप में सुखाने से क्या लाभ होता है?

Answer»

सफेद सूती वस्त्रों को जहाँ तक हो सके धूप में ही सुखाना चाहिए। वस्त्रों को धूप में सुखाने से निम्नलिखित लाभ होते हैं

⦁    वस्त्र शीघ्र ही सूख जाते हैं।
⦁    वस्त्र को धूप में सुखाने से नील एवं कलफ की गन्ध समाप्त हो जाती है।
⦁    कपड़ों में व्याप्त सीलन की दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।
⦁    धूप में वस्त्रों को सुखाने से उनका समुचित नि:संक्रमण हो जाता है अर्थात् उनमें विद्यमान रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
⦁    सफेद सूती वस्त्र धूप में सुखाने पर अधिक सफेद तथा चमकदार हो जाते हैं।
⦁    धूप में वस्त्रों को सुखाने से नील एवं कलफ के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।