InterviewSolution
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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
दायें हाथ की हथेली का नियम क्या है ? |
| Answer» इस नियम के अनुसार , यदि हम अपने दाहिने हाथ की हथेली खुली रखकर तथा अँगुलियों को परस्पर इस प्रकार फैलायें कि अँगूठा चालक में बहने वाली धारा कि दिशा की ओर तथा अंगुलियाँ उस बिंदु की ओर संकेत करें जहाँ चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करनी है , तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा खुली हथेली के लंबवत तथा हथेली के बाहर की ओर होगी । | |
| 2. |
चुंबकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाले लॉरेंज बल का व्यंजक लिखिये । इस बल कि दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम लिखिये । |
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Answer» यदि q आवेश युक्त कोई कण एकसमान वेग v से किसी चुंबकीय क्षेत्र B में गति करता है , तो गतिशील आवेशित कण पर लगने वाले लॉरेंज बल का परिणाम निम्न व्यंजक द्वारा दिया जाता है - ` F = qv B sin theta ` ....(1) यहाँ `theta` कण के गति की दिशा तथा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच का कोण है । लॉरेंज बल का सदिश रूप निम्न व्यंजक द्वारा दिया जाता है । ` vecF = q (vecv xx vecB)` |
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| 3. |
फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम क्या है ? |
| Answer» यदि बायें हाथ के अँगूठे , तर्जनी तथा माध्यिका को परस्पर लंबवत फैलायें तथा तर्जनी को चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में तथा में तथा मध्यमा को धनावेशित कण की गति की दिशा में रखें तो कण पर लगने वाले बल की दिशा अँगूठे की दिशा में होंगी । | |
| 4. |
दो समांतर तार , जिसमें विपरीत दिशा में धारा प्रवाहित हो रही है , एक - दूसरे को प्रतिकर्षित करते है , क्यों ? |
| Answer» दो समांतर तार , जिसमें विपरीत दिशा में धारा प्रवाहित हो रही है तब पहले तार में प्रवाहित धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में दूसरे तार पर बल लगता है इसी प्रकार दूसरे तार में प्रवाहित धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में प्रथम तार पर बल लगता है । फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियमानुसार , यह लगने वाला बल एक - दूसरे की विपरीत दिशा में लगता है , अर्थात पहले तार पर यह बल दूसरे तार के विपरीत दिशा में तथा दूसरे तार पर यह बल पहले तार के विपरीत दिशा में लगता है । इस प्रकार दोनों तार एक - दूसरे को प्रतिकर्षित करते है । | |
| 5. |
दो समांतर चालक , जिनमें एक ही दिशा में धारा प्रवाहित हो रही है , एक - दूसरे को आकर्षित करते है , क्यों ? |
| Answer» यदि दो समांतर चालक में एक ही दिशा में धारा प्रवाहित हो रही है , तब पहले चालक में प्रवाहित धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में दूसरे चालक पर बल लगता है । इसी प्रकार दूसरे चालक में प्रवाहित धारा के कारण उप्तन्न चुंबकीय क्षेत्र में पहले चालक पर बल लगता है । फ्लेमिंग के बाँये हाथ के नियमानुसार यह लगने वाला बल एक - दूसरे की ओर लगता है , अर्थात पहले चालक पर बल , दूसरे चालक की ओर तथा दूसरे चालक पर बल , पहले चालक की ओर लगता है । इस प्रकार दोनों चालक एक - दूसरे को आकर्षित करते है । | |
| 6. |
एक परिनालिका में धारा बहाने पर इस परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र किस प्रकार का होता है ? इस क्षेत्र की तीव्रता किन - किन कारकों पर निर्भर करती है ? |
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Answer» धारावाही परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र एकसमान होता है । चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता - (i) परिनालिका में प्रवाहित होने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती होता है । (ii) परिनालिका की प्रति एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या के अनुक्रमानुपाती होता है । |
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| 7. |
किसी लम्बे सीधे धारावाही चालक के कारण किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा किधर होगी ? |
| Answer» चालक तथा बिंदु को मिलाने वाली रेखा के लम्बवत दक्षिण हस्त नियम के अनुसार होती है । | |
| 8. |
एक आवेशित कण , एक ऐसे शक्तिशाली असमान चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है , जिसका परिमाण और दिशा दोनों एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर बदलते जाते है , एक जटिल पथ पर चलते हुए इसके बाहर आ जाता है । यदि यह मान लें कि चुंबकीय क्षेत्र में इसका किसी भी दूसरे कण से कोई संघट्ट नहीं होता , तो क्या इसकी अंतिम चाल , प्रारम्भिक चाल के बराबर होगी ? |
| Answer» हाँ , इसका अंतिम वेग इसकी आरम्भिक चाल के बराबर होगा , यदि यह वातावरण से कोई संघटन करे । यह इसलिए है कि चुम्बकीय क्षेत्र आवेशित कण पर सदा बल लगाता है जो इसकी गति के अभिलम्ब है , अतः यह बल केवल गति या वेग `vec(v)` कि दिशा ही बदल सकता है न कि इसका परिमाण । | |
| 9. |
चल कुंडली धारामापी की चार विशेषताएँ लिखिए । |
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Answer» (i) इसमें विधुत धारा का मान विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होता है । (ii) इस धारामापी को किसी भी दिशा में रखकर प्रयोग किया जा सकता है । (iii) इसमें अत्यल्प `10^(-9)` ऐम्पियर तक की धारा का मापन किया जा सकता है । (iv)इसमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । |
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| 10. |
चल कुंडली धारामापी में निलंबन तंतु के रूप में फॉस्फर ब्रांज क्यों प्रयुक्त किया जाता है ? |
| Answer» फॉस्फर ब्रांज विधुत का चालक तथा कम मरोड़ी युक्त पदार्थ है , अतः इसका ऐंठन शीघ्र दूर हो जाता है , अतः इसे निलंबन तंतु के रूप में प्रयुक्त किया जाता है । | |
| 11. |
चलकुंडली धारामापी ( वेस्टन धारामापी ) का वर्णन निम्न बिंदुओं के अंतर्गत कीजिए । क्रिया सिद्धांत तथा धारा के लिए सूत्र की स्थापना । |
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Answer» क्रिया सिद्धांत - जब एक धारावाही कुंडली को किसी एकसमान चुंबकीय क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्वक इस प्रकार लटकाते है कि इसका तल चुंबकीय क्षेत्र के समांतर रहे , तो कुंडली पर अधिकतम विक्षेपक बलयुग्म लगता है जो निम्नलिखित होता है - `tau = n IAB` ....(1) जहाँ n कुंडली में फेरों की संख्या ,I कुंडली में प्रवाहित धारा,A कुंडली का क्षेत्रफल तथा B चुंबकीय क्षेत्र है । इस बलयुग्म के कारण कुंडली घूमती है जिससे निलंबन तार में ऐंठन उत्पन्न हो जाती है तथा जब ऐंठन बलयुग्म का आघूर्ण , विक्षेपक बलयुग्म के आघूर्ण के बराबर हो जाता है तो संतुलन स्थिति प्राप्त होती है और कुंडली ठहर जाती है । यदि संतुलन स्थिति में निलंबन तार का ऐंठन कोण `phi`हो , तो संतुलन अवस्था में विक्षेपक बलयुग्म का आघूर्ण = ऐंठन बलयुग्म का आघूर्ण `nIAB = C phi` या `I = C/(nAB) phi ` ...(2) यदि निलंबित में बहने वाली धारा का सूत्र है जिससे यह स्पष्ट है कि कुंडली में प्रवाहित धारा ऐंठन कोण के अनुक्रमानुपाती होती है , क्योंकि `C/(nAB) = K = ` नियतांक ...(3) जहाँ C निलंबन तार कि ऐंठन दृढ़ता है तथा नयतांक K को धारामापी का दक्षता नियतांक या धारामापी नियतांक कहते है । `:. I propto phi` अर्थात धारामापी में प्रवाहित धारा , कुंडली के विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होती है । यही निलंबित कुंडली धारामापी का सिद्धांत है । |
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| 12. |
एक चल कुंडली में धारा प्रवाहित करने पर कुछ विक्षेप होता है । विक्षेप में क्या परिवर्तन होगा ? यदि (i) धारा दुगुनी कर दिया जाये। (ii) चुंबकीय क्षेत्र दुगुनी कर दी जाये । (iii) कुंडली में फेरों की संख्या दुगुनी कर दी जाये । (iv) निलंबन तार की ऐंठन दृढ़ता आधी हो जाये । |
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Answer» चल कुंडली धारामापी में धारा I प्रभावित करने पर , विक्षेप `phi`प्राप्त होता है । तथा ` I propto phi` या `I = (Kphi)/(nBA) ` (i) धारा दुगुनी करने पर विक्षेप दुगुनी हो जायेगी । (ii)चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता दुगुनी करने पर विक्षेप दुगुना हो जायेगा । (iii)कुंडली में फेरों की संख्या आधा करने पर विक्षेप आधा हो जायेगा। (iv) निलंबन तार की ऐंठन दृढ़ता आधी करने पर विक्षेप दुगुना हो जायेगा । |
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| 13. |
चल कुंडली धारामापी की सुग्राहिता के लिए व्यंजक लिखिये तथा बताइये कि यह किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है ? |
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Answer» यदि किसी धारामापी में अल्प धारा प्रवाहित करने पर ही कुंडली में पर्याप्त विक्षेप उत्पन्न होता है , तो वह धारामापी अधिक सुग्राही होता है । कुंडली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न विक्षेप को धारामापी कि धारा सुग्राहिता कहते है । यदि धारामापी में I धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न विक्षेप `phi` हो ,तो ` I = K/(nBA) phi` ` :. ` धारामापी की सुग्राहिता ` S_(I) = phi/I = (nBA)/K` ...(1) यदि धारामापी की धारा सुग्राहिता का सूत्र है जिससे स्पष्ट है कि धारामापी की धारा सुग्राहिता के लिए - (i) n का मान अधिक होना चाहिए अर्थात कुंडली में चक्करों की संख्या अधिक होने चाहिए । (ii) B का मान अधिक होना चाहिए अर्थात स्थायी नाल चुंबक को शक्तिशाली होना चाहिए । (iii) A का मान अधिक होना चाहिए अर्थात कुंडली बड़ी होने चाहिए । (iv) K का मान कम होना चाहिए अर्थात फॉस्फर ब्रांज की पत्ती लम्बी व पतली होनी चाहिए । |
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| 14. |
आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिए , क्यों ? |
| Answer» एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होता है । वोल्टमीटर के सदैव परिपथ समांतर क्रम में लगाया जाता है । आदर्श वोल्टमीटर अपने में से होकर शून्य धारा प्रवाहित होने देगा जिससे वोल्टमीटर जिन दो बिंदुओं के मध्य विभवांतर माप रहा है , वह विभवांतर अपरिवर्तित रहें , किन्तु वास्तव में मापन के लिए यह आवश्यक है कि वोल्टमीटर में थोड़ी धारा प्रवाहित हो , इसलिये वोल्टमीटर के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध लगाया जाता है । | |
| 15. |
पश्चिम से पूर्व की ओर चलता हुआ एक इलेक्ट्रॉन एक ऐसे प्रकोष्ठ में प्रवेश करता है जिसमे उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर एकसमान एक वैधुत क्षेत्र है । वह दिशा बताइए जिसमे एकसमान चुंबकीय क्षेत्र स्थापित किया जाय ताकि इलेक्ट्रॉन को अपने सरल रेखीय पथ से विचलित होने से रोका जा सके । |
| Answer» स्थिर वैधुत क्षेत्र पश्चिम की ओर लगा है चूँकि इलेक्ट्रॉन एक ऋणात्मक आवेशित कण है अतः स्थिर वैधुत बल उत्तर की ओर निर्देशित है अतः यदि इलेक्ट्रॉन को सीधे मार्ग से विक्षेपित होने से रोकना है , तो चुंबकीय बल जो इलेक्ट्रॉन पर कार्य करता है , को दक्षिण की ओर निर्देशित करना होगा चूँकि इलेक्ट्रॉन का वेग `vec(v)`पश्चिम से पूर्व की ओर है , तो चुंबकीय लॉरेंट्स बल का व्यंजक `vec(F_(m)) = -e (vec(v) xx vec(B))` हमें यह बताता है कि चुम्बकीय बल `vec(B)`को ऊर्ध्वाधर ऊपर से नीचे कि ओर लगाना चाहिए । | |
| 16. |
एक साइक्लोट्रॉन दोलित्र की आवृत्ति `10MH^2) हैं । प्रोटॉन को त्वरित करने के लिए आवश्यक चुंबकीय क्षेत्र कितना होगा ? `(e=1.6xx10^(-19)Cm_(p)=1.67xx10^(-27)kg)` |
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Answer» दिया है - `V=10xx10^(6)H_(Z)` `m_(p)=1.67xx10^(-27)kg` `e=1.6xx10^(-19)C` प्रयुक्त सूत्र - साइक्लोट्रॉन आवृत्ति `upsilon = (qbeta)/(2pi m_(p))` `:.B=(2pi m_(p)upsilon)/(e)` `=(2xx3.14xx1.67xx10^(-27)xx10^(-7))/(1.6xx10^(-19))` `=10.667` |
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| 17. |
एक परिनालिका की लम्बाई `20 cm` तथा त्रिज्या ` 2 cm` है । इस पर तार के 5000 फेरे लपेटे गये है । यदि इसमें ` 0 * 4` ऐम्पियर की धारा प्रवाहित की जाये तो निम्न स्थितियों में चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की गणना कीजिए - अक्ष के मध्य बिंदु पर |
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Answer» अक्ष के मध्य बिंदु पर , सूत्र - `B = mu_(0)n I = mu_(0)/(4 pi) xx 4 pi nI` ` = 10^(-7) xx 4 pi nI` दिया है -` I = 0*4` ऐम्पियर, ` n = 5000/(20 xx 10^(-2)) = 25000` उपर्युक्त सूत्र में मान रखने पर, ` B = 10^(-7) xx 4 xx 3*14 xx 25000 xx 0*4` ` = 1*256 xx 10^(-2)` टेसला । |
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| 18. |
एक परिनालिका की लम्बाई `20 cm` तथा त्रिज्या ` 2 cm` है । इस पर तार के 5000 फेरे लपेटे गये है । यदि इसमें ` 0 * 4` ऐम्पियर की धारा प्रवाहित की जाये तो निम्न स्थितियों में चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की गणना कीजिए - सिरे पर |
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Answer» सिरे पर , सूत्र- `B= (mu_(0)nI)/2 = 10^(-7) xx 2 pi nI` दिया है - ` I = 0*4 ` ऐम्पियर ,` n = 25000` सूत्र में मान रखने पर , ` B = 10^(-7) xx 2 xx 3*14 xx 25000 xx 0*4` ,brgt ` = 0*628 xx 10^(-2)` टेसला । |
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| 19. |
तार की एक वृत्ताकार कुण्डली में 100 फेरे हैं । प्रत्येक की त्रिज्या 8.0 cm है ओर इनमें 0.40 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है । कुण्डली हो रही है । कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिणाम क्या होगा ? |
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Answer» दिया गया है - वृत्ताकार कुण्डली में फेरे की संख्या `= N = 100` प्रत्येक की त्रिज्या `=r=8.0 cm = 8 xx 10^(-2)m` वृत्तीय कुण्डलिनी में धारा `=I=0.40 A` कुण्डलिनी के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण `=?` `B=(mu_(0)NI)/(2 r )` मान रखने पर, `B=(4pi xx 10^(-7)xx100xx0.4)/(2 xx 8.0 xx10^(-2))T` `=pixx10^(-4)T=3.14xx10^(-4)T`, |
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| 20. |
कोई परिनालिका जिसकी लम्बाई `0*5` cm . तथा त्रिज्या 1 cm है में 500 फेरे है । इसमें `5A` विधुत धारा प्रवाहित हो रही है । परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र का परिणाम क्या है ? |
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Answer» दिया है - कुल फेरों की संख्या `N = 500` ` l = 0*5 m, r = 1 km = 0*01 m, I = 5A` ` :. n = N/l = 500/(0*05) = 1000 `फेरे प्रति मीटर सूत्र `B = mu_(0) nI` ,brgt ` = 4pi xx 10^(-7) xx 1000 xx 5` ` = 6*28 xx 10^(-3) T` . |
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| 21. |
एक सीधी , क्षैतिज चालक छड़ जिसकी लम्बाई `0*45` m एवं द्रव्यमान `60g` है इसके सिरों पर जुड़े दो ऊर्ध्वाधर तारों पर लटकी हुई है । तारों से होकर छड़ में `5*0A` विधुत धारा प्रवाहित हो रही है । चुंबकीय क्षेत्र कि दिशा यथावत रखते हुए यदि विधुत धारा कि दिशा उत्क्रमित कर दी जाए , तो तारों में कुल तानव कितना होगा ? ( तारों के द्रव्यमान कि उपेक्षा कीजिए ) ` g = 9 * 8 ms^(-2)` | |
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Answer» दिया गया है - ` l = 0* 45 m, I = 5* 0A , m = 60g = 0*06 kg` जब विधुत धारा की दिशा उत्क्रमित कर दी जाये, चुंबकीय क्षेत्र के कारण बल नीचे की ओर कार्य करता है । तारों में कुल तनाव = छड़ के भार के कारण बल चुम्बकीय क्षेत्र के कारण `= 0 * 588 + 0 * 588` ` = 1*176 N` . |
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एक सीधी , क्षैतिज चालक छड़ जिसकी लम्बाई `0*45` m एवं द्रव्यमान `60g` है इसके सिरों पर जुड़े दो ऊर्ध्वाधर तारों पर लटकी हुई है । तारों से होकर छड़ में `5*0A` विधुत धारा प्रवाहित हो रही है । चालक के लंबवत कितना चुंबकीय क्षेत्र लगाया जाए कि तारों में तनाव शून्य हो जाए । |
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Answer» दिया गया है - ` l = 0* 45 m, I = 5* 0A , m = 60g = 0*06 kg` छड़ के भार को संतुलन करने के लिए आवश्यक बल का मान होगा - `F = mg = 0*06 xx 9*8 N` ` = 0*588N ` सूत्र `F = BI l` का प्रयोग करने पर या ` B = F/(Il) ` मान रखने पर , ` B =(0*588)/( 5 xx 0*45) = 0*26 T` अतः एक क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्र जिसका परिमाण `0*26T` है और जो चालक के लंबवत इस दिशा में लगा है कि फ्लेमिंग का बायें हाथ का नियम चुंबकीय बल ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर बताये । |
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वोल्टमीटर का प्रतिरोध अधिक होता है , क्यों ? |
| Answer» एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होता है । वोल्टमीटर के सदैव परिपथ समांतर क्रम में लगाया जाता है । आदर्श वोल्टमीटर अपने में से होकर शून्य धारा प्रवाहित होने देगा जिससे वोल्टमीटर जिन दो बिंदुओं के मध्य विभवांतर माप रहा है , वह विभवांतर अपरिवर्तित रहें , किन्तु वास्तव में मापन के लिए यह आवश्यक है कि वोल्टमीटर में थोड़ी धारा प्रवाहित हो , इसलिये वोल्टमीटर के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध लगाया जाता है । | |
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क्या होगा यदि वोल्टमीटर को परिपथ के श्रेणीक्रम में जोड़ दें ? |
| Answer» परिपथ में जब वोल्टमीटर को श्रेणीक्रम में जोड़ते है तब वोल्टमीटर के उच्च प्रतिरोध के कारण परिपथ में बहुत ही कम बहती है । यह अल्प धारा जब वोल्टमीटर की कुंडली से बहेगी तब बहुत कम विक्षेप उत्पन्न करेगी । | |
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एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध कितना होता है और क्यों ? |
| Answer» एक आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनंत होता है । वोल्टमीटर के सदैव परिपथ समांतर क्रम में लगाया जाता है । आदर्श वोल्टमीटर अपने में से होकर शून्य धारा प्रवाहित होने देगा जिससे वोल्टमीटर जिन दो बिंदुओं के मध्य विभवांतर माप रहा है , वह विभवांतर अपरिवर्तित रहें , किन्तु वास्तव में मापन के लिए यह आवश्यक है कि वोल्टमीटर में थोड़ी धारा प्रवाहित हो , इसलिये वोल्टमीटर के श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध लगाया जाता है । | |
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एक अमीटर का प्रतिरोध कम क्यों होता है ? एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध कितना होना चाहिए ? |
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Answer» अमीटर को परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ते है , जिससे मापी जाने वाली सम्पूर्ण धारा इसमें से गुजरे । अब चूँकि अमीटर की अपनी कुंडली का भी कुछ प्रतिरोध अवश्य होता है , अतः अमीटर को परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ने पर परिपथ का प्रतिरोध बढ़ जाता है फलतः परिपथ में बहने वाली धारा का मान कम हो जाता है जिस कारण अमीटर द्वारा मापी गई धारा का मान सदैव मापने वाली धारा से कम होता है । यह अंतर कम हो , इसलिये अमीटर का प्रतिरोध बहुत कम रखा जाता है। ऐसा करने के लिए अमीटर की कुंडली के समांतर क्रम में एक कम प्रतिरोध ( जिसे शंट कहते है ) जोड़ देते है । एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होता है । |
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