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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

3201.

The energy released when a electron is added to a neutral gaseous isolated atom to form a negatively charged ion.

Answer»

Electron affinity or electron gain enthalpy.

3202.

Give one word or a phase for the following statements : (i) The energy released when an electron is added ta a neutral gaseous isolated atom to form a negatively charged ion. (ii) Process of formation of ions from molecules which are not in ionic state. (iii) The tendency of an element to form chains of identical atoms. (iv) The property by which certain hydrated salts,when left exposed to atmosphere, lose their water of crystallization and crumble into powder. (v) The process by which sulphide ore is concentrated.

Answer»

(i) Electron affinity 

(ii) Ionization 

(iii) Catenation 

(iv) Efflorescence 

(v) Froth floatation

3203.

Give one word or a phrase for the following statements:(i) The energy released when an electron is added to a neutral gaseous isolated atom to form a negatively charged ion(ii) Process of formation of ions from molecules which are not in ionic state.(iii) The tendency of an element to form chains of identical atoms.(iv) The property by which certain hydrated salts, when left exposed to atmosphere, lose their water of crystallization and crumble into powder.(v) The process by which sulphide ore is concentrated.

Answer»

(i) Electron affinity 

(ii) Ionisation 

(iii) Catenation 

(iv) Efflorescence 

(v) Froth floatation process.

3204.

निबन्ध लिखिये:नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी हर रूप में आदरणीय है। विवेचन कीजिए।

Answer»

नारी : माँ, बहन, पत्नी तथा बेटी के रूप में

सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी सृजन की पूर्णता है। उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है। समाज के रचना विधान में नारी के निम्न रूप हैं माँ, प्रेयसी, पत्नी, बहन तथा पुत्री। हम अपने जीवन में नारी के इन विभिन्न रूपों से किसी न किसी तरह सम्बन्ध रखते हैं तथा यह रूप हमारे जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित भी करते हैं।

जब बालक जन्म लेता है तो नारी का ममतामयी माँ का रूप उसका पालन-पोषण करता है। यह नारी का सबसे प्रभावशाली रूप है। माँ को बच्चे की प्रथम शिक्षिका के रूप में जाना जाता है क्योंकि बच्चा सर्वप्रथम संस्कार, विचार या शिक्षा माँ से ही ग्रहण करता है। माँ द्वारा दिये गये संस्कार पर ही यह निर्भर करता है कि उसका भविष्य में कैसा आचरण रहेगा।

नारी का एक और महत्वपूर्ण रूप है— बहन। हमारे सर्वप्रथम मित्र के रूप में हम अपने बहन-भाई को देखते हैं। बाहरी संसार में हमारे मित्र विद्यालय में प्रवेश के बाद बनते हैं, परन्तु बहन एक व्यक्ति की जीवन की सर्वप्रथम मित्र होती है, जो आपकी छोटी-छोटी गलतियों पर सीख देती है, उन गलतियों को माता-पिता से छिपाती है तथा आपको हमेशा गलत राह पर जाने से रोकती है। माँ की तरह आपको डाँटती भी है और एक मित्र की तरह आपकी समस्याओं का समाधान भी करती है। इसलिए हमें कभी भी नारी का अपमान नहीं करना चाहिए तथा हमेशा उसे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। नारी का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण रूप को गृहलक्ष्मी, गृहदेवी या गृहणी के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

नारी पत्नी के रूप में भी उतनी ही आदरणीय है जितनी की माँ और बहन के रूप में, पत्नी को जीवनसंगिनी भी कहते हैं अर्थात् जीवन भर साथ देने वाली नारी। एक पत्नी अपने कर्तव्य को पूर्ण करते हुए अपने पति का ही नहीं अपितु पूरे परिवार की सुख-सुविधा तथा उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखती है, मित्र की तरह आपके हर सुख-दुःख में साथ देती है तथा जीवन के हर मोड़ पर हर परेशानी में आपके साथ खड़ी रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी संसार की उत्पत्ति एवं भरण-पोषण का मुख्य कार्य करती है। पुरुष का साथ वह कभी मातृशक्ति बनकर देती है तो कभी बहन, कभी प्रेयसी के रूप में सहायता करती है, तो कभी पत्नी बनकर। हर परिस्थिति में, हर रूप में वह पुरुष का साथ देती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नारी का प्रत्येक रूप आदरणीय तथा सम्माननीय है।

3205.

निबन्ध लिखिये:जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए हर व्यक्ति अपने लिए किसी व्यवसाय को चुनना चाहता है। आप अपने लिए किस व्यवसाय को चुनना पसन्द करेंगे। उसकी प्राप्ति के लिए आप क्या-क्या प्रयत्न करेंगे तथा उससे देश व समाज को क्या लाभ होगा।

Answer»

जीवन में सुख-समृद्धि के लिए किसी व्यवसाय का चुनाव

जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए हर व्यक्ति अपने लिए किसी व्यवसाय को चुनना चाहता है। मैं अपने जीवन में एक सुयोग्य शिक्षक बनकर देश की प्रगति में योगदान दूंगा। मनुष्य विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि वह मनन, चिन्तन तथा विचारपूर्वक ही कोई कार्य करता है। शिक्षा का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। इसमें कार्य करके परोपकार और देश के विकास में सहयोग होगा। मैं एक आदर्श शिक्षक बनूँगा और हर प्रकार से छात्रों की सहायता कर उन्हें शिक्षित करूँगा। जिन देशों की अधिकतर जनसंख्या शिक्षित है, वे निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं।

मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है। जिसके हृदय में दृढ़ संकल्प, अदम्य साहस और एक निश्चित उद्देश्य हो वह भावी योजनाओं का चिन्तन-मनन करके अपने ध्येय की ओर उन्मुख होता है, वही अपनी मंजिल पाने में सफल होता है। मैं आज एक विद्यार्थी हूँ पर भविष्य में मुझे क्या बनना है? इसके लिए मेरे मन में कई कल्पनायें हैं।

शिक्षण काल से ही मेरी रुचि पढ़ने-पढ़ाने में रही। मेरे गुरुजी ने एक बार मुझसे कहा कि मुझमें एक आदर्श अध्यापक बनने के गुण हैं। उसी दिन से मैंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया। इसके लिए मुझे आदर्श विद्यार्थी बनना होगा, तपस्वी के समान तपस्या, सैनिक के समान अनुशासन और पृथ्वी के समान सहनशीलता को अपनाना होगा। तभी आदर्श अध्यापक बन सकता कुछ अध्यापक तो केवल जीविकोपार्जन के लिए ही अध्यापक बने हैं, लेकिन अध्यापक गुरुत्ता और महिमा की प्रतिमा, विद्या का प्रकाशस्तम्भ हैं। उनका पुनीत कर्तव्य शिष्यों के अन्धकार को दूर करना है क्योंकि विद्या ही सर्वोच्च धन है। विद्या दान सबसे बड़ा दान है। गुरु के कर्तव्य के अनुसार उनमें चारित्रिक और नैतिक भावनाओं को भी जगाऊँगा। मैं उनके सामने त्याग, प्रेम, परोपकार और सेवा का आदर्श स्थापित करूँगा। मैं किसी दुर्व्यसन का शिकार नहीं बनूँगा। मेरा रहन-सहन अत्यन्त सरल तथा स्वच्छ रहेगा। इस पुनीत कार्य से मुझे जीवन भर सन्तोष और शान्ति मिलती रहेगी। मैं कबीर के कथनानुसार ऐसा ‘गुरु’ बनूँगा जो शिष्य को बाह्य रूप से ताड़ना देता हुआ भी हार्दिक भावना से उसका मंगल करे।

“गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥”

ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मुझे इतनी सामर्थ्य प्रदान करे कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना सहयोग प्रदान कर सकूँ। दुःखी जनों के दुःख का निवारण कर सत्पथ पर उन्हें चलाने का प्रयास करूं। निराशा का भाव किसी के मन में न आने दूँ और अशिक्षा को दूर कर सभी को शिक्षित करूँ, ऐसी मेरी कामना है। वास्तव में शिक्षक ही राष्ट्र का निर्माता होता है।

कर्म के साथ ईश्वर की अनुकम्पा यदि रहे तो सच्चा मनुष्य अपने पथ पर निर्भीक होकर बढ़ता है। श्रेष्ठ उद्देश्य मन में लेकर जो कार्य करता है, वह हमेशा सफल होता है। प्रार्थना यदि सच्चे मन से की जाय तो वह कभी निष्फल नहीं जाती। मैं अपने शिक्षक होने को राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व मानकर सच्ची भावना से छात्रों को शिक्षा देकर राष्ट्रपक्ष के निर्माण में सहयोग प्रदान करूँगा।

3206.

निबन्ध लिखिये :समय के महत्त्व को जिसने नहीं समझा, वह जिन्दगी की दौड़ में पीछे रह जाता है। इस विषय का विवेचन कीजिए।

Answer»

समय का महत्त्व।
का वर्षा जब कृषि सुखाने
समय चूकि पुनि का पछताने

अर्थात् समय पर यदि चूक गये तो जीवन भर पछताना पड़ेगा ठीक उसी प्रकार जैसे खेती सूख जाये फिर वर्षा हुई तो उस वर्षा का कोई महत्त्व नहीं है। मनुष्य का जीवन अमूल्य है। उसके जीवन का एक-एक पल भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अतः समय का ध्यान मनुष्य को धन से भी अधिक रखना चाहिए। धन तो आता जाता रहता है, परन्तु समय जो बीत जाता है उसे लौटाया नहीं जा सकता है। मानव जीवन में बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और अन्त में वृद्धावस्था एक बार ही आती है। हर अवस्था का अपना अलगअलग महत्त्व होता है। एक बार बीत जाने पर पुनः उसे नहीं प्राप्त किया जा सकता यदि मनुष्य समय पर असावधान हो गया तो पछताने के अतिरिक्त उसके पास कुछ नहीं रहता। समय की गति बड़ी तीव्र होती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम समय का सदपयोग करें। उसे पकड कर रखें।

हमें समय के महत्त्व का ज्ञान तब होता है जब स्टेशन पर दो मिनट की देरी के कारण हमारी गाड़ी छूट जाती है। हमें समय का महत्त्व तब समझ में आता है जब डॉक्टर के विलम्ब से पहुँचने पर हमारा कोई अपना मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। हम समय के मूल्य को तब समझ पाते हैं जब अध्ययन किये बिना समय गँवा देते हैं और परीक्षा में असफल हो जाते हैं। इन परिस्थितियों में हमारे पास पछताने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रह जाता। समय को खोकर कोई मनुष्य सुखी नहीं रहता। जूलियस सीज़र सभा में पाँच मिनट देर से पहुँचा और अपने प्राणों से हाथ धो बैठा। अपनी सेना में कुछ मिनट देर से पहुँचने के कारण ही नेपोलियन को नेल्सन से पराजित होना पड़ा था। समय किसी की राह नहीं देखता।

इस समस्या का एक ही समाधान है- हमें अपने कार्य निश्चित समय में पूरे करने चाहिए। काम में देरी हमारी समय के प्रति लापरवाही को दर्शाती है। निश्चित समय पर कार्य पूरा करने पर हमें आत्मसन्तोष तथा प्रसन्नता प्राप्त होती है। हम अपना कार्य पूर्ण करने के पश्चात् दूसरों की सहायता कर सकते हैं। इसके माध्यम से हम समाज का कल्याण कर सकते हैं। यदि हृदय में कोई कार्य करने की इच्छा उत्पन्न होती है तो उसके लिए प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। उसे तुरन्त कर डालना चाहिए। इसी सन्दर्भ में महान संत कबीरदास कहते है-

“काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होइगी, बहुरि करैगो कब ॥”

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी समय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है “मेरे विचार से एक वस्तु का महत्त्व सर्वाधिक है-वह है समय की परख। यदि आपने समय के सदुपयोग की कला सीख ली है तो पुनः आपको किसी प्रसन्नता या सफलता की खोज में मारे-मारे भटकने की आवश्यकता नहीं। वह स्वयं आपका द्वार खटखटायेगी।” वास्तव में समय का सदुपयोग ही जीवन में सफलता की कुंजी है।

आज तक संसार में जितने महापुरुष हुए सबने समय के महत्त्व को समझा और उन्होंने समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग किया। शंकराचार्य का उदाहरण हमारे सामने है। उन्होंने अल्प समय में ही सम्पूर्ण वेद-वेदान्त का ज्ञान प्राप्त कर लिया। ऐसे उच्चकोटि के ग्रंथ लिखे जिन्हें समझने के लिए लोगों को जीवन भर साधना करनी पड़ती है।

यूरोप और पश्चिम के अन्य राष्ट्रों की उन्नति का रहस्य ही यह है कि वहाँ समय को व्यर्थ नहीं गँवाते। विद्यार्थियों के लिए समय अमूल्य निधि है। उनका प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर होना चाहिए। बुद्धिमान विद्यार्थी कभी भी अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाते इसलिए उन्हें कभी पछताना नहीं पड़ता।

प्रत्येक व्यक्ति को समय के महत्त्व को समझ कर सदैव निश्चित समय पर कार्य करना चाहिए ताकि जीवन में पछताना न पड़े।

3207.

निबन्ध लिखिये :कहा जाता है, उधार लेना और देना दोनों ही गलत हैं। इस विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार लिखें।

Answer»

उधार लेना, देना दोनों ही गलत हैं।
मैं इस विषय के पक्ष में अपने विचार व्यक्त करना चाहूँगी। एक कहावत है
तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौरि

अर्थात् अपने पैर उतने ही लम्बे फैलाइये जितनी लम्बी आपकी रजाई है। उससे बाहर पाँव पसारने पर मनुष्य को ठण्ड में सिकुड़ना पड़ता है। यही बात उधार लेने के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है। उधार लेना बुरी आदत है। जो लोग उधार लेते है, उन्हें इसकी लत पड़ जाती है। छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पर्ति के लिए भी वे उधार लेते रहते हैं। ऐसा करके वे अपने स्वाभिमान को गिरवी रख देते हैं। समयावधि में उस उधार की भरपाई यदि वे नहीं कर पाते तो उन्हें अपशब्द सुनने पड़ते हैं। निगाहें नीची करके चलना पड़ता है। रातों की नींद उड़ जाती है। गलत कार्य करने पड़ते हैं। यदि वही उधार उन्होंने ब्याज पर लिया है तब तो कहने ही क्या? घर बिकने की नौबत आ जाती है। हर समय घर पर तगादे वाले खड़े रहते हैं। लोगों के बीच बदनामी होती है और लोग मजाक उड़ाते हैं। इन सब बातों को यदि ध्यान में रखा जाये तो किसी भले इन्सान को उधार नहीं लेना चाहिए। हाँ कभी-कभी इन्सान इतना विवश हो जाता है कि उसको उधार लेना आवश्यक हो जाता है, तब सोचसमझ कर एवं वापस करने की सामर्थ्य का ध्यान रखते हुए ही उधार लेना चाहिए। ऐसा करने पर इन्सान का सम्मान बना रहता है, परन्तु इसे आदत नहीं बनानी चाहिए।

उधार देना भी मनुष्य की गलत आदत है। ऐसा व्यक्ति अकारण ही अपने शत्रु उत्पन्न करता है। बुद्धिमान लोग कहते हैं कि यदि उधार किसी विवशता के कारण देना पड़ रहा है तो देकर भूल जाओ उसका कारण यह है कि मनुष्य जरूरत पड़ने पर रो-रोकर पैसा उधार माँगता है, परन्तु लौटाने के लिए उसकी नजर बदल जाती है। वह लडाई-झगडे पर उतारू हो जाता है। आजकल ये बातें बहत सुनाई देती हैं कि पैसा न वापस कर पाने के कारण उस व्यक्ति की हत्या कर डाली। इसलिए एक बार पैसा उधार देना, दुश्मनी मोल लेना है। पैसा उधार देना प्रेम को समाप्त करना है। उधार देने वाले व्यक्ति को जब अपनी मेहनत की कमाई वापस नहीं मिलती तो वह गलत हथकण्डे अपनाता है। इससे दोनों के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अत: उधार लेना जितना खतरनाक है। उतना खतरनाक उधार देना भी है।

3208.

विलोम का चरित्र मोहन राकेश की एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि है’ कथन के आधार पर विलोम की चारित्रिक-विशेषताएँ लिखिए।

Answer»

मोहन राकेश ने अपने ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में विलोम के रूप में एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि की है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. एकांगी प्रेम-विलोम भी कालिदास की तरह एक कवि है और मल्लिका के प्रति आसक्त है। वह उससे एकांगी प्रेम करता है। वह इस इकतरफा प्रेम को अंत तक खींचता चला जाता है। परंतु मल्लिका की ओर से उसे उपेक्षा, उदासीनता व तिरस्कार ही मिलता है। वह कालिदास को उस तिरस्कार का एकमात्र कारण समझता है। इसीलिए मल्लिका के विषय में कहता है”वह नहीं चाहती कि मैं उस घर में आऊँ , क्योंकि कालिदास नहीं चाहता और कालिदास क्यों नहीं चाहता? क्योंकि मेरी आँखों में उसे अपने हृदय का सत्य झांकता दिखाई देता है। उसे उलझन होती है।

“वह कालिदास से उलझता हुआ एक बार इस तथ्य को स्वीकार भी करता है कि मल्लिका उसे न चाह कर कालिदास को चाहती है-“विलोम क्या है? एक असफल कालिदास …. और कालिदास? एक सफल विलोम ……..”

तथापि विलोम हमें कहीं भी मल्लिका से दुराग्रह करता दिखाई नहीं देता। भले ही उसका प्रेम एकांगी है, किंतु वह अपनी प्रेमिका का अहित कभी नहीं चाहता। वह कालिदास का भी अहित नहीं चाहता। वह कालिदास को बधाई देता है, परंतु स्वर व्यंग्यात्मक रहता है।

2. तर्कशक्ति-विलोम के विषय में कुछ आलोचक भले ही उसे खलनायक की कोटि में रखकर उसके महत्त्व को कम कर देते हैं परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। वह नाटक में एक तर्कशक्ति के रूप में उभरता है। वह एक व्यवहार-कुशल युवक है। उसके तर्कों में उपयोगिता और व्यावहारिक दृष्टि पाई जाती है। एक आलोचक का मत है

“विलोम के तर्कों में ही नहीं, उसकी पूरी जीवन-दृष्टि में एक ऐसी आवश्यकता और अनिवार्यता है कि उसकी गिनती हिंदी नाटक के कुछ अविस्मरणीय पात्रों में होगी। कई प्रकार से विलोम मोहन राकेश की एक अनुपम नाटकीय चरित्र-सृष्टि है।”

3. विचार पक्ष-विलोम में विचार शक्ति की कोई कमी नहीं है। वह अपनी भावनाओं से ऊपर विचार को महत्त्व देता है। इसीलिए उसमें परामर्श और निर्णय की सामर्थ्य है। जब कालिदास के उज्जयिनी जाने का प्रसंग आता है तो वह अपना विचार पक्ष अंबिका के सामने प्रस्तुत करते हुए मल्लिका के हित को केंद्र में रखकर कहता है-

“मैं समझता हूँ उसके जाने के पूर्व ही उसका और मल्लिका का विवाह हो जाना चाहिए …………………………. कालिदास उज्जयिनी चला जाएगा। और मल्लिका, जिसका नाम उसके कारण सारे प्रांतर में अपवाद का विषय बना है, पीछे यहाँ पड़ी रहेगी।” वह कालिदास से भी सीधा यही प्रश्न करता है कि वह यह बता कर जाए कि मल्लिका के साथ वह विवाह कब करेगा? किंतु कालिदास इस प्रश्न पर मौन रहता है।

4. यथार्थवादी-मोहन राकेश ने विलोम का चरित्र यथार्थ के कठिन धरातल पर खड़ा किया है। उसे स्थितियों की पूरी-पूरी समझ है। यही कारण है कि वह कालिदास के उज्जयिनी जाने से पहले मल्लिका के विषय में कोई ठोस निर्णय लेने का प्रस्ताव रखता है। वह अपनी आशंका प्रकट करते हुए कहता है”राजधानी के वैभव में जाकर ग्राम प्रांतर को भूल तो नहीं जाओगे? सुना है वहाँ जाकर व्यक्ति बहुत व्यस्त हो जाता है। वहाँ के जीवन के कई तरह के आकर्षण हैं …………….”रंगशालाएँ हैं, मदिरालय और तरह-तरह की विलास भूमियाँ ……………” आगे की घटनाओं को देखते हुए विलोम के ये शब्द कितने सच सिद्ध होते है।

5. मूल्य-चेतना-पूरे नाटक में विलोम एक ऐसा पात्र है जिसे विभिन्न जीवन-मूल्यों के प्रति गंभीर चेतना से संपन्न पाया जा सकता है। उसे सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मूल्यों की अच्छी समझ है। वह प्रेम संबंधी मूल्यों को भी पहचानता है। इसीलिए जब कालिदास काश्मीर जाते हुए मार्ग में मल्लिका से मिलने नहीं आता तो वह उससे संवेदना के रूप में इस प्रकार कहता है-उसे आना चाहिए। व्यक्ति किसी संबंध-सूत्र को ऐसे नहीं तोड़ता और विशेष रूप से वह, जिसे एक कवि का भावुक हृदय प्राप्त हो। तुम क्या सोचती हो मल्लिका? उसे एक बार आना चाहिए।”

6. अनचाहा अतिथि-विलोम स्वयं को अनचाहा अतिथि बताता है। वास्तव में वह मल्लिका की मानसिकता के प्रसंग में ऐसा कहता है। उसे मल्लिका का प्रेम पाने की आतुरता थी परंतु वह उसे सदैव एक अनचाहे अतिथि की तरह दुत्कारती रहती है। वह एक बार कहता भी है-“अनचाहा अतिथि संभवतः फिर कभी आ पहुँचे।” परंतु वह अनचाहा अतिथि स्वयं नहीं आता अपितु स्वयं वही मल्लिका उसे बुलाकर लाती है। इस अनचाहे अतिथि ने उसे वह सब कुछ दिया जो वह वास्तव में कालिदास से चाहती थी। इस प्रकार विलोम एक सशक्त यथार्थवादी, व्यावहारिक और जीवन-मूल्यों के प्रति जागरूक पात्र के रूप में उभरता है।

3209.

Fill in each of the numbered blanks with the correct form of the word given in brackets. Do not copy the passage, but write in correct serial order the word or phrase appropriate to the blank space.Example: (0) A woman …….. (wait) at an airport one night, with several long hours before her flight. Answer: was waiting. She (1) ……… (hunt) for a book in the airport shops, (2) ……….. (buy) a bag of cookies and found a place to sit. She (3) ………. (engross) in her book but happened to see that the man sitting beside her, bold as could be, grabbed a cookie or two from the bag in between, which she tried to ignore to avoid a scene. So she (4) ………. (munch) the cookies and watched the clock, as the gutsy thief diminished her stock. She (5) ………. (get) more irritated as the minutes ticked by, thinking, “If I wasn’t so nice, I (6) ………. (black) his eye.” With each cookie she took, he took one too. When only one was left, she wondered what he would do. With a smile on his face, and a nervous laugh, he (7) …….. (take) the last cookie and broke it in half. He offered her half, as he ate the other. She had never known she could be so angry and turned to gather her belongings. As she reached for her baggage, she gasped with surprise, there was her bag of cookies, in front of her eyes. If mine are here, she moaned in despair, the others were his and he (8) ……… (try) to share.

Answer»

1. hunted 

2. bought 

3. was engrossed 

4. munched 

5. got 

6. would blacken 

7. took 

8. was trying

3210.

Re-write the following sentences according to the instructions given after each. Make other changes that may be necessary, but do not change the meaning of each sentence.1. These windows need cleaning again. (Begin : These windows will……….)2. My mother said I could go with you only if I returned home by five o’clock. (Use : as long as) 3. It doesn’t matter which chemical you put into the mixture first, the results will be the same.(Use: difference) 4. Who, does this pen belong to? (Being : Do you know……….) 5. Heavy rain has caused the cancellation of the outdoor garden party. (Begin : Due………) 6. I’ve never seen so many people in this building before. (Begin : This is……….) 7. If we light the fire, the rescuers will see us. (Begin : We will……….) 8. Only a few books were remaining on the shelf when we left. (Begin : Most…….)

Answer»

1. These windows will have to be cleared again. 

2. My mother said I could go with you, as long as I returned home by five O’clock. 

3. It doesn’t make any difference, which chemical you put into the mixture first, the results will be the same. 

4. Do you know to whom does this pen belong? 

5. Due to heavy rain, the outdoor garden party has teen cancelled. 

6. This is the first time, I am seeing so many people in this building. 

7. We will be seen by the rescuers, if we light the fire. 

8. Most of the books on the shelf were not there when we left.

3211.

Join the following sentences to make one complete sentence without using and, but or so. 1. We had better get ready now. We may not have time to reach the airport. 2. Mr. Liew has been sick. He has been so since he came back from Japan. 3. The debating teams were very happy. Both were declared joint champions. 4. He escaped from the prison. He looked for a place where he could hide.

Answer»

1. We had better get ready how otherwise we may not have time to reach the airport. 

2. Mr. Liew has teen sick since he came back from Japan. 

3. The debating teams were very happy since/as both were declared joint champions. 

4. After escaping from the prison, he looked for a place where he could hide.

3212.

Join the following sentences to make one complete sentence without using and, but or so :1. My grandfather is very old. He is very active. 2. Mala is not in the classroom. Mala is not in the library. 3. She was so excited about her performance. She could not sleep at night. 4. Mumbai is densely populated. It is one of the major cities in the country.

Answer»

1. Though my grandfather is very old, he is very active. 

Or 

Though very old, my grandfather is very active. 

2. Mala is niether in the classroom nor in the library. 

3. She was too excited about her performance to sleep at night. 

4. Mumbai which is densely populated is one of the major cities in the country.

3213.

Read the extract given below and answer the questions that follow :Rosalind : That he hath not.Celia : No, hath not ? Rosalind lacks then the loveWhich teacheth thee that thou and I am one :  Shall we be sunder’d ? Shall we part, sweet girl ?No, Let my father seek another heir.Therefore devise with me how we may fly,  Whither to go, and what to bear with us :And do not seek to take your change upon you,To bear your griefs yourself and leave me out;  For, by this heaven, now at our sorrows pale,  Say what thou canst, I’ll go along with thee. Rosalind : Why, whither shall we go ?(i)   According to Celia, in what way has Duke Frederick indirectly banished her ?(ii)  Quote from the extract one line that shows that Celia has decided to break her relationship with her father.(iii)  Why does Celia tell Rosalind that the former is associated with the latter in sorrow ?(iv)  Where do the cousins plan to go ? What danger do they foresee during the journey ?(v) What precautions do they plan to take against such a danger ?

Answer»

(i)  Celia loves Rosalind so much that she considers her as even closer than a sister, almost as two bodies with one soul. She cannot even think of being parted from Rosalind. So she says that by banishing Rosalind, Duke Frederick has also banished Celia, his own daughter because Celia will not be separated from Rosalind. Wherever Rosalind goes, Celia will also go, even if it is into banishment.

(ii)  The line is : “No : let my father seek another heir.”

(iii)  When Celia asks Rosalind not to be more unhappy than she is Rosalind replies that she has more cause for unhappiness than Celia. At this Celia says that it is not true because in banishing Rosalind the Duke has also banished Celia because the two of them are so joined together in love that they can never be parted.

(iv)  When the two girls are thinking of where they can go, Celia comes up with the idea of joining her uncle and Rosalind’s father in the forest of Arden. Rosalind is worried that because they are young and beautiful they will face danger on such a long journey. She says that beauty tempts thieves even more than gold does.

(v)  Celia and Rosalind decide to disguise themselves because it will not be safe for them to travel so far in their own rich clothes and natural beauty. Celia says that she will dress in poor clothes and colour her face with a brown pigment called umber so that they can travel unnoticed. She suggests that Rosalind should do the same. Rosalind thinks that it will be better if she disguises herself as a man because she is so tall. She says that she will put on the fierce and boastful behavior of a man, whatever womanly fears may lie hidden in her heart.

3214.

Join the following sentences to make one complete sentence, without using “and”, or “so”. (i)  The fire was put out. This took only an instant.(ii)  We started a society under the name of ‘Diamond.’(iii)  He went to the farm. He saw a snake.(iv)  The weather was fine. We enjoyed the walk.(v)  He is a doctor as well as s social worker.

Answer»

(i)  The fire was put out in an instant or instantly.

(ii)  We started a society under the name of ‘Diamond.’

(iii)  Going to the farm, the saw a snake.

(iv)  The weather being fine, we enjoyed the walk.

(v)  He is a doctor as well as a social worker

3215.

Identify the compounds A, B, C, D, E and F:

Answer»

A – Acetic acid and propanoic acid 

B – 2, 2 – Dichloropropane

C – CH3COONH4

D – CH3CH2OH

E – CH3OH

F – HCHO

3216.

In the following passage, fill in each of the numbered blank appropriate to the blank space. Example : (0) (ask)Once a well dressed man at Sadar Bazar (0) (ask) me for some money to go home. He told that his pocket (1) pick. I(2) (see) the man at station again last week and yesterday, at bus stand I(3)  (hear) him repeating the same story to one of my friends. “Don’t believe him,” I(4) (say) running towards him. “He(5)  (be) a fraud.” By my friend(6)  give him 50 Rs already. If I(7)  (not be) so far away. I(8)  (be ale) to warn him. My friend and I(9)  (never fall) for such stories again but what if someone’s story(10)  be true? 

Answer»

(1)  had been picked,

(2)  saw,

(3)  heard,

(4)  said,

(5)  is,

(6)  had given,

(7)  had not been,

(8)  would have been able,

(9)  will never fall,

(10)  is.

3217.

साखी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि कबीरदास जी एक सफल कवि एवं श्रेष्ठ उपदेशक थे, उन्होंने बाहरी आडम्बरों या पाखंडों का विरोध करके किस चीज़ पर अधिक ध्यान देने पर जोर दिया है?

Answer»

भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा के संत कवि कबीरदास एक क्रांतिकारी ज्ञानमार्गी कवि हैं। उन्होंने मध्यकालीन धर्म-साधना में अद्भुत व मौलिक योगदान दिया। उन्होंने अपने समय में प्रचलित धार्मिक संकीर्णताओं, पाखंडों, आडम्बरों व व्यर्थ कर्मकांडों की खुलकर निंदा की। कबीरदास ने अपनी क्रांतिकारी वाणी द्वारा मनुष्य को सच्चा मार्ग दिखाते हुए भक्ति के वास्तविक रूप का साक्षात्कार कराया। प्रस्तुत साखियों में कबीर का धर्म सुधारक तथा समाज सुधारक रूप दिखाई देता है। वे कहते हैं कि मनुष्य को सच्चे गुरु द्वारा दिया गया ज्ञानदान ही इस जगत् से मुक्ति दिला सकता है। लोक-प्रचलित विश्वासों और वैदिक सूत्रों की अपेक्षा सद्गुरु की शरण में जाना अनुकूल सिद्ध हुआ। उसके दिए हुए ज्ञान के प्रकाश से सारा अंधकार मिट जाता है। जब तक मनुष्य प्रेम के महत्त्व को नहीं समझता, तब तक उसकी आत्मा तृप्त नहीं हो सकती और वह शुष्कता का जीवन ही जीता रहता है।

कबीर ने स्पष्ट किया है कि आत्मा उस परमात्मा का अंश है जो अलख, निराकार अजर-अमर, स्वयंभू तथा एक है। उससे बिछुड़ी आत्मा उसी ब्रहम् में लीन होने के लिए व्याकुल रहती है। उसे जब तक प्रभु से मिलन नहीं हो जाता, तब तक दिन-रात, धूप-छाँव और स्वप्न में भी कहीं सुख प्राप्त नहीं हो सकता। वे प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें जीते जी दर्शन हो जाएँ तो अच्छा है क्योंकि मरने के बाद दर्शन किसी काम के नहीं।

कबीर की प्रभु से बिछुड़ी आत्मा उसी का नाम पुकारती रहती है और उसका मार्ग निहारती रहती है। अब आँखें थक चुकी हैं जो प्रभु के आने के मार्ग पर सदैव से टिकी हुई थीं। जीभ पर भी उसका नाम रटते-रटते छाला पड़ चुका है।

कबीर ने प्रभु से सच्ची लौ लगाने का प्रस्ताव किया है। उनका विचार है कि योगी का पाखंड धारण करके जंगल-जंगल या पर्वत-पर्वत भ्रमण करने पर कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। प्रभु से मिलाने वाली बूटी अर्थात् साधना का सूत्र कहीं पर भी नहीं मिला। क्योंकि यह भक्ति का सच्चा मार्ग नहीं था। संसार में आकर मनुष्य अनुपम चकाचौंध में भ्रमित होने लगता है। उसे मोह-माया आकर्षित कर लेती है। जब तक इस मोह-बंधन से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक प्रभु दूर ही रहता है।

कबीर ने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए शारीरिक रूप से योगी बनने के प्रचलन को भ्रामक व अर्थहीन बताया है। वे कहते हैं कि जब तक मनुष्य अपनी अंतरात्मा से योगी नहीं बनता, तब तक उसे कभी भी मुक्ति रूपी सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। उनका आशय है कि बाहरी रूप से योगी या संत का पहनावा कुछ नहीं कर सकता। साधक को अपने भीतर के विकारों और अपनी भोगपरक इंद्रियों पर काबू पाना होगा। ऐसा मन का योगी कोई विरला ही होता है और वही मुक्ति रूपी सिद्धि का सच्चा तथा वास्तविक अधिकारी होता है।

कबीर ने जहाँ एक ओर इंद्रियों को वश में रखने और मन की शुद्धि पर बल दिया है। वहीं उन्होंने आचरण की स्वच्छता को भी अनिवार्य बताया है। सच्चा आचरण तभी अपनाया जा सकता है जब मनुष्य का अपने अहं पर पूर्ण नियंत्रण हो। जब तक उसमें अहं-भावना का प्रसार रहता है, तब तक उसे ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इस ज्ञान के बिना हरि से मिलन संभव नहीं। वे कहते हैं कि अहंकार और ईश्वर एक ही शरीर के भीतर निवास नहीं कर सकते।

इस प्रकार कबीर ने ज्ञानमार्ग द्वारा तत्कालीन धार्मिक समाज को सही दिशा दिखाई है। वे वास्तव में एक क्रांतिकारी सुधारक थे।

3218.

जाऊँ कहाँ तजि चरण तुम्हारे।काको नाम पतित पावन जग केहि अति दीन पियारेकौने देव बराइ बिरद हित, हठि-हठि अधम उधारे।खग, मृग, व्याध, पषान, विटप जड़, जवन-कवन सुत तारे।देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस विचारे। तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपुनपौ हारै।(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से ली गई हैं? इनके कवि कौन हैं? भक्त ने किसके प्रति अपनी आस्था प्रकट की है?(ii) पतितपावन किसे कहा गया है और क्यों?(iii) ‘माया-बिबस बिचारे’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।(iv) “जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे” शीर्षक पद के आधार पर कवि की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।

Answer»

(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक काव्य मंजरी में संकलित तुलसीदास के पद’ शीर्षक कविता में से उद्धृत हैं। इसमें कवि तुलसीदास ने एक भक्त के रूप में भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रकट की है। वे उनके श्री-चरणों को अपना परम धाम मानते हुए उसे छोड़कर कहीं भी दूसरी जगह न जाने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं।

(ii) पतितपावन प्रभु श्रीराम को कहा गया है। इस विशेषण की सार्थकता यह है कि वे एकमात्र ऐसे देव हैं जो नीच, अपवित्र, अधम या पतित व्यक्तियों का उद्धार करते हैं। उन्होंने न जाने कितने नरनारियों को मुक्ति प्रदान कर अपने चरणों में स्थान दिया है। जटायु, मरीच, जरा नामक शिकारी, अहल्या, यमलार्जुन वृक्ष आदि इसी के उदाहरण हैं।

(iii) ‘माया-बिबस विचारे’ का भाव यह है कि यह संसार एक दिखावटी चकाचौंध है। इसकी माया में ग्रस्त होकर जीव भ्रम में जीवन काटता जाता है। माया-मोह के वश में पड़ा प्राणी प्रभु को भूल जाता है और मुक्ति के लिए सार्थक प्रयास नहीं करता।

(iv) प्रस्तुत पद में कवि तुलसीदास ने अपने आराध्य देव प्रभु श्रीराम के चरणों को अपने जीवन का चरम लक्ष्य माना है। वे उनकी कृपा, वत्सल भावना, उद्धार करने की सामर्थ्य व भक्तों पर अपार करुणा से प्रभावित हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु श्रीराम ही उन जैसे संसारी जीवों का उद्धार कर उन्हें अपने चरणों में जगह दे सकते हैं। वे इसकी पुष्टि के लिए रामायण व अन्य ग्रंथों से उदाहरण देते हैं जिनमें नीच, पतित व अधम नर-नारियों का उद्धार किया गया है। इसीलिए तुलसीदास को राम का परमभक्त कहते हैं।

3219.

संस्कृति की परिभाषा न देकर लेखक ने किन लक्षणों का उल्लेख कर संस्कृति को समझाने का प्रयत्न किया है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

Answer»

‘संस्कृति क्या है?’ शीर्षक निबंध में हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक एवं सांस्कृतिक विचारक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने संस्कृति के वास्तविक स्वरूप व लक्षणों को रेखांकित किया है।

दिनकर ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान की सकारात्मक प्रवृत्ति के उदाहरणों द्वारा इसके लक्षणों को संकेतित किया है। वे सबसे बड़ा उदाहरण मुस्लिमों के भारत में आगमन का देते हैं जिससे हमें कलाओं और भाषा (उर्दू) की समृद्धि प्राप्त हुई। चित्रकला भी इसी मुस्लिम शासन की देन है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान का सकारात्मक व अनुकूल रूप सदैव हितकर होता है। यदि यूरोप से भारत का संपर्क न हुआ होता तो भारतीय विचारधारा पर विज्ञान की कृपा बहुत देर से हुई होती। इसी से जुड़ी बात यह है कि इसी यूरोपीय प्रभाव के कारण हमारे यहाँ राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, राम कृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गाँधी जैसे सुधारक व सांस्कृतिक चिंतक पैदा हुए हैं। जब दो जातियाँ मिलती हैं तो उनके संपर्क अथवा संघर्ष से जीवन की एक नवीन धारा फूटती है, जिसका प्रभाव उन दोनों जातियों पर पड़ता है। अतः सांस्कृतिक लेन-देन की यह प्रक्रिया ही संस्कृति की आत्मा है। इसी के सहारे उसके प्राण बने रहते हैं और वह देर तक और दूर तक जीवित रहते हुए अपना प्रभाव डालती रहती है।

निबंधकार बताते हैं कि केवल चित्रकला, काव्य, मूर्ति कला, स्थापत्य या वास्तु कला और वस्त्र शैली पर नहीं, सांस्कृतिक संपर्क का प्रभाव दार्शनिक चिंतन और विचार की दशा-दिशा पर भी पड़ता है। वे लिखते हैं – केवल चित्र, कविता, मूर्ति, मकान और पोशाक पर ही नहीं, सांस्कृतिक संपर्क का प्रभाव दर्शन और विचार पर भी पड़ता है। एक देश में जो दार्शनिक और महात्मा उत्पन्न होते हैं, उनकी आवाज दसरे देशों में भी मिलते-जलते दार्शनिकों और महात्माओं को जन्म देती है। एक देश में जो धर्म खड़ा होता है, वह दूसरे देशों के धर्मों को भी बहुत-कुछ बदल देता है। यही नहीं, बल्कि प्राचीन जगत् में तो बहुत-से ऐसे देवी-देवता भी मिलते हैं जो कई जातियों के संस्कारों से निकलकर एक जगह जमा हुए हैं।

दिनकर जी का मानना है कि एक जाति विशेष की धार्मिक परिपाटी संपर्क में आने वाली किसी दूसरी जाति की परिपाटी या रिवाज बन जाता है। इसी प्रकार किसी एक देश की प्रवृत्तियाँ किसी दूसरे देश के सामाजिकों की प्रवृत्तियों में जाकर समा जाती हैं। अतः संस्कृति की दृष्टि से वह जाति और देश शक्ति संपन्न और महान समझे जाने चाहिए जिसने विश्व के अधिकांश जन-समूह को प्रभावित किया। उनके शब्दों में –

एक जाति का धार्मिक रिवाज दूसरी जाति का रिवाज बन जाता है और एक देश की आदत दूसरे देश के लोगों की आदत में समा जाती है। अतएव, सांस्कृतिक दृष्टि से वह देश और वह जाति अधिक शक्तिशालिनी और महान् समझी जानी चाहिए जिसने विश्व के अधिक-से-अधिक देशों, अधिक-सेअधिक जातियों की संस्कृतियों को अपने भीतर जज़्ब करके, उन्हें पचा करके, बड़े-से-बड़े समन्वय को उत्पन्न किया है।

निबंधकार ने सांस्कृतिक दृष्टि से भारतीय संस्कृति को सबसे बड़ी समन्वयकारी संस्कृति बताया है। इसका एकमात्र और महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि यहाँ की संस्कृति में बाहर की अधिकाधिक संस्कृतियाँ मिश्रित होकर उसका अभिन्न व अटूट अंग बन गई हैं।

काव्य मंजरी

3220.

निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करें(i) गले का हार होना(ii) रंग चढ़ना।(iii) सिर उठाना।(iv) चाँदी होना।(v) अपने मुँह मियाँ मिठू बनना।

Answer»

(i) बच्चे अपने माता-पिता के गले का हार होते हैं।

(ii) देखते ही देखते पूरे निर्वाचन क्षेत्र में स्वामी जी का रंग चढ़ गया।

(iii) काश्मीर में अब भी आतंकवाद सिर उठा रहा है।

(iv) टमाटर के दामों में अभूतपूर्व तेज़ी से किसानों की चाँदी हो गई।

(v) आजकल के नेता अपने मुँह मियाँ मिठू बनते फिरते हैं।

3221.

“मजबूरी’ कहानी मातृत्व प्रेम से परिपूर्ण एक सरल वृद्धा की कहानी है।” इस कथन की पुष्टि कहानी की घटनाओं के आधार पर कीजिए।

Answer»

‘मजबूरी’ शीर्षक कहानी में लेखिका मन्नू भंडारी ने मातृत्व प्रेम से परिपूर्ण एक सरल वृद्धा ‘अम्मा’ का करुण व ममतामयी चित्रांकन किया है। गाँव में रहने वाली ममतामयी, ‘अम्मा’ को पुत्र रामेश्वर को कलेजे से दूर करना पड़ता है। यह उनकी पहली मजबूरी है। रामेश्वर के बिना उन्हें घर मसान जैसा लगता है। पहाड़ जैसा दिन उन्हें अकेले काटना पड़ता है। लेकिन अकेलेपन की यातना से दुखी अम्मा के अकेले जीवन में रामेश्वर के बड़े बेटे बेटू के आ जाने से बहार आ जाती है। दूसरा पहलू यह है कि बहू रमा के कड़े नियंत्रण के बाद दादी अम्मा के असीम दुलार में पलता हुआ बेटू एकदम अनुशासनहीन हो जाता है। रमा की मजबूरी थी कि वह अगली संतान को ध्यान में रखकर अपने बेटू को अम्मा के पास छोड़ती है। वर्ष बाद लौटने पर उसे दुख होता है क्योंकि बेटू उदंड और अनुशासनहीन हो चुका है। वह उसे ले जाना चाहती है परंतु ले जा नहीं पाती।

इसके तीन वर्ष बाद रमा और रामेश्वर तीन साल के पप्पू को लेकर आए। पप्पू ने अंग्रेज़ी की छोटी-छोटी कविताएँ याद कर रखी थीं। दो महीने पूर्व ही उसे एक अंग्रेजी स्कूल में भर्ती करवाया गया था। रमा ने रामेश्वर से कहा कि जैसे भी हो इस बार बेटू को अपने साथ लेकर जाना होगा। रामेश्वर ने जवाब दिया कि “इस बात से अम्मा को बहुत दुख होगा तथा दूसरी समस्या यह है कि बेटू तुम्हारे पास ज़रा भी नहीं आता। वह अम्मा को छोड़कर वहाँ कैसे रहेगा?”

रामेश्वर बेचारा धर्म संकट में था। उसने सारी बात रमा पर छोड़ दी। अम्मा ने जब रमा का प्रस्ताव सुना कि वह बेटू को अपने साथ ले जाना चाहती है, तो उसके पैरों तले की जमीन सरक गई। बोली, “मेरे बिना वह एक पल भी तो नहीं रहता …… एकाएक मुझसे दूर कैसे रहेगा?” रमा ने बेटू की पढ़ाई की बात की और कहा, “……”उसके साथ दुश्मनी ही निभानी है, तो रखिए इसे अपने पास।”

अम्मा यह बात सुनकर फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ देर बाद स्वर को संयत करके बोली, “ले जा बहू, ले जा।”

दो दिन बाद रमा औषधालय के एकमात्र नौकर और दोनों बच्चों को लेकर अपनी माँ के यहाँ चल पड़ी। रमा ने बेटू को बताया ही नहीं कि वह उसे अपने साथ ले जा रही है।

उसके बाद घर में जो कोई भी आता उसे बेटू के चले जाने पर आश्चर्य होता। अम्मा ने उन्हें बताया कि गठिया के मारे उठना बैठना तक हराम हो रहा है, इसीलिए मैंने ही कह दिया कि पप्पू अब बड़ा हो गया है, सो बेटू को ले जाओ।

शाम को गुब्बारेवाला आया, बुढ़िया के बालवाला आया, मिठाई के खिलौने बेचने वाला आया, तो अम्मा ने सबको जवाब दिया- “जाओ भाई, जाओ ! आज तुम्हारा ग्राहक नहीं है। उसे मैंने उसकी अम्मा के साथ भेज दिया। अब यहाँ मत आया करो।”

तीसरे दिन औषधालय का नौकर वापस आया, तो उसने बताया कि दादी अम्मा को याद करते-करते बेटू को बुखार आ गया। रमा के हाथ से न कुछ खाता है न दवाई पीता है। अम्मा पागलों की भाँति दौड़ती हुई औषधालय पहुँची।

अम्मा बेटू को लेने चली गई और तीसरे दिन ही बेटू को लेकर लौट आईं। एक साल उन्होंने इसी प्रकार निकाल दिया। रमा मुंबई से आई तो बेटू का वही रवैया देखा। वह एक बार फिर दादी माँ को रुलाकर उनके मना करने पर भी बेटू को लेकर मुंबई के लिए चल पड़ी। अम्मा ने शिब्बू को साथ कर दिया।

शिब्बू मुंबई से लौटकर अम्मा को बताता है कि बेटू अब रमा के साथ हिल-मिल गया है और उसकी वहाँ लड़कों से दोस्ती हो गई है। इस पर अम्मा परसाद बाँटने के लिए सवा रुपया निकालती है। लेखिका ने यहाँ पर उसकी करुण स्थिति और रोती आँखों की मजबूरी उजागर की है। वह प्रसाद भले ही बाँट रही थी परंतु अकेले, सुनसान व शुष्क जीवन की मजबूरी उसे रुला रही थी।

3222.

एक जगह गरम-गरम जलेबियाँ बन रही थीं। बच्चों के लिए थोड़ी-सी खरीद लीं। घर के दरवाजे पर पहुँचे। दरवाजा खुला था। घर के अन्दर पैर रखने में हृदय धड़कता था। न जाने बच्चे किस हालत में हों?(i) किसने और कब जलेबियाँ खरीदीं? जलेबियाँ खरीदने वाले का बच्चों से क्या सम्बन्ध था?(ii) जलेबियाँ खरीदने वाला व्यक्ति कहाँ और क्यों गया था?(iii) सीताराम जी की अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल किसे करनी पड़ती थी? इस बारे में सीताराम जी क्यों चिंतित थे?(iv) इस बार बच्चों की देखभाल किसने और क्यों की? सीताराम जी का उससे कब और कैसे परिचय हुआ था?

Answer»

(i) सीताराम ने देश के लिए एक वर्ष की जेल काटी थी। जेल से रिहा होते ही उन्होंने अपने बच्चों के लिए जलेबियाँ खरीदीं। उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था और वे दो बच्चों के पालनपोषण के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में योगदान भी कर रहे थे।

(ii) सीताराम को देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के दोष में अंग्रेज़ सरकार द्वारा जेल भेज दिया गया था।

(iii) सीताराम जी की अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल कहारिन किया करती थी। वे इस बारे में चिंतित थे कि कहारिन के अपने भी तीन-चार बच्चे थे। उनके साथ दो और बच्चों को सँभालना कठिन कार्य था।

(iv) इस बार सीताराम के बच्चों की देखभाल गौरी ने की थी। सीताराम एक बार गौरी को अपने बच्चों की नई माँ के रूप में देखने गए थे। वह राधाकृष्ण जी की पुत्री थी। जब दोनों का संबंध सफल नहीं हो पाया तो सीताराम निराश नहीं हुए। परन्तु जब उन्हें एक साल का कारावास हो गया तो यह समाचार पढ़ते ही गौरी ने उनके बच्चों की माँ बनना स्वीकार कर लिया और उनके पास कानपुर चली गई।

3223.

How does a bat make use of ultrasonic waves to find its way

Answer»

Echolocation is the use of sound waves and echoes to determine where objects are in space. Bats use echolocation to navigate  as When the sound waves hit an object they produce echoes. The echo bounces off the object and returns to the bats' ears. Bats listen to the echoes to figure out where the object is, how big it is, and its shape.

3224.

नीलम का परिचय देते हुए बताइए कि उसके परिवार में कौन-कौन था? वह किस धोखे में अपना जीवन अभी तक व्यतीत कर रही थी? उसे इसका आभास कैसे हुआ? स्पष्ट कीजिए।

Answer»

नीलम की कहानी वास्तव में त्याग, बलिदान और संरक्षण जैसे पारिवारिक मूल्यों और भौतिकवादी संस्कृति के टकराव की कहानी है। इस कहानी की नीलम आज की भौतिकवादी दृष्टि के समक्ष स्वयं को अंतर्वंद्व में खड़ा पाती है। उसे गहरा आघात लगता है कि जिस परिवार के लिए वह आज तक खटती रही है, वह उसे केवल धनोपार्जन का एक माध्यम समझता रहा।

कहानीकार की सारी संवेदना व सहानुभूति कथा-नायिका नीलम के साथ है। इसके साथ ही यहाँ आज के युग की उस अपरिहार्य प्रवृत्ति की ओर भी संकेत किया गया है, जिसमें हर कोई निरंकुश जीवन जीना चाहता है। इसी अंतर्वंद्व को पूरी कहानी में बार-बार संकेतित किया गया है।

पिता के असमय स्वर्गवास के बाद घर का सारा दायित्व युवती नीलम के कंधों पर लाद दिया जाता है। माँ ने यह नहीं सोचा कि उसकी सबसे बड़ी बेटी अर्थात् नीलम का विवाह सबसे बड़ी प्राथमिकता है। वह तो केवल यह सोचती है कि घर का भरण-पोषण, बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और पारिवारिक दायित्वों का एकमात्र आर्थिक स्रोत नीलम ही है। इसलिए वह उसके बीतते यौवन के साथ-साथ उससे वीतराग होती गई। अपनी बेटी की इस भूमिका को कभी भी उसके पारिवारिक सुख के संदर्भ में नहीं परखा गया।

नीलम अपने परिजनों के लिए बलि होती गई और जैसे ही उसके समस्त कर्तव्य पूर्ण हुए, घर का वातावरण बदल गया। घर में उसकी स्थिति एक अनचाहे व्यक्ति या सामान की हो गई। उसे घर से भगाने के लिए पहला अचूक प्रयास होने लगा। सुनियोजित योजना के अधीन उसके लिए विवाह प्रस्ताव लाए गए। परिवार के बोझ से थके बूढ़े-प्रौढ़ दूल्हे वर के रूप में प्रस्तुत किए जाने लगे। यहाँ नीलम का द्वंद्व देखिए –

“पम्मी, मेरी उम्र चाहे जो भी रही हो, मेरे सपने अभी भी किशोर हैं। मेरे भाई लोग, जैसे एंटीक पीसेस मेरे सामने परोस रहे हैं, उनसे उनका कोई मेल नहीं है।” दुख यह है कि नीलम को समझने वाला कोई नहीं है। उसकी बहन भी उसे जिस-तिस को वर के रूप में अपनाने के लिए तर्क देती है और उसकी प्रौढ़ आयु का संदर्भ छेड़ती है तो वह कहती है –

“समय से शादी नहीं हुई, यही तो परेशानी है पम्मी ! पति-पत्नी साथ-साथ बुढ़ाते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। उस लंबी यात्रा में इतनी सारी चीजें जिंदगी के साथ जुड़ जाती हैं कि उम्र का अहसास पीछे छूट जाता है।

लेखिका ने नीलम के अंतर्वंद्व को अत्यंत गहराई से पहचाना है। जब उसे अपनी स्थिति का पता चलता है तो वह अंदर से टूट जाती है। संदर्भ लिखिए –

“अल्का कहती है, हम तो जिंदगी को कभी ठीक से एनजॉय नहीं कर पाते। एक अनब्याही ननद का साया हमेशा हमारी खुशियों पर मँडराता रहता है।”

नीलम भीतर-ही-भीतर टूट जाती है। उसे जीवन में कई अवसर मिले थे जब उसे प्रोन्नति के प्रस्ताव थमाए जा रहे थे। परन्तु वह इन्हीं परिजनों का सोचकर उन प्रस्तावों को ठुकरा देती थी। आज वह अपने वंद्व को छिपा नहीं रही। संदर्भ द्रष्टव्य है –

“पम्मी, तुम नहीं जानती, अरमानों को दफ़न करना कितना असहनीय होता है। उन्हें वापस जिलाना तो शायद और भी पीड़ा देगा, और मुझे डर है कि अगर मुझे मजबूर किया गया, तो मैं सपनों के टूटे हुए सिरे को वहीं से उठाना चाहूँगी, जहाँ छोड़ था।”

इस प्रकार वह अपनी नियति के विपरीत सिद्ध होने के परिणाम पर पीड़ित है। उसका वंद्व उसके अतीत और भविष्य के बीच खड़ा है। यही अतीत उसके भविष्य को वर्तमान के कटु यथार्थ से जोड़ते हुए उसे बस्तर की ओर निर्दिष्ट कर देता है।

3225.

तकनीकी विकास ने मानव को सुविधाओं का दास बना दिया है’ – इस विषय पर अपने विचार व्यक्त – कीजिए।

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आज का युग विज्ञान व प्रौद्योगिकी का युग है। नये-नये आविष्कारों ने हमें इतनी सुविधाएँ प्रदान कर दी हैं कि हम उनके दास बन गए हैं। एक क्षण भी इन सुविधाओं के अभाव में रहना कठिनसा प्रतीत होता है। कंप्यूटर और मोबाइल की सुविधा ने हमें एक तरह से अपंग बना डाला है। हम कोई भी कार्य इन दो उपकरणों से जुड़ी सुविधाओं के अभाव में करने के लिए स्वयं को अक्षमसा अनुभव करते हैं।

कंप्यूटर को यांत्रिक मस्तिष्क भी कहा जाता है। यह अत्यंत तीव्र गति से न्यूनतम समय में अधिकसे-अधिक गणनाएँ कर सकता है तथा वह भी बिल्कुल त्रुटि रहित। आज तो कंप्यूटर को लेपटॉप के रूप में एक छोटे से ब्रीफकेस में बंद कर दिया गया है जिसे जहाँ चाहे वहाँ आसानी से ले जाया जा सकता है।

कंप्यूटर आज के युग की अनिवार्यता बन गया है तथा इसका प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा रहा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि अनेक क्षेत्रों में कंप्यूटरों द्वारा कार्य संपन्न किया जा रहा है। आज के युद्ध तथा हवाई हमले कंप्यूटर के सहारे जीते जाते हैं। मुद्रण के क्षेत्र में भी कंप्यूटर ने क्रांति उत्पन्न कर दी है। पुस्तकों की छपाई का काम कंप्यूटर के प्रयोग से अत्यंत तीव्रगामी तथा सुविधाजनक हो गया है। विज्ञापनों को बनाने में भी कंप्यूटर सहायक हुआ है। आजकल यह शिक्षा का माध्यम भी बन गया है। अनेक विषयों की पढ़ाई में कंप्यूटर की सहायता ली जा सकती है।

कंप्यूटर यद्यपि मानव-मस्तिष्क की तरह कार्य करता है परंतु यह मानव की तरह सोच-विचार नहीं कर सकता केवल दिए गए आदेशों का पालन कर सकता है। निर्देश देने में ज़रा-सी चूक हो जाए तो कंप्यूटर पर जो जानकारी प्राप्त होगी वह सही नहीं होगी।

कंप्यूटर का दुरुपयोग संभव है। इंटरनेट पर अनेक प्रकार की अवांछित सामग्री उपलब्ध होने के कारण वह अपराध प्रवृत्ति चारित्रिक पतन एवं अश्लीलता बढ़ाने में उत्तरदायी हो सकती है। कंप्यूटर के लगातार प्रयोग से आँखों की ज्योति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका अधिक प्रयोग समय की बरबादी का कारण भी है। एक कंप्यूटर कई आदमियों की नौकरी ले सकता है। भारत जैसे विकासशील एवं गरीब देश में जहाँ बेरोज़गारों की संख्या बहुत अधिक है, वहाँ कंप्यूटर इसे और बढ़ा सकता है। फिर भी हम इस सुविधा के दास बनते जा रहे हैं।

कंप्यूटर की भाँति मोबाइल फ़ोन भी आज जीवन की अनिवार्यता बन गया है। आज से कुछ वर्ष पूर्व इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हम किसी से बात करने के लिए किसी का संदेश सुनाने के लिए किसी छोटे से यंत्र को अपने हाथ में लेकर घूमेंगे। इस छोटे से यंत्र का नाम है, मोबाइल फ़ोन। मोबाइल फ़ोन से जहाँ चाहें, जिससे चाहें, देश या विदेश में कुछ ही क्षणों में अपना संदेश दूसरों तक पहुँचाया जा सकता है और उनकी बात सुनी जा सकती है। यही नहीं इस उपकरण से (एस. एम. एस.) संदेश भेजे और प्राप्त किए जा सकते हैं। समाचार, चुटकुले, संगीत तथा तरह-तरह के खेलों का आनंद लिया जा सकता है। किसी भी तरह की विपत्ति में मोबाइल फ़ोन रक्षक बनकर हमारी सहायता करता है।

आजकल बैंकिंग, बिल भुगतान, आरक्षण, आवेदन, मौसम संबंधी ज्ञान व पूर्वानुमान आदि के प्रसंग में भी मोबाइल उपयोगी है। सोशल मीडिया के बिना आज का जीवन बोझिल सा लगता है। कुल मिलाकर इन सुविधाओं ने हमें अपना दास बना डाला है।

3226.

‘सहशिक्षा के माध्यम से बालक-बालिका के मध्य मित्रता और समानता का भाव जागता है।’ – इस विषय पर अपने विचार विस्तारपूर्वक लिखिए।

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‘सहशिक्षा’ को लेकर हमारे समाज में कुछ दशक पूर्व तक भारी मतभेद पाया जाता था। कुछ परंपरावादी लोग बालक-बालिका की शिक्षा को अलग-अलग परिसरों में देखना चाहते थे परंतु आज स्थिति बदल गई है।

आज सहशिक्षा के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ने वालों में भी बदलाव आता जा रहा है। वास्तव में ‘लड़के-लड़कियों के एक ही परिसर में साथ-साथ पढ़ने से लड़कों में शालीनता आ जाती है। एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होने लगता है। लड़कों में कोमलता, विनय, शिष्टाचार, प्रेम, करुणा, दया, सहानुभूति व शालीनता आदि नारी-सुलभ गुणों का स्वयमेव समावेश हो जाता है। इसी प्रकार लड़कियाँ भी पुरुषों की वीरता, साहस, आदि गुणों को ग्रहण कर लेती है। इस प्रकार के आदान

प्रदान से दोनों के व्यक्तित्व में निखार आता है। वे एक-दूसरे की प्रवृत्ति को अधिक अच्छी तरह समझने लगते हैं। उनकी अनावश्यक झिझक दूर होने लगती है, और उनका यह अनुभव उनके भावी जीवन की नौका खेने में पतवार का काम करता है। विवाह तन से अधिक मन के मिलन का नाम है। वे अपने अनुरूप जीवन-साथी का चुनाव करने में समर्थ हो जाते हैं। इस प्रकार सहशिक्षा से उनका अन्त:करण अस्वाभाविक विकृतियों से रहित होकर स्पष्ट व स्वच्छ हो जाता है, और एक सुस्थिर गृहस्थ की नींव रखने में सहायक सिद्ध होता है। इसके साथ ही उनमें स्पर्धा की भावना भी जागृत हो जाती है। दोनों एक दूसरे से आगे बढ़ने की चेष्टा करते हैं। इस पद्धति द्वारा विद्यालयों में शिक्षा का वातावरण बनता है।

सहशिक्षा के विरोधी विद्वानों का कथन है कि यौवन की दहलीज़ पर कदम रखने वाले युवकयुवतियों की जीवन-नौका प्रणय-भावना के प्रथम झोंके में ही इतनी तेजी से बह निकलती है कि विचारों के चप्पू काम ही नहीं करते। लाभ और हानि की विवेक बुद्धि से तोल कर चलना उनके लिए अति कठिन है। इसके लिए परिपक्व बुद्धि चाहिए। शिक्षा तो परिपक्व बुद्धि की कर्मशाला है। सरस्वती बुद्धि को परिपक्व बनाती है। उसमें गंभीरता आती है, व्यक्ति विनम्र हो जाता है। अतः जीवन के फल को पाल में डाल कर पकाने की अपेक्षा यह अच्छा है कि उसे स्वयं ही पकने दिया जाए। इस फिसलन भरे रास्ते पर विश्वामित्र जैसे तपस्वी भी फिसल गए, फिर इन अपरिपक्व बुद्धि वालों से इन परिस्थितियों में ब्रह्मचर्य की आशा करना एक भूल है। इस उम्र में तो व्यक्ति नैतिक मूल्यों को जीवन में घटाने का प्रयत्न करता है। यह परीक्षण-काल नहीं है।

जहाँ तक पारस्परिक गुणों के आदान-प्रदान का संबंध है, प्रेमचंद ने एक स्थल पर कहा है कि ‘यदि पुरुष में स्त्री के गुण आ जाएँ तो यह देवता वन जाता है, और यदि स्त्री में पुरुष के गुण आ जाएँ तो वह कुलटा बन जाती है। ‘ स्त्री और पुरुष में सब गुणों के आदान-प्रदान की आवश्यकता नहीं है दोनों में पृथक्-पृथक् गुणों का होना एक स्वाभाविक क्रिया है। उसे हम ज़बरदस्ती बदलने की चेष्टा क्यों करें? स्त्री और पुरुष की शारीरिक रचना में अंतर होने के कारण उनमें पृथक्पृथक् गुणों का विकास होना अधिक स्वाभाविक है। क्या कोई पुरुष फ्लोरैंस नाइटिंगेल बन सकता है? माँ के वक्षस्थल से फूटने वाला वात्सल्य का स्रोत पुरुष के वक्षस्थल से कैसे फूट सकता है? स्त्री की लज्जाशीलता, करुणा, कोमलता को लेकर पुरुष का काम कैसे चलेगा? और जिन पौरुषेय गुणों के आदान-प्रदान की बात कही जाती है, वे स्त्री के लिए अनिवार्य नहीं है, वास्तव में समानता एक मानवीय और सामाजिक मूल्य है तथा स्त्री और पुरुष के शरीर और स्वभाव का अंतर एक प्राकृतिक पदार्थ है। उनमें से प्रत्येक पूर्ण मनुष्य है, और दोनों मिलकर पूर्णतर बन जाते हैं। अतः सहशिक्षा एक सकारात्मक प्रणाली है।

3227.

'साँच को आँच नहीं’ पर मौलिक कहानी लिखिए

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साँच को आँच नहीं (मौलिक कहानी) – महापुरुषों ने जीवन के महान् व गहन अनुभवों के आधार पर कुछ उक्तियाँ कही हैं, जो आज भी प्रामाणिक रूप से सत्य सिद्ध होती हैं। ऐसा ही यह कथन है कि “झूठ के पाँव नहीं होते” या “सत्य की कभी हार नहीं होती।” मुझे इस संबंध में एक कहानी स्मरण आ रही है जो इस प्रकार है :

बहुत समय पहले की बात है कि एक व्यापारी अफ़गानिस्तान से एक सुंदर घोड़ा खरीदकर अपने शहर लाहौर की ओर आ रहा था। घर से दस मील की दूरी रह जाने पर उसे थकान अनुभव हुई। उसने घोड़े को चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं एक पेड़ की घनी छाया में लेट गया।

घनी व शीतल छाया ने उस व्यक्ति के थके शरीर पर जादू जैसे मोहक मंत्र डाल दिया। वह क्षण भर में ही खर्राटे लगाने लगा।

थोड़ी देर में एक ठग उस मार्ग से निकल रहा था कि उसका ध्यान सुंदर घोड़े पर पड़ा।घोड़े के रूप ने उसका मन मोह लिया। व्यापारी अभी तक सो रहा था, मौका देखकर ठग ने घोड़े की लगाम को हाथ लगाया तो वह ज़ोर से हिनहिनाया। घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर व्यापारी नींद से उठ बैठा। उठकर चारों ओर नज़र दौड़ाई। उसका वह कीमती व सुंदर घोड़ा कहीं दिखाई न दे रहा था। व्यापारी को कुछ न सूझ रहा था।

वह घबरा गया। घबराहट में ही वह एक पेड़ पर चढ़ने लगा और इधर-उधर देखने लगा कि उसका घोड़ा कहाँ है। थोड़ा और ऊपर चढ़ने पर उसने देखा कि कोई व्यक्ति उसके घोड़े की लगाम पकड़े चल रहा है। वह घोड़े पर सवार होने का बार-बार प्रयास कर रहा था परंतु सफल नहीं हो रहा था। व्यापारी नीचे उतरा और अपनी झोली उठाकर ठग के पीछे भागा।

ठग के पास जाकर व्यापारी ने ललकारा – “अरे दुष्ट ! ठहर, मेरा घोड़ा लिए कहाँ जा रहा है?”

“तेरा घोड़ा? तेरा कहाँ से हुआ? चल भाग, ठग कहीं का !” ठग बोला। बोलने के साथ ही उसने घोड़े को तेज़ खींचना शुरू कर दिया।

चलते-चलते दोनों पक्ष हाँफने लगे। शहर निकट आ रहा था। अचानक व्यापारी को एक चौक पर सिपाही खड़ा दिखाई दिया। वह झट से उसके पास जाकर फरियाद करने लगा कि उसका घोड़ा कोई ठग लिए जा रहा है। सिपाही ने आगे बढ़कर ठग को रोका और पूछा

“क्यों रे पाजी ! इस शरीफ़ आदमी का घोड़ा क्यों छीने जा रहे हो?”

ठग ने कहा कि यह झूठ बोल रहा है, घोड़ा मेरा है। सिपाही सच-झूठ का फ़ैसला नहीं कर पाया।

अंततः सिपाही घोड़े को पकड़कर बोला – “चलो थाने ! वहीं चलकर फैसला होगा कि घोड़े का वास्तविक मालिक कौन है।”

व्यापारी घबरा रहा था कि यदि थानेदार ने सबूत माँगा तो वह क्या दिखाएगा। उसे घोड़े की आदतों का भी पता नहीं।

थाने पहुँकर सिपाही ने दोनों को बरामदे में बैठने को कहा और घोड़ा थाने के पीछे बने घुड़साल में ले जाकर बाँध दिया। थानेदार को सूचना दी गई। सारी कथा कही गई। थानेदार अत्यंत प्रतिभाशाली, चतुर वह चेहरा पढ़कर हाल बताने वाला पारखी व्यक्ति था। उसने दोनों को बुलाया और दोनों की आँखों में आँखें डालते हुए प्रश्न पूछा कि घोड़ा किसका है? दोनों ने घोड़े को अपना बताया। थानेदार ने सिपाही के कान में कुछ कहा और फिर उन दोनों की ओर देखा और सिपाही से कहा – “जाओ, घोड़ा पेश करो।”

सिपाही घोड़ा लेकर आया तो उसके मुँह पर काला कपड़ा लपेटा हुआ था। थानेदार ने छूटते ही ठग से पूछा – “बता तेरे घोड़े की कौन-सी आँख बंद है- दाईं या बाईं?” ठग ने घबराकर तुरंत कहा – “हुजूर दाईं !” थानेदार ने घोड़ा व्यापारी को देते हुए ठग को कैद करने की आज्ञा दी क्योंकि घोड़े की कोई आँख बंद न थी। तभी कहते हैं कि साँच को आँच नहीं।

3228.

‘वर्तमान युग में आगे बढ़ने के लिए धन की आवश्यकता है न कि प्रतिभा की’ – इस विषय के पक्ष या विपक्ष – में अपने विचार लिखिए।

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वर्तमान युग में आगे बढ़ने के लिए धन की आवश्यकता है न कि प्रतिभा की सृष्टि के समस्त ‘चराचरों में मानव को अखिलेश की सर्वोत्कृष्ट कृति कहा गया है। मानव अपनी बौद्धिक, मानसिक तथा चारित्रिक विशेषताओं के कारण सर्वश्रेष्ठ है। केवल मनुष्य ही उचित-अनुचित का निर्णय कर सकता है तथा अपने चरित्र के बल पर समाज को नई दिशा दे सकता है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा का आधार कुछ मानवीय मूल्य थे जो केवल उसी में पाए जाते हैं। कहा भी है – ‘येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञान न शीलं न गुणो न धर्म: ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरिन्त।’

परोपकार, दया, करुणा, मैत्री, सत्यनिष्ठा आदि चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर समाज में मनुष्य की प्रतिष्ठा थी। बुद्ध, महावीर स्वामी, विवेकानंद, दयानंद, बाबा आमटे तथा प्रेमचंद जैसे अनेक उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि केवल धन ही मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार नहीं होता। आज स्थिति बदल गई है। आज के युग में भौतिकता का बोलबाला है। नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, प्रदर्शनप्रियता ही जीवन-शैली बन गई है। आज दुर्भाग्य से मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार मानवीय गुण न होकर धन-संपत्ति हो गए हैं। जिस व्यक्ति के पास धन-संपत्ति का अभाव है वह गुणी होते हुए भी समाज में आदर नहीं पाता। आज समाज में धनी की पूजा होती है। उसी का रुतबा है तथा हर जगह उसी की पूछ है। इससे बड़ी आश्चर्य की बात क्या हो सकती है कि धार्मिक स्थलों पर भी धनी का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आज हमारी सोच एवं दृष्टिकोण इस हद तक दूषित हो चुके हैं कि नैतिक मूल्य नगण्य हो गए हैं। समाज में जिस प्रकार छल-कपट, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, तस्करी, कालाबाजारी जैसी बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं उसके लिए कहीं-न-कहीं धन का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

आज के समाज में हर स्तर पर धन का बोलबाला है। धर्म, राजनीति, शिक्षा, साहित्य जैसे सभी क्षेत्रों में धन के व्यापक प्रभाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। धनी व्यक्ति अपने बालकों को अच्छे विद्यालयों में भेजते हैं, राजनीति में केवल धनी व्यक्ति ही प्रवेश कर सकते हैं। बड़े-बड़े समारोहों, उत्सवों एवं आयोजनों में धनिकों का ही गुणगान किया जाता है, जिसे देखकर इस कथन पर विश्वास करना पड़ता है – ‘सर्वेगुणा कांचनमाश्रयंति’ आज धन के आधार पर ही अमेरिका की तूती सारे विश्व में बोलती है।

यद्यपि धन के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता परंतु केवल धन ही मानवीय प्रतिष्ठा का आधार नहीं है। क्या मदर टेरेसा, महात्मा गांधी, लालबहादुर शास्त्री, निराला आदि की प्रतिष्ठा का आधार उनकी आर्थिक स्थिति अथवा धन-संपत्ति थी? इसी प्रकार के अनेक व्यक्तियों के नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने धन को कोई महत्त्व नहीं दिया लेकिन आज भी उनका नाम आदर सहित लिया जाता है। निष्कर्षतः केवल धन को ही मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार नहीं माना जा सकता। प्रतिभा एक ऐसा मौलिक व मानवोचित गुण है जिसके अभाव में हम जीवन व मानवता में उत्कर्ष पर कभी नहीं पहुँच सकते।

3229.

पुस्तक एक सच्ची मित्र, गुरु और मार्गदर्शक का कार्य करके जीवन की धारा को बदल सकती है – ‘मेरी प्रिय पुस्तक’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

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पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं तथा पुस्तकों द्वारा ही हमारा बौद्धिक एवं मानसिक विकास संभव होता है। ज्ञान प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन होने के साथ-साथ, पुस्तकें हमें सामाजिक व्यवहार, संस्कार, कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों के संवर्धन में सहायक सिद्ध होती हैं तथा प्रबुद्ध नागरिक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र एवं गुरु भी होती हैं। अच्छी पुस्तकें चिंतामणि के समान होती हैं, जो हमारा मार्गदर्शन करती हैं तथा हमें असत् से सत् ‘की ओर, तमस से ज्योति की ओर ले जाती हैं। पुस्तकें हमारा अज्ञान दूर करके हमें प्रबुद्ध नागरिक बनाती हैं।

जिस प्रकार संतुलित आहार हमारे शरीर को पुष्ट करता है, उसी प्रकार पुस्तकें हमारे मस्तिष्क की भूख को मिटाती हैं। समाज के परिष्कार, व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि एवं कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता के पोषण में भी पुस्तकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुस्तकों के अध्ययन से हमारा एकाकीपन भी दूर होता है।

हाल में ही मैंने श्री विद्यालंकार द्वारा रचित ‘श्रीरामचरित’ नामक पुस्तक पढ़ी जो तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ पर आधारित है। हिंदी में लिखी होने के कारण इसे पढ़ना सुगम है। इस रचना में श्री राम’ की कथा को अत्यंत सरल भाषा में सात सर्गों में व्यक्त किया गया है। पुस्तक मूलतः तुलसी कृत रामचरितमानस का ही हिंदी अनुवाद प्रतीत होती है।

यह पुस्तक मुझे बहुत पसंद आई तथा इसीलिए मेरी प्रिय पुस्तक’ बन गई। इस पुस्तक में पात्रों का चरित्र अनुकरणीय है। पुस्तक में लक्ष्मण, भरत और राम का, सीता और राम में पति-पत्नी का, राम और हनुमान में स्वामी-सेवक का, सुग्रीव और राम में मित्र का अनूठा आदर्श चित्रित किया गया है।

यह पुस्तक लोक-जीवन, लोकाचार, लोकनीति, लोक संस्कृति, लोक धर्म तथा लोकादर्श को प्रभावशाली ढंग से रूपायित करती है। श्री राम की आज्ञाकारिता तथा समाज में निम्न मानी जाने वाली जातियों के प्रति स्नेह, उदारता आदि की भावना आज भी अनुकरणीय है। ‘गुह’, केवट’ तथा ‘शबरी’ के प्रति राम की वत्सलता अद्भुत है। श्री राम का मर्यादापुरुषोत्तम रूप आज भी हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने जिस प्रकार अनेक दानवों एवं राक्षसों का विध्वंस किया, उससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अन्याय का डटकर विरोध ही नहीं करना चाहिए वरन उसके समूल नाश के प्रति कृत संकल्प रहना चाहिए। सीता का चरित्र आज की नारियों को बहुत प्रेरणा दे सकता है। इस पुस्तक की एक ऐसी विशेषता भी है, जो तुलसी कृत रामचरितमानस से भिन्न है। पुस्तक में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के चरित्र को भी उजागर किया गया है।

विवाह के उपरांत लक्ष्मण अपने अग्रज राम के साथ वन को चले गए; पर उनकी नवविवाहिता पत्नी उर्मिला अकेली रह गई। तुलसीदास जैसे महाकवि की पैनी दृष्टि भी उर्मिला के त्याग, संयम, सहनशीलता तथा विरहवेदना पर नहीं पड़ी। विद्यालंकार जी ने उर्मिला के उदात्त चरित्र को बखूबी चित्रित किया है। पुस्तक में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के अंत में रामराज्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। ‘रामराज्य’ की कल्पना हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी की थी। इस प्रकार पुस्तक में वर्णित रामराज्य आज के नेताओं एवं प्रशासन के लिए मार्गदर्शन का कार्य करता है।

यद्यपि पुस्तक ‘श्रीराम’ के जीवन चरित्र पर आधारित है तथापि इसमें कहीं भी धार्मिक संकीर्णता आदि का समावेश नहीं है। यह पुस्तक सभी के लिए पठनीय तथा प्रेरणादायिनी है।

3230.

निबन्ध लिखिए:अपराधी को नहीं बल्कि अपराध को समाप्त करने से एक मजबूत राष्ट्र तैयार होता है। इस विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार लिखिए।

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पक्ष : अपराधी को अपराध करने से पहले अपराध का बोध होता है और उसके दण्ड का भी आभास होता है। अपनी आत्मा, समाज और कानून व्यवस्था के विरुद्ध जो कार्य किया जाता है वह अपराध की श्रेणी में आता है। कोई इन्सान अच्छा बुरा नहीं होता, बल्कि हालात उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं। कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो धर्म के विरुद्ध किये जाते हैं, कुछ अपराध समाज के विरुद्ध किये जाते हैं, कुछ व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने के लिए किये जाते हैं और कुछ अपराध स्वयं को लाभ पहुँचाने के लिए किये जाते हैं। अपराध तो अपराध है वह चाहे किसी भी कारण से किया गया हो। कानून की दृष्टि में प्रत्येक अपराध के लिए दण्ड निहित है।

साधु-सन्तों और मनीषियों ने कहा है कि पापी से नहीं पाप से घृणा करो। कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनमें अपराधी ने अपराध छोड़कर समाज के हित में कार्य किये। अपराधी को समाज और कानून द्वारा सुधरने का अवसर प्रदान करना चाहिए। यदि वह जुर्म छोड़कर देश हित में कार्य करता है तो इससे राष्ट्र के निर्माण में सहायता मिलेगी। जो उच्चकोटि का अपराधी होता है उसमें मजबूत आत्मिक शक्ति होती है। यदि वह शक्ति देश के निर्माण में लग जाये तो कितना भला होगा राष्ट्र का। अतः अपराधी की स्थिति को समझकर उसकी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उसे कानून से भी कुछ सुविधाएँ दी जायें और उसे समाज सेवा का बोध कराया जाये तो अवश्य ही उसका हृदय परिवर्तन होगा और वह जुर्म का मार्ग छोड़कर विकास के मार्ग पर चलेगा।

आजकल बड़े-बड़े डाकू तो अपने अपराध मार्ग से विरत हो गये हैं, लेकिन छोटे-मोटे अपराधी अपने गलत कार्यों में संलग्न हैं।

संत विनोबा भावे ने एक ‘भूदान’ आन्दोलन चलाया जिसमें किसानों से थोड़ी-थोड़ी जमीन लेकर भूमिहीनों को दी जाती थी। यह आन्दोलन सफल रहा। इसी दौर में डाकुओं के आत्मसमर्पण का कार्य भी तेजी से चला। जितने भी नामी डाकू थे उन्होंने अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया। कानून ने उदारता से उनका साथ दिया और अपनी सजा काटकर जब वे आये तो उन्हें गाँवों में जमीन और घर दिये गये जिससे कि वे एक साधारण नागरिक की तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगे। यह था विनाश से निर्माण की ओर आना। भगवान बुद्ध के समय एक अंगुलिमाल डाकू हुआ था जिसने एक हजार व्यक्तियों की हत्या करने का प्रण लिया था। संख्या गिनने के लिए वह जो आदमी मारता था उसकी एक अंगुली काटकर उसकी माला बनाकर अपने गले में पहन लेता था। जनता उसके डर के मारे त्राहि-त्राहि कर उठी थी।

जिस जंगल में वह रहता था वहाँ राजा ने एक पहरेदार बैठा दिया था कि उस जंगल से होकर कोई यात्री न जाये। राजा ने भगवान बुद्ध से उसके आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवान बुद्ध उस जंगल में गये और अंगुलिमाल के सामने निडर होकर प्रसन्न मुद्रा में खड़े हो गये। अंगुलिमाल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसके सामने आते ही लोगों की घिग्घी बँध जाती है, लेकिन यह व्यक्ति निडर होकर खड़ा है। कहते हैं भगवान बुद्ध ने उसे उपदेश दिया जिसे सुनकर उसने अपनी कटार भगवान बुद्ध के चरणों में रख दी और उनका शिष्य बनकर अहिंसा के मार्ग पर चलने लगा। इससे हमें यह बोध होता है कि भगवान बुद्ध ने भी अपराधी को नष्ट नहीं किया, बल्कि उसके अपराध को नष्ट किया।

इसी सन्दर्भ में एक कहानी याद आती है कि एक बड़े शहर के चर्च में एक सहृदय विशप रहते थे। लोगों का भला करना ही मानो उनके जीवन का उद्देश्य था। एक दिन एक अपराधी जेल से छूटकर आया और कहीं ठिकाने की तलाश में चर्च के द्वार पर आकर बैठ गया। विशप ने जब देखा कि यह कोई दुखियारा है तो उसे अपने कमरे में ले गये। भोजन कराने के बाद उसे सोने के लिए स्थान दिया। जब विशप सो गये तो यह अपराधी उठा तो उसने चाँदी की कैण्डिल स्टिक देखी। वे चार थीं और वजन में भारी। पहले तो उसने सोचा कि विशप को मार दूं और ये कैण्डिल स्टिक ले लूँ। फिर उसके मन में विचार आया कि इस भले आदमी को क्यों मारूँ सिर्फ कैण्डिल स्टिक लेकर चलूँ। उसने ऐसा ही किया, किन्तु रात में पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उन कैण्डिल स्टिकों को पहचान लिया।

सुबह पुलिस वाले उस चोर को पकड़कर विशप के पास लाये और उनसे पूरी बात कही। विशप समझ गये कि इस गरीब आदमी को उन चाँदी की कैण्डिल स्टिक की ज्यादा आवश्यकता है। उन्होंने पुलिस से कहा कि उस आदमी को छोड़ दें क्योंकि वे कैण्डिल स्टिक उन्होंने ही उसे दी थीं। पुलिस उसे छोड़कर चली गई। अब वह चोर विशप के पैरों में पड़ गया। उसने अब से कोई अपराध न करने की कसम खाई और वहीं चर्च में सेवा करने लगा।

इन तथ्यों से पता चलता है कि अपराधी को नहीं बल्कि अपराध को समाप्त करने से मजबूत राष्ट्र तैयार होता है।

विपक्ष : यह कथन सत्यता से कोसों दूर है क्योंकि अपराधी अपने अपराध को कभी नहीं छोड़ता। यदि ऐसा होता, तो सजा काटकर आये अपराधी फिर से अपराध नहीं करते, सजा काटकर
आया हुआ व्यक्ति और अधिक जुर्म करता है। उसका हृदय इतना – कठोर हो जाता है कि उसे बदलना मुश्किल नहीं असम्भव है।

साधु संन्यासियों की बात आज कौन सुनता और मानता है? यदि अपराध समाप्त करने से अपराधी समाप्त हो जाता तो अब तक भारत में अपराध देखने को नहीं मिलता। भारत क्या सभी देशों में आज आतंकवादी माहौल के कारण साँस लेना भी दूभर हो रहा है। क्या आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन सम्भव है? कभी नहीं प्राचीनकाल में अपराध के कठोर दण्ड नियत थे इसलिए अपराधों की संख्या न के बराबर थी। चोरी करने पर चोर के हाथ काट दिये जाते थे। अतः लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते थे। अपराधी को कठोर दण्ड देने या उसे मृत्युदण्ड देने से उसके साथ-साथ उसके साथियों द्वारा किया जाने वाला अपराध भी समाप्त हो जाता है।

प्रात:काल जज साहब भ्रमण के लिए जा रहे थे तभी उन्होंने। देखा कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को चाकू मार दिया और भाग गया। कुछ हफ्तों बाद उसी हत्या का मुकदमा उन्हीं जज साहब के कोर्ट में आया। जज साहब को आश्चर्य हुआ कि खून के इल्जाम में पकड़ा गया आदमी कोई और व्यक्ति है, वह व्यक्ति नहीं जिसको जज साहब ने देखा था। सारे सबूत उस पकड़े गये व्यक्ति के खिलाफ थे। जज साहब ने फैसला देने से पहले उस पकड़े गये व्यक्ति को अकेले में बुलाया और उससे पूछा कि तुम इस केस में कैसे फँस गये। खून तुमने नहीं किसी और ने किया है, लेकिन सारे सबूत तुम्हारे खिलाफ हैं। उस व्यक्ति ने शान्तिपूर्ण ढंग से उत्तर दिया कि जज साहब आप सबूतों के आधार पर अपना निर्णय दें, वह व्यक्ति जिसने खून किया है वह इस बार तो बच गया है, लेकिन आगे पकड़ा जायेगा जैसे मैं कई बार बच गया हूँ, पर इस बार पकड़ा गया। यह सुनकर जज साहब अवाक रह गये और ऊपर भगवान के न्याय की ओर देखने लगे।

यदि हम इस आशा में कि अपराधी सुधर जायेंगे, उन पर दयाकर उन्हें छोड़ दें तो यह कभी सम्भव नहीं है। हम अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। अपराधियों के अपराध समाप्त करने के लिए उनके लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था करनी होगी।

3231.

निबन्ध लिखिये :आधुनिक युग में विवाह समारोहों पर भारी धन खर्च किया जाने लगा है। आपने अभी-अभी एक ऐसा ही विवाह समारोह देखा है जिसमें अत्यधिक खर्च किया गया। आपके विचार में वहाँ पर किए गए किन-किन खर्चों को किस प्रकार कम किया जा सकता था। विस्तार से लिखिए।

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आधुनिक युग में विवाह समारोह पर भारी धन खर्च।

आधुनिक युग में विवाह समारोहों पर धन बढ़-चढ़कर खर्च करने की होड़ सी लग गई है। इसे केवल धन का अपव्यय ही कहा जा सकता है। वास्तव में विवाह वर-वधू का पवित्र बन्धन है। इसे धन की तराजू में तोलना न्यायसंगत नहीं है। सच्चाई तो यह है कि जिन लोगों पर अधिक धन है उन्होंने धनहीन व्यक्तियों की कन्याओं के विवाह में बड़ी मुश्किलें उत्पन्न कर दी हैं। विवाहोत्सवों पर धन का अन्धाधुन्ध खर्च दूसरे लोगों में हीनता की भावना भरता है।

अभी पिछले महीने 18 फरवरी को मेरे मित्र की बहन के विवाहोत्सव में जाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। संध्या समय आठ बजे मैं अपने माता-पिता के साथ समारोह में पहुँचा, द्वार पर पहुँचते ही मेरी आँखें मारे चकाचौंध के चमत्कृत हो गईं। ऐसी सजावट मैंने पहले देखी न थी। मुझे अनुभव हुआ कि मेरे मित्र के पिता धन कुबेर से कम नहीं। प्रवेश करते ही पता चला कि एक बहुत बड़े मैदान में अनगिनत भोजन के स्टॉल लगे हुए थे। अधिक भोज्य पदार्थों से आकृष्ट लोग अपनी भोजन की थाली में शौक-शौक में बहुत सारा भोजन, मिठाई परोस लेते, और नहीं खाया जाता तो सारा भोजन कूड़ेदान में फेंक देते थे। मैंने देखा कि लोगों ने महँगी से महँगी पोशाकें पहन रखी थीं। ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई वेशभूषा प्रतियोगिता आयोजित की गई हो।

अभी तक मैंने देखा था कि वरमाला के लिए एक ‘स्टेज’ बनाई जाती थी, परन्तु यहाँ एक अलग प्रकार की ‘स्टेज’ थी जो गोल-गोल घूम रही थी, उस पर वर व वधू एक दूसरे के गले में जय माला पहना रहे थे। हाँ एक बात भूल गया मित्र की बहन की बारात बड़ी जोर-शोर से दरवाजे पर आयी। ऐसी भयंकर आतिशबाजी और ऊँचे दर्जे का ‘बैण्ड’ देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया। दरवाजे पर दूल्हे का टीका भी बड़ा महँगा सौदा था। तत्पश्चात् बारात अन्दर आई। बैण्ड का जितना शोर था, उससे कहीं अधिक शोर डी.जे. में सुनाई देने लगा। मैं सोचने लगा-महँगा बैण्ड, व्यर्थ की आतिशबाजी और डी.जे., क्या एक विवाह इनके बिना नहीं हो सकता? क्या विवाह के लिए इस ताम-झाम की बहुत आवश्यकता होती है। बल्कि इन सबके शोर से भयंकर ध्वनि प्रदूषण होता है। शान्ति भंग होती है। बात यहीं समाप्त नहीं हो गई। जयमाला के पश्चात् वर-वधू एक स्टेज पर बैठ गये। तभी मैंने देखा एक ऑरकैस्ट्रा पार्टी का आगमन हुआ। उन्होंने अपने मधुर संगीत से लोगों को मुग्ध कर दिया। फिर मेरे माता-पिता ने मुझसे खाना खाकर घर चलने की बात कही। हम लोगों ने खाना खाया और घर आ गये।

मैंने घर आकर कपडे बदले और बिस्तर पर लेट गया, पर नींद कोसों दूर थी। मुझे रह-रहकर यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि विवाह जैसे पवित्र बन्धन के लिए इतनी शान-शौकत और धन के अपव्यय की क्या आवश्यकता है। हमारा भारतवर्ष निर्धनों का देश है, जहाँ लोग भूखे मरते हैं। वहीं दूसरी ओर ऐसे विवाहों में टनों भोजन कूड़ेदानों में फेंका जा रहा है। आतिशबाजी, बैण्ड, डी.जे. और आकर्षक सजावट इन सब पर धन खर्च करने की क्या आवश्यकता है? विवाह में मंत्रों की, आशीर्वादों और बधाइयों की आवश्यकता होती है। विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों की अपेक्षा यदि सीमित संख्या में इन्हें बनवाया जाये तो शायद भोजन की बर्बादी को रोका जा सकता है। हम यदि जीवन में सादगी को अपना सकें तो छोटे नहीं हो जायेंगे, बल्कि महान् बन जायेंगे। इसी धन में से कुछ बचा कर किसी गरीब की कन्या का विवाह कर दें तो शायद ईश्वर के परमाशीष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि विवाहोत्सवों में हम उतना ही खर्च करें जितना आवश्यक है।

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निबन्ध लिखिये :बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जो विनाश कर डालती है। इस विषय पर एक प्रस्ताव लिखिए।

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बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा।

भारतवर्ष पर प्रकृति देवी की सदैव कृपादृष्टि रही है। उसने अपने अनन्त वरदानों से भारत-भूमि को शस्य-श्यामला बनाये रखा है। फसलों और मानव की आवश्यकतानुसार जल की समय-समय पर वर्षा होती है, किन्तु कभी-कभी प्रकृति की दृष्टि टेढ़ी हो जाती है तब नाना प्रकार के उपद्रव प्रारम्भ हो जाते हैं। बाढ़ भी इसी प्रकार की एक आपदा है जो विनाश कर डालती है। कभी-कभी अत्यधिक वर्षा होने से, नदियों में अधिक पानी बढ़ जाने से बाँध टूट जाते हैं। इस स्थिति में पानी की गति इतनी बढ़ जाती है कि मनुष्यों को सँभलने का मौका भी नहीं मिल पाता। हजारों फुट चौड़ी दीवार के बराबर पानी की परत जब उमड़ कर चलती है तो गाँव के गाँव और नगर के नगर नष्ट हो जाते हैं। पानी की इस विनाश लीला को ही बाढ़ कहते हैं।

प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है। बाढ़ आने के पीछे भी ऐसे ही अनेक कारण हैं। वृक्षों की अन्धा-धुन्ध कटाई इसका एक कारण है। मनुष्य अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जंगल के जंगल साफ कर रहा है। परिणामस्वरूप प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ रहा है। पेड़ पानी का सन्तुलन बनाये रखने और अपनी जड़ों से पृथ्वी के नीचे से पानी खींच कर सूखे की स्थिति में भी पृथ्वी को गीली रखने में योगदान देते हैं। इससे वर्षा सन्तुलित होती है तथा बाढ़ नहीं आती।।

इसका दूसरा कारण है कि बिजली उत्पन्न करने के लिए तथा जल भण्डारण हेतु बहती हुई नदियों पर बाँध बना दिये जाते हैं। ये बाँध धीरे-धीरे नदियों के जल के घर्षण से कमजोर हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे टूट जाते हैं जिससे जलराशि तेजी से बहकर प्रलय का रूप धारण कर लेती है।

यज्ञ होमादि से पर्यावरण शुद्ध रहता है, परन्तु आज के भौतिकवादी युग में इनका महत्त्व नहीं रहा। धर्म के नाम पर लोगों की आस्था समाप्त हो गई है। यही कारण है कि पर्यावरण में असन्तुलन बढ़ने से बाढ़ जैसी आपदाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।

जनसंख्या वृद्धि, बाढ़ के प्रकोप का एक अन्य प्रमुख कारण है। यदि भमि पर अत्यधिक दबाव पडता है तो प्राकतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, भूकम्प, सुनामी आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। मौसम चक्र के अनायास परिवर्तन भी बाढ़ को आमन्त्रित करते हैं। अतिवृष्टि से उथली नदियों का जल भी विशाल रूप धारण कर लेता है।

बाढ़ का प्रभाव अत्यन्त भयानक होता है। बाढ़ से फसलें नष्ट हो जाती हैं जिससे अकाल पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। मनुष्यों द्वारा बनाये गये सुदृढ़ मकान आदि ध्वस्त हो जाते हैं। मनुष्य बेघर हो जाते हैं। पशु-पक्षी भी बेघर होकर इधर-उधर दौड़ते हुए अपने प्राण गँवा देते हैं। कुछ भूख के मारे तथा कुछ आधारहीनता के कारण अकालमृत्यु के ग्रास बन जाते हैं।

बाढ़ में जंगल, पहाड़, बस्तियाँ जल से भर जाती हैं। जीवजन्तु मरकर सड़ने लगते हैं। जल पूरी तरह प्रदूषित हो जाता है। सीलन व सड़न से जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। चारों और महामारी फैल जाती है, अपार धन-जन की हानि होती है। बाढ़ में चीखते-चिल्लाते लोगों का करुण क्रन्दन सुनकर हृदय विदीर्ण होने लगता है। लोगों का आर्तनाद -बचाओबचाओ की ध्वनि बड़ा ही करुण दृश्य उत्पन्न करता है। जीवन की आशा छोड़कर मनुष्य यहाँ-वहाँ बहता जाता है और असहाय होकर अन्न-जल के अभाव में प्राण त्याग देता है।

वास्तव में बाढ़ प्रकृति की भयावह आपदा है। इससे बचने के लिए हमें हर सम्भव प्रयास करने चाहिए। सर्वप्रथम हमें पेड़ों की कटाई पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है। ‘चिपको’ आन्दोलन इसी प्रयास का परिणाम है। यज्ञ होम आदि के द्वारा वातावरण को प्रदूषण रहित बनाना चाहिए। नदियों तथा तालाबों पर अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। जल के भण्डारण के लिए सुरक्षित प्रयास करने चाहिए। शहरों व नगरों के मकान नदियों के किनारों पर बहत ऊँचे होने चाहिए। साथ ही जल के निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इन सावधानियों के चलते हम कुछ हद तक बाढ़ के प्रकोप से बच सकते हैं।

3233.

निबन्ध लिखिये :व्यक्ति की उन्नति में संस्कारों, शिक्षा एवं सामाजिक परिवेश का योगदान होता है। इस विषय का विवेचन कीजिए।

Answer»

व्यक्ति की उन्नति में संस्कारों, शिक्षा एवं सामाजिक परिवेश का योगदान।

निःसन्देह यह बात नितान्त सत्य है कि व्यक्ति की उन्नति में संस्कारों, शिक्षा और सामाजिक परिवेश का योगदान होता है। संस्कारवान व्यक्ति सदाचारी एवं चरित्रवान होता है। एक व्यक्ति के जीवन में चरित्रबल का बहुत महत्त्व होता है। चरित्रहीन व्यक्ति न तो अपना, न समाज का और न ही देश का कभी कल्याण कर सकता है। इसीलिए हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी संस्कारों की गरिमा का वर्णन किया गया है। मनुष्य के जन्म के प्रारम्भ से लेकर मृत्यु तक हमारे धार्मिक शास्त्रों में सोलह संस्कारों का वर्णन किया जाता है। जिन्हें मन्त्रों के द्वारा अभिमंत्रित किया जाता है। संस्कारों में पला हुआ व्यक्ति कभी दुराचारी नहीं हो सकता वह ईश्वर में आस्था रखने वाला महान परोपकारी और सबका कल्याण करने वाला होता है। वह संसार के सभी प्राणियों को ईश्वर की सन्तान मानता है। इस आधार पर वह समाज का कल्याण करता हुआ आत्मिक उन्नति करता है।

संस्कार के साथ-साथ मनुष्य का शिक्षित होना सोने में सुहागे का काम करता है। शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति विवेकशील बनता है। वह नीर-झीर विवेकी हंस के समान सद्कार्यों को करके अपने परिवार, समाज एवं देश का कल्याण करता है। अनुकूल सामाजिक परिवेश मानव के पोषण एवं संवर्द्धन में अहम भूमिका निभाता है। संस्कार व्यक्ति को सदाचारी बनाते हैं। आचरण की पवित्रता के महत्त्व एवं प्रभाव को प्रदर्शित करने वाले ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिनसे मनुष्य का सिर्फ अपना ही उत्थान नहीं हुआ है, बल्कि उसने अपने समाज व देश की भी उन्नति की है। उनके इन प्रयासों के परिणामस्वरूप समाज में उनका मस्तक गर्व से ऊँचा हो गया।

जब-जब ऐसे व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं। वह अपने ज्ञान के माध्यम से उनसे संघर्ष करने की क्षमता प्राप्त करता है। धैर्य, सहनशक्ति, आत्मबल तथा दृढ़ इच्छाशक्ति उसकी सारी मुश्किलों को आसान कर देती है। साथ ही समाज का सहयोग उसे मजबूत सम्बल प्रदान करता है। इस प्रकार वह अपने जीवन को सार्थक बनाते हुए अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होता है। इससे उसकी आत्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति होती है। समाज में उसे सम्मान प्राप्त होता है। लोग उसकी पूजा करने लगते हैं। वह दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है। ऐसा व्यक्ति कभी अपने समय को व्यर्थ नहीं गँवाता। अपनी कड़ी मेहनत, लगन व ईमानदारी से अपने जीवन को तो सँवारता ही है साथ ही दूसरों का भी उद्धार करता है। वह अपनी शिक्षा के माध्यम से एक शिक्षित समाज का निर्माण करता है। लोगों में परस्पर प्रेम, सद्भावना एवं परोपकार का भाव जाग्रत करता है।

हमारे महापुरुषों ने अपने सदाचारी जीवन से अपना ही नहीं वरन् समाज व देश का कल्याण भी किया। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, राजा राममोहन राय, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, महात्मा बुद्ध, प्रभु यीशु, मदर टेरेसा आदि ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने न केवल समाज का उद्धार किया बल्कि समाज की अनेक कुरीतियों को भी समाप्त किया। सदैव सक्षम व्यक्ति ही इस प्रकार के कार्यों को पूर्ण करने में समर्थ होते हैं। सक्षम वे होते हैं जो संस्कारी एवं शिक्षित होते हैं। ऐसे लोग अपने सद्गुणों से सामाजिक परिवेश को स्वानुकूल बना लेते हैं। इस प्रकार वे अपनी तो उन्नति करते ही हैं, दूसरों का भी उत्कर्ष करने का श्रेय प्राप्त करते हैं।

3234.

निबन्ध लिखें :स्कूल के प्रधानाध्यापक का पद बहुत ही आदरणीय तथा जिम्मेदारी पूर्ण है। यदि वह पद आपको प्राप्त हो जाए, तो आप उस पद की जिम्मेदारियों को किस प्रकार पूरा करेंगे? विस्तार से लिखें।

Answer»

इसमें कोई भी संदेह नहीं कि विद्यालय के प्रधानाध्यापक का पद बहुत ही आदरणीय और उत्तरदायित्वपूर्ण होता है। गंभीरता से सोचा जाए तो यह पद एक निर्माता का पद है जिसमें गरिमा का उत्कर्ष पाया जाता है। पूरा विद्यालय इस पद पर आसीन व्यक्ति की कार्यकुशलता, कर्मठता एवं दूरदर्शिता पर निर्भर करता है। विद्यालय के रूप, स्वरूप तथा गुणवत्ता में उसके प्रधानाचार्य की झलक दिखाई देती है। अच्छा शिक्षाशास्त्री व प्रशासक ही इस पद को सुशोभित कर सकने में समर्थ होता है। वह अपने आदर्श व्यक्तित्व द्वारा समूचे विद्यालय के परिवेश को गरिमा प्रदान करते हुए महिमामंडित करता है।

यदि मैं अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद पर स्वयं को रखकर देखता हूँ, तो मेरे मन व मस्तिष्क में कई कल्पनाएँ आती हैं। मैं सोचता हूँ कि यदि इस पद पर मैं स्वयं होता, तो क्या कुछ ऐसा करना चाहता, जो वर्तमान व्यवस्था में नहीं हो पा रहा। मैं यह भी सोचता हूँ कि कौन-सी ऐसी अव्यवस्थाएँ या अनियमितताएँ हैं, जिन्हें मैं अपने कार्यकाल में नहीं देखना चाहता।

विद्यालय का अस्तित्व मूलतः विद्यार्थियों के आगमन की प्रवृत्ति पर आधारित होता है। मेरे भैया बताया करते हैं कि जब वे इसी विद्यालय में पढ़ा करते थे, तब इसमें आठ सौ से भी ऊपर संख्या में विद्यार्थी पढ़ते थे। आज यह संख्या घटकर पाँच सौ के आसपास रह गई है। मैं सबसे पहले यह संख्या सम्मानजनक स्तर तक पहुँचाना चाहूँगा। इसके लिए विद्यालय की व्यवस्था को आकर्षक बनाया जाएगा तथा विद्यालय भवन की मरम्मत कराई जाएगी।

हमारे विद्यालय में खुले उद्यान जो बेकार पड़े हैं, उन्हें विभिन्न प्रकार के पौधों व फूलों से सुशोभित करूँगा। गरमियों के दिनों में जल की आपूर्ति प्रायः ठप रहती है। बच्चों को ठंडा पानी तो दूर की बात, गरम पानी भी उपलब्ध नहीं होता। मैं विद्यालय में पानी तथा बिजली का उचित प्रबंध करवाऊँगा।

विद्यालय का स्वरूप गुणात्मक बनाने के लिए तीन स्तरों पर परिश्रम व दूरदृष्टि की आवश्यकता होती है-पढ़ाई, खेलकूद तथा सांस्कृतिक पहलू। मैं ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति करना चाहूँगा, जो विद्यार्थियों को शिक्षित करने के लिए पूर्णतः प्रशिक्षित हों। वर्तमान अध्यापकों को प्रेरित करूँगा कि वे मन लगाकर विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम को सहज व सरल ढंग से समझाएँ। खेलकूद के लिए अलग-अलग खेलों के लिए प्रशिक्षक रखे जाएंगे। खेलों का सामान भी खरीदा जाएगा। क्रीडा क्षेत्र को समतल बनाकर अभ्यास करवाया जाएगा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कोई श्रेष्ठ, कुशल व निष्ठावान अध्यापक प्रभारी बनाया जाएगा, ताकि विद्यालय पढ़ाई और खेल के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में भी आगे बढ़े।

मैं पुस्तकालय को समृद्ध करूँगा और वहाँ कंप्यूटर-प्रणाली लागू करूँगा, ताकि विद्यालय तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ा न रहे। मेधावी परंतु गरीब विद्यार्थियों, खिलाड़ियों तथा कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक, पुस्तकीय व छात्रवृत्ति के रूप में सहायता दी जाएगी। इससे उनकी प्रतिभा में चार चाँद लगेंगे।

विद्यार्थियों को चिकित्सा संबंधी प्राथमिक सहायता देने के लिए प्राथमिक चिकित्सा की उचित व्यवस्था की जाएगी। प्राकृतिक चिकित्सा व व्यायाम के लिए रखे गए अध्यापक को प्रेरित करके इस क्षेत्र की गतिविधियाँ पुनः चालू करवाऊँगा। प्रयोगशालाओं का स्वरूप भी सुधारूँगा ताकि विज्ञान के विद्यार्थी हीन-भावना का अनुभव न करें। इन कार्यों को करने के बाद मेरा विश्वास है कि हमारा विद्यालय नगर के ही नहीं, बल्कि प्रांत के श्रेष्ठ विद्यालयों की सूची में अपना नाम लिखवा सकेगा।

नैतिक मूल्यों की प्रासंगिकता-

3235.

निबन्ध लिखें :समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए कड़े कानून की नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है- विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज का निर्माण करने वाली एक अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण इकाई है। उसी पर समाज का स्वरूप निर्भर करता है। उसके सत् तथा असत् व्यक्तित्व का समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। आज प्रायः कहा जाता है कि हमारा समाज तरह-तरह की बुराइयों में जकड़ता जा रहा है। समाजविद् कहते हैं कि समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए कड़े कानून की नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है।

आज व्यक्ति परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में नैतिक शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। नैतिकता के गिरते स्तर के कारण प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में अव्यवस्था अथवा भ्रष्टाचार फैला हुआ है। यदि व्यक्ति के स्तर पर नैतिक मूल्यों को अपनाया जाए तो समाज तथा राष्ट्र में आदर्श चरित्र एवं भ्रष्टाचार रहित जीवन का निर्माण संभव है।

‘नैतिक’ शब्द के कोशगत अर्थ हैं- नीति संबंधी, आध्यात्मिक तथा समाज विहित। ये तीनों अर्थ शील, आचार अथवा आचरण को केंद्र में रखकर किए गए हैं। नैतिकता का संबंध भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों से है। समाज में रहते हुए मानव को अनेकानेक नीतियों का पालन करना होता है। मानव के श्रेष्ठ गुण व नैतिकता एक दूसरे पर निर्भर हैं। बिना श्रेष्ठ गुणों के नैतिकता नहीं और बिना नैतिकता के श्रेष्ठ गुण नहीं आ सकते। नैतिकता ही मनुष्य को सदाचार के निकट और भ्रष्टाचार से दूर ले जाती है।

महापुरुषों तथा दिव्यात्माओं ने अपने आदर्श और आचरण द्वारा इस विश्व को विलासिता तथा अनैतिकता के कीचड़ से निकाला। महान चरित्र सदैव अनुकरणीय होते हैं, चाहे वे यूनान के सुकरात हों या भारत के स्वामी दयानंद, विवेकानंद जैसे महापुरुष हों। हमारे यहाँ वैदिक युग से ही नैतिक शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। आज शासन, प्रशासन तथा ज्ञान-क्षेत्रों में अनैतिकता के कारण ही भ्रष्टाचार का दानव अपनी आकृति व शक्ति बढ़ा रहा है। मन को स्थिर, सुदृढ़ तथा न्यायसंगत बनाने के लिए शुद्ध आचार की आवश्यकता है। पशु-स्तर से ऊँचा उठने की कसौटी नौतिकता है। ऋषियों-मुनियों ने आचरण, त्याग और उच्चाशय को जनमानस में रखकर मानवता के उद्धार का प्रयास किया।

अर्थ-प्रणाली के कारण व्यक्ति को नैतिक पतन हुआ है। आज मनुष्य सिद्धियों के पीछे भाग रहा है। वह अपनी उच्च संस्कृति की श्रेष्ठ साधनाओं को भूलता जा रहा है। मन की चंचलता, लोभ, उद्विग्नता, आशाभंग, दुविधा, पलायन आदि मनुष्य को भ्रष्टाचार की ओर ले जा रहे हैं। वैदिक शिक्षा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार फल मानव को सन्मार्ग पर अग्रसर करने के लिए स्वीकार किए गए हैं। आज का मानव केवल अर्थ और काम के पीछे अंधा हो रहा है। उसे अर्थ या पैसा चाहिए और पैसे से वह काम अर्थात् भ्रष्ट आचरण की ओर बढ़ता है।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि माता-पिता से ही बच्चे शुद्ध-अशुद्ध आचरण सीखते हैं। परिवेश को शुद्ध करने से नैतिक बल बढ़ेगा और भ्रष्टाचार का अंत हो सकेगा। परिवार में भाई-भाई; भाई-बहन, बहन-बहन तथा अन्य संबंधों में शुद्ध आदर्श अपनाने से समाज शुद्ध होगा।

सामाजिक स्तर पर नैतिक शिक्षा का महत्त्व और भी अधिक है। लोक-व्यवहार को जाति, वर्ग व वर्ण के संघर्ष आदि से मुक्त बनाया जाए। लोक-व्यवहार में परस्पर सहयोग, परोपकार, सहायता व सहनशीलता को महत्त्व देना होगा। किसी की भौतिक उन्नति को देखकर प्रतियोगिता का भाव होना चाहिए। जैसे-तैसे धन प्राप्ति या सुख ग्रहण करने के अनैतिक मार्ग नहीं अपनाने चाहिए। नियमबद्ध नैतिकतापूर्ण जीवन ही श्रेष्ठ जीवन होता है। जो लोग सुगम मार्गों को अपनाकर ऊपर उठना चाहते हैं, वे ही भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं। शासन-व्यवस्था में तभी नैतिकता आएगी यदि मतदाता अपना सही दायित्व समझेंगे तथा नैतिक आचरण वाले नेता का चुनाव करेंगे। नैतिक मूल्य अपनाने से भ्रष्ट नेता दूर हटेंगे। हमें यह सोचना है कि धन की प्राप्ति की अपेक्षा धन की शुद्ध प्राप्ति कहीं अधिक महत्त्व रखती है। नीच व भ्रष्ट कर्मों से प्राप्त किया गया धन मनुष्य को भ्रष्ट बनाता है। तभी तो कहा गया है कि ‘जैसा अन्न, वैसा मन’। अतः हमें स्वयं से नैतिकता का पाठ आरंभ करना चाहिए ताकि हम शुद्ध एवं आदर्श समाज की संरचना कर सकें।

पर्यटन तथा सांस्कृतिक संरक्षण –

3236.

What is meant by noise pollution write the name of one source of source that causes noise pollution.

Answer»

Noise Pollution : Sound which is produced try irregular succession of disturbances is called noise pollution, e.g. grinding machine.

3237.

Some heat is provided to a body to raise its temperature by 25°C. What will be the corresponding rise in temperature of the body as shown on the Kelvin scale?

Answer»

Temperature rise of the body om the Kelvin scale will be 25 K.

3238.

Give two characteristic properties of copper wire which make it unsuitable for use as fuse wire.

Answer»

Two characteristics which make Cu wile unsuitable for using as a fuse wire are (1) low resistivity and (2) high melting point.

3239.

(i) Write an expression for the heat energy liberated by a hot body. (ii) Some heat is provided to a body to raise its temperature by 25°C. What will be the corresponding rise in temperature of the body as shown on the kelvin scale ? (iii) What happens to the average kinetic energy of the molecules as ice melts at 0°C ?

Answer»

(i) ∆Q = mc ∆t where m —> mass, c —> specific heat capacity, ∆t —> change in temperature. 

(ii) Since ∆Q ∝ ∆t Hence the corresponding rise in temperature of the body in Kelvin = 25K. 

(iii) Avg. kinetic energy of the molecules would remain same.

3240.

(i) Write an expression for the electrical energy spent in the flow of current through an electrical appliances in terms of I, R and t.(ii) At what voltage is the alternating current supplied to our houses?(iii) How, should the electric lamps in a building be connected? 

Answer»

(i) Electrical energy = I2Rt. 

(ii) 220 volt. 

(iii) Electric lamps should be connected in parallel.

3241.

The diagram below ment-time graph for a vibrating body.(i) Name the type of vibrations a produced by the vibrating body(ii) Give one example of a body producing such vibrations(iii) Why is the amplitude of the wave gradually decreasing ?(iv) What will happen to the vibrations of the body after some time? 

Answer»

 (i) The diagram shows damped vibrations. 

(ii) A tuning fork vibrating in air. 

(iii) The amplitude of the wave decreases due to energy loss against frictional force which the surrounding medium exerts on the vibrating body. 

(iv) After some time the amplitude gradually decreases and finally the body stops vibrating.

3242.

A cell is sending current in an external circuit. How does the terminal voltage compare with the e.m.f . of the cell?

Answer»

E.m.f . of a cell is greater than terminal voltage.

3243.

(i) Write an expression for the electrical energy spent in the flow of current through an electrical appliance in terms of I, R and t. (ii) At what voltage is the alternating current supplied to our houses ? (iii) How should the electric lamps in a building be connected ?

Answer»

(i) We know that E = VIt = I2Rt. 

(ii) 220V – 240V 

(iii) In a building, Electric lamps are connected in parallel

3244.

(i) A cell is sending current in an external circuit. How does the terminal voltage compare with the e.m.f. of the cell ? (ii) What is the purpose of using a fuse in an electrical circuit ? (iii) What are the characteristic properties of fuse wire ?

Answer»

(i) Terminal voltage < e.m.f. 

(ii) An electric fuse is a safety device which limits the current flowing in an electric circuit. 

(iii) A fuse wire must have a High resistance and Low melting point.

3245.

Name the main constitutent metal in the following alloys: 1. Duralumin. 2. Brass 3. Stainless steel.

Answer»

1. Duralumin — Al, Mg, Mn, Cu. 

2. Brass — Cu, Zn 

3. Stainless steel — Fe, Cr, Ni, C

3246.

State the SI unit of magnetic dipole moment.

Answer»

The SI unit of magnetic dipole moment is Coulomb-meter (Cm).

3247.

Alternating current flowing through a certain electrical device leads over the potential difference across it by 90°. State whether this device is a resistor, capacitor or an inductor.

Answer»

The device is a capacitor.

3248.

Suggest any two methods for fish conservation.

Answer»

Two methods of fish conservation are :

(i) Restocking of Overfished Waters :

Restocking of such areas are necessary to avoid the complete disappearance of fishes from these areas.

(ii) Checking Indiscriminate Fishing : 

Indiscriminate killing of immature fish should be stopped immediately.

3249.

(i) Name a major state for the development of each of the following : (1) Thermal Power (2) Hydroelectric Power. (ii) State two advantages of using bio gas as a source of energy.

Answer»

(i) 1. Thermal Power: Jharkhand, Chhattisgarh, West Bengal 

2. Hydel Power: Himachal Pradesh, U.P., Tamil Nadu

(ii) Two advantages of using Biogas are : 

1. As a by-product, biogas plant produces enriched fertilizers. 

2. The use of biogas improves sanitation and provides smokeless and efficient cooking fuel. It can also be used for lighting and power generation.

3250.

What is counter transference ?

Answer»

In psychotherapy the therapist may transfer his attitude or feelings to the patient which originated outside the therapy situation.