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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

विकल्पों की जाँच करने के लिए कम्पनियाँ क्या करती है ?

Answer»

विकल्पों की जाँच करने के लिए कम्पनियाँ OR अर्थात् Operation Research कार्यात्मक संशोधन किया जाता है ।

2.

धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्य-समूहों और व्यक्तियों के पास से कार्य सम्बन्धी अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने के लिए निर्मित की गई योजनाओं को कौन-सी योजना कहा जाता है ?(A) सुनियोजित योजना(B) बाल संकलित योजना(C) कार्यकारी योजना(D) व्यूहात्मक योजना

Answer»

सही विकल्प है (C) कार्यकारी योजना

3.

हेतु-निर्धारण किसे कहते हैं ?

Answer»

हेतु-निर्धारण अथवा हेतुओं का चयन योग्य रूप से हुई हो तो ही आयोजन संचालकों को उपयोगी बना सकते हैं । हेतु व्यवहारिक होना चाहिए अर्थात् कि वह वास्तविक और बुद्धिगम्य होना चाहिए ।

4.

पद्धति किसे कहते हैं ?

Answer»

पद्धति अर्थात् इकाई के कार्यक्रम को पूर्ण करने की व्यवस्था दर्शाता है । यानि कि निर्धारित किये गये उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जायेगा इसका मार्ग दर्शाता है । संक्षिप्त में पद्धति/विधि अर्थात् अमुक प्रवृत्ति किस तरह करना इस हेतु का तरीका ।

5.

आयोजन के महत्त्व के दो मुद्दे लिखिए ।

Answer»

आयोजन के महत्त्व के दो मुद्दे निम्न है :

  1. आयोजन से धन्धाकीय इकाई की सभी प्रवृत्तियाँ व्यवस्थित होती है ।
  2. ध्येय प्राप्ति के लिए उपयोगी है ।
6.

धन्धाकीय इकाई का मुख्य हेतु क्या है ?

Answer»

ध्येय निर्धारित करना और उन्हें सफल बनाना यह धन्धाकीय इकाई का मुख्य हेतु है ।

7.

आयोजन की पूर्वशर्त क्या है ?

Answer»

परिवर्तनशीलता आयोजन की पूर्वशर्त है ।

8.

आयोजन के आधार बताइए ।

Answer»

आयोजन के आधार अनुमान अथवा पूर्वधारणाएँ है । इकाई को प्रभावित करनेवाले आन्तरिक और बाह्य परिबलों को ध्यान में रखकर पूर्वधारणाएँ की जाती है ।

9.

आयोजन किसे कहते हैं ?

Answer»

धन्धे में जो प्रवृत्तियाँ करनी हो इसके बारे में जानकारी एकत्रित करना, पूर्व विचारणा करना और इन प्रवृत्तियों किस तरह करना इसके बारे में बनाई जानेवाली योजना अर्थात् आयोजन ।

10.

धन्धाकीय इकाई के चार उद्देश्य बताइए ।

Answer»

धन्धाकीय इकाई के चार उद्देश्य निम्न है :

  1. लाभ में वृद्धि
  2. विक्रय में वृद्धि
  3. कर्मचारी संतोष
  4. बाजार में हिस्सा बढ़ाना ।
11.

आयोजन में निर्णय प्रक्रिया क्यों आवश्यक है ?

Answer»

आयोजन यह उद्देश्य के सन्दर्भ में होता है । जिससे लक्ष्य प्राप्ति आयोजन पर आधारित है । इसमें विविध प्रकार के विकल्पों के बारे में विचारणा की जाती है एवं उसके बाद ही निर्णय लिया जाता है । इस तरह आयोजन में निर्णय प्रक्रिया जरूरी है ।

12.

केन्द्र सरकार ने आयोजन के महत्त्व को स्वीकार करके किसकी रचना की है ?

Answer»

केन्द्र सरकार ने आयोजन के महत्त्व को स्वीकार करके नीति आयोग (नीति पंच) की रचना की है ।

13.

आयोजन में किन कारणों से अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं ?

Answer»

आयोजन के मूल में धारणाएँ और पूर्वानुमान होता है । जिसका सम्बन्ध भविष्य के साथ होता है, परन्तु भविष्य अनिश्चित है । जिसके कारण ऐसे पूर्वानुमान सम्पूर्ण रूप से सही नहीं होते । इस तरह, आयोजन का सम्बन्ध भविष्य के साथ होने से इसमें अनिश्चितता रहती है ।

14.

आकस्मिक लाभ का आधार किस पर होता है ?

Answer»

आकस्मिक लाभ का आधार विक्रय, उत्पादन और कर्मचारी सहकार पर होता है ।

15.

व्यूहरचना किसलिए जरूरी है ?

Answer»

व्यूहरचना का उपयोग सेना और खेल-कूद जैसे क्षेत्र में बड़े पैमाने में किया जाता है । व्यूहरचना स्पर्धियों से गुप्त रहे यह भी जरूरी हैं । योग्य व्यूहरचना के कारण ही इकाई को अधिकतम सफलता का विश्वास मिलता है ।

16.

सफल आयोजन के लिए पूर्वशर्त क्या है ?(A) समय की दीर्घ अवधि(B) समय की अल्प अवधि(C) व्यवस्थातंत्र(D) परिवर्तनशीलता

Answer»

सही विकल्प है (D) परिवर्तनशीलता

17.

आयोजन स्थिरता को प्रेरित करता है । किस तरह ?

Answer»

आयोजन एक तरह से कार्यक्रम है । जिनका भविष्य के साथ सम्बन्ध है । आयोजन को अमल में रखते समय उत्पन्न होने वाली विपरीत परिस्थिति में अधिकारी या कर्मचारी परिवर्तन नहीं कर सकते । इनमें परिवर्तन करने की जोखिम लेना पसन्द नहीं करते और आयोजन का अमल करते हैं । इस तरह कहा जाता है कि आयोजन जड़ता को अर्थात् स्थिरता का प्ररित करता है ।

18.

0.R. संज्ञा समझाइए ।

Answer»

O.R. अर्थात् Operation Research का संक्षिप्त रूप है । कम्पनी के द्वारा किये जानेवाले कार्यात्मक संशोधन को संक्षिप्त में ‘OR’ दर्शाते है । जिसके आधार पर एक आदर्श योजना मोडल तैयार होता है ।

19.

अन्दाज-पत्र के प्रकार बताइए ।

Answer»

अन्दाज-पत्र के प्रकार पूँजी खर्च अन्दाज-पत्र, उत्पादन अन्दाज-पत्र, उत्पादन खर्च अन्दाज-पत्र, विक्रय अन्दाज-पत्र और नकद अन्दाज-पत्र आदि होते है ।

20.

आयोजन कौन-कौन से क्षेत्र में देखने को मिलता है ?

Answer»

आयोजन युद्ध का मैदान, खेलकूद का मैदान, धन्धाकीय इकाइयाँ, राजनैतिक, व्यापार, वाणिज्य, धार्मिक व सामाजिक इत्यादि क्षेत्रों में देखने को मिलता है ।

21.

विस्मृति करो और आगे बढ़ो’ (Look and Leap) का सिद्धांत समझाइए ।

Answer»

Look & Leap का सिद्धांत अर्थात् जब आयोजन में क्रमशः आगे बढ़ते है तब प्रत्येक स्तर पर मूल्यांकन जरूरी होता है । जिससे सत्य मत प्राप्त होता है तथा जोखिम घटता है ।

22.

डॉ. बीली गोऐट्ज के अनुसार आयोजन की परिभाषा दीजिए ।

Answer»

डॉ. बीली गोऐट्ज : ‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’

23.

आयोजन में निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करे उसे क्या कहा जाता है ?(A) कार्यक्रम(B) नीति(C) नियम(D) अन्दाजपत्र

Answer»

सही विकल्प है (B) नीति

24.

इकाई के निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए नियंत्रण के माध्यम के रूप में किसका उपयोग किया जाता है ?(A) नीति(B) नियम(C) कार्यक्रम(D) अन्दाज-पत्र

Answer»

सही विकल्प है (D) अन्दाज-पत्र

25.

‘आयोजन से नुकसान और मितव्ययिता कैसे सम्भव बनती है ।’ समझाइए ।

Answer»

आयोजन निर्मित करने से इकाई के उपलब्ध साधनों का महत्तम उपयोग सम्भव बनता है । जिससे नुकसान और अनुत्पादक ख म कमी आती है और मितव्ययिता सम्भव बनती है ।

26.

आयोजन का कार्य अर्थात् क्या ?(A) दैनिक कार्य(B) निश्चित कार्य(C) चयन का कार्य(D) कठिन कार्य

Answer»

सही विकल्प है (C) चयन का कार्य

27.

आयोजन की विधि का प्रथम चरण/सोपान है ?(A) लक्ष्य निर्धारण(B) आधार स्पष्ट करना(C) वैकल्पिक योजना बनाना(D) गौण योजना बनाना

Answer»

सही विकल्प है (A) लक्ष्य निर्धारण

28.

नीति किसे कहते हैं ?

Answer»

नीति (Policy) अर्थात् आयोजन में निर्धारित किए गये उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करें । नीति इकाई की छाप पैदा करती है । इकाई की कुशलता और कार्य पद्धति का परिचय देती है । जैसे शान पर मान । का विक्रय करने की नीति।

29.

O.R. का विस्तृत रूप दीजिए ।

Answer»

O.R. = Operation Research (कार्यात्मक संशोधन)

30.

‘विस्मृतीकरो और आगे बढ़ो’ का सिद्धांत कब अपनाया जाता है ?

Answer»

जब अपने क्रमश: आगे बढ़ते है तब ‘विस्मृति करो और आगे बढ़ो’ (Look and Leap) का सिद्धांत अपनाया जाता है ।

31.

आयोजन व्ययी प्रक्रिया है । किसलिए ।

Answer»

आयोजन व्ययी प्रक्रिया है, क्योंकि आयोजन की तैयारी के लिए निष्णांतों की सलाह ली जाती है । इनकी फीस अधिक होती है । इसके उपरांत आयोजन को तैयार करने में समय, शक्ति और पूँजी का खर्च होता है । इस तरह कहा जाता है कि आयोजन व्ययी प्रक्रिया है ।

32.

आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए । किसलिए ।

Answer»

आयोजन में अलग-अलग प्रकार की गणनाएँ और धारणाएँ होती है, लेकिन धन्धाकीय इकाइयों को प्रभावित करनेवाले बाह्य तत्त्वों के कारण समय, संयोगो और परिस्थिति अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन करने पड़ते है । अत: आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए । क्योंकि परिवर्तनशीलता आयोजन की पूर्वशर्त है ।

33.

संचालन का प्रथम और अन्तिम कार्य बताइए ।

Answer»

संचालन का प्रथम कार्य आयोजन है और अन्तिम कार्य नियंत्रण है ।

34.

संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है । किसलिए ।

Answer»

संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है । क्योंकि संचालन का आरम्भ ही आयोजन से ही होता है । इनके आधार पर ही संचालन के अन्य कार्य जैसे कि व्यवस्थातंत्र, कर्मचारी व्यवस्था, मार्गदर्शन और नियंत्रण जैसे कार्यों को अमल में लाया जाता है ।

35.

‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य’ उपरोक्त कथन समझाइए ।

Answer»

उपरोक्त कथन सत्य है । धन्धाकीय इकाई उद्देश्य द्वारा क्या सिद्ध करना चाहती है यह तय करती है । उद्देश्य प्राप्ति के लिए एक से अधिक विकल्प होते है । जैसे लाभ में वृद्धि करने के लिए विक्रय में वृद्धि करना, वस्तु की लागत में कमी करना, वस्तु की कीमत में वृद्धि करना इत्यादि विकल्प हो सकते है । आयोजन द्वारा अनेक विकल्पों में से श्रेष्ठ और लाभप्रद विकल्प का चयन किया जाता है । इस तरह आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।

36.

संचालन का सर्वप्रथम कार्य कौन-सा है ?(A) व्यवस्थातंत्र(B) आयोजन(C) मार्गदर्शन(D) नियंत्रण

Answer»

सही विकल्प है (B) आयोजन

37.

आयोजन (Planning) का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइए ।

Answer»

आयोजन अर्थात भविष्य में क्या सिद्ध करना है व किस तरह ? इसके लिए विभिन्न विकल्पों की विचारणा करके उन विकल्पों की सूची में से श्रेष्ठ विकल्प अपनाने के लिए जो योजना तैयार किया जाये ।

लक्षण/विशेषताएँ (Characteristics) आयोजन के लक्षण निम्नलिखित है :

(1), आयोजन सर्वव्यापी है : प्रत्येक प्रकार की प्रवृत्ति में आयोजन करना अनिवार्य बनता है । चाहे वह राजकीय, धार्मिक, शैक्षणिक, या सामाजिक प्रवृत्ति हो, प्रत्येक इकाई के उच्च, मध्य एवं निम्न स्तर में आयोजन करना पड़ता है । इकाई का कद छोटा हो या बड़ा आयोजन करना ही पड़ता है । अतः आयोजन सर्वव्यापक है ।

(2) आयोजन संचालन का सर्वप्रथम कार्य है : संचालन प्रक्रिया का प्रारंभ आयोजन से ही होता है । इसके पश्चात ही अन्य – कार्य होते हैं । जब तक योजनाएँ नहीं बनती तब तक व्यवस्थातंत्र की रचना नहीं होती । आयोजन के साथ संचालन. के सभी कार्य सम्बन्ध रखते हैं ।

(3) आयोजन चैतन्य (वास्तविक) एवं बौद्धिक प्रक्रिया है : आयोजन द्वारा धंधाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है । आयोजन करते समय निर्धारित हेतु को लक्ष्य में रखा जाता है । तथा भविष्य के परिणामों पर विचार किया जाता है । आयोजन तैयार करते समय ग्राहक कर्मचारी, मुद्रा इत्यादि परिबलों पर होने वाली असरों को ध्यान में लिया जाता है ।

(4) आयोजन सतत प्रक्रिया है : इकाई की स्थापना के समय आयोजन किया जाता है । इसका अंत नहीं होता – उद्देश्य निर्धारित करने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार करना उद्देश्य पूर्ण होने के बाद पुनः उद्देश्य निर्धारित करना पुन: आयोजन तैयार किया जाता है । जब तक संचालन का कार्य अस्तित्व रखता है । तब तक आयोजन का कार्य सतत किया जाता है ।

(5) आयोजन परिवर्तनशील है : आयोजन तैयार करते समय भविष्य के आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों में परिवर्तन होते रहते
हैं । जैसे विक्री बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा तो कच्चामाल अधिक खरीदना होगा । ऐसे परिवर्तनों के कारण आयोजन में भी परिवर्तन करना पड़ता है । अतः आयोजन परिवर्तनशील है ।

(6) आयोजन में निश्चयात्मक होती है : आयोजन में निश्चितता होनी चाहिए । आयोजन करते समय बुद्धिपूर्वक एवं भविष्य के निश्चित अनुमानों पर विचार किया जाता है । आयोजन मात्र स्वप्न एवं इच्छाओं की सूची नहीं है । आयोजन में एकत्रिक की गई सूचनाओं का निर्णय बुद्धिपूर्वक एवं निश्चिता के अनुसार किया जाता है ।

(7) आयोजन के लिए पूर्वानुमान अनिवार्य है : धंधे में भविष्य में क्या होगा ? भविष्य में क्या होने की सम्भावना है? इस पर धंधे के उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । इतना विचार करने के पश्चात ही आयोजन निर्धारित हो सकता है । हेनरी फेयोल ने भविष्य के पूर्वानुमान पर विचार करने के पश्चात ही भविष्य के विकास की रूपरेखा तैयार की है ।

(8) आयोजन का भविष्य के साथ संबंध है : आयोजन में भविष्य की प्रवृत्तियों पर वर्तमान में विचारणा की जाती है । भविष्य में क्या होगा ? इसके क्या परिणाम आएगे ? इसकी धंधे पर क्या असर होगी ? इसका आयोजन में विचार किया जाता है । अतः हेनरी फेयोल ने संचालन का प्रत्यक्ष कार्य आयोजन एवं पूर्वानुमानों को बतलाया है ।

(9) आयोजन विकल्पों की सूची है : आयोजन किसी भी क्षेत्र का हो उसमें विविध प्रकार की योजनाएँ होती हैं । इन योजनाओं के लिए विविध विकल्पों पर विचार किया जाता है । जैसे बिक्री घटेगी तो क्या होगा ? विक्री बढे तो क्या होगा ? और विक्री उत्पादन के जत्था के अनुरूप हो तो क्या होगा ? इस प्रकार के अनेक विकल्पों पर विचार किया जाता है । इनमें से आयोजन तैयार करने हेतु योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । यह संचालकों के निर्णय शक्ति की कसौटी है ।

(10) आयोजन ध्येयलक्षी प्रवृत्ति है : आयोजन के द्वारा इकाई का हेतु निश्चित होता है । आयोजन के द्वारा विविध प्रवृत्तियों के लिए विविध योजनाएँ बनाई जाती हैं । आयोजन उद्देश्य की सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों की आगाही करता है । अतः आयोजन ध्येय लक्षी प्रवृत्ति है ।

(11) आयोजन में निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है : आयोजन पर उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य में अनेकों अनुमानों पर विचार करने से विकल्पों की जानकारी होती है । इन विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करने का निर्णय लिया जाता है । निर्णय का कार्य कठिन है । कारण कि इसे भविष्य में परिपालन करना होता है । उपसंहार : उपरोक्त लक्षणों से यह ज्ञात होता है कि आयोजन भविष्य के साथ सम्बन्ध रखता है । आयोजन संचालन का चावीरुप कार्य है । इसलिए आधुनिक समय में आयोजन कार्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।

38.

आयोजन की व्याख्या और इसकी विधि/प्रक्रिया समझाइए ।

Answer»
  • डॉ. बीली गोऐट्ज : ‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’
  • डॉ. ज्योर्ज टेरी : ‘कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा, कार्य का अनुसरण करने की नीति, प्रक्रिया और उपयोग में ली जानेवाली पद्धति निश्चित करना ।’
  • डॉ. उर्विक डेविड : ‘आयोजन मुख्य रूप से ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है’ व्यवस्थित कार्य करने, इसके लिए पूर्व विचारणा करते है, और केवल अनुमानों के स्थान पर सचोट वास्तविकताओ पर कदम उठाये जाते हैं ।’
  • एम. एस. हर्ले के मतानुसार “आयोजन अर्थात् क्या करना है ? यह पहले से ही निश्चित करना इसमें उद्देश्य, नीति, कार्यवाहियाँ और कार्यक्रम के विविध विकल्पों की पसंदगी सम्मलित है ।”
  • हेनरी फोथोल के मतानुसार “कार्य का आयोजन करना अर्थात् परिणामों की पूर्ण विचारणा करना, कार्य करने की योग्य पद्धतियाँ निर्धारित करना ।”
  • डॉ. टेरी के मतानुसार “आयोजन अर्थात् योग्य परिणामों को प्राप्त करने के लिए वास्तविकता की पसंदगी करना । इसके
    लिए पूर्वानुमान द्वारा योग्य पद्धतियों की पसंदगी करना ।”
  • मेरी कुशिंग नाइल्स के मतानुसार “आयोजन अर्थात् निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए योग्य कार्यक्रम की पसंदगी करना । इसके आधार पर संचालकीय प्रक्रिया में उत्साह एवं तीव्र बनती है ।”

आयोजन प्रक्रिया के विविध पहेलू : आयोजन भविष्य के लिए वर्तमान में तैयार किया गया विशिष्ट स्वरूप है । आयोजन यह बौद्धिक प्रक्रिया है । इसकी निष्फलता इकाई के लिए हानिकारक है । अर्थात् आयोजन की प्रक्रिया निश्चित पहलूओं से प्रसार होनी चाहिए ।

आयोजन के पहलू निम्नलिखित हैं :

(1) उद्देश्य निश्चित करना : आयोजन प्रक्रिया का प्रथम पहलु उद्देश्य को निश्चित करना है । सर्वप्रथम किन उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए आयोजन करना है । इसका निश्चित होना आश्यक है । उद्देश्य निश्चित होने के बाद भविष्य में क्या करना है ? कैसे करना ? कब करना ? यह निश्चित होता है । निर्धारित हेतु व्यवस्थित एवं स्पष्ट तथा सुसंकलित होना चाहिए । कारण कि इस उद्देश्य के आधार पर अलग-अलग विभागों के उद्देश्य निश्चित किए जाते है ।

(2) आयोजन का आधार स्पष्ट करना : आयोजन की रचना वर्तमान के आधार पर नहीं परन्तु भविष्य के अनुमानों एवं भूतकाल के अनुभव पर आधारित है । आयोजन तैयार करते समय योग्य आधार स्पष्ट होना चाहिए जैसे भविष्य की परिस्थिति का अनुमान करना, भविष्य की परिस्थिति कैसी होगी उसका विचार करना, इसमें बाजार की स्थिति, विक्रय का प्रमाण वस्तु की कीमत इत्यादि है । आयोजन का आधार मुख्यतः तीन प्रकारों से रख सकते है :

  1. अंकुश बाहर के परिबल जैसे – सरकारी नीति, भावस्तर
  2. अर्ध अंकुशित परिबल जैसे शाजनीति, उत्पादन नीति
  3. अकुशित परिबल जैसे कंपनी के भविष्य सम्बन्धि विकास की योजना, बिक्री का प्रमाण ।

(3) सूचनाओं का एकत्रीकरण करना व वर्गीकरण व विश्लेषण करना : 

आयोजन का आधार निश्चित होने के बाद इन आधारों से सम्बन्धित सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता है । सूचनाओं का एकत्रीकरण करते समय सूचनाओं का प्रमाण एवं आवश्यक सूचना की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल का रिकोर्ड, वर्तमानपत्र, सरकारी प्रकाशन इत्यादि ।

आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । एकत्रित सूचनाएँ आवश्यक, अनावश्यक, उलझन पूर्ण एवं विस्तृत होता है । इंन सूचनाओं का पालन करने से भविष्य के अनुमानों पर स्पष्ट विचार नहीं किया जा सकता । अतः प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण एवं विश्लेषण करने से अर्थघटन सम्भव बनता है । जिससे एकत्रित सूचना के बीच कार्यकारण का संबंध बढ़ता है ।

(4) वैकल्पिक योग्यता तैयार करना : आयोजन के लिए तैयार की गई योजनाओं का आधार सूचनाओं के वर्गीकरण एवं विश्लेषण के साथ-साथ वैकल्पिक योग्यता पर भी होता है । उद्देश्य निश्चित करने के लिए कई वैकल्पिक मार्ग पसंद किए जाते है । जिससे उद्देश्य की सफलता का मार्ग सरल बनता है । जैसे – अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने के लिए सामान्य अंश, प्रेफरन्स अंश, डिबेन्चर प्रकाशित करना इन तीनों में से कोई एक विकल्प पसंद किया जाता है ।

(5) विकल्पों पर विचार करना : आयोजन अर्थात् पसंदगी अनेकों विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । जैसे लाभकारक, उत्पादकता ग्राहक संबंधी, नगद प्रवाह इत्यादि अनेक प्रकार से करनी पड़ती है । इसके लिए संसोधन लेख एवं सेमिनार के द्वारा बौद्धिक प्रक्रिया से ग्रहण कर सकते हैं ।

(6) योजना की पसंदगी : आयोजन यह अनिश्चितता को दूर करता है । इसके लिए विकल्पों की पसंदगी की जाती है । विचार करते समय गणितिक व आंकड़ाशास्त्र के उपयोग द्वारा संस्था कार्यात्मक संशोधन का कार्य करती है । अर्थात् कम्पनियाँ Operation Research द्वारा एक आदर्श योजना तैयार करती है । योग्य विकल्प की पसंदगी विकल्पों के अभ्यास में होती है ।

(7) गौण (सहायक) योजना का गठन व जाँच : योजना की पसंदगी करने के पश्चात इस योजना को सरलता से सफल बनाया जा सके इसलिए सहायक योजनाएँ बनाई जाती हैं । योजना तैयार करते समय इसकी छोटी से छोटी बातों पर भी विशेष गौर किया जाता है । इकाई में विविध विभाग या खाते हों तो प्रत्येक के लिए योजना का चयन किया जाता है ।

(8) गौण योजना का मूल्यांकन करना : आयोजन सतत सर्वव्यापी एवं बौद्धिक प्रक्रिया हो । आयोजन तैयार करते समय योजनाओं का विचार एवं चिंतन किया जाता है । यह विचार-विमर्श अलग-अलग पहेलुओं पर किया जाता है । अर्थात् Look & Leap देखो ओर आगे बढ़ो के सिद्धांत पर आधारित है । इसके लिए कंपनियाँ सलाहकारों की सहायता लेती है । जिससे सही निर्णय एवं नुकसान घटता है ।

सारांश : उपरोक्त चर्चा से यह निष्कर्ष निकलता है कि आयोजन एक प्रक्रिया है । इसे कई पहलूओं से प्रसार होना पड़ता है । यह बौद्धिक व्यायाम (कसरत) है । आयोजन में अनेको विकल्पों पर विचारणा करने के बाद ही योग्य विकल्प पसंद करके निश्चित योजनाएँ तैयार की जाती है । जिससे आयोजन के कारण लाभकारकता एवं उत्पादन में वृद्धि देखने को मिलती है ।

39.

आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है ।

Answer»

आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है । उपरोक्त विधान सत्य है । क्योंकि आयोजन में भविष्य की अनिश्चितताओं को पहले ख्याल प्राप्त करना होता है । उसके बाद वो इसके बारे में पूर्व विचारणा तथा धारणाएँ की जाती है । संक्षिप्त में, भविष्य का वर्तमान में मूल्यांकन करना व इसके बारे में जरूरी व्यवस्था करना । इस तरह आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है ।

40.

आयोजन अप्रस्तुत/अप्रचलित है ।

Answer»

आयोजन में सदैव अनिश्चितता रहती है । समय, संयोगों या इकाई को असर करनेवाले परिबलो के कारण पूर्व से तैयार किये गये आयोजन कई बार अप्रचलित अथवा अप्रस्तुत बन जाता है, जिसके कारण आयोजन असफल हो जाता है ।

41.

आयोजन चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया है ।

Answer»

आयोजन द्वारा धन्धाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है । आयोजन करते समय निर्धारित हेतु को लक्ष्य में रखा जाता है । तथा भविष्य के परिणामों पर विचार किया जाता है । आयोजन तैयार करते समय ग्राहक, कर्मचारी, मुद्रा आदि परिबलों पर होने वाली असरों को ध्यान में लिया जाता है ।

42.

एकल उपयोगी योजना (Single Use Plan) के बारे में समझाइए ।

Answer»

विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एकल उपयोगी योजना तैयार होती है । विशिष्ट प्रवृत्तियों के लिए ही इस योजना को तैयार किया जाता है । अर्थात् कि जिन कार्य-प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन नहीं होता ऐसी प्रवृत्तियों के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । जैसे जहाज निर्माण, भवन निर्माण, पैकेजिंग, प्रिन्टिंग आदि योजनाएँ महत्वपूर्ण होती है ।

43.

कार्यकारी और आकस्मिक योजना समझाइए ।

Answer»

कार्यकारी योजना (Operational Plan) : धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्यसमूहों और व्यक्तियों के पास से कार्य सम्बन्धी इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए निर्मित की जानेवाली योजनाओं को कार्यकारी योजनाएँ कहते हैं । ऐसी योजनायें अधिकांशतः एक-दो वर्ष के अल्प समय के लिए होती है । जैसे निर्धारित किये गये वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए मासिक या त्रिमासिक उत्पादन की योजना बनाई जाती है । व्यूहात्मक योजना के अमलीकरण के लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा ऐसी योजनाओं को तैयार किया जाता है । ऐसी योजनाएँ दैनिक कार्यों के साथ होने से सम्बन्धित विभाग के कर्मचारियों के साथ चर्चा विचारणा करके तैयार किया जाये तो इस योजना का अमल प्रमाण में अधिक सरल बनता है । कार्यकारी योजना सुनियोजित योजना जैसी ही होती है ।

आकस्मिक योजना : (Contingency Plan) : धन्धाकीय इकाई में बदलती हुई परिस्थिति के साथ बने रहने के लिए बहुत ही आवश्यक है । कई निश्चित परिबल जैसे कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक या प्राकृतिक परिबलों के कारण धन्धाकीय पर्यावरण में भी परिवर्तन होते हैं । जिसके कारण पहले ही योजना में परिवर्तन करना पड़ता है अथवा नई योजना बनाई जाये तो उन्हें आकस्मिक योजना कहा जाता है ।

44.

आयोजन के महत्त्व के मुद्दे बताइए ।

Answer»

आयोजन के महत्त्व के मुद्दे निम्न है :

  1. आयोजन से धन्धाकीय इकाइयों की सभी परवृत्तियाँ व्यवस्थित होती हैं ।
  2. साधनों के अपव्यय को रोका जा सकता है ।
  3. आयोजन से अनिश्चितता घटती है ।
  4. आयोजन से सावधानी में वृद्धि होती है ।
  5. आयोजन ध्येय प्राप्ति के लिए उपयोगी होता है ।
  6. आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।
  7. कर्मचारियों को सहकार आयोजन के माध्यम से प्राप्त होता है ।
  8. आयोजन द्वारा विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ संकलन बना रहता है ।
  9. आयोजन के माध्यम से प्रभावशाली नियंत्रण रख सकते हैं ।
45.

आयोजन से. कर्मचारियों में सहकार की भावना बढ़ती है 

Answer»

यह विधान सत्य है । इकाई में निश्चित उद्देश्य की सफलता का मुख्य आधार कर्मचारियों पर है । उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारी व्यवस्था की रचना की गई हो लेकिन कर्मचारियों को अपने काम के प्रति जानकारी न हो, कर्मचारियों को कौन-सा कार्य कब करना है । कितने समय में करना है । इसकी स्पष्टता न होने पर कर्मचारियों में आत्नग्य की भावना बढ़ती है । अतः आयोजन तैयार करते समय निश्चित हेतु को लक्ष्य में लेकर कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, कौनसा कार्य कौन कितने समय में करेगा । यह आयोजन द्वारा निर्धारित होता है । अतः कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्पष्टता होती है । एवं कर्मचारियों में सलाहकार की भावना देखने को मिलती है । आयोजन तैयार करने के बाद प्रबंध एवं कर्मचारी व्यवस्था सरल बनती है । आयोजन के आधार पर ही योग्य कर्मचारी व्यवस्था की रचना की जाती है ।यह विधान सत्य है । इकाई में निश्चित उद्देश्य की सफलता का मुख्य आधार कर्मचारियों पर है । उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारी व्यवस्था की रचना की गई हो लेकिन कर्मचारियों को अपने काम के प्रति जानकारी न हो, कर्मचारियों को कौन-सा कार्य कब करना है । कितने समय में करना है । इसकी स्पष्टता न होने पर कर्मचारियों में आत्नग्य की भावना बढ़ती है । अतः आयोजन तैयार करते समय निश्चित हेतु को लक्ष्य में लेकर कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, कौनसा कार्य कौन कितने समय में करेगा । यह आयोजन द्वारा निर्धारित होता है । अतः कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्पष्टता होती है । एवं कर्मचारियों में सलाहकार की भावना देखने को मिलती है । आयोजन तैयार करने के बाद प्रबंध एवं कर्मचारी व्यवस्था सरल बनती है । आयोजन के आधार पर ही योग्य कर्मचारी व्यवस्था की रचना की जाती है ।यह विधान सत्य है । इकाई में निश्चित उद्देश्य की सफलता का मुख्य आधार कर्मचारियों पर है । उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारी व्यवस्था की रचना की गई हो लेकिन कर्मचारियों को अपने काम के प्रति जानकारी न हो, कर्मचारियों को कौन-सा कार्य कब करना है । कितने समय में करना है । इसकी स्पष्टता न होने पर कर्मचारियों में आत्नग्य की भावना बढ़ती है । अतः आयोजन तैयार करते समय निश्चित हेतु को लक्ष्य में लेकर कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, कौनसा कार्य कौन कितने समय में करेगा । यह आयोजन द्वारा निर्धारित होता है । अतः कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्पष्टता होती है । एवं कर्मचारियों में सलाहकार की भावना देखने को मिलती है । आयोजन तैयार करने के बाद प्रबंध एवं कर्मचारी व्यवस्था सरल बनती है । आयोजन के आधार पर ही योग्य कर्मचारी व्यवस्था की रचना की जाती है ।यह विधान सत्य है । इकाई में निश्चित उद्देश्य की सफलता का मुख्य आधार कर्मचारियों पर है । उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारी व्यवस्था की रचना की गई हो लेकिन कर्मचारियों को अपने काम के प्रति जानकारी न हो, कर्मचारियों को कौन-सा कार्य कब करना है । कितने समय में करना है । इसकी स्पष्टता न होने पर कर्मचारियों में आत्नग्य की भावना बढ़ती है । अतः आयोजन तैयार करते समय निश्चित हेतु को लक्ष्य में लेकर कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, कौनसा कार्य कौन कितने समय में करेगा । यह आयोजन द्वारा निर्धारित होता है । अतः कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्पष्टता होती है । एवं कर्मचारियों में सलाहकार की भावना देखने को मिलती है । आयोजन तैयार करने के बाद प्रबंध एवं कर्मचारी व्यवस्था सरल बनती है । आयोजन के आधार पर ही योग्य कर्मचारी व्यवस्था की रचना की जाती है ।

46.

आयोजन की चार सीमायें बताइए ।

Answer»

आयोजन की चार सीमायें निम्न है :

  1. आयोजन में भविष्य की अनिश्चितता होने के कारण सफलता नहीं मिल पाती ।
  2. आयोजन एक खर्चीली प्रक्रिया है ।
  3. आयोजन एक लम्बी प्रक्रिया है ।
  4. आयोजन में बाह्य परिबलों की सदैव अनिश्चितताएँ रहती है ।
47.

आयोजन की दो मर्यादाएँ/सीमाएँ बताइए ।

Answer»

आयोजन की दो मर्यादाएँ निम्न है :

  1. खर्चीली प्रक्रिया
  2. लम्बी प्रक्रिया
48.

‘आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।’ समझाइए ।

Answer»

आयोजन धन्धाकीय इकाई का आधारभूत कार्य है । प्रक्रिया के दौरान क्या करना है ? किस पद्धति से करना है ? और क्या करना है ? इसका उत्तर प्राप्त हो जाता है । इसके आधार पर व्यवस्थातंत्र, मार्गदर्शन और नियंत्रण के कार्यक्रम होते है । अत: हम कह सकते हैं कि आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।

49.

आयोजन सतत प्रक्रिया है ।

Answer»

यह विधान सत्य है । इकाई की स्थापना करते समय उद्देश्य निश्चित किया जाता है । उद्देश्य को समयानुसार सफल बनाने के लिए आयोजन तैयार किया जाता है । आयोजन यह संचालकीय कार्यों में से सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रथम कार्य है । आयोजन निश्चित हेतु समयानुसार पूर्ण होने के पश्चात् पुनः इकाई में आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों को ध्यान में रखते हुए उद्देश्य निश्चित किया जाता है । इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए पुन: आयोजन तैयार किया जाता है । अत: आयोजन यह सतत चन्नने वाली प्रक्रिया है ।

50.

आयोजन धंधे की सफलता की चाबी है ।

Answer»

यह विधान सत्य है । इकाई के निश्चित हेतु को निश्चित समय में पूर्ण करने के लिए भूतकाल के अनुभव एवं भविष्य के अनमाना पर तैयार की गई योजनाएँ आयोजन कहलाती है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य के अनुमानों का सामना करने के लिए ‘ विविध विकल्पों का विचार किया जाता है । इन विकल्पों में से योग्य विकल्पों के आधार पर योजनाएँ तैयार की जाती है । इस योजनाओं के अनुसार इकाई की सम्पूर्ण प्रवृत्ति की जाती है । जिसके एक ही आयोजन के अनुसार प्रत्येक विभाग की प्रवृत्ति की जाती है । जिससे प्रवृत्तियों में एकरुपता, कर्मचारी एवं अधिकारियों में सहकार की भावना बनी रहती है । अतः आयोजन से निर्धारित हेतु निश्चित समय में सफल बनता है ।