InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 51. |
अंदाजपत्र अंकों का माया जाल है । |
|
Answer» यह विधान सत्य है । अंदाजपत्र में विभागीय प्रवृत्तियों के लिए भविष्य में किए जाने वाले खर्च का विवरण अंकों में दर्शाया जाता है । विभागीय अंदाजपत्रों का निरीक्षण करके इसके आधार पर भविष्य में सम्पूर्ण इकाई के लिए निर्धारित हतु को पूर्ण करने के लिए कुल कितना खर्च होगा, कितनी आवक होगी इसका अंदाज अंकों में दर्शाया जाता है । भविष्य के आंतरिक एवं बाह्यरीय परिबलों में परिवर्तन होने से इनका सामना करने हेतु कुल कितना खर्च होगा इसका अंदाजित खर्च अंकों में दर्शाया जाता है । अतः अंदाजपत्र भविष्य के लिए निर्धारित हेतु के लिए तैयार किया गया माया जाल है । |
|
| 52. |
आयोजन परिवर्तनों को अंकुश में रखता है । |
|
Answer» यह विधान सत्य है । इकाई में आंतरिक एवं बाहरीय परिवर्तनों की असर रहती है । जैसे भाव में वृद्धि, माँग में कमी, तालाबंदी, स्पर्धा, कर्मचारियों की हड़ताल इत्यादि परिवर्तनों से इकाई की प्रवृत्तियों में परिवर्तन संभव बनता है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य में होने वाले आंतरिक एवं बाहरीय परिवर्तनों का सामना करने के लिए कौन से विकल्पों का माध्यम लेना होना उसका पहले से ही अनुमान लगा लिया जाता है । अत: आयोजन से भविष्य के परिवर्तनों का सामना करने के लिए वर्तमान में ही योग्य विकल्प, योजनाएँ, योग्य व्यवस्था की रचना की जाती है । जिससे आयोजन परिवर्तनों को अंकुश में रखता है । |
|
| 53. |
आयोजन संचालकीय कार्यों का मुख्य कार्य है । |
|
Answer» यह विधान सत्य है । संचालन के मुख्य कार्यों में से आयोजन मुख्य एवं प्रथम कार्य है । निर्धारित हेतु निश्चित होने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन बनाया जाता है । आयोजन का उपयोग व्यवस्थित हो इसलिए योग्य व्यवस्थातंत्र की रचना की जाती है । व्यवस्थातंत्र की रचना के पश्चात् कर्मचारी व्यवस्था की जाती है । कर्मचारी के द्वारा सरल एवं सहकार की भावना बढ़े इसलिए माहिती प्रेषण एवं कार्य आयोजन के अनुसार हुआ या नहीं इसलिए अंकुश रखा जाता है । इसलिए आयोजन संचालन का मुख्य कार्य है । |
|
| 54. |
आयोजन के घटक बताइए । |
|
Answer» आयोजन के 7 घटक हैं :
|
|
| 55. |
आयोजन के कोई भी चार घटक समझाइए । |
|
Answer» आयोजन के घटक निम्न है : (1) उद्देश्य (Objective) : उद्देश्य के आधार पर ही आयोजन तैयार किया जाता है । आयोजन किस उद्देश्य के लिए तैयार करना है वह स्पष्ट होना चाहिए उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए । धंधे में विविध उद्देश्य भी होते हैं । जैसे मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना सहायक उद्देश्य ग्राहकों की अच्छी सेवा संक्षिप्त में मुख्य एवं गौण (सहायक) उद्देश्य क्या है यह निश्चित होना चाहिए । (2) नीति (Policy) : योजना की सफलता के लिए नीतियाँ निश्चित की जाती है । नीति अर्थात् कौन-सा कार्य किस प्रकार करना है । इस सम्बन्ध में मार्गदर्शक सूचन, जो कर्मचारियों को कार्य करने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं । जैसे शाखनीति, कर्मचारियों को सिनियोरिटी के अनुसार प्रमोशन की नीति इत्यादि, नीति भी एक प्रकार की योजना ही है । (3) पद्धतियाँ (Procedures) : नीतियाँ निर्णय लेने में मार्गदर्शन देती हैं । जबकि पद्धतियाँ निश्चित प्रवृत्तियों को किस क्रम में करना है । वह निश्चित करती है । जैसे ग्राहकों को शान पर माल बेचना वह नीति है । परन्तु ओर्डर के अनुसार माल कैसे भेजना यह पद्धति है। आयोजन में पद्धतियों का समावेश होता है । पद्धतियों से प्रत्येक विभाग का कार्य कर्मचारियों द्वारा एक समान और से होता है । (4) नियम (Rule) : नियम अर्थात् आदेश । आयोजन में निश्चित योजनाओं का पालन व्यवस्थित हो इसलिए कर्मचारियों के द्वारा निर्धारित नियमों का पालन होना चाहिए । नीति एवं पद्धतियों का परिपालन सरल बने इसलिए अनेक नियमों को निश्चित किया जाता है । जैसे – कर्मचारियों को विभाग में कार्य करते समय धूम्रपान नहीं करना चाहिए । (5) कार्यक्रम (Programmes) : स्पष्ट कार्यक्रम आयोजन को सफल बनाते हैं । कार्यक्रम अर्थात् आयोजन का अमल (परिपालन) करवाने की योजनाएँ । योजनाओं के उद्देश्य की पूर्ण करवाने के लिए नीतियाँ, विधियाँ एवं अंदाजपत्र का समावेश करके कार्यक्रम तैयार किया जाता है । जैसे – गत वर्ष के कर्ता चालु वर्ष में 30% लाभ में वृद्धि करने की योजना के लिए नीति, विधि एवं अंदाजपत्र तैयार करके कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है । (6) अंदाजपत्र (Budget) : अंदाजपत्र यह आयोजन और अंकुश का साधन है । इसमें अंदाजित लक्ष्य अंकों में निर्धारित किया जाता है । अंदाज पर निश्चित समय के लिए तैयार होता है । अंदाजपत्र में निश्चित समय के परिणाम अंकों में दर्शाए जाते हैं । आयोजन पूर्ण करने के लिए कुल कितना खर्च होगा उसका अंदाज दर्शाया जाता है । आयोजन का मुख्य साधन अंदाजपत्र है । (7) व्यूहरचना (Strategy) : स्पर्धा का सामना करने के लिए तथा योग्य लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधन सामग्री की व्यवस्था करना व्यूहरचना कहलाती है । व्यूहरचना आयोजन का मूल है । स्पर्धा से इकाई की प्रवृत्तियों में क्या परिवर्तन होगें उसके लिए कौन-कौन से कदम उठाए जायेगें । उसकी योजना बनाना अर्थात् व्यूहरचना जैसे – स्पर्धात्मक पेढी भाव में कमी करे तो हमें विज्ञापन द्वारा उच्च गुणवत्ता की असर ग्राहकों को समझाने का प्रयास करना चाहिए । |
|
| 56. |
आयोजन के घटक किसे कहा जाता है ? |
|
Answer» आयोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है । यह तैयार करते समय बहुत-सी छोटी-छोटी योजनायें, कार्यक्रम बनाकर आयोजन बनाया जाता है । जिन्हें आयोजन के घटक कहा जाता है । जैसे धन्धाकीय इकाई का अन्दाजपत्र बनाना हो तो सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग का अन्दाज-पत्र बनाना पड़ता है, उसके पश्चात् उन पर चर्चा-विचारणा करके इकाई का मुख्य अन्दाज-पत्र बनाया जा सकता है । |
|
| 57. |
आयोजन के घटक कितने है ?(A) 4(B) 7(C) 6(D) 8 |
|
Answer» सही विकल्प है (B) 7 |
|
| 58. |
आयोजन के घटक कितने है ? व कौन-कौन से ? |
|
Answer» आयोजन के 7 घटक है :
|
|
| 59. |
सर्वोच्च अन्दाज-पत्र किसे कहते हैं ? । |
|
Answer» धन्धाकीय इकाई का अन्दाज-पत्र बनाना हो तो सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग का अन्दाज-पत्र बनाना पड़ता है, इन अन्दाज-पत्रों पर चर्चा-विचारणा करने के बाद इकाई का मुख्य अन्दाज-पत्र बनाया जाता है, जिसे सर्वोच्च अन्दाज-पत्र या मुख्य अन्दाज-पत्र अथवा सर्वग्राही अन्दाज-पत्र कहते हैं । |
|
| 60. |
इकाई का जीवन-ध्येय तय करने वाली योजना कौन-सी है ?(A) स्थायी योजना(B) व्यूहात्मक योजना(C) सुनियोजित योजना(D) एक उपयोगी योजना |
|
Answer» सही विकल्प है (B) व्यूहात्मक योजना |
|
| 61. |
इनमें से आयोजन का घटक कौन-सा है ?(A) सतत प्रक्रिया(B) नियंत्रण(C) मार्गदर्शन(D) नियम |
|
Answer» सही विकल्प है (D) नियम |
|
| 62. |
योजना के मूल्यांकन के लिए कौन-सा सिद्धांत अपनाना पड़ता है ? |
|
Answer» योजना के मूल्यांकन के लिए ‘विस्मृति करो और आगे बढ़ो Look and Leap का सिद्धांत अपनाना पड़ता है । |
|
| 63. |
गौण योजना किसे कहते हैं ? |
|
Answer» मूल योजना के अनुरुप अथवा मूल योजना के सहायक बने इसके बारे में प्रकल्पों अथवा विकल्पों पर विचारणा की जाती है । जिन्हें गौण योजना के रूप में पहचाना जाता है । जैसे कार बनानेवाली कम्पनी टायर बनाना या बाहर से खरीदना इसके बारे में जो निर्णय करें तो उन्हें गौण योजना कहा जा सकता है । इस गौण योजना को तैयार करने के बाद उनकी सफलता के बारे में जाँच की जाती है । जिससे भविष्य में मूल या मुख्य योजना को कोई समस्या उत्पन्न न हो । |
|
| 64. |
इनमें से कौनसी योजना निर्मित करने के लिए विशिष्ट ज्ञान और कौशल्य अनिवार्य है ?(A) व्यूहात्मक योजना(B) स्थायी योजना(C) कार्यकारी योजना(D) सुनियोजित योजना |
|
Answer» सही विकल्प है (D) सुनियोजित योजना |
|
| 65. |
‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’ उपरोक्त परिभाषा इनमें से किसने दी है ?(A) डॉ. बीली गोऐट्ज(B) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी(C) डॉ. उविक डेविड(D) श्री हेनरी फेयोल |
|
Answer» सही विकल्प है (A) डॉ. बीली गोऐट्ज |
|
| 66. |
आयोजन की प्रक्रिया अथवा क्रम की विधि के कितने सोपान है ?(A) 8(B) 6(C) 9(D) 7 |
|
Answer» सही विकल्प है (A) 8 |
|
| 67. |
आयोजन की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान बताइए ।(A) योजना का मूल्यांकन(B) निश्चित योजना स्वीकार करना(C) योजना की जाँच करना(D) विकल्पों का विचार करना |
|
Answer» सही विकल्प है (A) योजना का मूल्यांकन |
|
| 68. |
‘कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा कार्य के अनुसरण के लिए नीति की व्यवस्था और उपयोग में ली जानेवाली पद्धति निर्धारित करना’ उपरोक्त परिभाषा किसने दी है ?(A) पीटर ड्रकर(B) फ्रेडरिक टेलर(C) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी(D) डॉ. उर्विक डेविड |
|
Answer» सही विकल्प है (C) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी |
|
| 69. |
कार्यक्रम किसे कहते हैं ? |
|
Answer» धन्धाकीय इकाई में किये जानेवाले कार्यों को जो क्रम दिया जाता है जिसे कार्यक्रम कहते हैं । |
|
| 70. |
सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग विभाग का अन्दाजपत्र बनाना पड़ता है, उसके पश्चात् इन पर चर्चाविचारणा करके जो अन्दाज-पत्र बनाया जाये उसे क्या कहते हैं ?(A) सर्वोच्च अन्दाज-पत्र(B) नकद अन्दाज-पत्र(C) उत्पादन अन्दाज-पत्र(D) वितरण खर्च अन्दाज-पत्र |
|
Answer» सही विकल्प है (A) सर्वोच्च अन्दाज-पत्र |
|
| 71. |
धन्धाकीय इकाई में किये जानेवाले कार्यों को जो क्रम दिया जाता है, उन्हें क्या कहा जाता है ?(A) अन्दाज-पत्र(B) कार्यक्रम(C) नियम(D) नीति |
|
Answer» सही विकल्प है (B) कार्यक्रम |
|
| 72. |
अन्दाज-पत्र का विचलन से आप क्या समझते है ? |
|
Answer» अन्दाज-पत्र में दर्शायी गई प्रवृत्तियों से सम्बन्धित आँकड़ों को ध्यान में रखकर प्रवृत्तियाँ की जाती है । यह पूर्ण होने के बाद वास्तविक परिणाम के आँकड़े प्राप्त करके उन्हें अन्दाज-पत्र के आँकड़े के साथ तुलना करके दोनों के मध्य जो अन्तर पाया जाये, उन्हें अन्दाज-पत्र का विचलन (Budget Variances) कहा जाता है, जो कि सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकता है । |
|
| 73. |
भारत में आयोजन का महत्त्व स्वीकार करके केन्द्र सरकार ने किसकी रचना की है ?(A) संघ लोकसेवा आयोग(B) नीति आयोग(C) कर्मचारी चयन आयोग(D) रेलवे भर्ती |
|
Answer» सही विकल्प है (B) नीति आयोग |
|
| 74. |
अन्दाज-पत्र किसे कहते हैं ? |
|
Answer» अन्दाज-पत्र अर्थात् आय-व्यय का पत्रक है । अन्दाज-पत्र यह निश्चित भावी समय के लिए अपेक्षित वित्तीय व्यय-आय दर्शाता पत्रक है । |
|
| 75. |
अन्दाज-पत्र समिति किसे कहते हैं ? |
|
Answer» विभिन्न विभाग के अनुसार अन्दाज-पत्र तैयार कराकर उच्च संचालकों द्वारा स्वीकृत करवाने के लिए विभिन्न विभागीय अधिकारिया की जो समिति बनाई जाती है जिसे अन्दाज-पत्र समिति कहते हैं । |
|
| 76. |
धन्धाकीय इकाई के निर्धारित उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए मध्य स्तर पर अल्पकालीन जो योजनाओं का निर्माण किया जाये तो उन्हें कौन सी योजना कहा जाता है ?(A) सुनियोजित योजना(B) कार्यकारी योजना(C) व्यूहात्मक योजना(D) स्थायी योजना |
|
Answer» सही विकल्प है (A) सुनियोजित योजना |
|
| 77. |
वर्तमान में भविष्य के लिए पूर्व विचारणा अर्थात् –(A) नियंत्रण(B) कर्मचारी व्यवस्था(C) आयोजन(D) व्यवस्थातंत्र |
|
Answer» सही विकल्प है (C) आयोजन |
|
| 78. |
आयोजन का किसके साथ सम्बन्ध है ?(A) भूतकाल(B) वर्तमान(C) उत्पादन(D) भविष्य |
|
Answer» सही विकल्प है (D) भविष्य |
|
| 79. |
आयोजन को चैतन्य (सभान) और बौद्धिक प्रक्रिया किसलिए कहा जाता है ? |
|
Answer» आयोजन को चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया इसलिए कहा जाता है कि आयोजन में निर्णय चैतन्यपूर्वक तथा गणना के अन्दाज के आधार पर लिए जाते है । जिससे आयोजन को सभान और बौद्धिक प्रक्रिया कहते हैं । |
|
| 80. |
इकाई के कार्यक्रम को पूर्ण करने की व्यवस्था दर्शाना अर्थात् ……………………………..(A) नीति(B) पद्धति(C) अन्दाज-पत्र(D) हेतु |
|
Answer» सही विकल्प है (B) पद्धति |
|
| 81. |
‘आयोजन एक ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है, कार्यों को व्यवस्थित करना, इसके लिए पूर्व विचारणा करते है तथा केवल अनुमानों के बदले में निश्चित वास्तविकताओं के आधार पर कदम उठाते हैं ।’ उपरोक्त व्याख्या किसने दी है ?(A) डॉ. उर्विक डेविड(B) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी(C) डॉ. बीली गोऐट्ज(D) ल्युथर ग्युलिक |
|
Answer» सही विकल्प है (A) डॉ. उर्विक डेविड |
|
| 82. |
धन्धे में जो प्रवृत्तियाँ करनी हो उनके बारे में जानकारी प्राप्त करके, पूर्व विचार करना तथा इन प्रवृत्तियों को किस प्रकार इसके बारे में योजना अर्थात् …………………………. ।(A) व्यवस्थातंत्र(B) कला(C) संकलन(D) आयोजन |
|
Answer» सही विकल्प है (D) आयोजन |
|
| 83. |
योजना के कितने प्रकार है ?(A) 5(B) 4(C) 6(D) 9 |
|
Answer» सही विकल्प है (C) 6 |
|
| 84. |
योजना के प्रकार समझाइए । |
|
Answer» योजना के प्रकार (Type of Plan) निम्न है : (1) स्थायी योजना (Standing Plan) : स्थायी योजना बार-बार उपयोग में ली जा सकती है जो कि कार्यों के बारे में दैनिक निर्णय लेने होते हैं ऐसे कार्यों के लिए ऐसी योजना तैयार की जाती है, जहाँ व्यवस्थाकीय प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन होता हो वहाँ वो प्रवृत्तियाँ शीघ्रता से हो इस उद्देश्य से प्रमाणित नीति तय की जाती हैं, जिन्हें स्थायी योजना कहा जा सकता है । आयोजन में नीति, विधि और नियम दीर्घ समय के लिए तय किये जाते हैं, जिससे अधिनस्थ कर्मचारी शीघ्र निर्णय ले सकते हैं । जैसे – ग्राहकों को उनके ऑर्डर के अनुरूप माल भेजने के बारे की विधि या साख नीति का निर्माण किया गया हो तो उनका अमल कर्मचारी शीघ्रता से कर सकते हैं । इस हेतु उच्च अधिकारियों को पूछने बार-बार जाना नहीं पड़ता । (2) व्यूहात्मक योजना (strategic Plan) : धन्धाकीय इकाइयाँ उनकी विचारधारा के अनुसार ध्येय तय करती है । इस हेतु इकाई अपने जीवनकाल दौरान कौनसी विचारधारा से काम करेंगे यह तय किया जाता है । जिसे इकाई का जीवन-ध्येय कहा जाता है । इकाई के उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए विभिन्न दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन व्यूहरचनाओं का निर्माण किया जाता है । धन्धाकीय इकाई धन्धाकीय पर्यावरण, इनकी शक्तियों और कमियों को ध्यान में लेकर योजना का निर्माण किया जाता है । इस योजना के लिए दीर्घ दृष्टि और अनुभव जरूरी है । व्यूहात्मक योजना के असर दीर्घ अवधि पर देखने को मिलते है । इस योजना के लिए सुसंगत निर्णय लेने पड़ते है । यानि कि निर्णयों की व्यापकता इन योजना में महत्त्वपूर्ण है । (3) सुनियोजित योजना (Tractical Plan) : धन्धाकीय इकाई के निर्धारित उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए मध्य स्तर पर अल्पकालीन (4) कार्यकारी योजना (Operational Plan) : कार्यकारी योजना धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्य समूहो और व्यक्तिओं के पास से कार्य सम्बन्धी इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए निर्मित की जानेवाली योजनाओं को कार्यकारी योजनाएँ कहते हैं । ऐसी योजनायें अधिकांशतः एक-दो वर्ष के अल्प समय के लिए होती है । जैसे निर्धारित किये गये वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य के पूर्ण करने के लिए मासिक या त्रिमासिक उत्पादन की योजना बनाई जाती है । व्यूहात्मक योजना के अमलीकरण के लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा ऐसी योजनाओं को तैयार किया जाता है । ऐसी योजनाएँ दैनिक कार्यों के साथ होने से सम्बन्धित विभाग के कर्मचारियों के साथ चर्चा विचारणा करके तैयार किया जाये तो इस योजना का अमल प्रमाण में अधिक सरल बनता है । कार्यकारी योजना सुनियोजित योजना जैसी ही होती है । (5) एक उपयोगी योजना (Single use Plan) : विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । विशिष्ट प्रवृत्तियों के लिए ही इस योजना को तैयार की जाती है । अर्थात् कि जिन कार्य प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन नहीं होता ऐसी प्रवृत्तियों के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । जैसे जहाज निर्माण, भवन निर्माण, पैकेजिंग, प्रिन्टिंग आदि योजनाएँ महत्वपूर्ण होती है । (6) आकस्मिक योजना (Contigency Plan) : धन्धाकीय इकाई में बदलती हुई परिस्थिति के साथ बने रहने के लिए बहुत ही आवश्यक है । कई निश्चित परिबल जैसे कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक या प्राकृतिक परिबलों के कारण धन्धाकीय पर्यावरण में भी परिवर्तन होते है । जिसके कारण पहले की योजना में परिवर्तन होते है । जिसके कारण पहले की योजना में परिवर्तन करना पड़ता है, अथवा कई योजना बनाई जाये तो उन्हे आकस्मिक योजना कहा जाता है । |
|
| 85. |
आयोजन के घटक (Elements of Planning) समझाइए । |
|
Answer» आयोजन के 7 घटक है :
(1) हेतु (Objects) : ध्येय तय करना और उनको सफल बनाना यह धन्धाकीय इकाई का मुख्य ध्येय होता है । यह तय करते समय इकाई को प्रभावित करनेवाले प्रत्येक परिबल को ध्यान में लेना पड़ता है । ध्येय प्राप्त कर सके ऐसे वास्तविक होने चाहिए । यह अधिक महत्त्वकांक्षी नहीं होने चाहिए । (2) व्यूहरचना (Strategy) : आयोजन में निर्धारित किये गये उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए उपयोग में ली जानेवाली युक्ति अर्थात् व्यूहरचना । इससे इकाई बाजार में स्पर्धकों के सामने अथवा असर करनेवाले अन्य परिबलों के सामने टिक सके । व्यूहरचना का उपयोग सेनाओं और खेल-कूद जैसे क्षेत्रों में बड़े प्रमाण में किया जाता है । कोई भी व्यूहरचना स्पर्धियों से गुप्त रहे यह भी आवश्यक है । योग्य व्यूहरचना के कारण ही इकाई को महत्तम सफलता का विश्वास मिलता है । (3) नीति (Policy) : आयोजन में निर्धारित किये गये ध्येय को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करें उसे नीति कहते हैं । नीति इकाई की एक छाप उत्पन्न करती है । इकाई की कुशलता और कार्य पद्धति का परिचय देती है । ध्येय की तरह नीति भी व्यवहारिक और वास्तविक होनी चाहिए । जैसे शान पर माल का विक्रय करने की नीति । (4) पद्धति/विधि (Method/Procedure) : पद्धति यह इकाई के कार्यक्रम को पूरा करने की व्यवस्था दर्शाता है । व्यूहरचना इकाईयों को स्पर्धियों के सामने बने रहने की व्यवस्था दर्शाते है । नीति उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जा सके इसकी जानकारी प्रदान करती है । जबकि विधि निर्धारित किये गये उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जायेगा इसका मार्ग दर्शाते है । जैसे इकाई बिमासिक विक्रय के आँकडे प्राप्त करके वार्षिक विक्रय के ध्येय को पूर्ण करने का प्रयत्न करते है । ऐसा करने से सफलता मिलने की सम्भावना बढ़ती है, संक्षिप्त में, विधि अर्थात् अमुक प्रवृत्ति किस तरह करना इसका तरीका । (5) नियम (Rules) : आयोजन में निर्धारित किये गये कार्यक्रम को पूर्ण करने के लिए नियम जरूरी है । नियम विधि निश्चित करते है । स्पष्ट समझ देते है । जिससे कर्मचारियों में अनुशासन स्थापित होता है तथा ध्येय प्राप्ति और निरीक्षण का कार्य सरल हो जाता है । जैसे कार्य के घण्टों के दौरान कर्मचारियों के मोबाइल का उपयोग नहीं करना, इकाई में धूम्रपान नहीं करना इत्यादि । (6) अन्दाज-पत्र (Budget) : इकाई में निश्चित किये गये उद्देश्यों को पूर्ण करने के नियंत्रण के माध्यम के रूप में अन्दाजपत्र का उपयोग किया जाता है । अन्दाज-पत्र के विभिन्न प्रकार होते है जैसे कि पूँजी खर्च अन्दाज-पत्र उत्पादन अन्दाज-पत्र, उत्पादनखर्च अन्दाज-पत्र, विक्रय अन्दाज-पत्र और नकद अन्दाज-पत्र । अन्दाज-पत्र इकाई की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखते हैं और संचालन को कार्यक्षम बनाते हैं । (7) कार्यक्रम (Programme) : धन्धाकीय इकाई के जो कार्य करने हो उनको जो क्रम दिया जाता है उन्हें कार्यक्रम कहा जाता है । यदि कार्यक्रम के अनुसार काम-काज हो तो लक्ष्य-प्राप्ति का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता । संचालन का कार्य कार्यक्रम के अनुसार होता है या नहीं यह देखना हैं और उन्हें निर्धारित किये गये स्तरों के साथ तुलना करने पर यदि उनमें विचलन पाया जाये तो सुधारलक्षी कदम उठाना आवश्यक होता है । |
|
| 86. |
आयोजन की सीमाएँ (Limitations of Planning) समझाइए । |
|
Answer» प्रस्तावना : आयोजन यह एक वैकल्पिक प्रक्रिया है । आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । जो सामान्यतः अनिश्चितता पर निर्भर है । आयोजन के बिना दैनिक जीवन व्यवस्थित नहीं चल सकता । प्रत्येक व्यक्ति परिवार, समाज, नगर, राज्य एवं देश इत्यादि सभी के लिए आयोजन आवश्यक है । आयोजन का स्वीकार सर्वव्यापी है । इसके बावजूद भी आयोजन में कई मर्यादाएं रही हुई हैं । आयोजन की अनेकों मर्यादाएं, दोष बतलाए गए हैं । उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं : आयोजन की सीमाएँ : (1) आयोजन के अनुसार कार्य न होने से आयोजन आवश्यक नहीं : आयोजन तैयार करने के पश्चात भी आयोजन अनुसार कार्य न होने से आयोजन बिन आवश्यक प्रवृत्ति है । आयोजन तैयार करने का खर्च इकाई के लाभ से अधिक होता है । कई बार तो आयोजन सम्पूर्णतः निष्फल हो जाता है । (2) आयोजन का आधार अनिश्चित है : आयोजन भूतकाल के अनुभव एवं भविष्य के अनुमान पर आधारित होता है । भविष्य के अनुमान निश्चित नहीं परन्तु अनिश्चित होते हैं । आयोजन अधिकाशत: अनिश्चितता पर निर्भर होता है । अत: आयोजन का आधार अनिश्चित है । (3) आयोजन अधिक खर्चीली एवं लंबी प्रक्रिया है : आयोजन तैयार करते समय अनेक सूचनाएँ, अभिप्राय एकत्रित करने पड़ते हैं । इनका विश्लेषण करना पड़ता है । ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर वैकल्पिक योजनाएँ तैयार की जाती हैं । इन सबके लिए अनुभवशील, कुशल व्यक्तियों की सलाह ली जाती है । जिसका खर्च बहुत अधिक होता है । आयोजन अनेक पहेलुओं से पसार होता है । अतः यह लम्बी प्रक्रिया है । (4) आयोजन से संचालन की प्रवृत्ति स्थिर बनती है : निर्धारित हेतु की सफलता हेतु कार्य की शुरूआत से पहले आयोजन तैयार । किया जाता है । राजकीय, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारणों से परिस्थिति में परिवर्तन होता है । परंतु संचालक आयोजन के अनुसार ही प्रवृत्ति करते हैं । आयोजन के विपरीत आंशिक प्रवृत्ति करने में स्वयं जोखिम नहीं उठाते । (5) बाह्य परिस्थिति की अनिश्चितता : वर्तमान में भविष्य के अनुमानों पर विचार विमर्श करके आयोजन की रचना की जाती है । आयोजन वर्तमान में तैयार अवश्य किया जाता है । लेकिन इसका उपयोग भविष्य में होता है । आयोजन तैयार करने से उपलब्ध साधनों का योग्य उपयोग किया जाता है । परंतु राज्यस्तर अथवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परिस्थितियों में परिवर्तन होने से आयोजन, असफलता के रास्ते पर चला जाता है । जैसे – पेट्रोल, डिज़ल के भाव में वृद्धि । (6) अपूर्ण (अधूरी) जानकारी : आयोजन के लिए योजनाएँ तैयार की जाती है । योजनाओं के लिए अनेक सभी प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं । जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होने से सही योजना तैयार नहीं होती इस आधार पर तैयार किया जाता । जैसे – भारत में क्रेडिट कार्य का उपयोग कम होता है । इसका यह कारण नहीं कि यह आवश्यक नहीं है । परन्तु इसके लिए एकत्रित जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होती है । (7) कर्मचारी की स्वतंत्रता पर अंकुश प्रहार : निश्चित हेतु को पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार किया जाता है । कर्मचारियों . को तैयार किए गए आयोजन के अनुसार अधिकारियों द्वारा आदेश दिया जाता है । इसके अनुसार ही कर्मचारी कार्य करते हैं । कुशल एवं अनुभवशील कर्मचारी मात्र कर्मचारी ही होता है । वह तैयार किए गए आयोजन के विपरीत कार्य नहीं कर सकता । (8) क्षतियुक्त पद्धति का उपयोग : आयोजन तैयार करते समय गणितीक पद्धतियाँ, आंकड़ाशास्त्रीय जानकारी एवं कम्प्यूटर का विशाल उपयोग होता है । इनके उपयोग में कई बार क्षतियुक्त निर्णय लेने से आयोजन में क्षतियुक्त योजनाओं की रचना की जाती है । जिससे आयोजन क्षतियुक्त बनता है । एक लेखक ने कहा है कि आयोजन परिवर्तन को अंकुश में रखने का श्रेष्ठ साधन है । (9) भविष्य के अनुमान सम्पूर्णत: सत्य नहीं होते : आयोजन भविष्य के लिए किया जाता है । भविष्य अनिश्चित होता है । अनिश्चित भविष्य के कारण आयोजन में तैयार की गई योजनाएँ निश्चित नहीं होती अर्थात् आयोजन का आधार ही अनिश्चित है । प्रत्येक क्षेत्र में आयोजन का महत्व बढ़ता ही जा रहा है । आयोजन से निर्धारित हेतु समयानुसार सफल होता है । आयोजन की कोई मर्यादा नहीं परन्तु आयोजन की रचना करने वाले व्यक्तियों में कुशलता का अभाव, अपूर्ण जानकारी, प्राप्त करने की इच्छा सलाहकार की सलाह सूचन का अभाव इन सभी कारणों से आयोजन त्रुटिओं का पात्र बना है । (10) आयोजन का अप्रचलित होना : आयोजन में सदैव अनिश्चितता रहती है । समय, संजोग अथवा इकाई को असर करनेवाले परिबलों को कारण से पूर्व निर्धारित आयोजन कई बार अप्रचलित बन जाता है, जिसके कारण से आयोजन असफल हो जाता है । |
|