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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | “जीवन के और अनेक व्यापारों में भी भीरुता दिखाई देती है।” लेखक के अनुसार वे व्यापार कौन-कौन-से है? | 
| Answer» शुक्ल जी का कहना है कि जीवन के और अनेक व्यापारों में भीरुता दिखाई देती है। धन की हानि होने के भय से बहुत से व्यापारी किसी विशेष व्यापार में हाथ नहीं डालते । हारने तथा अपमानित होने के भय से अनेक पण्डित शास्त्रार्थ से बचने का प्रयास करते हैं। इसमें व्यापारी को अपनी क्षमता तथा व्यापार-कौशल पर विश्वास नहीं रहता। इसी प्रकार पण्डित को अपनी विद्या-बुद्धि पर भरोसा नहीं रहता। | |
| 2. | भीरुता किसको कहते हैं? पुरानी प्रकृति की और नवीन तरह की भीरुता का विश्लेषण कीजिए। | 
| Answer» स्वभावगत भय को भीरुता कहते हैं। भय की आदत बन जाने पर उसको भीरुता कहा जाता है। इसको कायरता भी कहते हैं। भीरुता स्त्री-पुरुष दोनों में पाई जाती है। पुरुषों को स्वाभाविक रूप से साहसी माना जाता है। उनकी भीरुता निंदनीय होती है परन्तु स्त्रियों की भीरुता रसिकों के मनोरंजन का विषय होती है। भीरु व्यक्ति में कष्ट सहने की क्षमता नहीं होती तथा उस कष्ट से मुक्ति का पूर्ण विश्वास भी उसको नहीं होता। भूतों से डरना तथा पशुओं से डरना भी भीरुता है। भीरुता निंदनीय होती है किन्तु धर्म भीरुता प्रशंसनीय मानी जाती है। इसको पुरानी चाल की भीरुता कह सकते हैं। भीरुता नवीन प्रकार की भी होती है। यह जीवन के अन्य अनेक व्यापारों में दिखाई देती है। इस प्रकार की भीरुता में सहन करने की क्षमता और अपनी शक्ति में अविश्वास छिपा रहता है। कोई व्यापारी कभी-कभी किसी नई वस्तु का व्यापार शुरू नहीं करता। उसको इसमें आर्थिक हानि होने का भय लगता है। यह व्यापारी की भीरुता है। उसमें आर्थिक नुकसान को सहने की क्षमता तथा अपने व्यापार कौशल पर अविश्वास होता है। इसी प्रकार कोई विद्वान पुरुष जब अपने विद्या-बुद्धि की शक्ति पर अविश्वास होने के कारण और मानहानि के डर से किसी के साथ शास्त्रार्थ से बचता है तो इसको उसकी भीरुता ही माना जाएगा। ये नवीन प्रकार की भीरुता के रूप हैं। | |
| 3. | “अपरिचित से भय में जीवन का कोई गूढ़ रहस्य छिपा जान पड़ता है।” इस कथन का तर्कपूर्ण समर्थन कीजिए। | 
| Answer» अपरिचित से भय में जीवन का कोई गूढ़ रहस्य छिपा जान पड़ता है। जंगली जातियों में परिचय का क्षेत्र विस्तृत नहीं होता। वे अपरिचित लोगों से डरते हैं। बच्चों में भी अपरिचित लोगों से भय होने का भाव पाया जाता है। वे धीरे-धीरे भय मुक्त होते हैं तथा अपने माता-पिता तथा नित्य सामने आने वाले थोड़े-से लोगों से ही घुल-मिल जाते हैं। अपरिचित व्यक्ति को देखकर वे घर में घुस जाते हैं। पशुओं में भी अपरिचित से भय का भाव पाया जाता है। पालूत जानवर की अपेक्षा दूसरे जानवर अधिक डरते हैं। वो किसी मनुष्य को सामने पाकर भाग जाते हैं अथवा उस पर हमला कर देते हैं। धर्म में भी अपरिचित के प्रति भय पाया जाता है। धर्म में जिनको सम्माननीय और पूज्य माना जाता है, वे शक्तियाँ अज्ञात और अपरिचित ही होती हैं। उनकी दण्ड देने और पीड़ित करने की शक्ति से भय होने के कारण ही लोग उनकी पूजा-स्तुति करके उनको प्रसन्न रखते हैं और उनके कोप से बचना चाहते हैं। धार्मिक देवता रहस्यपूर्ण होते हैं। अज्ञात शक्ति के भय से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही उनकी पूजा की जाती है। पूजा की भावना के पीछे उनके प्रति आभार की भावना भी है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री लॉक ने ईश्वर को भी इसी कारण मानव कल्पित माना है।. | |
| 4. | असभ्य तथा जंगली जातियों में भय अधिक होता है क्यों? उनके समाज में देवताओं की पूजा में भये की भूमिका पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» असभ्य और जंगली जातियों में भय अधिक होता है। जंगली लोगों का परिचय-क्षेत्र बहुत सीमित होता है। ऐसी अनेक जातियाँ हैं जिनमें कोई व्यक्ति 20-25 से अधिक लोगों को नहीं जानता। उसे दस-बारह कोस दूर रहने वाला कोई जंगली मिल जाए और उसको मारने दौड़े तो वह दौड़कर अपनी रक्षा कर लेता है। यह रक्षा तत्कालीन तथा सर्वकालीन भी हो सकती है। परिचय का सीमित होना ही उनके भय का कारण होता है। जंगली जातियों में भय की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। वे जिससे डरते हैं, उससे रक्षा के लिए ही उसका सम्मान भी करते हैं। उनके देवता भय के कारण ही कल्पित होते हैं। वे कष्ट से रक्षा के लिए किसी शक्ति की कल्पना कर लेते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं और उससे प्रार्थना करते हैं कि वह उनको कष्ट से बचाए। भय और भय उत्पन्न करने वाले का सम्मान करना असभ्यता का सूचक है। पूजा-पद्धति के जन्म में भी भय की भावना का प्रमुख स्थान है। देवता शक्तिशाली होते हैं तथा वे किसी को भी पीड़ा पहुँचा सकते हैं। इस पीड़ा से बचने के लिए ही उनका सम्मान किया जाता है। उनको प्रसन्न रखा जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है। यही कारण है कि सभ्यता और शिक्षा के विकास के साथ धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम होती जा रही है। | |
| 5. | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्य-साधना पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» जीवन परिचय-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई. में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में हुआ था। आपके पिता पं. चन्द्रबली शुक्ल सुपरवाइजर कानूनगो थे। शुक्ल जी ने मिर्जापुर के मिशन स्कूल से एंट्रेन्स परीक्षा पास की। कायस्थ पाठशाला इलाहाबाद में प्रवेश लिया किन्तु एफ.ए. (इण्टर) करने से पूर्व ही पढ़ाई छूट गई। सरकारी नौकरी शुरू की परन्तु उसको आत्मसम्मान के विरुद्ध पाकर छोड़ दिया और मिर्जापुर के मिशन स्कूल में ड्राइंग मास्टर हो गए। तत्पश्चात् स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला आदि भाषाओं का गम्भीर ज्ञान प्राप्त किया। आपने काशी नागरी प्रचारिणी सभा से जुड़कर ‘हिन्दी शब्द सागर’ का सम्पादन किया। बाद में आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक तथा विभागाध्यक्ष रहे। सन् 1941 में आपका देहावसान हो गया। | |
| 6. | दुःख या आपत्ति का पूर्ण निश्चय न होने पर कौन-सा मनोभाव उत्पन्न होता है?(क) भय(ख) क्रोध(ग) लज्जा(घ) आशंका | 
| Answer» दुःख या आपत्ति का पूर्ण निश्चय न होने पर भय सा मनोभाव उत्पन्न होता है। | |
| 7. | साहसी व्यक्ति कठिनाई में फँस जाने पर क्या करता है? | 
| Answer» साहसी व्यक्ति कठिनाई में फंस जाने पर डरता नहीं। उससे बचने का उपाय करता है। | |
| 8. | “कल तुम्हारे हाथ-पाँव टूट जाएँगे” ऐसा वाक्य सुनकर क्या अनुभूत होगा?(क) क्रोध(ख) निराशा(ग) भय(घ) उत्साह | 
| Answer» “कल तुम्हारे हाथ-पाँव टूट जाएँगे” ऐसा वाक्य सुनकर भय का अनुभूत होगा | |
| 9. | मनुष्य को अब भूतों तथा पशुओं से भय नहीं लगता। तो फिर वह किससे डरता है? | 
| Answer» मनुष्य को अब मनुष्यों से ही कष्ट पहुँचता है। अत: वह मनुष्यों से ही डरता है। | |
| 10. | “सभ्यता से अन्तर केवल इतना ही पड़ा है”- सभ्यता से क्या अन्तर आया है? | 
| Answer» सभ्यता से अन्तर यह पड़ा है कि दूसरों को छद्म तरीकों से दु:ख दिया जाता है, खुलेआम नहीं । | |
| 11. | “उसका (भय का) क्षोभ कारक रूप बहुत-से आवरणों के भीतर ढक गया है।” भय का क्षोभकारक रूप क्या है? वे आवरण कौन-से हैं जिनमें उसका क्षोभकारक रूप ढक गया है? | 
| Answer» कोई आकर जबरदस्ती किसी का खेत, बाग-बगीचा, घर-मकान, रुपया-पैसा आदि छीन ले। यह भय का क्षोभकारक रूप है। सुदृढ़ शासन-व्यवस्था के अभाव में पहले यह भय बना रहता था। भय के इस रूप पर छल-कपट तथा बनावटी आचरण का पर्दा पड़ गया है। यह पर्दा या आचरण है-नकली दस्तावेज तैयार कराकर, झूठे गवाह प्रस्तुत करके, अदालतों में जिरह करके इन वस्तुओं के स्वामित्व से किसी को वंचित कर देना। | |
| 12. | सबल देशों के बीच कैसा संघर्ष चल रहा है? | 
| Answer» आजकल दो शक्तिशाली देशों के मध्य आर्थिक संघर्ष चल रहा है। सभी देश अपने यहाँ उत्पादित माल का निर्यात अन्य देशों में करके धनवान बनना चाहते हैं। इस स्पर्धा में दोनों के मध्य अनेक बार लड़ाई-झगड़े की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा दूसरे देशों के बाजार पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए वे एक-दूसरे से टकराते हैं। | |
| 13. | सबल तथा निर्बल देशों में क्या प्रक्रिया चल रही है? | 
| Answer» सबल तथा निर्बल देशों के बीच अर्थ शोषण की प्रक्रिया चल रही है। | |
| 14. | “सबल और निर्बल देशों के बीच अर्थशोषण की प्रक्रिया अनवरत चल रही है।” कैसे? स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» शक्तिशाली देश निर्बल देशों के बाजार पर एकाधिकार चाहते हैं। वे उस देश में अपना उत्पादित सामान निर्यात करते हैं। और अपनी शर्तों पर उसके साथ व्यापार करते हैं। उससे सस्ता कच्चा माल और श्रम खरीदते हैं तथा अपना महँगी उत्पाद उसको बेचते हैं। इस तरह शक्तिशाली देश निर्बल देशों का आर्थिक शोषण करते हैं। यह प्रक्रिया निरन्तर बिना रुके चल रही है। | |
| 15. | “सार्वभौम वणिग्वृत्ति” से लेखक का क्या आशय है? | 
| Answer» वणिक व्यापारी को कहते हैं। आजकल विश्व के समस्त देश व्यापारी बन चुके हैं। वे अपने यहाँ के कल-कारखानों में तैयार माल को दूसरे देशों के बाजारों में बेचते हैं। इसके कारण उनमें गहरी स्पर्धा होती है तथा वे निर्बल देशों का शोषण करते हैं। इसी को “सार्वभौम वणिग्वृत्ति” कहा गया है। | |
| 16. | “अर्थोन्माद को शासन के भीतर रखने से शुक्ल जी का क्या तात्पर्य है? | 
| Answer» अर्थोन्माद का अर्थ है- धन सम्बन्धी पागलपन। आजकल समस्त संसार के देश तथा लोग धन कमाने के लिए पागल बने हुए हैं। अर्थ उपार्जन के लिए वे उचित-अनुचित, नैतिक-अनैतिक आदि सभी तरीकों को ठीक मानते हैं। तरीका कोई भी हो बस धन कमाना ही उनका लक्ष्य है। इस अनुचित स्पर्धा पर नियन्त्रण आवश्यक है। इसको नियन्त्रण में रखने से ही संसार को अनाचार और अनावश्यक संघर्ष से बचाया जा सकता है। | |
| 17. | ‘भय’ मनुष्य के मन में कब उत्पन्न होता है? | 
| Answer» किसी भावी दु:ख का कारण पता चलने पर भय उत्पन्न होता है। | |
| 18. | शास्त्रार्थ से बचने का प्रयास करने वाले पण्डित के बारे में क्या पता चलता है? | 
| Answer» कोई पण्डित शास्त्रार्थ से बचता है तो पता चलता है कि उसमें शास्त्रार्थ में पराजित होने पर मान हानि सहने की क्षमता नहीं है तथा अपनी विद्या बुद्धि पर विश्वास भी नहीं है। | |
| 19. | किस प्रकार की भीरुती प्रशंसनीय होती है?(क) शिक्षक भीरुता(ख) पत्नी भीरुता(ग) वृद्धजन भीरुता(घ) धर्म भीरुता | 
| Answer» (घ) धर्म भीरुता | |
| 20. | “जंगली मनुष्यों में परिचय का विस्तार बहुत थोड़ा होता है। इसका क्या तात्पर्य है तथा इसका क्या परिणाम होता है? | 
| Answer» जंगली मनुष्यों में परिचय का विस्तार बहुत थोड़ा होता है। इसका अर्थ यह है कि वे केवल अपने कबीले तथा आस-पास के लोगों को ही जानते हैं। दूर रहने वाले मनुष्यों को वे नहीं जानते। इसका परिणाम यह होता है कि अपरिचित लोगों से उनमें भयभीत होने की भावना होती है। किसी अपरिचित के मिलने पर भागकर उस समय अथवा सदा के लिए अपनी रक्षा कर लेते हैं। | |
| 21. | संसार में प्रत्येक प्राणी को क्या अधिकार है? | 
| Answer» संसार में प्रत्येक प्राणी को अधिकार है कि वह सुखी रहे। उसको यह भय न हो कि कोई उसके सुख में बाधा डालेगा। इस प्रकार निर्भय रहकर ही मनुष्य सुखी रह सकता है। यदि उसको भय रहेगा कि कोई उसको दु:खी कर सकता है तो वह सुखी रहने की बात सोच भी नहीं सकता। | |
| 22. | स्त्रियों की भीरुता उनके किस गुण के समान रसिकों को आनन्दित करती है?(क) कायरता(ख) लज्जा(ग) पाक कुशलता(घ) सुन्दरता | 
| Answer» स्त्रियों की भीरुता उनके किस गुण के समान रसिकों को आनन्दित करती है लज्जा। | |
| 23. | भय जब स्वभावगत हो जाता है, तो कहलाता है –(क) आशंका(ख) भय(ग) भीरुती(घ) धीरता। | 
| Answer» भय जब स्वभावगत हो जाता है, तो कहलाता है भीरुती | |
| 24. | शुक्ल जी के मनोविकार सम्बन्धी निबन्धों के संग्रह का नाम है –(क) चिन्तामणि(ख) अमरमणि(ग) नागमणि(घ) दिव्यमणि | 
| Answer» (क) चिन्तामणि | |
| 25. | भय किन-किन में अधिक पाया जाता है? | 
| Answer» भये बच्चों में अधिक पाया जाता है। किसी अपरिचित को देखकर वे तुरन्त घर में घुस जाते हैं। पशुओं में भी भय बहुत पाया जाता है। इसके अतिरिक्त असभ्य तथा जंगली लोगों में भी भय का प्रभाव अधिक होता है। | |
| 26. | निर्भयता के लिए शुक्ल जी ने क्या उपाय बताए हैं? | 
| Answer» मनुष्य अपने जन्म के समय से ही अपने चारों ओर के वातावरण को दु:खमय पाता है और अपनी अक्षमता के वशीभूत होकर वह दु:ख को अनिवार्य पाता है और दु:ख के कारण के प्रति उसका मन भय से भर जाता है। शुक्ल जी ने निर्भीकता के लिए निम्नलिखित उपाय बताए हैं। 
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| 27. | आशंका किसको कहते हैं? | 
| Answer» दु:ख अथवा आपत्ति का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी सम्भावना के अनुमान से उत्पन्न होने वाले आवेग शून्य भय को आशंका कहते हैं। | |
| 28. | ‘सुखी रहने’ तथा ‘मुक्तातंक होने में क्या सम्बन्ध है? क्या आपकी दृष्टि में आतंकित होकर भी मनुष्य सुखी रह सकता है? | 
| Answer» हमारी दृष्टि में आतंकित होकर कोई मनुष्य सुखी नहीं रह सकता सुखी रहने के लिए उसका मुक्तातंक अर्थात् आतंक से मुक्त होना जरूरी है। यदि उसको अपने और अपने परिवार के जीवन, अपनी सम्पत्ति आदि के सम्बन्ध में किसी प्रकार का भय रहेगा तो वह सुखी नहीं रह सकता। | |
| 29. | परिचित व्यक्तियों के प्रति मनुष्य की धारणा कैसी होती है? | 
| Answer» परिचित व्यक्तियों के प्रति मनुष्य की धारणा उस पर विश्वास करने की होती है। जैसे-जैसे परिचय बढ़ता है वैसे-वैसे ही यह धारणा मजबूत होती चली जाती है। बचपन में हम अपने माता-पिता तथा प्रतिदिन सम्पर्क में आने वाले कुछ थोड़े से ही व्यक्तियों पर विश्वास करते हैं। हमारी धारणा यह होती है कि वे हमको हानि अथवा दु:ख नहीं पहुँचाएँगे। | |
| 30. | मनुष्य के भय की वासना की परिहार कैसे होता है? | 
| Answer» किसी भावी आपत्ति अथवा दु:ख के कारण के साक्षात्कार से मनुष्य के मन में भय का भाव उत्पन्न होता है। आरम्भ से ही वह अपने आस-पास दु:खपूर्ण वातावरण फैला देखता है। उस दु:ख से बचने के उपाय का ज्ञान न होने से उसमें भय पैदा हो जाता है। जब बच्चा छोटा होता है तो वह सभी से डरता है। वह किसी अपरिचित को देखकर घर में घुस जाता है। पहली बार सामने आने वाले व्यक्ति तथा अज्ञात वस्तुओं के प्रति उसके मन में भय की ही भावना रहती है। मनुष्य के मन से इस भय के भाव का निवारण धीरे-धीरे ही होता है। शारीरिक शक्ति बढ़ने के साथ ही उसका आत्मबल बढ़ता है। शनै: शनै: उसका ज्ञान बल भी बढ़ता है। इनकी वृद्धि होने पर उसके मन से दु:ख की छाया हटती जाती है तथा दु:ख के कारण निवारणीय बन जाते हैं तथा उसके प्रति भय का जो भाव उसके मन में था, वह दूर हो जाता है। सभ्यता के विकास से भी भय का परिहार होता है। वैसे भी भय मनुष्य की शक्तिहीनता तथा अक्षमता का परिणाम होता है। शरीर बल तथा ज्ञान बल की वृद्धि होने पर कोई कष्ट अथवा दु:ख अनिवार्य नहीं रह जाता तथा मनुष्य उससे मुक्त होने का उपाय जान जाता है। ऐसी अवस्था में उस कारण से उत्पन्न भय भी उसके मन से दूर हो जाता है। उदाहरणार्थ, पहले मनुष्य भूतों और पशुओं से डरता था। किन्तु अब सभ्यता के विकास के साथ उसका ज्ञान बढ़ गया है और वह अब इनसे नहीं डरता। | |
| 31. | भय के साध्य और असाध्य दोनों रूपों को सोदाहरण समझाइए। | 
| Answer» भय के साध्य और असाध्य दो रूप हैं। असाध्य रूप वह है जिसका निवारण प्रयत्न करने पर भी न हो सके अथवा असम्भव जान पड़े। उसका साध्य रूप वह होता है कि जिसको प्रयत्नपूर्वक किया जा सकता हो । भय के किसी कारक से यदि हम प्रयत्न करके बच सकते हैं तो यह उसका साध्य रूप माना जाएगा। उदाहरणार्थ-दो मित्र आपस में बातचीत करते हुए प्रसन्तापूर्वक एक पहाड़ी, नदी के किनारे जा रहे हैं। अचानक उनको किसी शेर की दहाड़ सुनाई देती है। इससे वे भयभीत हो उठते हैं तथा शेर से बचने के लिए वहाँ से भाग जाते हैं अथवा किसी स्थान पर छिप जाते हैं अथवा किसी पेड़ पर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार उनकी रक्षा हो जाती है। उनके इस भय को प्रयत्न साध्य कहेंगे।। भय का कौन-सा रूप साध्य है अथवा कौन-सा असाध्य ! इसका निश्चय मनुष्य के स्वभाव पर निर्भर करता है। मनुष्य की विवशता तथा अक्षमता की अनुभूति के कारण ही किसी भावी कष्ट की अनिवार्यता निश्चित होती है। यदि मनुष्य साहसी होता है तो वह भयभीत नहीं होता है और यदि डरता भी है, तो उससे बचने का उद्योग करता है। ऐसी स्थिति में भय का स्वरूप साध्य हो जाता है। यदि उसको दु:ख के निवारण का अभ्यास नहीं होता अथवा उसमें साहस का अभाव होता है तो वह भय के कारण स्तम्भित हो जाता है तथा उसके हाथ-पैर भी नहीं हिलते। ऐसी स्थिति में हमें भय के असाध्य रूप के दर्शन होते हैं। | |
| 32. | आशंका किसको कहते हैं? सोदहारण स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» आशंका में निश्चय कम तथा सम्भावना अधिक होती है। दु:ख अथवा आपत्ति का पूर्ण निश्चय न रहने पर उसकी सम्भावना के अनुमान से जो आवेग रहित भय होता है, उसको आशंका कहते हैं। जंगल के रास्ते पर जाते हुए कोई पथिक सोचे कि मार्ग में कोई चीता भी मिल सकता है किन्तु पूर्ण निश्चय के अभाव में वह मार्ग पर चलता रहे। माने नहीं तो उसके मन का यह भाव आशंका कहा जाएगा। | |
| 33. | सुखी और आतंक मुक्त होने का अधिकारी है –(क) प्रत्येक पुरुष(ख) प्रत्येक बच्चा(ग) प्रत्येक स्त्री(घ) प्रत्येक प्राणी | 
| Answer» (घ) प्रत्येक प्राणी | |
| 34. | मनुष्य स्तम्भित कब हो जाता है? तब उसकी शारीरिक दशा कैसी होती है? | 
| Answer» जब मनुष्य को किसी भावी दु:ख की अनिवार्यता का निश्चय हो जाता है तथा वह जानता है कि प्रयत्न करके भी उससे बच नहीं सकता तब अपनी अक्षमता और विवशता को अनुभव कर वह स्तम्भित हो जाता है। उस दशा में उसके शारीरिक अंग काम करते और वह कोई निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है। | |
| 35. | ऐसी कौन-सी भीरुता है, जिसकी प्रशंसा होती है? | 
| Answer» संसार में एकमात्र भीरुता जिसकी प्रशंसा होती है, धर्मभीरुता है। | |
| 36. | भय की अधिकता किसमें रहती है? | 
| Answer» भय की अधिकता असभ्य तथा जंगली लोगों में अधिक होती है। भय के कारण वे सम्मान करते हैं। उनके देवी-देवता भय के प्रभाव से ही कल्पित होते हैं। जिससे वे डरते हैं उसकी पूजा करते हैं। किसी आपत्ति अथवा संकट के भय से बचने के लिए ही वे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। | |
| 37. | शक्ति और पुरुषार्थ द्वारा भय से कैसे बचा जा सकता है? | 
| Answer» दूसरों को भयभीत करने वालों को शक्ति और पुरुषार्थ प्रकट करके, उनको दण्ड का भय दिखाकर, भय से बचा जा सकता | |
| 38. | भय भीरुता में कब बदल जाता है? | 
| Answer» जब भय व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है तो वह भीरुता में बदल जाता है। | |
| 39. | आशंका और भय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» किसी भावी आपत्ति की भावना अथवा दु:ख के कारण का पता चलने पर मन में उत्पन्न होने वाले आवेगपूर्ण अथवा स्तम्भकारक मनोविकार को भय कहते हैं। आशंका एक ऐसा आवेगरहित मनोविकार है जो दु:ख की सम्भावना के अनुमान से ही उत्पन्न हो जाता है। | |
| 40. | भय का विषय किन दो रूपों में सामने आता है तथा उनमें क्या अन्तर है? | 
| Answer» भय का विषय दो रूपों में सामने आता है-एक साध्य तथा दूसरा असाध्य। जब भय का निवारण प्रयत्न से सम्भव होता है तो उसको प्रयत्न-साध्य विषय कहते हैं। इसके विपरीत जब भय के विषय का प्रयत्न करने पर निवारण न हो अथवा निवारण होने की सम्भावना न हो तो उसको असाध्य कहते हैं। | |
| 41. | मनुष्य को ‘क्रोध’ कब आता है? | 
| Answer» दु:ख के कारण का स्वरूप-बोध होने पर मनुष्य को क्रोध आता है। दु:ख देने वाला क्रोध का लक्ष्य होता है। | |
| 42. | व्यापारी द्वारा नया व्यापार शुरू न करने, पण्डित का शास्त्रार्थ में भाग न लेने का मूल कारण क्या हो सकता है? | 
| Answer» व्यापारी किसी हानि के भय से किसी नए व्यापार में हाथ नहीं डालता तथा पण्डित पराजित होने और मानहानि होने के भय से शास्त्रार्थ से दूर भागता है। दोनों के मूल में भीरुता की भावना रहती है। | |
| 43. | पुरुषों में भीरुता का होना कैसा समझा जाता है? | 
| Answer» पुरुषों में भीरुता का होना निन्दनीय समझा जाता है। | |
| 44. | शुक्ल जी के कथन “इस सार्वभौम वणिग्वृत्ति से उसका अनर्थ कभी न होता, यदि क्षात्रवृत्ति उसके लक्ष्य से अपना लक्ष्य अलग रखती।” का आशय क्या है? क्षात्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है? | 
| Answer» क्षात्रवृत्ति से तात्पर्य है क्षत्रिय का धर्म अर्थात् सुशासन । अनुचित प्रवृत्तियों के नियन्त्रण में रखना ही शासन-सत्ता का कर्तव्य है। यदि देशों की शासन-सत्ताएँ विभिन्न देशों में व्याप्त आर्थिक स्पर्द्ध तथा शोषण में सहयोग न करतीं और उनको नियन्त्रण में रखतीं तो संसार में होने वाले निर्धन देशों के शोषण, उत्पीड़न तथा उनमें व्याप्त निर्धनता को रोका जा सकता था। | |
| 45. | दुःख की छाया को हटाने के लिए व्यक्ति किन बलों का उपयोग करता है? और कैसे? | 
| Answer» प्रत्येक प्राणी होश सँभालते ही अपने चारों ओर दुःखपूर्ण संसार रच लेता है। इसको क्रमश: अपने ज्ञान-बल से तथा कुछ बाहुबले से सुखमय बनाता है। क्लेश और बाधा को वह जीवन का सामान्य हिस्सा तथा सुख को उसका अपवाद समझता है। धीरे-धीरे मनुष्य की आयु बढ़ती है और उसके ज्ञान तथा शारीरिक शक्ति की वृद्धि होती है। उसके परिचय-क्षेत्र का विस्तार होता है तथा उसके ज्ञान की भी वृद्धि होती है। पहले वह अपने माता-पिता के सम्पर्क में आता है तथा धीरे-धीरे परिवार तथा बहुत से लोग उसके सामने प्रतिदिन आते हैं। वह जान लेता है कि ये लोग उसको सुख पहुँचाएँगे, दु:ख नहीं देंगे। धीरे-धीरे उसकी झिझक खुलती जाती है। उसका ज्ञान बढ़ता जाता है। उसका आत्मबल तथा शारीरिक बल भी बढ़ता जाता है। तब वह :ख से मुक्त होने के लिए तथा सुख पाने के लिए उनका उपयोग करता है। अपने आस-पास के लोगों, पशुओं, विश्वासों आदि से दु:खी होने का जो भय उसके मन में रहता है वह धीरे-धीरे दूर होता है। शारीरिक बल की वृद्धि भी उसमें आत्म-विश्वास पैदा करती है तथा उसको दु:ख सहने तथा उसे हटाकर सुख पाने की अपनी शक्ति पर विश्वास हो जाता है। यह सब धीरे-धीरे विकास के सामान्य नियम के अनुसार होता है। | |
| 46. | क्रोध और भय में क्या अन्तर है? | 
| Answer» क्रोध के लिए भय कारक का ज्ञान होना आवश्यक है किन्तु भय के लिए इतना जानना ही बहुत है कि संकट आएगा अथवा हानि होगी। | |
| 47. | शत्रु का सामना न करके वहाँ से भाग जाना क्या प्रकट करता है? | 
| Answer» शत्रु का सामना न करके वहाँ से भागना सिद्ध करता है कि भागने वाले में शारीरिक दु:ख को सहन करने की क्षमता नहीं है। | |