This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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पृथ्वी की उत्पत्ति किस गैसीय पिण्ड द्वारा कब हुई? |
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Answer» पृथ्वी की उत्पत्ति नैबुला गैसीय पिण्ड द्वारा 4600 मिलियन वर्ष पूर्व हुई थी। |
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नीहारिका परिकल्पना द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति की धारणा सर्वप्रथम किसके द्वारा प्रतिपादित की गई? |
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Answer» नीहारिका परिकल्पना द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति की अवधारणा सर्वप्रथम जर्मन विद्वान इमैनुअल काण्ट द्वारा प्रतिपादित की गई थी। |
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पृथ्वी की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए। |
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Answer» पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई निश्चित मत अभी तक प्रतिपादित नहीं हुआ है। फिर भी एक सामान्य परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति एक नैबुला (तारा) या नीहारिका के परिणामस्वरूप हुई है। ऐसा विश्वास है कि प्रारम्भ में एक धधकता हुआ गैस का पिण्ड था। यह पिण्ड भंवर के समान तीव्र गति से भ्रमण कर रहा था। तेज गति से घूमने के कारण इसके ऊपरी भाग की गर्मी आकाश में फैलने लगी और ऊपरी भाग शीतल होकर संकुचित होने लगा। ठण्डा होने एवं सिकुड़ने के कारण इस गैसीय पिण्ड की गति में और अधिक वृद्धि हुई। ऊपरी भाग घनीभूत होने तथा भीतरी भाग गैसीय एवं गर्म होने के कारण एक साथ नहीं दौड़ सके। अतः एक समय ऐसा आया जब ऊपरी भाग छल्ले के रूप में अलग होकर तेजी से घूमने लगा और इस छल्लेरूपी भाग से अलग-अलग छल्ले बने। यही छल्ले ग्रह कहलाए। पृथ्वी इन्हीं में से एक ग्रह है। |
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क्यूबा मिसाइल संकट पर विस्तार से लेख लिखिए। |
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Answer» क्यूबा का मिसाइल संकट क्यूबा, अन्ध महासागर में स्थित एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की तटीय सीमा के निकट है। क्यूबा के मिसाइल संकट को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है- 1. क्यूबा का सोवियत संघ से लगाव-क्यूबा का अपने समीपवर्ती देश संयुक्त राज्य अमेरिका की अपेक्षा सोवियत संघ से लगाव था क्योंकि क्यूबा में साम्यवादियों का शासन था। सोवियत संघ उसे कूटनयिक एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता था। |
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पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित मुख्य सिद्धान्त कौन-से हैं? |
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Answer» पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्त/परिकल्पनाएँ पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में वैज्ञानिक मतों के दो वर्ग हैं (A) अद्वैतवादी परिकल्पना-इस परिकल्पना में पृथ्वी की उत्पत्ति एक तारे से मानी जाती है। इस परिकल्पना के आधार पर कास्ते-दे-बफन, इमैनुअल काण्ट, लाप्लास, रोशे व लॉकियर ने अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किए। इस परिकल्पना के अन्तर्गत निम्नलिखित विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है– |
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| 121206. |
निम्नलिखित में से कौन भू-गर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?(क) भूकम्पीय तरंगें(ख) गुरुत्वाकर्षण बल(ग) ज्वालामुखी(घ) पृथ्वी का चुम्बकत्व |
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Answer» सही विकल्प है (ग) ज्वावालामुखी |
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भूकंपीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं? |
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Answer» जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकंप अधिकेंद्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र है। एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से भिन्न होता है। 105° के परे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचतीं। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105° से 145° तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है। |
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दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?(क) शील्ड(ख) मिश्र(ग) प्रवाह(घ) कुण्ड |
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Answer» सही विकल्प है (ग) प्रवाह |
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भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए। |
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Answer» भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों में धरातलीय चट्टानें हैं अथवा वे चट्टाने हैं जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं। खनन के अतिरिक्त वैज्ञानिक विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत पृथ्वी की आंतरिक स्थिति को जानने के लिए पर्पटी में गहराई तक छानबीन कर रहे हैं। संसार भर के वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत हैं। जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है, यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है। |
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भूगर्भीय तरंगें क्या हैं? |
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Answer» भूगर्भीय तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं, इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। भूगर्भीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है। |
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निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?(क) ऊपरी व निचले मैंटल(ख) भूपटल व क्रोड(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटले(घ) मैंटल व क्रोड |
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Answer» सही विकल्प है (ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल |
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पृथ्वी की आन्तरिक परत निफे में किन तत्त्वों की प्रधानता है?(क) सिलिका व ऐलुमिनियम(ख) सिलिका व मैग्नीशियम(ग) बैसाल्ट व सिलिका(घ) निकिल व लोहा |
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Answer» सही विकल्प है (घ) निकिले व लोहा |
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भूकम्पीय तरंगों का अध्ययन करने वाला यन्त्र है(क) बैरोमीटर(ख) थर्मामीटर(ग) वायुदाबमापी(घ) सीस्मोग्राफ |
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Answer» सही विकल्प है (घ) सीस्मोग्राफ |
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भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ, जिनसे होकरे ये तरंगें गुजरती हैं। |
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Answer» भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है। ‘P’ तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। ‘P’ तरंगें गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं। ‘S’ तरंगों के विषय में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये केवल ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती हैं। जैसे ही ये संचरित होती हैं। वैसे ही शैलों में कंपन पैदा होता है। ‘P’ तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती हैं। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इसके दबाव के फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है। अन्य तीन तरह की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कंपन पैदा करती हैं। ‘S’ तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं। |
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पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की ऊपरी परत कौन-सी है ?(क) निफे(ख) सियाल(ग) सिमा(घ) इनमें से कोई नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (ख) सियाल |
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ज्वालामुखी क्रिया को पृथ्वी की कौन-सी परत जन्म देती है। |
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Answer» सिमा की परत ज्वालामुखी क्रिया को जन्म देती है। |
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निम्न में से कौन-सी भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?(क) ‘P’ तरंगें(ख) ‘s’ तरंगें(ग) धरातलीय तरंगें।(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (क) ‘P’ तरंगें |
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निम्नलिखित के लिए एक पारिभाषिक शब्द दीजिए⦁ भूगर्भ का वह भाग जो अत्यधिक तापमान के बावजूद ठोस की तरह आचरण करता है।⦁ महाद्वीपीय के नीचे की परत का रासायनिक संघटन।⦁ भूगर्भ का वह भाग जो मिश्रित धातुओं और सिलिकेट से बना है।⦁ वह भूकम्पीय तरंग जो पृथ्वी के धात्विक क्रोड से गुजर सकती है।⦁ महासागरों के नीचे की परत की रासायनिक संरचना। |
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Answer» ⦁ आन्तरिक धात्विक क्रोड (गुरुमण्डल), |
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निष्क्रिय या शान्त ज्वालामुखी की परिभाषा तथा एक उदाहरण दीजिए। |
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Answer» निष्क्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनसे प्राचीन काल में उद्गार हुआ था, किन्तु अब वे शान्त हो चुके हैं। तथा भविष्य में भी उनमें उद्गार की कोई सम्भावना नहीं है। ईरान का कोहे-सुल्तान एक शान्त ज्वालामुखी है। |
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प्रसुप्त ज्वालामुखी किसे कहते हैं? एक उदाहरण दीजिए। |
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Answer» प्रसुप्त ज्वालामुखी वे ज्वालामुखी हैं जो सक्रिय होने के बाद काफी समय तक शान्त रहते हैं तथा पुनः सक्रिय हो जाते हैं। उदाहरण-इटली का विसूवियस ज्वालामुखी। |
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जाग्रत (सक्रिय) ज्वालामुखी का अर्थ बताते हुए इसका एक उदाहरण दीजिए। |
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Answer» जाग्रत ज्वालामुखी वे हैं जिनमें सदैव उद्गार होता रहता है। इटली का एटना ज्वालामुखी ऐसा ही है। |
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प्रसुप्त एवं शान्त ज्वालामुखियों में अन्तर बताइए। |
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Answer» प्रसुप्त ज्वालामुखी एक बार उद्गार के बाद बीच-बीच में शान्त रहते हैं तथा कुछ समय बाद उद्गार प्रारम्भ कर देते हैं। इसके विपरीत शान्त ज्वालामुखियों में एक बार उद्गार के बाद फिर कभी उद्गार नहीं होता। |
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भूकम्पों की माप से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए। |
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Answer» भूकम्पीय तीव्रता को माप को ‘रिक्टर स्केल’ (Richter Scale) या ‘भूकम्पीय तीव्रता की मापनी कहते हैं। इस मापनी के आधार पर भूकम्प तीव्रता या भूकम्प के आघात का मापन किया जाता है। इस मापनी के अनुसार भूकम्प की तीव्रता 0 से 10 तक होती है। भूकम्प आघात की तीव्रता/गहनता को इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली के नाम पर भी जाना जाता है। यह झटकों से हुई प्रत्यक्ष हानि द्वारा निर्धारित की जाती हैं। इसकी गहनता 1 से 12 तक होती है। |
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पृथ्वी के आन्तरिक भाग की भौतिक अवस्था का वर्णन कीजिए। |
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Answer» पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जाने पर प्रारम्भ में प्रति 32 मीटर की गहराई पर 1° सेग्रे तापक्रम की वृद्धि होती है। इस प्रकार पृथ्वी के आन्तरिक भाग में 20 से 30 किलोमीटर जाने पर तापक्रम की वृद्धि के कारण कोई चट्टान अपनी मौलिक अवस्था में नहीं रह सकेगी और इसे ताप आधिक्य के कारण चट्टानें द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाएँगी। ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकला लावा इनका प्रमाण है। महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति के सिद्धान्त भी आन्तरिक भाग की द्रव अवस्था में होने की सम्भावना व्यक्त करते हैं, किन्तु वहाँ की चट्टानों पर ऊपरी तल का भारी दबाव उन्हें द्रव जैसा नहीं बनने देता। अत: वहाँ की सारी स्थिति बड़ी जटिल है। यदि पृथ्वी को आन्तरिक भाग द्रव होता तो स्थल भाग भी ज्वार शक्तियों के प्रभाव से प्रभावित होता। चन्द्रमा और सूर्य की आकर्षण शक्तियों से अप्रभावित रहने और पृथ्वी के ठोस पिण्ड के समान व्यवहार के कारण अनेक वैज्ञानिक पृथ्वी को ठोस ही मानते हैं, परन्तु भूकम्प लहरों के आधार पर पृथ्वी को पूर्ण रूप से ठोस भी नहीं कहा जा सकता और उसके आन्तरिक भाग को पूर्ण रूप से द्रव अवस्था में भी नहीं माना जा सकता। अतः पृथ्वी के आन्तरिक भाग की भौतिक अवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं ⦁ पृथ्वी, ज्वार शक्तियों के प्रभाव के समय ठोस आकृति की भाँति व्यवहार करती है। |
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पृथ्वी की रासायनिक संरचना बताइए। |
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Answer» स्वेस महोदय ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को रासायनिक तत्त्वों के आधार पर निम्नलिखित तीन परतों में विभाजित किया है– 1. सिायल- पृथ्वी की ऊपरी पतली परत जो भूपर्पटी के नीचे पाई जाती है, सिलिका (Si) तथा ऐलुमिनियम (Al) की अधिकता से बनी है। इन पदार्थों के मिश्रण के कारण इसे सियाल कहा जाता है। इस परत में अम्लीय पदार्थों की प्रधानता पाई जाती है। |
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P तथा S तरंगों में अन्तर बताइए। |
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Answer» P तरंगें इन्हें प्राथमिक तरंग कहते हैं। ये ध्वनि की तरह होती हैं जो ठोस, तरह तथा गैस तीनों ही माध्यमों से गुजरती हैं। ये तीव्र गति से चलने वाली होती हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। S तरंगें इन्हें द्वितीयक तरंग कहते हैं। ये केवल ठोस पदार्थों के माध्यम से ही चलती हैं। ये तरंगें अधिक . विनाशकारी होती हैं। इनसे चट्टानें विस्थापित हो जाती हैं तथा इमारतें गिर जाती हैं। इन तरंगों की गति धीमी होती है तथा ये दोलन की दिशा में समकोण बनाती हुई चलती हैं। |
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सर्वाधिक भूकम्प किस पेटी में आते हैं?(क) प्रशान्त महासागरीय पेटी में(ख) मध्य महाद्वीपीय पेटी में(ग) मध्य अटलांटिक पेटी में(घ) बिखरे क्षेत्रों में |
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Answer» (क) प्रशान्त महासागरीय पेटी में। |
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सामान्यतः भूकम्प कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में व्याख्या कीजिए। |
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Answer» सामान्यतः भूकम्प निम्नलिखित पाँच प्रकार के होते हैं 1. विवर्तनिक (Tectonic) भूकम्प- ये भूकम्प भ्रंशतल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण उत्पन्न होते हैं। सामान्यतः अधिकांश प्राकृतिक भूकम्प विवर्तनिक ही होते हैं। |
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भूकम्प के विभिन्न प्रभाव बताइए। |
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Answer» भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है। इसका प्रभाव मानव के लिए सदा ही एक विपत्ति के रूप में देखा जाता है। भूकम्प के प्रमुख प्रकोप या प्रभाव निम्नलिखित हैं(i) भूमि का हिलना, (ii) धरातलीय विसंगति, (iii) भू-स्खलन/पंकस्खलन, (iv) मृदा द्रवण, (v) धरातलीय चट्टानों का एक ओर झुकना या मुड़ना, (vi) हिमस्खलन, (vii) धरातलीय विस्थापन, (viii) बॉध व तटबन्ध का टूटना, (ix) आग लगना, (x) इमारतों का टूटना, (xii) सुनामी। भूकम्प के उपर्युक्त सूचीबद्ध प्रभावों में से पहले छ: का प्रभाव स्थलरूपों पर देखा जा सकता है जबकि अन्य प्रभाव को उस क्षेत्र में होने वाले जन-धन की क्षति से समझा जा सकता है। |
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ज्वालामुखी उपजाऊ मिट्टी का निर्माण कैसे करते हैं? |
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Answer» ज्वालामुखी से निकले लावा के फैलकर सूखने से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण होता है। यह उपजाऊ मिट्टी पोषक तत्वों से भरपूर होती है। दक्षिण भारत में काली मिट्टी का क्षेत्र ज्वालामुखी उद्गारों की देन है। |
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भूकम्प विज्ञान से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में क्या जानकारी मिलती है ?याभूकम्पीय लहरों से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना पर क्या प्रकाश पड़ा है? |
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Answer» भूकम्प विज्ञान (Seismology) में भूकम्प की तरंगों का अध्ययन किया जाता है। इन तरंगों के अध्ययन से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। ध्वनि तरंगों के समान ही भूकम्पीय तरंगें ठोस पदार्थ के भीतर तीव्र गति से चलती हैं एवं तरल माध्यम से गुजरते हुए उनकी गति कम हो जाती है। गौण तरंगें (S-waves) तरल पदार्थ को बिल्कुल पार नहीं कर पातीं। यदि भूगर्भ की रचना सर्वत्र समान पदार्थ से होती तो भूकम्प की तरंगों के पथ में भिन्नता न होती। भूगर्भ में जहाँ कहीं भी दो भिन्न घनत्व के स्तर मिलते हैं, वहाँ इन तरंगों में अपवर्तन (Refraction) तथा परावर्तन (Reflection) हो जाता है। भूकम्पीय तरंगों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तरंगों की गति गहराई के अनुसार बढ़ती है। भूपटल से लगभग 2,900 किमी की गहराई तक लहरों की गति लगातार बढ़ती है, इसके आगे एकाएक परिवर्तन होते हैं। आड़ी तरंगें (S-waves) यहाँ पहुँचकर समाप्त हो जाती ‘, हैं। आड़ी तरंगें द्रव पदार्थ में प्रवेश नहीं कर पाती हैं; अतः यह अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी को केन्द्रीय पिण्ड तरल अवस्था में है। प्रधान तरंगें (P-waves) पृथ्वी के केन्द्र तक पहुँचती हैं, किन्तु केन्द्रीय पिण्ड में ये कम वेग से तथा मुड़कर चलती हैं। धरातलीय तरंगें (L-waves) महाद्वीपों की अपेक्षा सागरीय तल के नीचे तेजी से चलती हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि महासागरीय तल भारी या सघन पदार्थों से निर्मित है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर विद्वानों ने दो निष्कर्ष निकाले-(1) 2,900 किमी से अधिक गहराई पर भूगर्भ की रचना अधिक सघन पदार्थ से हुई है। S-तरंगों के स्वभाव के आधार पर अन्तरतम (Core) अधिक सघन किन्तु लचीली व तरल शैलों से निर्मित है। (2) अन्तरतम (Core) में केवल P-तरंगें ही प्रवेश कर पाती हैं, s-तरंगें प्रविष्ट नहीं होतीं; अत: मध्यवर्ती लौह-अन्तरतम तरल होना चाहिए। भूकम्प विज्ञान के आधार पर पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है 1. ऊपरी परत- यह पृथ्वी का सबसे बाह्य ठोस भाग है। इसकी औसत मोटाई 33 किमी है। इसको निर्माण परतदार व ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है। इस भाग की चट्टानों का औसत घनत्व 2.7 है। यही :- कारण है कि ऊपरी परत में इन लहरों की गति अति मन्द होती है। |
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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-(क) गर्म करने पर लोहे का लाल होना ____ परिवर्तन है।(ख) भौतिक परिवर्तन में वस्तु के ____ गुण बदल जाते हैं।(ग) बल्ब का जलना ____ परिवर्तन कहलाता है।(घ) चीनी गर्म करना _____ परिवर्तन है।(ङ) ऐसे परिवर्तन जिनमें नये पदार्थ बनते हैं, _____ परिवर्तन कहलाते हैं। |
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Answer» (क) गर्म करने पर लोहे का लाल होना भौतिक परिवर्तन है। |
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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-(क) प्रकृति, जल, स्थल, वायु, पेड़-पौधों एवं ____ से मिलकर बनी है।(ख) पृथ्वी के जल वाले भाग को ________ कहते हैं।(ग) जैविक एवं अजैविक घटक एक दूसरे के ____ हैं।(घ) टिड्डा एक _____ जीव है।(ङ) विद्यालय _____ पर्यावरण का हिस्सा है। |
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Answer» (क) प्रकृति, जल, स्थल, वायु, पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं से मिलकर बनी है। |
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श्वेत प्रकाश जब त्रिज्या से होकर गुजरता है तो प्रिज्म के आधार की ओर प्राप्त रंग होता है-(क) लाल(ब) पीला(स) बैंगनी(द) हरा |
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Answer» सही विकल्प है (क) लाल |
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पौधे एवं जन्तुओं की वृद्धि में मुख्य अन्तर बताइए। |
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Answer» पौधे में वृद्धि होती है तो नई शाखाएँ और पत्तियाँ निकलने लगती हैं, फिर फूल तथा फल बनते हैं, जबकि जन्तुओं में शाखाओं की तरह नए भाग न बनकर एक निश्चित समय तक उनके अंगों के आकार में वृद्धि होती है। |
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विश्व में सर्वाधिक भूकम्प कहाँ आते हैं? |
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Answer» विश्व में सर्वाधिक भूकम्प जापान में आते हैं। |
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फेरिक ऑक्साइड मिलाने से निर्मित काँच होता है –(अ) हरा(ब) गहरा नीला(स) पीला(द) बैंगनी |
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Answer» सही विकल्प है (अ) हरा |
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पौधों का मुख्य पोषक तत्व है –(अ) गन्धक(ब) ऑक्सीजन(स) नाइट्रोजन(द) कार्बन |
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Answer» सही विकल्प है (स) नाइट्रोजन |
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सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? सहज क्रियाओं की विशेषताओं तथा महत्त्व या उपयोगिता का भी उल्लेख कीजिए। |
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Answer» सहज या प्रतिक्षेप क्रियाओं का अर्थ एवं परिभाषा अर्थ–सहज यो प्रतिक्षेप क्रियाएँ (Reflex Actions) अनर्जित तथा अनसीखी क्रियाएँ हैं। जो स्वत: एवं शीघ्रतापूर्वक घटित होती हैं। ये ऐसी जन्मजात क्रियाएँ हैं जिनमें व्यक्ति की इच्छा के लिए कोई स्थान नहीं होता और न ही उनके घटित होने की अधिक चेतना ही होती है। किसी उद्दीपक से उत्तेजना मिलते ही उसके परिणामस्वरूप तत्काल प्रतिक्रिया हो जाती है; जैसे—आँखों की पलकों का झपकना, प्रकाश पड़ते ही आँख की पुतली का सिकुड़ना, छींक आना, लार बहना, खाँसना तथा अश्रुपात आदि। इस प्रतिक्रिया में मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती। सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बाह्य एवं आन्तरिक दोनों प्रकार की उत्तेजनाओं से होती हैं। यहाँ उद्दीपक अनजाने में मिलता है तथा उद्दीपक मिलते ही अविलम्ब प्रतिक्रिया सम्पन्न हो जाती है। पैर में काँटा चुभते ही तुरन्त पैर खिंच जाता है. और आँख के पास कोई वस्तु आने पर आँख झपक जाती है। इस प्रकार की अनुक्रियाओं की गति इतनी तेज होती है कि इनमें न के बराबर समय लगता है। यदि लटकी हुई टॉग पर घुटने के नीचे काँटा चुभा दिया जाए तो टाँग खिंचने में केवल 0.3 सेकण्ड को समय काफी है। किन्तु कुछ अनुक्रियाओं में अपेक्षाकृत अधिक समय भी लगता है; जैसे—प्रकाश पड़ने पर आँख की पुतली का सिकुड़ना, स्वादिष्ट व्यंजन देखकर मुँह में लार आना तथा गर्म वस्तु छूने पर हाथ खींच लेना आदि। सहज या प्रतिक्षेप क्रियाएँ बालक के जन्म से पूर्व गर्भावस्था के पाँचवे-छठे मास में ही प्रारम्भ हो जाती हैं। परिभाषा- सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है वुडवर्थ के अनुसार, “सहज (प्रतिक्षेप) क्रिया एक अनैच्छिक और बिना सीखी हुई क्रिया है जो किसी ज्ञानवाही उद्दीपक की मांसपेशीय अथवा ग्रन्थीय प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।” आइजैक के अनुसार, “प्रतिवर्ती क्रिया से अभिप्राय प्राणी की अनैच्छिक एवं स्वचालित अनुक्रियाओं से है जो वह वातावरण के परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न हुए उद्दीपकों के प्रति करता है। ये अनुक्रियाएँ प्राय: गत्यात्मक अंगों से सम्बंधित होती हैं तथा इनके फलस्वरूप मांसपेशी, पैर एवं हाथों में सहज गति का आभास होता है।” सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ⦁ सहज क्रियाएँ जन्मजात हैं तथा गर्भावस्था से ही इनकी शुरुआत मानी जाती है। जन्म के तुरन्त बाद से ही बालक इन्हें प्रकट करना शुरू कर देता है। ⦁ इन्हें अचेतन मन से तुरन्त सम्पन्न होने वाली क्रियाएँ कहा जाता है जिनमें चेतन मानसिक क्रियाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता। ⦁ इनमें अधिक समय नहीं लगता और अल्पकाल में ही पूर्ण होकर ये समाप्त भी हो जाती हैं। ⦁ ये स्थानीय हैं जिन्हें करने में शरीर का एक भाग ही क्रियाशील रहता है। ⦁ इन क्रियाओं की प्रबलता उद्दीपक की प्रबलता पर निर्भर होती है। ⦁ इनसे शरीर को कोई क्षति नहीं होती, क्योंकि इनके करने या मानने का उद्देश्य व्यक्ति की रक्षा है। जीवन में सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं की उपयोगिता या महत्त्व सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ न केवल अनियन्त्रित, अनैच्छिक, अनर्जित तथा प्रकृतिजन्य हैं; अपितु जैविक दृष्टि से भी उपयोगी हैं। इन्हें सीखना नहीं पड़ता; इनकी क्षमता तो मनुष्य में जन्म से ही होती है। मानव-जीवन में इनका उपयोग निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है। (1) आकस्मिक घटनाओं से रक्षा- सहज (प्रतिक्षेपी) क्रियाएँ अकस्मात् घटने वाली घटनाओं से मनुष्य की रक्षा करती हैं। ये शरीर को बाह्य खतरों तथा आक्रमणों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती हैं। आँख के निकट जब कोई वस्तु आती है, पलकें तत्काल ही झपक जाती हैं। (2) स्वेच्छा से कार्य सम्पन्न– सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ अनैच्छिक होती हैं। इनके माध्यम से बहुत-से कार्य स्वतः ही सम्पन्न हो जाते हैं जिससे आवश्यकतानुसार शरीर को सहायता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए भोजन जब आमाशय में पहुँचता है, स्वत: ही स्राव निकलते हैं जो भोजन के पाचन में सहायता देते हैं। (3) गतिशीलता- ये क्रियाएँ अचानक ही प्रकट होती हैं तथा कार्य की पूर्णता के साथ ही समाप्त भी हो जाती हैं। ऐच्छिक क्रियाओं की अपेक्षा इनमें गतिशीलता बहुत अधिक पाई जाती है। (4) वातावरण से अनुकूलन- सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाएँ मनुष्य का उसके वातावरण से अनुकूलन करने में सहायक सिद्ध होती हैं। प्रायः देखा जाता है कि वातावरण में ताप वृद्धि से पसीने की ग्रन्थियाँ पसीना निकालकर शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं। परिणामस्वरूप शरीर का तापक्रम कम हो जाता है। (5) समय एवं आवश्यकतानुसार सहायक- ये क्रियाएँ मनुष्य की उसके जीवनकाल में उचित समय पर तथा आवश्यकतानुसार सहायता करती हैं। मानव-जीवन के विलास-क्रम में विभिन्न सोपानों पर इन क्रियाओं की परिपक्वता स्वाभाविक दृष्टि से सहायता देती है। खाँसने की सहज क्रिया जन्म के कुछ समय उपरान्त लेकिन काम सम्बन्धी सहज क्रिया किशोरावस्था में प्रकट होती है। |
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सुषुम्ना के कार्य बताइए। |
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Answer» केन्द्रीय स्नायु-संस्थान के एक भाग के रूप में सुषुम्ना (Spinal Cord) के मुख्य कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है 1. प्रतिक्षेप क्रियाओं का संचालन– सुषुम्ना का एक मुख्य कार्य प्रतिक्षेप अथवा सहज क्रियाओं को संचालन करना है। प्रतिक्षेप क्रियाओं से आशय उन क्रियाओं से है जो मस्तिष्क एवं विचार शक्ति से परिचालित नहीं होतीं तथा इन्हें सीखने की भी आवश्यकता नहीं होती है; जैसे-पलकों का झपकना, काँटा चुभते ही हाथ को खींच लेना, प्रकाश पड़ते ही आँख की पुतली का सिकुड़ना आदि। ये सभी क्रियाएँ जीवन के लिए विशेष उपयोगी होती हैं तथा इनका संचालन सुषुम्ना द्वारा ही किया जाता है। 2. बाहरी उत्तेजनाओं की जानकारी मस्तिष्क को देना– सुषुम्ना नाड़ी का एक उल्लेखनीय कार्य पर्यावरण से प्राप्त होने वाली उत्तेजनाओं की जानकारी मस्तिष्क को प्रदान करना है। (3) मस्तिष्क द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन- सुषुम्ना द्वारा जहाँ एक ओर बाहरी उत्तेजनाओं की सूचना मस्तिष्क को दी जाती है, वहीं दूसरी ओर सुषुम्ना ही मस्तिष्क द्वारा ग्रहण की गयी उत्तेजनाओं को कार्य रूप में परिणत करने का कार्य भी करती है। (4) सुषुम्ना के नियन्त्रक कार्य- सुषुम्ना एक नियन्त्रक के रूप में भी कुछ कार्य करती है। पर्यावरण से प्राप्त होने वाली कुछ उत्तेजनाओं को सुषुम्ना मस्तिष्क तक पहुँचने ही नहीं देती तथा स्वयं ही उन उत्तेजनाओं के प्रति तुरन्त आवश्यक प्रतिक्रिया कर देती है। |
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⦁ व्यक्ति के व्यवहार के संचालन एवं नियन्त्रण का कार्य करने वाला संस्थान ……………. कहलाता है।⦁ स्नायु-संस्थान की रचना……………..⦁ ………………. और …………… दोनों केन्द्रीय स्नायु तन्त्र के भाग हैं। ⦁ स्नायु संस्थान का मुख्य केन्द्र …………….होता है।⦁ विभिन्न इन्द्रियाँ ही हमारे ……………….. हैं।⦁ संग्राहकों का कार्य बाह्य वातावरण से ……………… ग्रहण करना होता है। ⦁ रासायनिक ग्राहकों द्वारा हमें …………..एवं …………. की संवेदना प्राप्त होती है।⦁ वृहद् मस्तिष्क के अग्र खण्ड में ……………क्षेत्र पाये जाते हैं।⦁ वृहद् मस्तिष्क के मध्य खण्ड में ………….. के अधिष्ठान या केन्द्र पाये जाते हैं।⦁ वृहद् मस्तिष्क के पृष्ठ खण्ड में ………….. अधिष्ठान या क्षेत्र पाया जाता है।⦁ वृहद् मस्तिष्क के शंख खण्ड में …………….. अधिष्ठान या क्षेत्रं पाया जाता है।⦁ शारीरिक सन्तुलन को बनाये रखने में ………… द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है।⦁ साँस लेना, रक्त-संचार, श्वसन, निगलना तथा पाचन आदि क्रियाओं का संचालन ….. द्वारा किया जाता है।⦁ शरीर तथा वातावरण के बीच उचित सामंजस्य बनाये रखने का कार्य मस्तिष्क के …….. नामक भाग द्वारा किया जाता है।⦁ सुषुम्ना…………. का एक भाग है।⦁ सुषुम्ना शरीर के बाह्य अंगों को …………….से जोड़ती है।⦁ अनुकम्पित तथा परा-अनुकम्पित स्नायुमण्डल …………..कार्य करते हैं।⦁ मानव मस्तिष्क तथा शरीर के बाहरी एवं आन्तरिक भागों में सम्पर्क की स्थापना……….. द्वारा होती है।⦁ प्रतिक्षेप या सहज क्रियाओं का केन्द्र ……………. है।⦁ अन्त:स्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले स्राव को ……….कहते हैं। |
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Answer» 1. स्नायु संस्थान, 2. अत्यधिक जटिल, 3. मस्तिष्क, सुषुम्ना नाड़ी, 4. मस्तिष्क, 5. संग्राहक अंग, 6. उत्तेजनाएँ, 7. स्वाद, गन्ध, 8. क्रियात्मक अधिष्ठान या क्षेत्र, 9. त्वचा तथा मांसपेशियों, 10. दृष्टि, 11. श्रवण, 12. लघु मस्तिष्क, 13. मध्य मस्तिष्क, 14. सेतु, 15. केन्द्रीय स्नायु-संस्थान, 16. मस्तिष्क, 17. परस्पर सहयोग से, 18. संयोजक स्नायु मण्डल, 19. सुषुम्ना नाड़ी, 20. हॉर्मोन्स। |
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मानव मस्तिष्क को कुल कितने भागों में बाँटा जाता है? |
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Answer» मानव-मस्तिष्क को चार भागों में बाँटा जाता है- ⦁ वृहद् मस्तिष्क ⦁ लघु मस्तिष्क ⦁ मध्य मस्तिष्क या मस्तिष्क शीर्ष तथा ⦁ सेतु। |
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सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाओं के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» सहज अथवा प्रतिक्षेप क्रियाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है (1) शारीरिक प्रतिक्षेप (Physiological Reflexes)- ये वे सहज क्रियाएँ हैं जो स्वयं घटित होती हैं। इनके सम्पन्न होने में व्यक्ति को किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता और न ही इनके होने का ज्ञान ही होता है; जैसे—आँख पर चौंध पड़ते ही बिना किसी चेतना या ज्ञान के हमारी आँख की पुतली स्वत: सिकुड़ जाती है और आमाशय में भोजन पहुँचने के साथ-ही वहाँ ग्रन्थियों से स्राव होने लगता है। (2) सांवेदनिक प्रतिक्षेप (Sensation Reflexes)- इन सहज क्रियाओं का ज्ञान व्यक्ति को हो जाता है; उदाहरणार्थ-आँख में धूल पड़ने पर पलक का चेतन होकर झपकना, नाक में तिनका आदि छूने से छींक आना तथा गले में खराश होने पर खाँसी उठना। सांवेदनिक प्रतिक्षेप को चेष्टा या इच्छा-शक्ति द्वारा कुछ क्षणों के लिए रोक पाना सम्भव है, किन्तु नियन्त्रण हटते ही सहज क्रिया अधिक आवेग से होने लगती है। आवश्यकता पड़ने पर खाँसी को कुछ समय के लिए इच्छा शक्ति से रोका जा सकता है, किन्तु नियन्त्रण हटते ही अधिक बल से खाँसी आती है। |
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प्रतिक्षेप चाप के विषय में आप क्या जानते हैं? |
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Answer» प्रतिक्षेप चाप का सम्बन्ध प्रतिक्षेप अथवा सहज क्रियाओं से है। प्रतिक्षेप चाप (Reflex Arc) एंक़ मार्ग है जिसका उन ज्ञानवाही तथा कर्मवाही स्नायुओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। जो सहज (प्रतिक्षेप) क्रियाओं के सम्पन्न होने में भाग लेते हैं। वुडवर्थ ने उचित ही कहा है- “वह मार्ग जो एक ज्ञानेन्द्रिय से प्रारम्भ होकर स्नायु केन्द्र से होते हुए एक मांसपेशी तक पहुँचता है, प्रतिक्षेप चाप कहलाता है।” |
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वृहद मस्तिष्क किन-किन खण्डों में बँटा होता है? |
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Answer» वृहद् मस्तिष्क चार खण्डों में बँटा होता है- ⦁ अग्र खण्ड, ⦁ मध्य खण्ड, ⦁ पृष्ठ खण्ड तथा ⦁ शंख खण्ड। |
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केन्द्रीय स्नायु संस्थान को किन-किन भागों में बाँटा जाता है? |
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Answer» केन्द्रीय स्नायु-संस्थान को दो भागों में बाँटा जाता है— ⦁ मस्तिष्क तथा ⦁ सुषुम्ना नाड़ी। |
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स्वतःचालित स्नायुमण्डल द्वारा संचालित मुख्य क्रियाओं का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» स्वत:चालित स्नायुमण्डल द्वारा संचालित होने वाली मुख्य क्रियाएँ हैं–पाचन क्रिया, श्वसन क्रिया, फेफड़ों का कार्य, हृदय का धड़कना तथा रक्त-संचार जैसी अनैच्छिक क्रियाएँ। |
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मानवीय क्रियाएँ मुख्य रूप से कितने प्रकार की होती हैं? |
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Answer» मानवीय क्रियाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं-ऐच्छिक क्रियाएँ तथा अनैच्छिक क्रियाएँ। |
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संयोजक स्नायुमण्डल के कार्यों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» संयोजक स्नायुमण्डल एक ओर तो शरीर की ज्ञानेन्द्रियों से सन्देश ग्रहण कर उसे केन्द्रीय स्नायु-संस्थान तक पहुँचाता है तथा दूसरी ओर केन्द्रीय स्नायु-संस्थान से प्राप्त आदेशों को प्रभावकों तक प्रेषित करता है। |
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दौड़ते समय शारीरिक सन्तुलन बनाये रखने के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क काकौन-सा भाग जिम्मेदार होता है?(क) वृहद् मस्तिष्क(ख) लघु मस्तिष्क(ग) थैलेमस(घ) सुषुम्ना शीर्ष |
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Answer» (घ) सुषुम्ना शीर्ष |
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