This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 124701. |
“तुलसीदास का उदास भाव तिरोहित हो गया, कब?” उन्होंने क्या किया? ” |
|
Answer» राजा भगत के आगमन का समाचार सुनते ही तुलसी का उदास भाव तिरोहित हो गया। वे मन्दिर के दालान से बाहर आए। और आँगन पार करते हुए फाटक की ओर तेजी से बढ़ चले। |
|
| 124702. |
तुलसीदास केशव से क्या प्रार्थना करते हैं? |
|
Answer» हे प्रभो ! एक बार यह कक्ष तुम्हारे आश्वासन भरे स्वर से गूंज उठे, तुम कह दो कि तुलसी तू मेरा है, तो बस फिर मुझे कुछ नहीं चाहिए। |
|
| 124703. |
टोडर की क्या अभिलाषा थी? |
|
Answer» टोडर ने कहा कि रत्नावली हमारे घर पधारें। उनकी अभिलाषा थी कि गठजोड़े से महात्माजी हमारे घर भोजन करें। उनकी जूठन गिरने का सौभाग्य मेरे घर को मिलेगा। उस दिन मेरा जन्म सार्थक हो जाएगा। |
|
| 124704. |
“भोग के लिए भोजन में कौन-कौन से व्यंजन बनें?” शिष्य के पूछने पर तुलसी ने क्या उत्तर दिया? |
|
Answer» खिन्न मन से तुलसी ने उत्तर दिया-“जो भगवान को रुचता हो वही बनाओ जो रुचे सो बनाओ।” |
|
| 124705. |
“आप उन्हें अब यही रहने दें महात्माजी ….।” टोडर के इस कथन का तुलसीदस ने क्या उत्तर दिया? |
|
Answer» तुलसी ने कहा- “क्या तुम चाहते हो कि मैं अपने अथवा अपनी पत्नी के सुख के लिए समाज की आस्था को अधर ही में लटका दें? यह असम्भव है। |
|
| 124706. |
तुलसीदास के जीवन में क्या-क्या उतार-चढ़ावे आये? |
|
Answer» तुलसीदास ने अपने जीवन में दुख-सुख के दिन देखे थे। वे स्वयं स्वीकार करते हैं कि कभी एक कटोरी छाछ के लिए भी तरसना पड़ता था। एक यह दिन है जब सोंधे दूध की मलाई खाते समय खुनस आती है। |
|
| 124707. |
भोजन के समय तुलसी को क्या अनुभव होता था? |
|
Answer» भोजन के समय उन्हें अपनी थाली के हर व्यंजन में रत्नावली के हाथ का स्पर्श मालूम पड़ता। वे थाली के सामने बैठकर बार-बार रत्नावली की छवि के साथ अपने मन में बँध जाते थे। |
|
| 124708. |
तुलसीदास रत्नावली से क्या अपेक्षा करते थे? |
|
Answer» तुलसीदास चाहते थे कि रत्नावली उनके बालमित्र की धर्मपत्नी के प्रति अपना आदर प्रकट करने जाएँ। |
|
| 124709. |
कविता का सरल अर्थ :अमल धवल ………. घिरते देखा है। |
|
Answer» कवि हिमालय पर्वत के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मैंने निर्मल, स्वच्छ, उज्ज्वल (बर्फ से आच्छादित) पर्वत की चोटियों पर बादलों को घिरते हुए देखा है। वे कहते हैं कि मैंने बादल से छोटे-छोटे मोती जैसे शीतल, बर्फीले जल कणों को मानसरोवर झील में कमल के खिले हुए सुनहरे फूलों पर गिरते हुए देखा है। मैंने शिखरों पर बादलों को घिरते हुए देखा है। |
|
| 124710. |
कवि ने किन रंगों के संयोजन से इन्द्रधनुषी प्रभाव पैदा किया है ? |
|
Answer» कवि देखते हैं कि मानसरोवर झील में कमल के सुनहरे फूल खिले हुए हैं। उन पर बर्फ से आच्छादित चोटियों पर घिरे हुए बादलों से मोती-से जलकण गिर रहे हैं। आसपास की झीलों में कमलनालों की लालिमा लिए हुए आभा बिखर रही है। सुबह बाल-सूर्य की सुनहरी किरणे पर्वत-शिखरों पर गिरकर उन्हें भी सुनहरा बना रही हैं। मानसरोवर के पानी में शैवालों की हरी दरी-सी बिछी हुई है। इस प्रकार कवि ने कविता में लाल, श्वेत, स्वर्णिम, नील-श्यामला, हरा आदि रंगों का प्रयोग करके इन्द्रधनुषी प्रभाव पैदा किया है। |
|
| 124711. |
कवि ने किरणों और शिखर को कैसा बताया है ? |
|
Answer» बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि ने सुबह के बाल-सूर्य की किरणों और शिखर पर इन किरणों के पड़ते सुनहरे प्रकाश का वर्णन किया है। कवि ने किरणों को मृदु तथा शिखर को स्वर्णाभ अर्थात सोने की आभा जैसा बताया है। |
|
| 124712. |
‘मानस को हंस’ पाठ का मुख्य कथ्य क्या है? |
|
Answer» इस अंश में तुलसीदास का अन्तर्द्वन्द्व, तत्कालीन समाज की मन:स्थिति तथा रत्नावली की त्यागमयी प्रतिमूर्ति का दिग्दर्शन है। तुलसीदास को राम भक्ति के शिखर पुरुष के रूप में दिखाया गया है। तुलसीदास के हृदय में.रत्नावली के प्रति स्नेह है और उसके परित्याग का पश्चात्ताप भी है। उनके मार्ग में रत्नावली बाधक नहीं बनती बल्कि तपस्विनी भारतीय नारी के समान उनका साथ देती है। तुलसीदास ने लोक-कल्याण के लिए वैराग्यमय जीवन का अनुसरण किया है। इस सारी बातों का चित्रण ही इस पाठ को कथ्य है। |
|
| 124713. |
“मैं अपने मन से बड़ा ही दुखी हूँ रघुनाथ।” तुलसीदास अपने मन से क्यों दुखी थे? |
|
Answer» तुलसीदास के शब्दों में संयम, जप, तप, नियम, धर्म, व्रत आदि सारी औषधियाँ करके मैं हार गया पर मेरा मन मेरे काबू में नहीं आया। आप ही कृपा करके उसे निरोग बना सकते हैं। इसलिए मैं दुखी हूँ। |
|
| 124714. |
राजा ने रत्नावली की क्या विशेषता बताई? |
|
Answer» राजा ने रत्नावली की यह विशेषता बताई कि भौजी तपस्विनी हैं। उनका तप देखकर ही हम अपने मन को ठिकाने पर ला पाए हैं। इस कलिकाल में ऐसा कठिन जोग साधने वाली जोगिन मैंने नहीं देखी। |
|
| 124715. |
भावुक गोस्वामी जी युगल मूर्ति की ओर टकटकी लगाकर भिखारी जैसी दीन मुद्रा में देखते हुए क्या सोचने लगे? |
|
Answer» तुलसीदास सोचने लगे-हे रामजी, मेरा मन अभी सधा भी नहीं था कि आपने मुझे इस वैभव की भट्टी में डालकर और अधिक तपाना आरम्भ कर दिया। आप मुझ दीन-दुर्बल की ऐसी कठोर परीक्षा क्यों ले रहे हैं। मैं अति अधर्म प्राणी हूँ, तभी आप मुझे अपनी प्रतीति नहीं दे रहे हैं। एक बार मुझे अपना कहकर मेरे हृदय को आश्वस्त कर दो। फिर मेरी कोई चाह नहीं रह जाएगी। मैं आप से फिर कुछ नहीं माँगूंगा। मुझे तो आपका भरोसा और आपका सान्निध्य चाहिए। भगवान अवश्य बोलेंगे। इसी आशा में वे टकटकी लगाकर भगवान की युगल मूर्ति को निहारने लगे। |
|
| 124716. |
तुलसीदास ने पतंग-डोर का उदाहरण देकर दर्शनार्थियों को क्या समझाया? |
|
Answer» हाथ में डोर सधी होने पर पतंग आकाश में कहीं भी उड़ती रहती है, उसे कोई बाधा नहीं होती। उस प्रकार अपने इष्ट को साधकर भाव की डोर में बँधी हुई मन की पतंग को सारे आकाश में उड़ाओ, सब देवों के प्रति श्रद्धा अर्पित करो तो इष्ट भी सर्वव्यापी और सर्व सामर्थ्यवान के रूप में अपने आप को प्रकट करेगा। मन को प्रभु के चरणों में लगाए रहो। सभी देवी-देवताओं की आराधना करो पर अपने मन को अपने इष्ट के प्रति लगाए रहो। अपने इष्ट की ओर से मन भटकना नहीं चाहिए। पतंग सारे आकाश में उड़ती है। पर उसका सम्बन्ध चुटकी की डोर से जुड़ा रहता है। |
|
| 124717. |
तोत्तो-चान ने स्कूल के हेडमास्टर को स्टेशन मास्टर क्यों कहा? |
|
Answer» स्कूले कमरों के स्थान पर छह बेकार रेलगाड़ी के डिब्बों के अन्दर लगता था। रेलगाड़ी का मालिक स्टेशन मास्टर होता है, इसलिए उसने स्कूल हेडमास्टर को स्टेशन मास्टर कहा। |
|
| 124718. |
तोत्तो-चान को स्कूल जाते देख माँ की आँखें क्यों भर आयीं ? |
|
Answer» माँ की चुलबुली बिटिया, जो पहले एक स्कूल से निकाली गई थी, खुशी से स्कूल जा रही थी। उसे स्कूल जाता देख माँ की आँखें भर आईं। |
|
| 124719. |
तोत्तो-चान को वह स्कल अच्छा क्यों लगा? |
|
Answer» तोत्तो-चान को स्कूल अच्छा लगा, क्योंकि वह अन्य स्कूलों से अलग था और इसमें व्यावहारिक शिक्षा पद्धति अपनाई गई थी। |
|
| 124720. |
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग कीजिए-अचानक,सचमुच,बेकार,दफ्तर,गम्भीरता |
Answer»
|
|
| 124721. |
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए। |
|
Answer» इसका आशय है कि लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है। वर्तमान में जीना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और जीवन में उन्नति होती है। यदि हम भूतकाल के लिए पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो दोनों बेमानी या निरर्थक हो जाएँगे। हम भूतकाल से शिक्षा लेकर तथा भविष्य की योजनाओं को वर्तमान में ही परिश्रम करके कार्यान्वित कर सकते हैं। भगवान कृष्ण ने ‘गीता’ में भी वर्तमान में ही जीने का संदेश दिया है ताकि मनुष्य तनाव रहित मुक्त रहकर स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन बिता सके। |
|
| 124722. |
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है? |
|
Answer» ‘गिन्नी को सोना’ पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। |
|
| 124723. |
लेखिका ने इस पाठ का नाम ‘स्कूल मुझे अच्छा लगा रखा है।आपको इस पाठ का नाम रखना हो तो क्यों रखेंगे और क्यों ? |
|
Answer» ‘अनूठा स्कूल’ क्योंकि उस स्कूल में बच्चों को रेलगाड़ी के डिब्बों में पढ़ाना सचमुच एक अनूठा प्रयोग था। |
|
| 124724. |
‘इस कलिकाल में ऐसा कठिन जोग साधने वाली जोगिन मैंने नहीं देखी’-पंक्ति में ‘जोगिन’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? |
|
Answer» यह कथन राजा भगत का है और उन्होंने ‘जोगिन’ शब्द रत्नावली के लिए प्रयुक्त किया है। |
|
| 124725. |
कवि ने छोटे-छोटे मोती जैसे कणों को मानसरोवर में कहाँ पर गिरते देखा है ?(क) स्वर्ण कमल पर(ख) बादलों पर(ग) फूलों पर(घ) हरी घास पर |
|
Answer» सही विकल्प है (क) स्वर्ण कमल पर |
|
| 124726. |
आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए। |
|
Answer» आज व्यावहारिकता का जो स्तर है, उसमें आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है। व्यवहार और आदर्श दोनों का संतुलन व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। ‘कथनी और करनी’ के अंतर ने समाज को आदर्श से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। सत्य, अहिंसा, परोपकार जैसे मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। शाश्वत मूल्य वे होते हैं, जो पौराणिक समय से चले आ रहे हों, वर्तमान में भी जो महत्त्वपूर्ण हों तथा भविष्य में भी जो उपयोगी हों। ये प्रत्येक काल में समान रहे। युग, स्थान तथा साल का इन पर कोई प्रभाव न पड़े। वर्तमान समय में भी इन शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है। सत्य और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। ये शाश्वत मूल्य युगों-युगों तक कायम रहेंगे। |
|
| 124727. |
गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए। |
|
Answer» वास्तव में गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे, उसकी कीमत पहचानते थे, और उसकी कीमत जानते थे। वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन व दांडी मार्च जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए। भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। इसी अद्भुत क्षमता के कारण ही गांधी जी देश को आज़ाद करवाने में सफल हुए थे। |
|
| 124728. |
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया? |
|
Answer» चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की गति मंद हो गई हो। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना बंद हो गया हो उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगा कि मानो वह अनंतकाल से जी रहा है। वह भूत और भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो। उसे वह पल सुखद लगने लगे। |
|
| 124729. |
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं? |
|
Answer» चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से, अच्छे व सहज ढंग से की। |
|
| 124730. |
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है? |
|
Answer» यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। जीवन में आदर्श के साथ व्यावहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावहारिकता के समावेश से आदर्श सुंदर व मजबूत हो जाते हैं। |
|
| 124731. |
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है? |
|
Answer» पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे हैं, जिनमें व्यावहारिकता का कोई स्थान न हो। केवल शुद्ध आदर्शों को महत्त्व दिया जाए। शुद्ध सोने में ताँबे का मिश्रण व्यावहारिकता है, तो इसके विपरीत शुद्ध सोना शुद्ध आदर्श है। |
|
| 124732. |
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं? |
|
Answer» प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं। इनका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये कई बार आदर्शों से पूरी तरह हट जाते हैं और केवल अपने हानि-लाभ के बारे में सोचते हैं। ऐसे में समाज का स्तर गिर जाता है। |
|
| 124733. |
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है? |
|
Answer» शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है, क्योंकि गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है इसलिए | वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। शुद्ध सोने में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती। |
|
| 124734. |
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-(क) 1. अँगीठी सुलगायी। 2. उस पर चायदानी रखी। (ख) 1. चाय तैयार हुई। 2. उसने वह प्यालों में भरी। (ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया। 2. तौलिये से बरतन साफ़ किए। |
|
Answer» (क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी। (ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी। (ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए। |
|
| 124735. |
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है? |
|
Answer» जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वह स्थान पर्णकुटी जैसा सजा होता है। वहाँ बहुत शांति होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ अत्यधिक शांति का वातावरण होता है। |
|
| 124736. |
‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों? |
|
Answer» ‘टी-सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता है। ऐसा शांति बनाए रखने के लिए किया जाता है। |
|
| 124737. |
समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है। |
|
Answer» इसका आशय है कि समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है, तो वास्तव में यह धरोहर आदर्शवादी लोगों की ही दी हुई है। जैसे-गांधी जी का अहिंसा और सत्याग्रह का संदेश, राजा हरीशचंद्र की सत्यवादिता तथा भगतसिंह की शहादत आदि अनेक हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। हम इनके दिखाए रास्ते पर चलते हैं और इनके गुणों को आचरण में लाते हैं। |
|
| 124738. |
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है? |
|
Answer» दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने से वह दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। जापान के लोग पूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धा में हैं, वे किसी भी तरीके से उन्नति करके अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं। इसलिए उनका मस्तैिष्क सदा तनावग्रस्त रहता है। इस कारण वे मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगाने की बात इसलिए कही क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं इसलिए उनका दिमाग भी तेज़ रफ्तार से स्पीड इंजन की भाँति सोचता है। |
|
| 124739. |
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत |
|
Answer» शब्द – वाक्य प्रयोग व्यावहारिकता – सिद्धांत और व्यावहारिकता के मेल से व्यक्ति का व्यवहार अच्छा बन जाता है। आदर्श – गांधी जी अपने आदर्श बनाए रखते थे। सूझबूझ – सूझबूझ से काम करने पर मुश्किल आसान हो जाती है। विलक्षण – सुभाषचंद्र बोस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। शाश्वत – प्रकृति परिवर्तनशील है, यह शाश्वत नियम है। |
|
| 124740. |
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए- (क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है। 2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं। (ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था। 2. उसमें पानी भरा हुआ था। (ग) 1. चाय तैयार हुई। 2. उसने वह प्यालों में भरी। 3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए। |
|
Answer» (क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं। (ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था। (ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई। |
|
| 124741. |
अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों। |
|
Answer» लेखक जब अपने मित्रों के साथ जापान की ‘टी-सेरेमनी में गया तो चाजीन ने झुककर उनका स्वागत किया। लेखक को वहाँ का वातावरण बहुत शांतिमय प्रतीत होता है। लेखक देखता है कि वहाँ की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। चाजीन द्वारा लेखक और उसके मित्र का स्वागत करना, अँगीठी जलाना, चायदानी रखना, बर्तन लगाना, उन्हें तौलिए से पोंछना, चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ मन को भाने वाली थीं। यह देखकर लेखक भाव-विभोर हो गया। वहाँ की गरिमा देखकर लगता था कि जयजयवंती राग का सुर गूंज रहा हो। |
|
| 124742. |
हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। |
|
Answer» जापान के लोगों के जीवन की गति बहुत अधिक बढ़ गई है इसलिए वहाँ लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं। कोई बोलता नहीं है, बल्कि जापानी लोग बकते हैं और जब ये अकेले होते हैं, तो स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं अर्थात् स्वयं से ही बातें करते रहते हैं। |
|
| 124743. |
मीराबाई ने कृष्ण प्रेम को किससे सींचा? |
|
Answer» मीराबाई ने कृष्ण प्रेम को आँसुओं से सींचा। |
|
| 124744. |
विष का प्याला किसने भेजा था? |
|
Answer» विष का प्याला राणा ने भेजा था। |
|
| 124745. |
यह संसार किसका खेल है? |
|
Answer» यह संसार चिड़ियों का खेल है। |
|
| 124746. |
मीराबाई का मन किसे देखकर रोता है? |
|
Answer» मीराबाई का मन जग (इस संसार) को देखकर रोता है। |
|
| 124747. |
मीराबाई ने प्रेम मग्न होकर क्या पी लिया? |
|
Answer» मीराबाई ने प्रेम मग्न होकर विष का प्याला पी लिया। |
|
| 124748. |
मीराबाई की कृष्णभक्ति का वर्णन कीजिए। |
|
Answer» मीराबाई कृष्ण की अनन्य भक्त है। वह अपना सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित करती है। वह कहती है, मेरे तो केवल गिरधर गोपाल हैं, दूसरा कोई नहीं है। इसी कारण मैं ने उसे पाने के लिए भाई-बन्धु, समस्त परिवार को छोड़ दिया है। साधु-संतों की संगती में बैठकर लोक लाज़ खोया है। अपने आँसुओं से सींच-सींच कर अपने हृदय में कृष्ण के प्रेम की बेल बो लिया है। जब राणा ने मुझे कृष्ण भक्ति से विमुख करने के लिए विष का प्याला भेजा तो प्रसन्नता से पी लिया। मेरी लगन गिरधर कृष्ण से लग गई है, यह छूट नहीं सकती। |
|
| 124749. |
मीराबाई सांसारिक बन्धन से क्यों मुक्ति चाहती हैं? |
|
Answer» मीराबाई का मानना है कि इस संसार में जो आता है, वह मोह-माया के बन्धन में फँस जाता है और वह ऐसी स्थिति में ईश्वर को नहीं पा सकता। इतना ही नहीं, उसे मुक्ति या मोक्ष भी मिलना कठिन हो जाता है। इस आकाश और भूमि के बीच दिखाई पड़नेवाला सब नष्ट होनेवाला है। तीर्थयात्रा, वृत, ज्ञान की बातें, और काशी में करवट लेने की बात झूठी और आडंबर मात्र है। शरीर का घमण्ड नहीं करना है। यदि ईश्वर को पाना है और मोक्ष पाना है, तो संसार के बन्धनों से छुटकारा पाना अति आवश्यक है। इसलिए मीराबाई इस सांसारिक बन्धन से मुक्ति चाहती है। |
|
| 124750. |
पद का भावार्थ लिखें:भज मन चरण कंवल अविनासी ॥टेक॥जेताइ दीसां धरनि गगन मां ते ताईं उठि जासी।तीरथ बरतां आन कथन्तां कहा लयां करवत कासी।या देही रो गरब ना करना माटी मा मिल जासी।यो संसार चहर री बाजी साँझ पड्या उठ जासी।कहा भयां था भगवां पहा, घर तज लयां संन्यासी।जोगी होय जुगत ना जाना उलट जनम रां फाँसी।अरज करंस अबला स्याम तुम्हारी दासी।मीरां रे प्रभु गिरधर नागर कांट्या म्हारी गांसी॥ |
|
Answer» भावार्थ : हे मन! उस अविनाशी कृष्ण के चरण-कमलों का स्मरण कर। इस धरती और आकाश के बीच जितना जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सबका सब नष्ट हो जायेगा। तीर्थयात्रा .. करना, व्रत रखना या ज्ञान की बातें कहना और काशी में करवट लेना आदि सब बातें झूठी हैं और आडम्बर हैं। इस शरीर का घमंड नहीं करना चाहिए। यह तो नश्वर है और एक दिन मिट्टी में मिल जायेगा। यह संसार तो चिड़ियों का खेल है, जो संध्या समय होते ही समाप्त हो जायेगा। इस भगवे कपड़े को पहनने से क्या लाभ और घर छोड़ संन्यास लेने से क्या फायदा, यदि योगी होकर मुक्ति को नहीं जान पाया। इस प्रकार केवल दिखावा करने से आवागमन (जीवन-मरण रूपी चक्र) की फाँसी समाप्त नहीं होती। हे श्याम! तुम्हारी दासी मीरा हाथ जोड़कर विनती कर रही है कि हे गिरिधर नागर! मेरे सांसारिक बंधनों को नष्ट कर दो। |
|