InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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नायिका के शरीर पर सोने के गहने दिखाई क्यों नहीं पड़ते? |
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Answer» नायिका के शरीर का रंग सोने से मिलता हुआ है। अत: उसके शरीर पर गहने दिखाई नहीं पड़ते। |
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| 2. |
समान आभा के कारण नजर न आने वाले नायिका के आभूषणों की पहचान किस प्रकार होती है? |
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Answer» आभूषणों की पहचान हाथ से शरीर को छूने पर आभूषणों की कठोरता से उनकी पहचान हो पाती है। |
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| 3. |
जगत के चतुर चितेरों को भी मूढ़ बनना पड़ा। कवि ने ऐसा क्यों कहा? |
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Answer» पूर्व समय में चित्रकार किसी भी व्यक्ति का चित्र हाथों से बनाया करते थे। चित्र बनाते समय व्यक्ति को एक ही मुद्रा में चित्रकार के सामने बैठना होता था। इस नायिका की छवि पल पल में बदलती रहती थी। अत: चित्रकार जब उसकी ओर देखता था उसे उसकी मुद्रा या स्वरूप में कुछ अन्तर दिखाई देता था। इस कारण चित्रकार उसका यथावत चित्र नहीं बना पाता था। इसी कारण वह मूर्ख सिद्ध होता था। |
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| 4. |
“अंग-अंग नग जगमगत दीपसिखा सी देह।।दिया बढ़ाएँ हूँ, बड़ौ उज्यारौ गेह॥प्रस्तुत दोहे में सखी नायक से नायिका की छवि की प्रशंसा करते हुए क्या कहना चाहती है? |
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Answer» सखी इस दोहे में नायक के सामने नायिका के उज्ज्वल रूप की, उसके गौरवर्ण की प्रशंसा करके नायक को नायिका के प्रति आकर्षित करना चाह रही है। वह यह भी संकेत कर रही है कि रात्रि के समय भी नायिका के घर में उसके रत्नजटित आभूषणों और उज्जवल रूप के कारण प्रकाश बना रहता है। |
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| 5. |
गोपियों ने श्रीकृष्ण की वंशी छिपा ली है –(क) वंशी के द्वेष के कारण(ख) कृष्ण का ध्यान आकर्षित करने के लिए।(ग) बातें करने के लालच में(घ) कृष्ण को तंग करने के लिए। |
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Answer» (ख) कृष्ण का ध्यान आकर्षित करने के लिए। |
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| 6. |
“कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत लजियात।भरे भौन में करत है, नैननु ही सों बात ॥”प्रस्तुत दोहे के माध्यम से (अनुसार) नायक नायिका आँखों की चेष्टाओं के माध्यम से किन भावों को प्रकट कर रहे हैं? |
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Answer» नायक- नायिका आँखों की चेष्टाओं द्वारा कुछ कहने की, असहमत होने की, प्रसन्नता की, खीझने की, मिलन सुख की, हर्षित होने की और लजाने की मनोभावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य के हृदय की भावनाएँ उनके नेत्रों से झलक जाती हैं। |
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| 7. |
स्याम शरीर पर पीताम्बर धारण किए कृष्ण लगते हैं –(क) मानो नीलकमल के बीच पराग हो(ख) मानो काले बादलों के बीच सूर्य हो(ग) मानो नीले आकाश में इन्द्रधनुष हो(घ) मानो नीलम की शिला पर प्रात:काल की धूप पड़ रही हो। |
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Answer» (घ) मानो नीलम की शिला पर प्रात:काल की धूप पड़ रही हो। |
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| 8. |
“तो पर बारौं उरबसी …… उरबसी समान।” दोहे में प्रयुक्त अलंकार हैं –(क) रूपक और उपमा(ख) यमक और उपमा(ग) श्लेष और उपमा(घ) पुनरुक्ति प्रकाश |
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Answer» (ग) श्लेष और उपमा |
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| 9. |
श्रीकृष्ण के आगमन पर वन के मोर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं? |
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Answer» श्रीकृष्ण के आगमन पर मोर उनके श्याम स्वरूप को बादल समझकर हर्ष से नाचने लगते हैं। |
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| 10. |
बिहारी सतसई में किस रस की प्रधानता है –(अ) शान्त(ब) श्रृंगार(स) वीर(द) हास्य |
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Answer» बिहारी सतसई में किस रस की प्रधानता है श्रृंगार |
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| 11. |
स्याम रंग में डूबकर चित्त हो रहा है –(क) काला(ख) उजला(ग) भद्दा(घ) प्रसन्न |
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Answer» स्याम रंग में डूबकर चित्त हो रहा है उजला। |
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| 12. |
बिहारी की काव्य-शैली है –(अ) मुक्तक काव्य शैली(ब) खण्ड काव्य शैली(स) गीतिकाव्य शैली(द) प्रबन्धकाव्य शैली |
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Answer» (अ) मुक्तक काव्य शैली |
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| 13. |
श्रीकृष्ण के श्याम-सलौने शरीर पर पीताम्बर देखकर कवि के मन में क्या कल्पना जागती है? |
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Answer» कवि को लगता है कि मानो नीलम रत्न की शिला पर प्रात:काल की पीली धूप पड़ रही हो। |
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| 14. |
भौंरी गुलाब की जड़ को छोड़कर क्यों नहीं जाता? |
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Answer» भौंरे को आशा है कि बसंत ऋतु आने पर गुलाब की नंगी डालियों पर फिर वैसे ही सुन्दर फूल आएँगे। |
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| 15. |
वन के मोरों को बिना वर्षा ऋतु के ही नाचते देख गोपी ने क्या अनुमान किया? |
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Answer» उसने अनुमान किया कि उधर श्रीकृष्ण आए हुए हैं जिनके श्याम शरीर को बादल समझकर मोर नाच उठे हैं। |
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| 16. |
नायिका की छवि को चित्र में न उतार पाने में गरबीले और अभिमानी चित्रकार क्यों असफल हो गए? इसका क्या कारण हो सकता है? अपना मत लिखिए। |
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Answer» मेरे मत के अनुसार इसका कारण छवि या सुन्दरता की भारतीय परिभाषा में स्थित है। पुराने आचार्यों और कवियों की मान्यता है, “जो क्षण-क्षण में नवीनता धारण करे वही रमणीयता (सुन्दरता) का वास्तविक स्वरूप है।” नायिका परम सुन्दरी है। उसकी छवि हर पल बदलती रहती है। अत: बड़े-बड़े कुशल चित्रकार भी उसकी छवि को अंकित कर पाने में असफल रहते हैं। कवि ने नायिका की सुन्दरता की अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है। |
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| 17. |
नायिका और नायक नेत्रों ही नेत्रों में बातें क्यों कर रहे हैं? |
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Answer» उनके प्रेम प्रसंग का किसी को पता न चल पाए, इसलिए वे नेत्रों द्वारा ही अपनी मनोभावनाएँ प्रकट कर रहे हैं। |
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| 18. |
नायिका अपने मन की बात नायक को क्यों नहीं बता पा रही है? |
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Answer» नायिका कागज पर लिख नहीं पाती और मुँह से कहते हुए उसे लज्जा आती है। इसी कारण नायक को वह मन की बात नहीं बता पा रही है। |
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| 19. |
राधिका कृष्ण के हृदय में किसके समान होकर बसी हुई है? |
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Answer» राधा उर्वशी के समान सुन्दर होकर कृष्ण के हृदय में बसी हुई है। |
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| 20. |
“कब कौ टेरतु दीन-रट …… जगनाइक जग बाय॥प्रस्तुत दोहे में कवि ने उलाहना देते हुए किस पर कटाक्ष किया है? |
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Answer» कवि ने उलाहना देते हुए जगत के गुरु और नायक श्रीकृष्ण पर कटाक्ष किया है। |
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| 21. |
यमुना के तट पर जाकर कवि को कैसा अनुभव होता है? |
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Answer» यमुना तट की कुंजों की सुखदायी छाया और शीतल सुगन्धित वायु के स्पर्श से उसे लगता है कि वह श्रीकृष्ण की निकटता का अनुभव कर रहा है। |
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| 22. |
आगे बिंदी लगने पर अंक हो जाते हैं –(क) दुगुना।(ख) दस गुना(ग) शून्य(घ) पाँच गुना |
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Answer» आगे बिंदी लगने पर अंक हो जाते हैं दस गुना। |
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| 23. |
“नैननु ही सौं बात” का आशय क्या है? दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» कवि ने दो प्रेमी नायक-नायिकाओं की चेष्टाओं का वर्णन किया है। दोनों ऐसे भवन में मिले हैं जहाँ अन्य अनेक व्यक्ति उपस्थित हैं। अपने प्रेम सम्बन्ध को अपने तक ही सीमित रखने अथवा संकोच के कारण वह आँखों ही आँखों में वे अपने मन के भावों को व्यक्तं कर रहे हैं। नेत्रों के संकेतों से मन की भावनाएँ प्रकट होती हैं। |
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| 24. |
सांसारिक सुखों के जाल में फंसने के बाद जीव के साथ क्या होता है? |
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Answer» एक बार इनके जाल में फंसने पर मनुष्य जितना छूटने का प्रयत्न करता है, उतना ही और उलझता चला जाता है। |
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स्त्री के मस्तक पर बिंदी लगाने पर क्या होता है? |
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Answer» बिंदी लगने पर उसकी सुन्दरता अवर्णनीय हो जाती है। |
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| 26. |
कवि ने रघुपति राम पर क्या आरोप लगाया है? |
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Answer» कवि ने आरोप लगाया है कि वह झूठी प्रशंसा पाकर इठलाते फिरते हैं। |
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| 27. |
झीने वस्त्रों में नायिका कैसी लग रही है? |
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Answer» नायिका ऐसी लग रही है मानो समुद्र के जल में झिलमिल करती कल्पवृक्ष की पत्तों से भरी डाली हो। |
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संसार के चतुर चित्रकार मूर्ख क्यों सिद्ध हुए? |
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Answer» परम सुन्दरी नायिका की छवि का चित्र न बना पाने के कारण चित्रकार मूर्ख सिद्ध हो गए। |
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“दिया बढ़ाएँ हूँ रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह॥” कवि ने इस कथन को क्या आप वास्तविक मान सकते हैं? कवि का आशय क्या है? स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» दीपक बुझा देने पर भी नायिका के सुन्दर शरीर के कारण घर में उजाला बना रहना अतिशयोक्तिपूर्ण कथन है। कोई कितना भी गोरा और सुन्दर हो लेकिन वह दीपशिखा का काम नहीं कर सकता। उसकी सुन्दरता और रंग-रूप उजाले से ही सुशोभित दिखाई दे पाते हैं। अत: यह कथन में नायिका की सुन्दरता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। बिहारी पर रीतिकालीन सौन्दर्य-वर्णन की अतिशयोक्तिपूर्ण शैली के प्रभाव का यह एक सुन्दर नमूना है। |
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| 30. |
“अजों तयौना…… बसि मुकुतन के संग।।” |
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Answer» कवि ने सन्देश दिया है कि महापुरुषों की संगति व्यक्ति को सहज ही मोक्ष का मार्ग दिखा सकती है। |
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| 31. |
एक संख्या के आगे बिंदी (शून्य) लगाने और एक स्त्री के मस्तक पर बिंदी लगाने पर क्या अन्तर दिखाई देता है? दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सभी जानते हैं कि जब किसी संख्या के आगे बिंदी अर्थात् शून्य लगा दी जाती है तो वह संख्या दस गुनी हो जाती है। कवि कहता है जब यही बिंदी किसी रमणी के मस्तक पर लगती है तो उसकी सुन्दरता अगणति गुनी हो जाती है। कवि का यह कथन पाठकों को चमत्कृत करने के लिए है। यह भी ज्ञात होता है कि कवि को नारी-सौन्दर्य की गहरी समझ है। |
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आज के सांसारिक गुरु और नायकों का स्वभाव कवि के अनुसार क्या है? कवि ने अपने इष्टदेव पर क्या व्यंग्य किया है? लिखिए। |
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Answer» कवि ने अपने दोहे में अपने इष्टदेव को ताना दिया है कि वह कब से दीनतापूर्ण पुकार रहा है पर प्रभु उसकी पुकार को अनसुनी करते आ रहे हैं। उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं कवि व्यंग्यात्मक लहजे में जगत के गुरु और जगत के नायक भगवान से कहता है हे प्रभु! लगता है आपको भी संसार की हवा लग गई है। आप भी आज के गुरु और नायकों के समान, दुखियों और असहायों की पुकार को अनसुनी करने लगे हैं। |
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“आपको भी संसार की हवा लग गई है।” कवि ने भगवान से ऐसा क्यों कहा है? |
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Answer» कवि बहुत समय से दीन भाव से भगवान को पुकार रहा है, किन्तु वे उसकी सहायता को नहीं आए। वे भी आजकले के कठोर हृदय, बड़े आदमियों जैसे हो गए हैं। |
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कवि ने ‘आँवार’ किसे कहा है? |
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Answer» कवि ने भगवान का भजन त्याग कर सांसारिक विषयों के भोग में लिप्त रहने वाले को ‘गॅवार’ कहा है। |
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‘अनुरागी चित्त’ की कवि ने क्या विशेषता बताई है? इसका आशय क्या है? स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» कवि कहता है इस अनुराग (प्रेम) में मग्न हृदय की अद्भुत प्रकृति को समझ पाना बड़ा कठिन है। यह ज्यों-ज्यों श्याम (काला) रंग में डूबता है, उतना ही उतना उजला होता चला जाता है। यह परस्पर विरोधी कथन है। इस कथन का आशय है कि व्यक्ति जितना-जितना श्याम (श्रीकृष्ण) के रंग (भक्ति या प्रेम) में डूबता है, त्यों-त्यों उसका हृदय पवित्र और प्रसन्न होता चला जाता है। |
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“डीठिन परत समान दुति, कनक, कनक-से गात।” इस पंक्ति द्वारा कवि ने नायिका की सुन्दरता के विषय में क्या विशेषता दिखाई है? दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» कवि इस पंक्ति में कह रहा है कि नायिका के स्वर्ण जैसे गौर वर्ण शरीर पर पहने गए सोने के आभूषण, एक जैसी चमक के कारण दिखाई नहीं पड़ते । केवल हाथों से छुए जाने पर कवि जताना चाहता है कि इसे सुन्दरी के शरीर की कान्ति सोने के समान है। किन्तु सोना उसकी बराबरी नहीं कर सकता। सोना कठोर है और नायिका के अंग कोमल हैं। |
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भगवान के प्रेमी हृदय के कवि ने क्या विशेषता बताई है? |
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Answer» भगवद् प्रेमी हृदय जितना-जितना श्याम रंग (कृष्ण भक्ति) में डूबता है, उतना ही उजला (पवित्र) होता जाता है। |
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कवि बिहारी राधा नागरी से क्या और क्यों अनुरोध कर रहे हैं? संकलित दोहे के आधार पर लिखिए। |
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Answer» कवि बिहारी चतुर राधा से अपनी भव-बाधाओं को दूर करने का अनुरोध कर रहे हैं। उन्होंने राधा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वह इतनी सुन्दर और प्रभावशालिनी हैं कि उनकी झलक मात्र देखते ही कृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं। इस प्रकार राधिका जी को मना लेने पर उन्हें श्रीकृष्ण की कृपा भी स्वत: प्राप्त हो जाएगी और उनकी अभिलाषा सहज ही पूरी हो जाएगी। |
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“को छूट्यौ…… उरझत जात ॥” इस दोहे में कवि ने ‘जाल’ और ‘कुरंग’ शब्दों को किनका प्रतीक बनाया है? दोहे की शैलीगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» दोहे में कवि ने सांसारिक सुखों के मोह में पड़े व्यक्तियों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला है। कवि ने दोहे में ‘जाल’ को सांसारिक सुखों का और ‘कुरंग’ को मोहग्रस्त लोगों का प्रतीक बनाया है। झूठे सुखों के मोह जाल में जो व्यक्ति एक बार फंस जाता है वह लाख प्रयत्न करने पर भी उससे बाहर नहीं निकल पाता। वह जितना इस जाल से छूटने का प्रयत्न करता है, जाल उसे उतना ही और उलझाता चला जाता है। कवि ने अपनी बात कहने के लिए प्रतीकात्मक तथा अन्योक्तिपरक शैली का प्रयोग किया है। |
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| 40. |
“बतरस लालच …… नटि जाइ॥” इस दोहे में आप रस-योजना की दृष्टि से क्या विशेषता देखते हैं? स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» इस दोहे में कवि ने संयोग श्रृंगार रस की सर्वांगपूर्ण योजना की है। गोपियाँ कृष्ण से वार्तालाप करने का अवसर चाहती हैं। इस लालच में उन्होंने कृष्ण की परमप्रिय वंशी को छिपा दिया है। कृष्ण जब उनसे वंशी के बारे में पूछते हैं तो वे सौगंध खाकर मैनी कर देती हैं। उनकी भौंहों में झलकती हँसी को देख कृष्ण जब उनसे वंशी माँगते हैं तो वे साफ मना कर देती हैं। कवि ने इस प्यार भरी छेड़छाड़ का जो सजीव शब्द चित्र अंकित किया है वह संयोग श्रृंगार रस का सर्वांगपूर्ण स्वरूप प्रस्तुत करता है। इसमें भाव, अनुभाव और संचारी भाव सब कुछ उपस्थित है-“सौंह करै, भौंहनु हँसौ, देन कहँ नटि जाइ ॥” |
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| 41. |
बिहारी के श्रृंगार रस के दोहों की विशेषता पाठ्यपुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर बताइए। |
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Answer» शृंगार रस के दो दोहों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाये। इस दोहे में नायिका या गोपी द्वारा श्रीकृष्ण से बाते करने के लालच से उनकी मुरली छिपा दी है। स्पष्ट है कि नायिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है। दोहा इस प्रेम व्यापार को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहा है। यहाँ श्रृंगार रस के आलम्बन श्रीकृष्ण हैं। नायिका की प्रेममयी चेष्टाएँ अनुभाव है। सौगंध खाना, होंठों से हँसना, माँगने पर मुकर जाना आदि ऐसी ही चेष्टाएँ हैं। अतः कवि ने संयोग शृंगार । रस के सभी अंगों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके श्रृंगार रस वर्णन में अपनी कुशलता का परिचय दिया है। (2) कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेसु लजात। इस दोहे में नायिका अपने हृदय का प्रेम नायक पर व्यक्त करना चाहती है। अपनी बात वह कागज पर लिख पाने में असमर्थ है। और मुँह से कहने में उसे लज्जा आ रही है। अत: वह सोच कर मन को धीरज बँधा रही है कि यदि नायक उस से सच्चा प्रेम करता है तो उसके मन की बात को वह अपने मन में अवश्य अनुभव कर लेगी। सच्चे प्रेमभाव को लेख या वाणी से प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती। उसे तो दोनों पक्ष सहज ही अपने हृदयों में अनुभव कर लिया करते हैं। नायिका की सरल हृदयता ही इसे प्रेम-प्रसंग की विशेषता है। |
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आपकी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि बिहारीलाल के दोहे किन-किन विषयों पर हैं? लिखिए। |
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Answer» संकलित दोहे कवि ने भक्ति, नीति तथा श्रृंगार विषयों पर रचे हैं। |
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पाठ्यपुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर कवि बिहारी के शृंगार-वर्णन की विशेषताओं का परिचय दीजिए। |
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Answer» संकलित दोहों में से अधिकांश, बिहारी लाल के श्रृंगार रस वर्णन का परिचय कराते हैं। शृंगाररस रीतिकालीन कवियों का सर्वाधिक प्रिय विषय रहा है। कवि बिहारीलाल भी श्रृंगार रस वर्ण में पारंगत है। श्रृंगार रस के सभी प्रमुख अंग संकलित दोहों में विद्यमान हैं। रूप वर्णन, प्रेम प्रदर्शन, संयोग को आनंद, वियोग की वेदना, अनुभाव योजना, प्रेम की सरस खिलवाड़ आदि शृंगार की सारी सामग्री इन दोहों में उपस्थित है। नायक – नायिका के रूप-सौंदर्य वर्णन के प्रसंग में कवि ने अलंकारों और चमत्कार पूर्ण कथनों का पूरा सहयोग लिया है। श्रीकृष्ण के पीताम्बर-सुशोभित श्याम शरीर को कवि ने नीलमणि पर प्रात:काल की धूप बताया है। (सोहत ओढ़े…………….पर्यो प्रभात ।।) राधा या नायिकाओं के सौन्दर्य वर्णन में कवि की विशेष रुचि है। राधा के शरीर की झलक मात्र का कमाल कवि दिखाता है। ‘झीने पट’ से झाँकती नायिका के शरीर की भक्ति का वर्णन, बिंदी लगाने पर नायिका की सुंदरता का अगणित गुना निखार कनक के आभूषणों का नायिका के कनकवर्ण शरीर से एक रूप हो जाना, दीपशिखा सी देह वाली नायिका का घर दिया बुझा देने पर भी प्रकाश से जगमगाना आदि रूप वर्णन की विशेषताओं से युक्त है। रूप वर्णन में कवि ने अतिशयोक्ति का भरपूर प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त मुरली छिपाने में प्रेम भरी खिलवाड़, “कहत नटत, रीझन खिझत” में अनुभाव सौन्दर्य, “कहिहै सब तेरौ हियौ’ में विरह वेदना आदि का हृदय स्पर्शी चित्रण है। इस प्रकार संकलित दोहे कवि बिहारी के श्रृंगार वर्णन की सभी प्रमुख विशेषताओं से परिचित कराते हैं। |
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कवि बिहारीलाल को ‘गागर में सागर’ भरने वाला कहा जाता है। संचालित दोहों के आधार पर इस कथन पर आप अपना मत लिखिए। |
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Answer» 'गागर में सागर भरना’ एक मुहावरा है। इसका अर्थ है थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला । कवि बिहारी ने अपनी काव्य-रचना के लिए छोटे से छंद दोहा को चुना है। दो पंक्तियों में वह इतना भाव सौन्दर्य, अलंकरण और कथन की विचित्रता भर देते हैं कि पाठक मुग्ध हो जाता है। संकलित दोहों में अनेक दोहे बिहारी के इस गुण को प्रमाणित करते हैं।“अर्जी तयौना……… मुकुतन के संग ॥” दोहे में कवि ने विराधोभास का चमत्कर प्रदर्शित करते हुए, अनेक विषयों को नीति-कथन का लक्ष्य बनाया है। साधारण अर्थ है कि निरंतर एक ही रंग (स्वर्ण वर्ण) में रहते हुए तरयौना कान में ही पड़ा हुआ है जबकि मोतियों से युक्त होकर बेसर नाक पर स्थान पा गई है। यहाँ कवि ने ‘कान’ की उपेक्षा ‘नाक’ को श्रेष्ठ-सम्मान का प्रतीक-बताया है। अन्य अर्थों में वेद-अध्ययन की अपेक्षा महापुरूषों की संगति को उद्धर का श्रेष्ठ साधन बताया गया है। इसके अतिरिक्त कवि ने राजदरबारों में व्याप्त आपसी कांट-छांट के वातावरण को भी प्रकाशित किया है। ‘श्रुति सेवन’ का अर्थ कान भरना -चुगली करना-और ‘नाकवास’ को सम्मान का स्थन बताते हुए ‘तटस्थ और निष्पक्ष’ व्यवहार भी महत्ता सिद्ध की है। ऐसे ही अन्य दोहे हैं-“कौ छुटयौ……… उरझत जात ॥” “कहत नटत…….सौं बात’ ।। तथा “कागद पर …………मेरे हिय की बात ।” आदि है। |
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संकलित दोहों की सप्रसंग व्याख्याएँ।बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।सौंह करै भौंहनु हँसै, दैन कहै नटि जाइ॥ |
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Answer» कठिन शब्दार्थ- बतरस = बातें करने का आनंद। लाल = श्रीकृष्ण। मुरली = वंशी। धरी लुकाइ = छिपाकर रख दी। सौंह = सौगंध, कसम। भौंहन = भौंहों से। दैन कहै = देने की कहने पर। नटि जाइ = मना कर देती है। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी लाल के दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने कृष्ण और गोपियों के बीच चल रही सरस ठिठोली का मनोहरी चित्र अंकित किया है। व्याख्या-गोपियाँ अपने परम प्रिय कृष्ण से बातें करने का अवसर खोजती रहती हैं। इसी बतरस (बातों के आनंद) को पाने के। प्रयास में उन्होंने कृष्ण की वंशी को छिपा दिया है। कृष्ण वंशी के खो जाने पर बड़े व्याकुल हैं। वे गोपियों से वंशी के बारे में पूछते हैं तो गोपियाँ (झूठी) सौगंध खाकर कहती हैं कि उन्हें वंशी के बारे में कुछ पता नहीं। साथ ही वे भौंहों के संकेतों में मुसकराती भी जाती हैं कृष्ण को लगता है। कि वंशी इन्हीं के पास है। किन्तु जब वह वंशी लौटाने को कहते हैं तो गोपियाँ साफ मना कर देती हैं। विशेष- |
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संकलित दोहों की सप्रसंग व्याख्याएँ।को छूट्यौ इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात।ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत, त्यौं त्यौं उरझत जात॥ |
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Answer» कठिन शब्दार्थ- छूट्यौ = छूटा है, मुक्त हुआ है। इहि = इस। जाले = सांसारिक मोह बंधन। कत = क्यों। कुरंग = हरिण। अकुलात = छटपटाता है। सुरझि = सुलझ कर। भज्यौ चहत = भागना चाहता है। त्य-त्यौं = उतना ही। उरझत जात = उलझता जाता संदर्भ तथा प्रसंग- प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी लाल के दोहों से लिया गया है। कवि सांसारिक विषयों में लिप्त लोगों की दशा पर खेद व्यक्त करते हुए, उन पर व्यंग्य कर रहा है कि इन विषयों के जाल में जो एक बार हँस गया, उसका इनसे छूट पाना बड़ा कठिन होता है। व्याख्या- कवि सांसारिक बन्धनों में जकड़े हुए लोगों को संबोधित करते हुए कह रहा है-अरे बावले हरिण। तू जिस जाल में फंस गया है उससे आज तक कौन छूट पाया है। तू व्यर्थ छटपटा रहा है। इस जाल में जो जीव एक बार फँस जाता है, वह जितना-जितना छूटने का प्रयत्न करता है, उतनी ही और इसमें फंसता चला जाता है। अन्योक्ति के अनुसार अर्थ है- अरे सांसारिक सुखभोगों के जाल में फंसे पड़े मनुष्य ! इन झूठे सुखों के जाल में फंस जाने पर, इनसे छूट पाना असम्भव हो जाता है। इनके दुखमय परिणामों से त्रस्त होकर, अब तू छूटने को छटपटा रहा है, तेरा यह प्रयास व्यर्थ है। तू जितना ही इनसे छूटने का प्रयत्न करेगा, ये तुझे उतना ही और उलझाते चले जाएँगे। विशेष- |
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अपनी पाठ्यपुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर कवि बिहारी लाल द्वारा बात को विचित्र रूप में कहने की कुशलता पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» अपनी बात को कुछ अनोखे ढंग से कहना कवि की लोकप्रियता को बढ़ाने में काफी योगदान करता है। इसे ‘उक्ति-वैचिव्य’ भी कहा जाता है। इस गुण को दर्शाने वाले कई दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। “बंधु भए ……………….झूठे विरद कहाई॥” दोहे में कवि ने लक्ष्या शब्द शक्ति का उपयोग करते हुए, भगवान से विचित्र ढंग से अपने उद्धार की प्रार्थना की है। रघुराइ (राम) ने अनेकों पतितों का उद्धार किया है किन्तु कवि ने उन्हें चुनौती दे डाली है। वह कहनी चाहता है कि जब उस जैसे पापी का उद्धार राम ने नहीं किया तो उनका पतित-पावन कहे जाना झूठा है। इस प्रकार कवि ने भगवान राम से सीधे-सीधे अपने उद्धार की प्रार्थना न करके विचित्र ढंग अपनाया है। इसी प्रकार “कब कौ टेरतु………..जगबाइ ।’ दोहा भी बिहारी की ‘वचन-वक्रता’ का सुंदर नमूना है। वह कहते हैं–“हे जगत् गुरु! हे जग नायक लगता है आप को भी संसार की हवा लग गई है।” कवि ने सांसारक प्रभुओं के दोनों के प्रति उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के उजागर करने के साथ, ही एक कुशल वकील की तरह, अपने उद्धार की दलील पेश की है। इसी प्रकार “लिखन बैठि………..चितेरे कूर॥” “कहत सबै…………बढ़त उदोतु ॥” आदि दोहे भी कवि की कथन कुशलता को दर्शा रहे हैं। |
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पाठ्य पुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर कवि बिहारीलाल की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए। |
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Answer» हमारी पाठ्यपुस्तक में कवि बिहारी लाल के भक्तिपरक पाँच दोहे संकलित है। इन दोहों से उनकी भक्ति भावना को पूर्ण परिचय प्राप्त होता है। कवि ने प्रथम दो दोहों में राधा की स्तुति की है। प्रथम दोहे में कवि राधा नागरी से अपने सांसारिक कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करता है। दूसरे दोहे में कवि ने राधा के अनुपम सौन्दर्य का और श्रीकृष्ण के मन में उनके निवास का वर्णन किया है। ऐसा लगता है कि दोहों में भक्ति भावना प्रदर्शित करने के बजाय कवि ने अपनी अलंकार प्रियता और उक्ति वैचित्र्य की कुशलता का परिचय कराया है। प्रथम दोहे में श्लेष का चमत्कार है तो दूसरे दोहे में यमक के चमक-दमक भक्ति भाव पर करती है। तीसरे दोहे में कवि ने भगवान राम को चुनौती दी है कि वे उस जैसे पापी का उद्धार करके दिखाएँ। चौथे दोहे में कवि ‘स्याम’ पर जमाने की हवा लग जाने का आरोप लगा रहा है और पाँचवे दोहे में कवि ने श्याम के रंग में रंग जाना ही मनुष्य के चित्त धन्यता बतायी है। कवि के भक्ति भाव को सख्यभाव की भक्ति माना जा सकता है। |
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